Humayu
jp Singh
2025-05-27 10:15:22
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हुमायूँ (1508-1556 ई.)
हुमायूँ (1508-1556 ई.)
हुमायूँ (1508-1556 ई.), जिनका पूरा नाम नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ था, मुगल साम्राज्य के दूसरे शासक और इसके संस्थापक बाबर के पुत्र थे। हुमायूँ का शासनकाल (1530-1540 और 1555-1556) चुनौतियों, पराजयों और पुनरुत्थान की कहानी है। वह एक साहसी योद्धा, उदार शासक, और विद्वान था, लेकिन उसकी कमजोर रणनीति और आंतरिक विद्रोहों ने उसके शासन को अस्थिर किया।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म: हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था। वह बाबर और उनकी पत्नी माहम बेगम के पुत्र थे। तैमूरी और चंगेज़ खान के वंशज होने के नाते उसे शाही परंपराएँ विरासत में मिली थीं। शिक्षा और प्रशिक्षण: हुमायूँ को तुर्की, फारसी, और अरबी भाषाओं में शिक्षा दी गई। वह खगोल विज्ञान, ज्योतिष, और साहित्य में रुचि रखता था। बाबर ने उसे सैन्य प्रशिक्षण भी दिया, और वह कम उम्र में ही युद्धों में भाग लेने लगा। प्रारंभिक जिम्मेदारियाँ: बाबर के शासनकाल में हुमायूँ को बादाख्शाँ और संभल जैसे क्षेत्रों का प्रशासन सौंपा गया, जिससे उसे शासन का अनुभव प्राप्त हुआ।
2. शासनकाल और सैन्य अभियान
हुमायूँ का शासनकाल दो चरणों में बँटा है: प्रथम शासन (1530-1540) और द्वितीय शासन (1555-1556)।
प्रथम शासनकाल (1530-1540) सत्ता ग्रहण: 1530 में बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ ने 22 वर्ष की आयु में मुगल सिंहासन ग्रहण किया। उसे एक अस्थिर साम्राज्य विरासत में मिला, जिसमें आंतरिक और बाहरी चुनौतियाँ थीं। प्रमुख चुनौतियाँ: अफ़गान विरोध: दिल्ली सल्तनत के पराजित अफ़गान सरदार, विशेष रूप से शेर खान (बाद में शेरशाह सूरी), मुगल सत्ता के लिए खतरा बने। आंतरिक विद्रोह: हुमायूँ के भाई कामरान मिर्ज़ा (पंजाब और काबुल का शासक), मिर्ज़ा अस्करी, और हिंदाल ने बार-बार विद्रोह किया, जिसने उसकी स्थिति को कमज़ोर किया।
गुजरात अभियान (1535-1536): हुमायूँ ने गुजरात के शासक बहादुर शाह के खिलाफ अभियान चलाया और मालवा व गुजरात पर कब्ज़ा किया। लेकिन उसकी अनुपस्थिति में शेर खान ने बिहार और बंगाल में अपनी शक्ति बढ़ाई। प्रमुख युद्ध और पराजय: चौसा का युद्ध (1539): शेर खान के खिलाफ हुमायूँ की हार। वह गंगा नदी में डूबते-डूबते बचा, जब एक भिश्ती (पानी ढोने वाला) ने उसे बचाया। कन्नौज का युद्ध (1540): शेरशाह ने हुमायूँ को निर्णायक रूप से हराया, जिसके बाद हुमायूँ को भारत छोड़कर भागना पड़ा।
निर्वासन (1540-1555) प्रवास: हुमायूँ ने भारत छोड़कर राजस्थान, सिंध, और फिर फारस की ओर रुख किया। इस दौरान उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसमें रेगिस्तान में भटकना और परिवार की सुरक्षा शामिल थी। फारस में शरण: 1544 में हुमायूँ ने फारस के सफ़वी शासक शाह तहमास्प से शरण मांगी। बदले में उसे शिया धर्म अपनाने का दबाव डाला गया, लेकिन हुमायूँ ने इसे कुशलता से संभाला। फारस से उसे सैन्य सहायता मिली, जिससे उसने काबुल और कंधार पर पुनः कब्ज़ा किया। कामरान के साथ संघर्ष: हुमायूँ को अपने भाई कामरान से बार-बार युद्ध करना पड़ा। 1553 में उसने काबुल पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। द्वितीय शासनकाल (1555-1556) भारत की पुनर्वापसी: शेरशाह की मृत्यु (1545) के बाद सूरी वंश कमज़ोर हो गया। हुमायूँ ने इस अवसर का लाभ उठाया और 1555 में अपने विश्वसनीय सेनापति बैरम खान की सहायता से पंजाब, दिल्ली, और आगरा पर पुनः कब्ज़ा किया।
सिरहिंद का युद्ध (1555): हुमायूँ ने सूरी शासक सिकंदर शाह को हराया, जिससे मुगल सत्ता की पुनर्स्थापना हुई। संक्षिप्त शासन: हुमायूँ का दूसरा शासनकाल केवल एक वर्ष का था, लेकिन उसने प्रशासन को स्थिर करने की शुरुआत की। 3. प्रशासन हुमायूँ का शासनकाल अस्थिर होने के कारण प्रशासनिक सुधार सीमित रहे, लेकिन उसने बाबर की नीतियों को अपनाया और कुछ नवाचार किए।
केंद्रीय शासन सम्राट की भूमिका: हुमायूँ सर्वोच्च शासक था और सैन्य, न्याय, और प्रशासन का केंद्र था। वह उदार और दयालु स्वभाव का था, लेकिन रणनीतिक दृष्टिकोण में कमज़ोर था। अधिकारी: हुमायूँ ने तुर्की, मंगोल, और भारतीय सरदारों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया। बैरम खान उसका सबसे विश्वसनीय सलाहकार और सेनापति था। न्याय व्यवस्था: हुमायूँ ने इस्लामी कानून (शरिया) के आधार पर न्याय प्रदान किया। गैर-मुस्लिमों के लिए स्थानीय पंचायतें और परंपराएँ प्रचलित थीं। प्रांतीय प्रशासन साम्राज्य को प्रांतों में बांटा गया था, जैसे दिल्ली, आगरा, पंजाब, और गुजरात। प्रत्येक प्रांत का शासक (सूबेदार) सम्राट के प्रति जवाबदेह था। हुमायूँ ने जागीर प्रणाली को जारी रखा, जिसमें सरदारों को भूमि दी जाती थी। लेकिन आंतरिक विद्रोहों के कारण यह प्रणाली अस्थिर रही।
उसने कुछ क्षेत्रों में स्थानीय जमींदारों और राजपूतों को अपने साथ जोड़ा, जैसे मालवा और गुजरात में। सैन्य संगठन हुमायूँ की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक, और तोपखाना शामिल था। बाबर की तरह उसने भी तोपखाने का उपयोग किया, लेकिन शेरशाह की रणनीति के सामने यह कम प्रभावी रहा। निर्वासन के दौरान फारस से प्राप्त सैन्य सहायता ने उसे काबुल और भारत में पुनर्स्थापना में मदद की। किलों (जैसे आगरा और दिल्ली) को मज़बूत करने पर ध्यान दिया गया।
4. अर्थव्यवस्था
हुमायूँ के शासनकाल में अर्थव्यवस्था अस्थिर रही, क्योंकि बार-बार युद्ध और निर्वासन ने आर्थिक विकास को बाधित किया। फिर भी, कुछ क्षेत्रों में प्रगति दिखाई दी।
कृषि प्रमुख फसलें: गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र में गेहूँ, चावल, जौ, और नकदी फसलें (जैसे नील) उगाई जाती थीं। कर प्रणाली: हुमायूँ ने बाबर की कर प्रणाली को अपनाया, जिसमें उपज का एक हिस्सा (लगभग एक-तिहाई) कर के रूप में लिया जाता था। लेकिन अस्थिरता के कारण कर संग्रह प्रभावी नहीं हो सका। सिंचाई: नहरों और कुओं के रखरखाव पर ध्यान दिया गया, लेकिन बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाएँ शुरू नहीं हो सकीं। व्यापार आंतरिक व्यापार: दिल्ली और आगरा व्यापारिक केंद्र थे। सड़कों और सरायों ने व्यापार को सुगम बनाया, जो शेरशाह ने और मज़बूत किया।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार: गुजरात के बंदरगाहों (जैसे खंभात) से फारस, मध्य एशिया, और पुर्तगालियों के साथ व्यापार होता था। मसाले, कपास, और रेशम निर्यात किए जाते थे। मुद्रा: हुमायूँ ने चांदी के सिक्के (शाहरुखी) और तांबे के दाम प्रचलित किए। लेकिन आर्थिक अस्थिरता के कारण सिक्कों का मानकीकरण प्रभावित हुआ। उद्योग कपड़ा (सूती और रेशमी वस्त्र), हस्तशिल्प, और धातु कार्य जैसे उद्योग प्रचलित थे। गुजरात और बंगाल में कपड़ा उद्योग फलता-फूलता था। हुमायूँ ने बागवानी और उद्यान निर्माण को प्रोत्साहन दिया, जो बाबर की परंपरा का हिस्सा था। 5. समाज हुमायूँ के समय का समाज बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक था, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, जैन, और अन्य समुदाय सह-अस्तित्व में थे।
सामाजिक संरचना अभिजात वर्ग: तुर्की, मंगोल, और अफ़गान सरदार समाज के शीर्ष पर थे। हुमायूँ ने स्थानीय जमींदारों और राजपूतों को अपने प्रशासन में शामिल करने की कोशिश की। मध्यम और निम्न वर्ग: किसान, कारीगर, और व्यापारी समाज का बड़ा हिस्सा थे। किसानों पर भारी कर का बोझ था, जो शेरशाह के समय में और बढ़ गया। जाति व्यवस्था: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था प्रचलित थी। हुमायूँ ने इसे हस्तक्षेप किए बिना स्वीकार किया।
धर्म इस्लाम: हुमायूँ एक सुन्नी मुस्लिम था, लेकिन वह धार्मिक सहिष्णुता के प्रति उदार था। उसने हिंदुओं और जैनों के प्रति कोई कट्टर नीति नहीं अपनाई। फारस में शिया प्रभाव: निर्वासन के दौरान फारस में शाह तहमास्प के प्रभाव से हुमायूँ शिया विचारों से परिचित हुआ, लेकिन उसने इसे अपने शासन में लागू नहीं किया। सूफी और भक्ति आंदोलन: सूफी संतों और भक्ति संतों (जैसे कबीर और नानक) का प्रभाव समाज में बढ़ रहा था, जिसे हुमायूँ ने स्वीकार किया। महिलाओं की स्थिति उच्च वर्ग: हुमायूँ की पत्नी हमीदा बानो बेगम और बहन गुलबदन बेगम प्रभावशाली थीं। गुलबदन ने बाद में 'हुमायूँनामा' लिखा, जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
सामान्य वर्ग: सामान्य महिलाओं की स्थिति परंपरागत थी। पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, और सती प्रथा प्रचलित थीं। हरम: मुगल हरम में महिलाएँ शाही निर्णयों में सीमित प्रभाव रखती थीं। शिक्षा और संस्कृति शिक्षा: हुमायूँ स्वयं एक विद्वान था और खगोल विज्ञान में रुचि रखता था। उसने मस्जिदों और मकतबों में शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। फारसी और तुर्की भाषाएँ दरबार में प्रचलित थीं। साहित्य: हुमायूँ के समय में साहित्यिक गतिविधियाँ सीमित थीं, लेकिन उसकी बहन गुलबदन बेगम ने बाद में 'हुमायूँनामा' लिखा, जो उस समय की घटनाओं का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
वास्तुकला: हुमायूँ के शासनकाल में बड़े पैमाने पर वास्तुकला का विकास नहीं हुआ, लेकिन उसने दिल्ली में 'दीनपनाह' शहर की स्थापना की। उसकी मृत्यु के बाद उसका मकबरा (हुमायूँ का मकबरा) बनाया गया, जो मुगल वास्तुकला का पहला प्रमुख उदाहरण है। चित्रकला और संगीत: हुमायूँ ने फारस से चित्रकला और संगीत की परंपराओं को अपनाया, जो बाद में अकबर के समय में फली-फूली।
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: हुमायूँ एक उदार, दयालु, और साहसी शासक था, लेकिन उसकी अनिर्णयशीलता और भाइयों पर अत्यधिक विश्वास ने उसे कमज़ोर किया। वह ज्योतिष और दर्शन में रुचि रखता था और अपने सैनिकों के बीच लोकप्रिय था। सांस्कृतिक योगदान: हुमायूँ ने तुर्की-मंगोल और फारसी संस्कृतियों को भारतीय परंपराओं के साथ जोड़ा। फारस में निर्वासन के दौरान उसने सफ़वी कला और वास्तुकला से प्रेरणा ली, जो बाद में मुगल कला में दिखाई दी। प्रशासनिक आधार: हुमायूँ ने बाबर की जागीर प्रणाली और सैन्य संगठन को बनाए रखा, जिसे अकबर ने बाद में मनसबदारी प्रणाली में बदला। सैन्य योगदान: हुमायूँ ने फारसी सैन्य सहायता के साथ काबुल और भारत में पुनर्स्थापना की, जो मुगल साम्राज्य की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण थी।
7. मृत्यु और विरासत
मृत्यु: 27 जनवरी 1556 को हुमायूँ की मृत्यु दिल्ली में दीनपनाह के पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुई। उस समय वह केवल 48 वर्ष का था।
विरासत: हुमायूँ का शासनकाल अस्थिर रहा, लेकिन उसने मुगल साम्राज्य को बनाए रखा। उसका पुत्र अकबर बाद में मुगल साम्राज्य को भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बनाया।
हुमायूँ का मकबरा: दिल्ली में उसकी पत्नी हमीदा बानो बेगम ने उसका मकबरा बनवाया (1565-1572), जो मुगल वास्तुकला का पहला प्रमुख स्मारक है। यह ताजमहल का प्रेरणा स्रोत बना और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
Conclusion
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