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Aurangzeb (1618-1707 AD)
jp Singh 2025-05-27 10:37:47
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औरंगजेब (1618-1707 ई.)

औरंगजेब (1618-1707 ई.)
औरंगजेब (1618-1707 ई.), जिनका पूरा नाम मुहियुद्दीन मुहम्मद औरंगजेब आलमगीर था, मुगल साम्राज्य के छठे शासक थे। उनका शासनकाल (1658-1707) मुगल साम्राज्य के क्षेत्रीय विस्तार का चरम था, लेकिन साथ ही यह साम्राज्य के पतन की शुरुआत का दौर भी माना जाता है। औरंगजेब शाहजहाँ के तीसरे पुत्र थे और उनकी कट्टर धार्मिक नीतियों, सैन्य अभियानों, और लंबे शासनकाल के लिए जाने जाते हैं। वह एक कुशल योद्धा, रणनीतिकार, और अनुशासित शासक थे, लेकिन उनकी धार्मिक कट्टरता और निरंतर युद्धों ने साम्राज्य को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर किया।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म: औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को दाहोद (गुजरात) में हुआ था। वह शाहजहाँ और मुमताज़ महल के तीसरे पुत्र थे। उनके भाई-बहन दारा शिकोह, शाह शुजा, मुराद, और जहाँआरा थे। शिक्षा: औरंगजेब को फारसी, अरबी, और इस्लामी धर्मशास्त्र में गहन शिक्षा दी गई। वह कुरान का हाफिज (कंठस्थ करने वाला) था और इस्लामी कानून (शरिया) में निपुण था। उसे सैन्य रणनीति और प्रशासन का भी प्रशिक्षण मिला। प्रारंभिक जीवन: औरंगजेब ने कम उम्र में सैन्य अभियानों में भाग लिया। शाहजहाँ ने उसे दक्कन, बंगाल, और गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया। उसने दक्कन में अहमदनगर और बीजापुर के खिलाफ सफल अभियान चलाए। विवाह: औरंगजेब ने कई विवाह किए, जिनमें दिलरास बानो बेगम (उनकी प्रथम पत्नी) और नवाब बाई प्रमुख थीं। उनकी बेटी ज़ेबुन्निसा एक प्रसिद्ध कवयित्री थी।
उत्तराधिकार युद्ध: 1657 में शाहजहाँ की बीमारी के बाद औरंगजेब ने अपने भाइयों—दारा शिकोह, शाह शुजा, और मुराद—के खिलाफ उत्तराधिकार युद्ध लड़ा। 1658 में समथ और 1659 में खजवा के युद्धों में उसने अपने भाइयों को हराया और शाहजहाँ को आगरा किले में नज़रबंद कर सत्ता हथिया ली।
2. शासनकाल और सैन्य अभियान
औरंगजेब का शासनकाल (1658-1707) मुगल साम्राज्य के क्षेत्रीय विस्तार का शिखर था, लेकिन निरंतर युद्धों और धार्मिक नीतियों ने साम्राज्य को कमजोर किया।
प्रारंभिक शासन (1658-1680)
सिंहासनारोहण: 1658 में औरंगजेब ने दिल्ली में सिंहासन ग्रहण किया और 'आलमगीर' (विश्व-विजेता) की उपाधि ली। उसने अपने भाइयों को हटाकर और शाहजहाँ को नज़रबंद कर सत्ता मज़बूत की। प्रारंभिक चुनौतियाँ: औरंगजेब को जुझार सिंह बुंदेला, राठौड़ों, और सिखों जैसे विद्रोहों का सामना करना पड़ा। उसने इन विद्रोहों को दबाने में सख्ती बरती। प्रमुख सैन्य अभियान दक्कन अभियान: औरंगजेब ने दक्कन में बीजापुर (1686) और गोलकुंडा (1687) को मुगल साम्राज्य में मिलाया। ये विजय साम्राज्य के विस्तार का शिखर थीं। मराठों के खिलाफ निरंतर युद्ध चला, विशेष रूप से शिवाजी और उनके पुत्र संभाजी के साथ। 1689 में संभाजी को पकड़कर मार दिया गया, लेकिन मराठों का गुरिल्ला युद्ध जारी रहा।
राजपूत विद्रोह: 1679 में औरंगजेब ने जज़िया (गैर-मुस्लिमों पर कर) पुनः लागू किया, जिससे राजपूतों (विशेष रूप से मेवाड़ और मारवाड़) में असंतोष बढ़ा। मारवाड़ के राठौड़ों और मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों ने विद्रोह किया। औरंगजेब ने इन विद्रोहों को दबाया, लेकिन पूर्ण नियंत्रण स्थापित नहीं कर सका। सिखों के साथ संघर्ष: औरंगजेब की कट्टर नीतियों से सिखों में असंतोष बढ़ा। 1675 में सिख गुरु तेग बहादुर को इस्लाम अपनाने से इंकार करने पर फाँसी दी गई, जिसने सिख-मुगल संबंधों को और तनावपूर्ण बनाया। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ (1699) की स्थापना की, जो सिखों की सैन्य शक्ति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण था। असम और पूर्वोत्तर: औरंगजेब ने असम के अहोम राजा के खिलाफ अभियान चलाया, लेकिन वहाँ स्थायी सफलता नहीं मिली।
अंतिम वर्ष (1680-1707) औरंगजेब ने अपने अंतिम वर्ष दक्कन में मराठों के खिलाफ युद्ध में बिताए। निरंतर युद्धों ने खजाने को खाली किया और साम्राज्य को अस्थिर किया। मराठों, जाटों, और सतनामियों जैसे विद्रोहों ने प्रशासन को कमजोर किया।
3. प्रशासन
औरंगजेब का प्रशासन केंद्रीकृत और अनुशासित था, लेकिन उनकी कट्टर नीतियों और निरंतर युद्धों ने इसे प्रभावित किया।
केंद्रीय शासन
सम्राट की भूमिका: औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम था और स्वयं को शरिया का रक्षक मानता था। वह व्यक्तिगत रूप से प्रशासन में शामिल रहता था और सादगी से जीवन जीता था। मंत्रिपरिषद: वज़ीर, दीवान-ए-आला, मीर बख्शी, और सadr-us-sudur जैसे अधिकारी शासन में सहायता करते थे। जय सिंह, जसवंत सिंह, और मिर्ज़ा राजा जैसे राजपूत सरदार शुरू में उनके सहयोगी थे। न्याय व्यवस्था: औरंगजेब ने शरिया को कड़ाई से लागू किया। क़ाज़ी और मुह्तसिब (नैतिकता के निरीक्षक) न्याय और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखते थे। गैर-मुस्लिमों के लिए स्थानीय पंचायतें कार्य करती थीं।
प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन सूबे: साम्राज्य को 22 सूबों में बाँटा गया था, जैसे दिल्ली, आगरा, दक्कन, और बंगाल। सूबेदार प्रांतों का प्रशासन संभालते थे। मनसबदारी प्रणाली: औरंगजेब ने अकबर की मनसबदारी प्रणाली को बनाए रखा, लेकिन जागीरों का दुरुपयोग बढ़ा। उसने जागीरों का पुनर्गठन करने की कोशिश की। ज़ब्त प्रणाली: अकबर की ज़ब्त प्रणाली को जारी रखा गया, लेकिन युद्धों के कारण कर संग्रह में कठिनाइयाँ आईं। सैन्य संगठन औरंगजेब की सेना विशाल थी, जिसमें घुड़सवार, पैदल सैनिक, तोपखाना, और हाथी शामिल थे। निरंतर युद्धों ने सेना पर भारी दबाव डाला। नौसेना का उपयोग सीमित था, लेकिन बंगाल और सूरत में तटीय सुरक्षा को मज़बूत किया गया। किलों (जैसे गोलकुंडा और बीजापुर) पर कब्ज़ा औरंगजेब की रणनीति का हिस्सा था।
4. अर्थव्यवस्था
औरंगजेब के शासनकाल में अर्थव्यवस्था शुरू में समृद्ध थी, लेकिन लंबे युद्धों और भारी करों ने इसे कमजोर किया।
कृषि प्रमुख फसलें: गेहूँ, चावल, जौ, कपास, नील, तंबाकू, और गन्ना प्रमुख फसलें थीं। नकदी फसलों ने व्यापार को बढ़ावा दिया। सिंचाई: नहरों और कुओं के रखरखाव पर ध्यान दिया गया, लेकिन युद्धों के कारण नई परियोजनाएँ सीमित रहीं। कर प्रणाली: ज़ब्त प्रणाली और जागीर प्रणाली से कर संग्रह किया जाता था। जज़िया (1679 में पुनः लागू) और अन्य करों ने गैर-मुस्लिमों पर दबाव बढ़ाया।
व्यापार आंतरिक व्यापार: दिल्ली, आगरा, लाहौर, और सूरत व्यापारिक केंद्र थे। ग्रांड ट्रंक रोड और सरायों ने व्यापार को सुगम बनाया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार: सूरत, खंभात, और बंगाल के बंदरगाहों से फारस, मध्य एशिया, और यूरोप के साथ व्यापार होता था। मसाले, कपास, रेशम, और नील निर्यात किए जाते थे। यूरोपीय व्यापारी: औरंगजेब ने अंग्रेज, डच, और पुर्तगाली व्यापारियों को संरक्षण दिया। अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल और सूरत में अपनी स्थिति मज़बूत की।
मुद्रा औरंगजेब ने सोने (मुहर), चांदी (रुपया), और तांबे (दाम) के सिक्के प्रचलित किए। ये सिक्के मानकीकृत थे, लेकिन युद्धों के कारण खजाना कमजोर हुआ। टकसालों में सिक्कों का उत्पादन केंद्रीकृत था। उद्योग कपड़ा उद्योग: बंगाल और गुजरात में सूती और रेशमी वस्त्र विश्व प्रसिद्ध थे। ढाका की मलमल और बनारस की साड़ियाँ विशेष थीं। हस्तशिल्प: आभूषण, कालीन, और धातु कार्य में प्रगति हुई।
निर्माण उद्योग: औरंगजेब ने वास्तुकला पर कम ध्यान दिया, लेकिन मस्जिदों (जैसे बादशाही मस्जिद, लाहौर) का निर्माण हुआ।
5. समाज
औरंगजेब का समाज बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक था, लेकिन उनकी कट्टर धार्मिक नीतियों ने सामाजिक तनाव बढ़ाया।
सामाजिक संरचना अभिजात वर्ग: मनसबदार, जागीरदार, और मुस्लिम उलेमा समाज के शीर्ष पर थे। औरंगजेब ने हिंदुओं को उच्च पदों से हटाने की कोशिश की, जिससे राजपूतों और अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों में असंतोष बढ़ा। मध्यम और निम्न वर्ग: व्यापारी, कारीगर, और किसान समाज का बड़ा हिस्सा थे। भारी करों और जज़िया ने किसानों और गैर-मुस्लिमों पर दबाव डाला। जाति व्यवस्था: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था प्रचलित थी। औरंगजेब ने इसे हस्तक्षेप किए बिना स्वीकार किया।
धर्म धार्मिक नीति: औरंगजेब ने इस्लामी शरिया को कड़ाई से लागू किया। उसने जज़िया (1679) पुनः लागू किया, तीर्थयात्रा कर समाप्त किया, और कुछ हिंदू मंदिरों को नष्ट करने के आदेश दिए (जैसे काशी विश्वनाथ और मथुरा का केशवदेव मंदिर)। इन नीतियों ने हिंदुओं और सिखों में असंतोष बढ़ाया। सूफी और भक्ति आंदोलन: सूफी संतों (जैसे मियाँ मीर) और भक्ति संतों का प्रभाव बना रहा, लेकिन औरंगजेब ने सूफी विचारों को कम प्रोत्साहन दिया। सिखों के साथ तनाव: गुरु तेग बहादुर की फाँसी (1675) और गुरु गोबिंद सिंह के खालसा पंथ (1699) ने सिखों को सैन्य शक्ति के रूप में उभारा। जैन और ईसाई: औरंगजेब ने जैनियों को कुछ संरक्षण दिया, लेकिन ईसाइयों (विशेष रूप से पुर्तगालियों) के साथ तनाव बढ़ा।
महिलाओं की स्थिति उच्च वर्ग: औरंगजेब की बेटी ज़ेबुन्निसा एक कवयित्री थी और साहित्य में सक्रिय थी। जहाँआरा ने भी सांस्कृतिक गतिविधियों में योगदान दिया। सामान्य वर्ग: पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, और सती प्रथा प्रचलित थीं। औरंगजेब ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की। शिक्षा: उच्च वर्ग की महिलाओं को शिक्षा प्राप्त थी। ज़ेबुन्निसा ने फारसी में कविताएँ लिखीं। शिक्षा और संस्कृति शिक्षा: औरंगजेब ने इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। मस्जिदों और मदरसों में कुरान और शरिया की शिक्षा पर जोर दिया गया। गैर-इस्लामी शिक्षा को कम प्रोत्साहन मिला।
साहित्य: औरंगजेब ने साहित्य को कम संरक्षण दिया। फिर भी, उनकी बेटी ज़ेबुन्निसा और अन्य विद्वानों ने फारसी साहित्य में योगदान दिया। 'फतवा-ए-आलमगीरी' (शरिया कानून का संग्रह) उनके शासनकाल में संकलित हुआ। वास्तुकला: औरंगजेब ने वास्तुकला पर कम ध्यान दिया, क्योंकि वह सादगी में विश्वास करता था। फिर भी, बादशाही मस्जिद (लाहौर, 1673) और बीबी का मकबरा (औरंगाबाद, 1660) उनके शासनकाल की प्रमुख रचनाएँ हैं। बीबी का मकबरा, जिसे उनकी पत्नी दिलरास बानो की याद में बनवाया गया, ताजमहल की नकल माना जाता है, लेकिन यह उतना भव्य नहीं है। चित्रकला और संगीत: औरंगजेब ने चित्रकला और संगीत को हतोत्साहित किया, क्योंकि वह इसे इस्लाम के खिलाफ मानता था। इससे मुगल लघुचित्र कला कमजोर हुई।
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: औरंगजेब एक अनुशासित, कट्टर, और कर्तव्यनिष्ठ शासक था। वह सादगी से जीवन जीता था, स्वयं कपड़े सिलता था, और कुरान की प्रतियाँ लिखकर अपनी आय अर्जित करता था। उसकी धार्मिक कट्टरता और निरंतर युद्ध उसकी कमजोरी बने। सैन्य योगदान: औरंगजेब ने दक्कन में बीजापुर और गोलकुंडा को जीतकर मुगल साम्राज्य को अपने क्षेत्रीय चरम पर पहुँचाया। लेकिन मराठों और अन्य विद्रोहों ने साम्राज्य को कमजोर किया।
प्रशासनिक योगदान: औरंगजेब ने मनसबदारी और ज़ब्त प्रणाली को बनाए रखा, लेकिन जागीरों के दुरुपयोग को नियंत्रित करने की कोशिश की। फतवा-ए-आलमगीरी ने इस्लामी कानून को व्यवस्थित किया। धार्मिक नीति: औरंगजेब की कट्टर नीतियों ने हिंदुओं, सिखों, और शिया मुस्लिमों में असंतोष बढ़ाया, जिसने साम्राज्य की एकता को कमजोर किया। आर्थिक प्रभाव: औरंगजेब के युद्धों ने खजाने को खाली किया, और जज़िया ने सामाजिक तनाव बढ़ाया। फिर भी, शुरू में अर्थव्यवस्था समृद्ध रही।
7. मृत्यु और विरासत
मृत्यु: औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को अहमदनगर (दक्कन) में हुई। वह अपने अंतिम वर्षों में मराठों के खिलाफ युद्ध में व्यस्त थे। मृत्यु से पहले उन्होंने अपने बेटों को पत्र लिखकर साम्राज्य की कमजोरियों को स्वीकार किया। विरासत: औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य को क्षेत्रीय रूप से अपने चरम पर पहुँचाया, लेकिन उनकी कट्टर नीतियों और युद्धों ने साम्राज्य को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर किया। उनकी मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। बादशाही मस्जिद और बीबी का मकबरा उनकी प्रमुख देन हैं। स्मारक: औरंगजेब का मकबरा खुल्दाबाद (औरंगाबाद) में है, जो उनकी सादगी को दर्शाता है।
8. अतिरिक्त दृष्टिकोण
धार्मिक कट्टरता का विवाद: औरंगजेब की धार्मिक नीतियाँ, जैसे जज़िया और मंदिरों का विनाश, इतिहासकारों में विवाद का विषय हैं। कुछ उसे कट्टर मानते हैं, जबकि अन्य तर्क देते हैं कि उसकी नीतियाँ उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार थीं। उदाहरण के लिए, उसने कई हिंदू मंदिरों को संरक्षण भी दिया।
मराठा प्रतिरोध: शिवाजी और संभाजी का गुरिल्ला युद्ध औरंगजेब के लिए सबसे बड़ी चुनौती था। मराठों ने मुगल सत्ता को कमजोर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आर्थिक तनाव: औरंगजेब के लंबे दक्कन अभियानों ने खजाने को खाली किया। जज़िया और भारी करों ने गैर-मुस्लिम समुदायों में असंतोष बढ़ाया।
विदेशी यात्रियों का विवरण: फ्राँस्वा बर्नियर और निकोलो मैनुची जैसे यात्रियों ने औरंगजेब के शासनकाल की समृद्धि और चुनौतियों का वर्णन किया। उनके विवरण साम्राज्य की जटिलता को दर्शाते हैं।
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