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Jhagir (1569-1627)
jp Singh 2025-05-27 10:25:17
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जहाँगीर (1569-1627 ई.)

जहाँगीर (1569-1627 ई.)
जहाँगीर (1569-1627 ई.), जिनका पूरा नाम नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर था, मुगल साम्राज्य के चौथे शासक थे। उनका शासनकाल (1605-1627) मुगल साम्राज्य के स्वर्ण युग का हिस्सा माना जाता है, जिसमें कला, संस्कृति, और व्यापार में उल्लेखनीय प्रगति हुई। जहाँगीर अकबर का पुत्र था और उनकी नीतियों को आगे बढ़ाने के साथ-साथ अपनी विशिष्ट शैली और व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है। वह एक कला प्रेमी, प्रकृति प्रेमी, और उदार शासक था, लेकिन उसकी कमजोरियाँ, जैसे शराब की लत और नूरजहाँ के प्रभाव ने, उसके शासन को कुछ हद तक प्रभावित किया।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म: जहाँगीर का जन्म 31 अगस्त 1569 को फतेहपुर सीकरी में हुआ था। वह अकबर और उनकी पत्नी जोधा बाई (आमेर की राजकुमारी) के पुत्र थे। उसका मूल नाम सलीम था, और 'जहाँगीर' (विश्व-विजेता) उसका शाही उपनाम था।
शिक्षा: जहाँगीर को फारसी, तुर्की, अरबी, और हिंदुस्तानी भाषाओं में शिक्षा दी गई। वह साहित्य, कला, और प्रकृति में गहरी रुचि रखता था। अकबर ने उसे सैन्य और प्रशासनिक प्रशिक्षण भी दिया।
प्रारंभिक जीवन: सलीम ने कम उम्र में ही सैन्य अभियानों में भाग लिया। हालाँकि, वह अपने पिता अकबर के साथ कई बार मतभेदों में रहा। 1600 में उसने इलाहाबाद में विद्रोह कर स्वयं को सम्राट घोषित किया, लेकिन बाद में अकबर से मेल-मिलाप कर लिया।
विवाह: जहाँगीर ने कई विवाह किए, जिनमें मेवाड़ की राजकुमारी मान बाई और मेहरुन्निसा (नूरजहाँ) प्रमुख थीं। नूरजहाँ ने उसके शासन पर गहरा प्रभाव डाला।
2. शासनकाल और सैन्य अभियान
जहाँगीर का शासनकाल (1605-1627) साम्राज्य के स्थिरीकरण और सांस्कृतिक विकास का दौर था, लेकिन सैन्य विस्तार में सीमित सफलता मिली।
प्रारंभिक शासन (1605-1611)
सिंहासनारोहण: 1605 में अकबर की मृत्यु के बाद जहाँगीर ने आगरा में सिंहासन ग्रहण किया। उसने अकबर की नीतियों को अपनाया और धार्मिक सहिष्णुता को बनाए रखा। प्रारंभिक चुनौतियाँ: जहाँगीर को अपने पुत्र खुसरो के विद्रोह (1606) का सामना करना पड़ा। खुसरो को पराजित कर कैद किया गया, और बाद में उसे अंधा कर दिया गया। इस घटना ने जहाँगीर को भावनात्मक रूप से प्रभावित किया
प्रमुख सैन्य अभियान
मेवाड़ के खिलाफ अभियान (1605-1615): जहाँगीर ने मेवाड़ के राणा अमर सिंह के खिलाफ कई अभियान चलाए। 1615 में राणा अमर सिंह ने मुगल सत्ता स्वीकार की, और उनके पुत्र करण सिंह को मुगल दरबार में शामिल किया गया। यह जहाँगीर की सबसे बड़ी सैन्य सफलता थी। दक्कन अभियान: जहाँगीर ने दक्कन में अहमदनगर और बीजापुर के खिलाफ अभियान चलाए, लेकिन पूर्ण सफलता नहीं मिली। उसके पुत्र खुर्रम (बाद में शाहजहाँ) ने दक्कन में कुछ जीत हासिल की। कंधार और कश्मीर: जहाँगीर ने कंधार (1622 में फारसियों से खोया) और कश्मीर में अपनी सत्ता बनाए रखी। कश्मीर उसका पसंदीदा स्थान था, जहाँ वह अक्सर गर्मियों में जाता था।
सिखों के साथ तनाव: जहाँगीर के शासन में सिख गुरु अर्जुन देव को 1606 में विद्रोह के संदेह में फाँसी दी गई, जिससे सिख-मुगल संबंधों में तनाव बढ़ा।
नूरजहाँ का प्रभाव (1611-1627)
जहाँगीर ने 1611 में मेहरुन्निसा से विवाह किया और उसे 'नूरजहाँ' की उपाधि दी। नूरजहाँ ने शासन, व्यापार, और कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह सिक्के जारी करने और फरमान देने में सक्रिय थी, जो उस समय के लिए असामान्य था। नूरजहाँ ने अपने भाई आसफ खान और पिता इतिमादुद्दौला के साथ मिलकर दरबार में एक शक्तिशाली गुट बनाया। इससे जहाँगीर के पुत्रों, विशेष रूप से शाहजहाँ, के साथ तनाव बढ़ा। अंतिम वर्ष 1622 में शाहजहाँ के विद्रोह और 1626 में महाबत खान (एक मुगल सेनापति) के विद्रोह ने जहाँगीर के शासन को अस्थिर किया। नूरजहाँ ने इन विद्रोहों को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहाँगीर की शराब की लत और खराब स्वास्थ्य ने उसके अंतिम वर्षों में शासन को प्रभावित किया।
3. प्रशासन
जहाँगीर ने अकबर की प्रशासनिक व्यवस्था को अपनाया और कुछ सुधार किए। उसका प्रशासन संगठित और केंद्रीकृत था।
केंद्रीय शासन सम्राट की भूमिका: जहाँगीर सर्वोच्च शासक था और उसे 'नूरुद्दीन' (प्रकाशमय धर्म) और 'जहाँगीर' (विश्व-विजेता) की उपाधियाँ दी गईं। वह कला और न्याय में रुचि रखता था। न्याय व्यवस्था: जहाँगीर ने 'ज़ंजीर-ए-अदल' (न्याय की जंजीर) की स्थापना की, जिसमें आगरा किले में एक घंटी लगाई गई थी, जिसे कोई भी व्यक्ति न्याय के लिए बजा सकता था। यह उसकी न्यायप्रियता का प्रतीक था। मंत्रिपरिषद: वज़ीर, दीवान-ए-आला, मीर बख्शी, और सadr-us-sudur जैसे अधिकारी शासन में सहायता करते थे। नूरजहाँ और उसके परिवार ने प्रशासन में प्रभाव डाला। प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन सूबे: जहाँगीर ने अकबर के सूबों (जैसे दिल्ली, आगरा, लाहौर, बंगाल) की व्यवस्था को बनाए रखा। सूबेदारों को प्रांतों का प्रशासन सौंपा गया था।
मनसबदारी प्रणाली: जहाँगीर ने अकबर की मनसबदारी प्रणाली को और परिष्कृत किया। मनसबदारों को जागीरें दी जाती थीं, लेकिन भ्रष्टाचार और जागीरों का दुरुपयोग बढ़ा। ज़ब्त प्रणाली: अकबर की ज़ब्त प्रणाली को जारी रखा गया, जिसमें भूमि कर उपज के आधार पर लिया जाता था। सैन्य संगठन जहाँगीर की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक, तोपखाना, और हाथी शामिल थे। उसने तोपखाने को और मज़बूत किया। किलों (जैसे आगरा, लाहौर, और अजमेर) की रक्षा पर ध्यान दिया गया। कंधार के नुकसान ने सैन्य कमजोरी को उजागर किया। नूरजहाँ ने सैन्य अभियानों में रणनीतिक सलाह दी, विशेष रूप से दक्कन और कंधार में।
4. अर्थव्यवस्था
जहाँगीर के शासनकाल में अर्थव्यवस्था समृद्ध थी, जो अकबर की नीतियों और व्यापार के विस्तार के कारण थी।
कृषि प्रमुख फसलें: गेहूँ, चावल, जौ, कपास, नील, तंबाकू, और गन्ना प्रमुख फसलें थीं। नकदी फसलों ने अर्थव्यवस्था को और समृद्ध किया। सिंचाई: नहरों और कुओं के रखरखाव पर ध्यान दिया गया। जहाँगीर ने बागवानी को प्रोत्साहन दिया, जो कृषि का हिस्सा था। कर प्रणाली: ज़ब्त प्रणाली और जागीर प्रणाली से कर संग्रह किया जाता था। नूरजहाँ ने कर संग्रह में सुधार की कोशिश की।
व्यापार आंतरिक व्यापार: दिल्ली, आगरा, लाहौर, और सूरत व्यापारिक केंद्र थे। ग्रांड ट्रंक रोड और सरायों ने व्यापार को सुगम बनाया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार: सूरत और खंभात के बंदरगाहों से फारस, मध्य एशिया, और यूरोप के साथ व्यापार होता था। मसाले, कपास, रेशम, और नील निर्यात किए जाते थे, जबकि सोना, चांदी, और घोड़े आयात होते थे। यूरोपीय व्यापारी: जहाँगीर ने 1615 में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी को सूरत में व्यापार की अनुमति दी। सर थॉमस रो और विलियम हॉकिन्स जैसे अंग्रेज दूत उसके दरबार में आए। नूरजहाँ की भूमिका: नूरजहाँ ने व्यापार में सक्रिय भाग लिया और अपने परिवार के माध्यम से व्यापारिक नेटवर्क स्थापित किए।
मुद्रा जहाँगीर ने सोने (मुहर), चांदी (रुपया), और तांबे (दाम) के सिक्के प्रचलित किए। उसके सिक्कों पर खूबसूरत नक्काशी और काव्यात्मक शिलालेख थे। नूरजहाँ के नाम से भी सिक्के जारी किए गए, जो उस समय असामान्य था। टकसालों में सिक्कों का उत्पादन केंद्रीकृत और मानकीकृत था। उद्योग कपड़ा उद्योग: बंगाल और गुजरात में सूती और रेशमी वस्त्रों का उत्पादन विश्व प्रसिद्ध था। ढाका की मलमल विशेष थी। हस्तशिल्प: आभूषण, कालीन, और धातु कार्य (जैसे बीदरी कला) में प्रगति हुई। बागवानी: जहाँगीर ने बागों (जैसे कश्मीर में शालीमार बाग) के निर्माण को प्रोत्साहन दिया, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता था।
5. समाज
जहाँगीर का समाज बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक था। उसने अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को बनाए रखा, लेकिन कुछ मामलों में कट्टरता दिखाई।
सामाजिक संरचना अभिजात वर्ग: मनसबदार, जागीरदार, और राजपूत सरदार समाज के शीर्ष पर थे। नूरजहाँ और उसके परिवार ने अभिजात वर्ग में प्रभाव डाला। मध्यम और निम्न वर्ग: व्यापारी, enlarging the image size for larger screens, please reduce the size and try again. कारीगर, और किसान समाज का बड़ा हिस्सा थे। कर प्रणाली ने किसानों को राहत दी। जाति व्यवस्था: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था प्रचलित थी। जहाँगीर ने इसे हस्तक्षेप किए बिना स्वीकार किया।
धर्म धार्मिक सहिष्णुता: जहाँगीर ने अकबर की सुलह-ए-कुल नीति को बनाए रखा। उसने हिंदुओं, जैनों, और सिखों को संरक्षण दिया, लेकिन सिख गुरु अर्जुन देव की फाँसी (1606) और कुछ मंदिरों पर हमले ने धार्मिक तनाव को बढ़ाया। सूफी और भक्ति आंदोलन: सूफी और भक्ति संतों का प्रभाव बढ़ रहा था। जहाँगीर ने सूफी संतों, जैसे शेख सलीम चिश्ती, का सम्मान किया। जज़िया: जहाँगीर ने जज़िया को लागू नहीं किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता बनी रही। महिलाओं की स्थिति उच्च वर्ग: नूरजहाँ और अन्य शाही महिलाएँ प्रभावशाली थीं। नूरजहाँ ने शासन, व्यापार, और कला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सामान्य वर्ग: पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, और सती प्रथा प्रचलित थीं। जहाँगीर ने सती प्रथा पर कुछ प्रतिबंध लगाने की कोशिश की। शिक्षा: उच्च वर्ग की महिलाओं को शिक्षा प्राप्त थी। नूरजहाँ एक विद्वान और कवयित्री थी। शिक्षा और संस्कृति शिक्षा: जहाँगीर ने मस्जिदों, मकतबों, और मदरसों में शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। फारसी और संस्कृत साहित्य को संरक्षण प्राप्त था। साहित्य: जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा 'तुझुक-ए-जहाँगीरी' लिखी, जिसमें उसके शासनकाल की घटनाओं का वर्णन है। अब्दुर रहीम खानखाना और अन्य कवियों को संरक्षण प्राप्त था।
वास्तुकला: जहाँगीर ने कश्मीर में शालीमार बाग और निशात बाग जैसे उद्यान बनवाए। इतिमादुद्दौला का मकबरा (आगरा) उसकी बेटी नूरजहाँ ने बनवाया, जो मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें सफेद संगमरमर और पिएत्रा ड्यूरा (पत्थर जड़ाई) का उपयोग हुआ। चित्रकला: जहाँगीर ने मुगल लघुचित्र (मिनिएचर पेंटिंग) को प्रोत्साहन दिया। अबुल हसन, मनोहर, और बिशनदास जैसे चित्रकारों ने प्रकृति, शाही जीवन, और पशु-पक्षियों के चित्र बनाए। जहाँगीर की कला में गहरी रुचि थी। संगीत: तानसेन जैसे संगीतकारों को संरक्षण प्राप्त था। ध्रुपद और ख्याल गायकी का विकास हुआ।
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: जहाँगीर एक कला प्रेमी, प्रकृति प्रेमी, और उदार शासक था। वह न्यायप्रिय था, लेकिन शराब और अफीम की लत ने उसकी निर्णयक्षमता को प्रभावित किया। नूरजहाँ का प्रभाव उसके शासन की विशेषता था। सांस्कृतिक योगदान: जहाँगीर ने मुगल चित्रकला और वास्तुकला को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उसके बाग और स्मारक भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। प्रशासनिक योगदान: ज़ंजीर-ए-अदल और मनसबदारी प्रणाली ने प्रशासन को जन-केंद्रित बनाया। नूरजहाँ की प्रशासनिक भूमिका ने महिलाओं की स्थिति को उजागर किया।
सैन्य योगदान: मेवाड़ की विजय और दक्कन में आंशिक सफलता ने मुगल साम्राज्य को मज़बूत किया, हालाँकि कंधार का नुकसान एक झटका था। यूरोपीय संबंध: जहाँगीर ने यूरोपीय व्यापारियों, विशेष रूप से अंग्रेजों, के साथ संबंध स्थापित किए, जिसने बाद में भारत पर औपनिवेशिक प्रभाव डाला। 7. मृत्यु और विरासत मृत्यु: जहाँगीर की मृत्यु 28 अक्टूबर 1627 को कश्मीर में खराब स्वास्थ्य के कारण हुई। वह कश्मीर से लाहौर लौट रहे थे। विरासत: जहाँगीर ने अकबर के साम्राज्य को स्थिर और समृद्ध बनाए रखा। उनकी कला, संस्कृति, और व्यापारिक नीतियों ने मुगल साम्राज्य को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध किया। उनके पुत्र शाहजहाँ ने साम्राज्य को और गौरवशाली बनाया। स्मारक: शालीमार बाग, निशात बाग, और इतिमादुद्दौला का मकबरा उनकी स्थायी विरासत हैं।
7. मृत्यु और विरासत
मृत्यु: अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को आगरा में पेचिश (डायसेंट्री) के कारण हुई। उसने अपने पुत्र जहाँगीर को उत्तराधिकारी बनाया। विरासत: अकबर ने एक विशाल, संगठित, और समृद्ध साम्राज्य छोड़ा, जो भारत के इतिहास में स्वर्ण युग का प्रतीक है। उसकी नीतियों ने मुगल साम्राज्य को 200 वर्षों तक स्थिर रखा। फतेहपुर सीकरी, आइन-ए-अकबरी, और धार्मिक सहिष्णुता उनकी अमर देन हैं। स्मारक: फतेहपुर सीकरी, बुलंद दरवाज़ा, और सिकंदरा में उसका मकबरा उसकी स्थायी विरासत के प्रतीक हैं।
8. अतिरिक्त दृष्टिकोण
राजपूत नीति का प्रभाव: अकबर की राजपूत नीति ने न केवल सैन्य बल्कि सांस्कृतिक एकीकरण को भी बढ़ावा दिया। राजपूतों को प्रशासन में शामिल करने से साम्राज्य में स्थिरता आई और हिंदू-मुस्लिम एकता को बल मिला।
आर्थिक समृद्धि: विदेशी यात्रियों, जैसे राल्फ फिच और फ्राँस्वा बर्नियर, ने अकबर के भारत की समृद्धि की प्रशंसा की। उस समय भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में थी।
वैज्ञानिक रुचि: अकबर ने खगोल विज्ञान और गणित में रुचि दिखाई। उसने फतेहपुर सीकरी में एक वेधशाला स्थापित की थी।
विदेशी संबंध: अकबर ने पुर्तगालियों और अंग्रेजों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए, जिसने भारत को वैश्विक व्यापार का केंद्र बनाया।
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