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Babar (1483-1530 )
jp Singh 2025-05-27 10:11:37
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बाबर (1483-1530 ई.)

बाबर (1483-1530 ई.)
बाबर (1483-1530 ई.), जिसका पूरा नाम ज़हिरुद्दीन मुहम्मद बाबर था, मुगल साम्राज्य का संस्थापक और भारत में एक नए युग का सूत्रपात करने वाला शासक था। वह तुर्क-मंगोल मूल का था और तैमूर (पिता की ओर से) और चंगेज़ खान (माता की ओर से) का वंशज था। बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और वंश: बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगना (वर्तमान उज़्बेकिस्तान) में हुआ था। वह तैमूरी वंश का उत्तराधिकारी था। उसके पिता उमर शेख मिर्ज़ा फरगना के शासक थे, और माता कुतलुग निगार खानम चंगेज़ खान की वंशज थीं। प्रारंभिक संघर्ष: 1494 ई. में मात्र 11 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के बाद बाबर फरगना का शासक बना। उसे अपने चाचाओं और उज़्बेक सरदारों, विशेष रूप से शैबानी खान, से लगातार युद्ध लड़ने पड़े। 1501 में समरकंद खोने के बाद वह काबुल (1504) की ओर बढ़ा, जहाँ उसने अपनी सत्ता स्थापित की। भारत की ओर प्रस्थान: मध्य एशिया में बार-बार असफलताओं के बाद बाबर ने भारत को अपनी महत्वाकांक्षा का केंद्र बनाया। पंजाब और दिल्ली सल्तनत की अस्थिरता ने उसे भारत पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया।
2. भारत में आगमन और सैन्य उपलब्धियाँ
बाबर ने भारत में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े, जो उसकी सैन्य कुशलता और रणनीति का परिचय देते हैं। प्रमुख युद्ध पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ई.): बाबर ने दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहिम लोदी को हराया। इस युद्ध में बाबर ने तोपखाने और तुलगमा (आक्रमण और घेराबंदी की मंगोल रणनीति) का उपयोग किया। परिणाम: दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा, मुगल साम्राज्य की नींव। खानवा का युद्ध (1527 ई.): राजपूतों के नेतृत्व में राणा सांगा के गठबंधन के खिलाफ युद्ध। बाबर ने अपने सैनिकों को प्रेरित करने के लिए शराब छोड़ने की कसम खाई और 'जिहाद' का आह्वान किया। परिणाम: राजपूत शक्ति का कमज़ोर होना और मुगल सत्ता का विस्तार। घाघरा का युद्ध (1529 ई.): बंगाल के सुल्तान नुसरत शाह और अफ़गानों के खिलाफ युद्ध।
परिणाम: पूर्वी भारत में मुगल प्रभाव स्थापित हुआ। चंदेरी का युद्ध (1528 ई.): मेदिनी राय के नेतृत्व में राजपूतों के खिलाफ जीत। इसने मालवा पर मुगल नियंत्रण को मज़बूत किया। सैन्य रणनीति बाबर ने तोपखाने (उस्ताद अली कुली और मुस्तफा रूमी के नेतृत्व में) और घुड़सवार सेना का प्रभावी उपयोग किया। तुलगमा रणनीति में वह दुश्मन को घेरकर केंद्र और बाएँ-दाएँ से आक्रमण करता था। उसकी सेना में तुर्क, मंगोल, अफ़गान, और भारतीय सैनिक शामिल थे, जो उसकी सैन्य विविधता को दर्शाते हैं। 3. प्रशासन बाबर का शासनकाल छोटा (1526-1530) था, लेकिन उसने एक संगठित प्रशासन की नींव रखी, जिसे बाद में अकबर ने और विकसित किया।
केंद्रीय शासन सम्राट की भूमिका: बाबर सर्वोच्च शासक था और सैन्य, न्याय, और प्रशासन का केंद्र था। उसने तुर्की-मंगोल परंपराओं के आधार पर शासन किया, लेकिन भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाला। अधिकारी: बाबर ने अपने विश्वसनीय तुर्की और मंगोल सरदारों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया। वज़ीर और दीवान जैसे अधिकारी कर संग्रह और वित्त प्रबंधन के लिए जिम्मेदार थे। न्याय व्यवस्था: बाबर ने इस्लामी कानून (शरिया) के आधार पर न्याय प्रदान किया। गैर-मुस्लिमों के लिए स्थानीय परंपराएँ और पंचायतें सक्रिय थीं। प्रांतीय प्रशासन बाबर ने अपने साम्राज्य को प्रांतों में बांटा, जिन्हें उसके विश्वसनीय सरदारों या सैन्य कमांडरों द्वारा प्रशासित किया जाता था। दिल्ली, आगरा, और पंजाब जैसे क्षेत्रों में स्थानीय शासकों को कर वसूलने और शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई।
उसने जागीर प्रणाली की शुरुआत की, जिसमें सरदारों को भूमि दी जाती थी, लेकिन यह बाद में अकबर के समय औपचारिक मनसबदारी प्रणाली में बदली। सैन्य प्रशासन बाबर की सेना का रखरखाव जागीरों और युद्ध से प्राप्त धन से होता था। उसने किलों (जैसे आगरा और दिल्ली) को मज़बूत किया और सैन्य चौकियों की स्थापना की। 4. अर्थव्यवस्था बाबर के शासनकाल में अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि-आधारित थी, लेकिन व्यापार और कर प्रणाली ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कृषि प्रमुख फसलें: गेहूँ, चावल, जौ, और बाजरा प्रमुख फसलें थीं। बाबर ने भारत की उपजाऊ भूमि की प्रशंसा की, विशेष रूप से दोआब क्षेत्र (गंगा-यमुना के बीच) की। कर प्रणाली: बाबर ने दिल्ली सल्तनत की कर प्रणाली को अपनाया, जिसमें उपज का एक हिस्सा (लगभग एक-तिहाई) कर के रूप में लिया जाता था। उसने भूमि की पैमाइश शुरू की, जो बाद में अकबर की ज़ब्त प्रणाली का आधार बनी। सिंचाई: बाबर ने सिंचाई पर ध्यान दिया और नहरों व कुओं के रखरखाव को प्रोत्साहित किया।
व्यापार आंतरिक व्यापार: दिल्ली और आगरा व्यापारिक केंद्र थे। सड़कों और सरायों ने व्यापार को सुगम बनाया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार: बाबर के समय भारत के पश्चिमी तट (जैसे खंभात) से मध्य एशिया और फारस के साथ व्यापार होता था। मसाले, कपास, और रेशम निर्यात किए जाते थे। मुद्रा: बाबर ने चांदी के सिक्के (शाहरुखी) प्रचलित किए, जो तुर्की परंपराओं पर आधारित थे। ये सिक्के व्यापार में विश्वसनीयता प्रदान करते थे। उद्योग बाबर के समय में कपड़ा, हस्तशिल्प, और धातु कार्य जैसे उद्योग प्रचलित थे। दिल्ली और आगरा में कारीगरों की बस्तियाँ थीं। उसने बागवानी और उद्यान निर्माण को बढ़ावा दिया, जो बाद में मुगल वास्तुकला का हिस्सा बना।
5. समाज
बाबर के समय का समाज बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक था, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, जैन, और अन्य समुदाय सह-अस्तित्व में थे।
सामाजिक संरचना अभिजात वर्ग: बाबर के तुर्की और मंगोल सरदार समाज के शीर्ष पर थे। स्थानीय जमींदारों और राजपूतों को भी प्रशासन में शामिल किया गया। मध्यम और निम्न वर्ग: किसान, कारीगर, और व्यापारी समाज का बड़ा हिस्सा थे। किसानों पर भारी कर का बोझ था। जाति व्यवस्था: हिंदू समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था प्रचलित थी। बाबर ने इसे हस्तक्षेप किए बिना स्वीकार किया।
धर्म इस्लाम: बाबर एक सुन्नी मुस्लिम था और उसने इस्लामी परंपराओं का पालन किया। खानवा के युद्ध में उसने 'जिहाद' का आह्वान किया, लेकिन सामान्य शासन में धार्मिक कट्टरता नहीं दिखाई। हिंदू और अन्य धर्म: बाबर ने हिंदुओं और जैनों के प्रति सहिष्णुता दिखाई। उसने मंदिरों को नष्ट करने की कुछ घटनाएँ कीं (जैसे अयोध्या में), लेकिन यह रणनीतिक या सैन्य कारणों से था, न कि धार्मिक कट्टरता से। सूफी प्रभाव: बाबर सूफी विचारों से प्रभावित था और उसने सूफी संतों का सम्मान किया। महिलाओं की स्थिति बाबर के समय में महिलाओं की स्थिति परंपरागत थी। उच्च वर्ग की महिलाएँ, जैसे उसकी माँ और पत्नियाँ, हरम में प्रभावशाली थीं।
हिंदू समाज में सती प्रथा और बाल-विवाह प्रचलित थे, जिन पर बाबर का कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं था। शिक्षा और संस्कृति साहित्य: बाबर एक विद्वान और कवि था। उसने अपनी आत्मकथा 'तुझुक-ए-बाबरी' (बाबरनामा) तुर्की भाषा में लिखी, जो उस समय की सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक स्थिति का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह फारसी और बाद में अन्य भाषाओं में अनुवादित हुई। कला और वास्तुकला: बाबर का शासनकाल छोटा होने के कारण वास्तुकला में बड़े योगदान नहीं हुए, लेकिन उसने बागवानी को बढ़ावा दिया। उसने आगरा में 'राम बाग' (अब अराम बाग) और काबुल में बाग-ए-बाबर जैसे उद्यान बनवाए। भाषा: बाबर ने तुर्की और फारसी को प्रोत्साहन दिया। उसकी आत्मकथा में भारत की जलवायु, वनस्पति, और संस्कृति का वर्णन है।
6. व्यक्तित्व और योगदान
विशेषताएँ: बाबर एक साहसी योद्धा, रणनीतिकार, और विद्वान था। वह प्रकृति प्रेमी था और भारत की प्राकृतिक सुंदरता की प्रशंसा करता था, हालाँकि उसे भारत की गर्मी और धूल पसंद नहीं थी। बाबरनामा: यह उसकी सबसे बड़ी साहित्यिक देन है। इसमें उसने अपने जीवन, युद्धों, और भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का विस्तृत वर्णन किया। यह ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से अमूल्य है। सांस्कृतिक योगदान: बाबर ने तुर्की-मंगोल और भारतीय संस्कृतियों के मिश्रण की शुरुआत की, जो बाद में अकबर के समय 'गंगा-जमुनी तहज़ीब' के रूप में विकसित हुई। सैन्य नवाचार: तोपखाने और तुलगमा रणनीति का उपयोग भारत में युद्धकला में क्रांति लाया।
7. मृत्यु और विरासत
मृत्यु: बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर 1530 को आगरा में हुई। उसने अपने बेटे हुमायूँ को उत्तराधिकारी बनाया। माना जाता है कि उसने हुमायूँ की बीमारी के बदले अपनी जान की प्रार्थना की थी। विरासत: बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव रखी, जो बाद में अकबर, जहाँगीर, और शाहजहाँ के समय भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बना। उसकी सैन्य और प्रशासनिक नीतियों ने मुगल शासन को स्थिरता प्रदान की। स्मारक: काबुल में बाग-ए-बाबर और आगरा में उसकी कब्र (जो बाद में बनाई गई) उसकी स्मृति को जीवित रखते हैं।
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