Administration, Economy and Society of Vijayanagara
jp Singh
2025-05-27 10:05:01
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विजयनगर का प्रशासन , अर्थव्यवस्था एवं समाज
विजयनगर का प्रशासन , अर्थव्यवस्था एवं समाज
विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ई.) दक्षिण भारत का एक प्रमुख साम्राज्य था, जिसने अपने प्रशासन, अर्थव्यवस्था और समाज में उल्लेखनीय संगठन और समृद्धि प्रदर्शित की।
1. प्रशासन
विजयनगर का प्रशासन केंद्रीकृत, सुव्यवस्थित और लचीला था, जो साम्राज्य की स्थिरता और विस्तार का आधार बना। केंद्रीय शासन राजा की भूमिका: राजा साम्राज्य का सर्वोच्च शासक और प्रशासक था। उसे दैवीय शक्ति का प्रतीक माना जाता था, जिससे उसकी सत्ता को धार्मिक वैधता प्राप्त थी। संगम, तुलुव और अराविदु जैसे राजवंशों ने विजयनगर पर शासन किया, जिनमें कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.) सबसे प्रसिद्ध शासक थे। मंत्रिपरिषद: राजा को एक मंत्रिपरिषद सहायता करती थी, जिसमें उच्च अधिकारी जैसे महाप्रधान (प्रधानमंत्री), कोषाध्यक्ष, सेनापति और अन्य शामिल थे। ये अधिकारी शासन के विभिन्न पहलुओं, जैसे वित्त, सेना और न्याय, की देखरेख करते थे।
न्याय व्यवस्था: राजा स्वयं सर्वोच्च न्यायाधीश था, लेकिन स्थानीय स्तर पर आयागार (गाँव पंचायतें) और प्रांतीय अधिकारी छोटे-मोटे विवादों का निपटारा करते थे। दंड संहिता में शारीरिक दंड, जैसे कोड़े मारना या अंग-भंग, प्रचलित थे। विदेशी यात्रियों जैसे डोमिंगो पायस और नूनिज ने इस व्यवस्था की संगठित प्रकृति की प्रशंसा की है।
प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन प्रांत: साम्राज्य को कई प्रांतों (मंडल या राज्य) में विभाजित किया गया था, जैसे उडुपी, मंगलोर, और बारकुर। प्रत्येक प्रांत का प्रशासन एक नायका (स्थानीय शासक) के अधीन था, जो राजा के प्रति वफादार था और कर संग्रह, सुरक्षा, और स्थानीय शासन के लिए जिम्मेदार था। नायक प्रणाली: नायकों को स्वायत्तता दी जाती थी, लेकिन वे नियमित रूप से राजा को कर और सैन्य सहायता प्रदान करते थे। यह प्रणाली साम्राज्य के विस्तार और स्थानीय शासन को मजबूत करने में सहायक थी, हालांकि बाद में कुछ नायकों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। स्थानीय स्तर: गाँवों में आयागार प्रणाली थी, जिसमें गाँव के प्रमुख (गौड़ा) और अन्य सम्मानित व्यक्ति शामिल होते थे। ये स्थानीय कर संग्रह, भूमि प्रबंधन, और सामाजिक विवादों का निपटारा करते थे।
सैन्य संगठन विजयनगर की सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार, हाथी, और तोपखाने शामिल थे। घोड़ों का आयात अरब और फारस से किया जाता था, क्योंकि दक्षिण भारत में अच्छे घोड़े कम थे। नायकों को युद्ध के समय सैनिक और संसाधन प्रदान करने की जिम्मेदारी थी। किलों (जैसे वेल्लोर, चंद्रगिरी) का निर्माण रक्षा के लिए किया गया था। साम्राज्य ने नौसेना पर भी ध्यान दिया, जो तटीय क्षेत्रों और व्यापार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थी।
2. अर्थव्यवस्था
विजयनगर की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार, और उद्योगों पर आधारित थी, जो इसे दक्षिण भारत का आर्थिक केंद्र बनाती थी। कृषि प्रमुख फसलें: धान, गन्ना, कपास, मसाले (काली मिर्च, इलायची), और नारियल जैसी फसलें प्रमुख थीं। तुंगभद्रा, कावेरी, और कृष्णा नदियों ने कृषि को समृद्ध बनाया। सिंचाई: विजयनगर ने सिंचाई के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया। तुंगभद्रा नदी पर बने बांध और नहरें (जैसे अनंतपुर नहर) कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक थीं। विदेशी यात्री अब्दुर रज्जाक ने इन नहरों की प्रशंसा की है। कर प्रणाली: भूमि कर (सिस्ट) अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत था। भूमि को उपज के आधार पर वर्गीकृत किया जाता था, और कर का हिस्सा आमतौर पर उपज का एक-तिहाई होता था।
यापार आंतरिक व्यापार: हंपी, विजयनगर की राजधानी, एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र थी। यहाँ के बाजारों में कपड़ा, मसाले, आभूषण, और अनाज की बिक्री होती थी। विदेशी यात्रियों ने हंपी के बाजारों को
मुद्रा विजयनगर में सोने (वराह या पगोडा), चांदी (फनम), और तांबे (कासु) के सिक्के प्रचलित थे। ये सिक्के कला और शिल्प के दृष्टिकोण से उत्कृष्ट थे, जिनमें देवी-देवताओं या राजा की छवि अंकित होती थी। सिक्कों की गुणवत्ता और मानकीकरण ने व्यापार को सुगम बनाया। उद्योग कपड़ा उद्योग: कपास और रेशम के वस्त्रों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। ये वस्त्र विदेशों में भी निर्यात किए जाते थे। धातु और आभूषण: लोहा, तांबा, और सोने-चांदी के आभूषणों का निर्माण होता था। हंपी और अन्य शहरों में कारीगरों की बस्तियाँ थीं। हस्तशिल्प: मूर्तिकला, पत्थर की नक्काशी, और लकड़ी का काम भी समृद्ध था, जो मंदिरों और भवनों की वास्तुकला में दिखाई देता है।
3. समाज
विजयनगर का समाज बहु-सांस्कृतिक और संरचित था, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समुदाय एक साथ रहते थे। सामाजिक संरचना वर्ण व्यवस्था: समाज हिंदू वर्ण व्यवस्था पर आधारित था। ब्राह्मण विद्वानों और पुजारियों के रूप में उच्च स्थान रखते थे। क्षत्रिय शासक और योद्धा वर्ग थे, जबकि वैश्य व्यापार और शूद्र कृषि व सेवा कार्यों में संलग्न थे। जाति व्यवस्था: विभिन्न जातियाँ और उप-जातियाँ थीं, जो पेशे और क्षेत्र के आधार पर संगठित थीं। कारीगर, व्यापारी, और किसान समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। स्थानीय समुदाय: तमिल, तेलुगु, कन्नड़, और मलयालम भाषी समुदाय एक साथ रहते थे। विदेशी व्यापारी और बस्तियाँ भी शहरों में थीं।
हिंदू धर्म: वैष्णव और शैव संप्रदाय प्रमुख थे। मंदिर सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र थे। विट्ठल मंदिर (हंपी) और तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर प्रसिद्ध थे। धार्मिक सहिष्णुता: जैन, बौद्ध, और इस्लाम धर्म के अनुयायी भी थे। विदेशी यात्रियों ने विजयनगर में धार्मिक स्वतंत्रता की प्रशंसा की है। राजा विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। त्योहार और अनुष्ठान: दशहरा, दीपावली, और मंदिरों में आयोजित उत्सव सामाजिक एकता को बढ़ाते थे। महिलाओं की स्थिति उच्च वर्ग: राजघरानों और उच्च वर्ग की महिलाएँ कला, साहित्य, और शासन में सक्रिय थीं। उदाहरण के लिए, तिरुमलamba और गंगादेवी जैसी कवयित्रियों ने साहित्य में योगदान दिया। सामान्य वर्ग: सामान्य महिलाओं की स्थिति परंपरागत थी। सती प्रथा और बहु-विवाह प्रचलित थे, हालांकि ये सभी वर्गों में सामान्य नहीं थे। नर्तकियाँ: देवदासियाँ मंदिरों में नृत्य और धार्मिक कार्यों में भाग लेती थीं, और उन्हें सामाजिक सम्मान प्राप्त था।
शिक्षा और संस्कृति शिक्षा: संस्कृत, तमिल, तेलुगु, और कन्नड़ में साहित्य का विकास हुआ। मठ और मंदिर शिक्षा के केंद्र थे। विद्वानों को राजाश्रय प्राप्त था। साहित्य: कृष्णदेवराय स्वयं एक विद्वान थे और उन्होंने आमुक्तमाल्यद जैसे ग्रंथ लिखे। अन्य प्रमुख रचनाएँ जैसे गंगादेवी की मधुराविजयम और अल्लसानी पेद्दाना की कविताएँ उल्लेखनीय हैं। कला और वास्तुकला: विजयनगर की वास्तुकला (द्रविड़ शैली) में मंदिर, गोपुरम, और मंडप प्रसिद्ध थे। हंपी के विट्ठल मंदिर, हजारा राम मंदिर, और लोटस महल इसकी भव्यता के उदाहरण हैं। मूर्तिकला और चित्रकला में भी उन्नति हुई। संगीत और नृत्य: भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत का विकास हुआ। मंदिरों में नृत्य और संगीत धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा थे।
विशेषताएँ और योगदान हंपी: विजयनगर की राजधानी हंपी एक वैश्विक शहर थी, जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। यह व्यापार, कला, और संस्कृति का केंद्र था। विदेशी यात्रियों का विवरण: डोमिंगो पायस, अब्दुर रज्जाक, और नूनिज जैसे यात्रियों ने विजयनगर की समृद्धि, बाजारों, और शासन की प्रशंसा की। पतन के कारण: 1565 ई. में तालिकोटा के युद्ध में बहमनी सल्तनतों के गठबंधन से हार, आंतरिक विद्रोह, और नायकों की स्वतंत्रता ने साम्राज्य के पतन को तेज किया।
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