Aravidu Dynasty
jp Singh
2025-05-27 10:01:13
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अरावीडु वंश
अरावीडु वंश
अरविदु वंश (या अरावीडु वंश) विजयनगर साम्राज्य का चौथा और अंतिम शासक वंश था, जिसने 1570 से 1646 ई. तक शासन किया। यह वंश तालिकोटा के युद्ध (1565) के बाद सत्ता में आया, जब तुलुव वंश की शक्ति लगभग समाप्त हो गई थी और विजयनगर की राजधानी हम्पी दक्कनी सल्तनतों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, और बीदर) द्वारा लूटकर नष्ट कर दी गई थी। अरविदु वंश ने विजयनगर साम्राज्य को पुनर्जनन और स्थिरता प्रदान करने का प्रयास किया, लेकिन यह केवल एक कमजोर और नाममात्र साम्राज्य बनकर रह गया। इस वंश के शासकों ने नई राजधानियाँ (पेनुकोंडा और चंद्रगिरि) स्थापित कीं और दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति को संरक्षित करने का प्रयास किया।
1. ऐतिहासिक संदर्भ
उदय: अरविदु वंश की स्थापना तिरुमल राय ने 1570 ई. में की, जो तुलुव वंश के शासक राम राय (रामराजा) के भाई थे। तालिकोटा के युद्ध (1565) में विजयनगर की हार और हम्पी की तबाही के बाद तिरुमल राय ने पेनुकोंडा को नई राजधानी बनाकर साम्राज्य को पुनर्गठित करने का प्रयास किया। पृष्ठभूमि: अरविदु वंश का नाम तिरुमल राय के परिवार से लिया गया है, जो तेलुगु मूल का था और संभवतः काकतीय या स्थानीय योद्धा कुलों से संबंधित था। यह वंश विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक वंश था। उद्देश्य: अरविदु वंश का मुख्य उद्देश्य तालिकोटा की हार के बाद विजयनगर साम्राज्य को पुनर्जनन करना, दक्कनी सल्तनतों और उभरते मुगल साम्राज्य के खिलाफ रक्षा करना, और हिंदू धर्म व दक्षिण भारतीय संस्कृति को संरक्षित करना था।
राजधानी: पेनुकोंडा (1570-1592): तालिकोटा के बाद तिरुमल राय ने इसे राजधानी बनाया। चंद्रगिरि (1592-1646): बाद में श्रीरंग राय प्रथम ने चंद्रगिरि को राजधानी बनाया। कुछ समय के लिए वेल्लोर भी महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र रहा। अवधि: अरविदु वंश ने 1570 से 1646 तक शासन किया। इसके बाद साम्राज्य पूरी तरह विघटित हो गया, और इसके क्षेत्र मधुरै नायक्क, मैसूर, और मुगल साम्राज्य के अधीन हो गए। 2. प्रमुख शासक अरविदु वंश के शासकों ने विजयनगर साम्राज्य को पुनर्जनन करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी शक्ति सीमित थी। प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं
(i) तिरुमल राय (1570-1572)
उदय: तिरुमल राय, राम राय के भाई, तालिकोटा के युद्ध के बाद विजयनगर साम्राज्य के रीजेंट बने। उन्होंने नाममात्र शासक सदाशिव राय (तुलुव वंश) को सत्ता में रखा, लेकिन वास्तविक शक्ति उनके हाथ में थी। 1570 में उन्होंने अरविदु वंश की औपचारिक स्थापना की। सैन्य और प्रशासनिक प्रयास: तालिकोटा की हार के बाद तिरुमल राय ने हम्पी छोड़कर पेनुकोंडा को नई राजधानी बनाया, जो रणनीतिक रूप से सुरक्षित थी। दक्कनी सल्तनतों (विशेष रूप से बीजापुर और गोलकुंडा) के हमलों को रोकने का प्रयास किया। नायकों (मधुरै, तंजावुर, चंद्रगिरि) की स्वायत्तता को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन सफलता सीमित रही। सांस्कृतिक योगदान: तिरुमल राय का शासनकाल अस्थिर था, इसलिए सांस्कृतिक योगदान सीमित रहे। फिर भी, उन्होंने वैष्णव और शैव मंदिरों को संरक्षण दिया। मृत्यु: 1572 में तिरुमल राय की मृत्यु के बाद उनके पुत्र श्रीरंग राय प्रथम ने सत्ता संभाली।
(ii) श्रीरंग राय प्रथम (1572-1586)
शासन: श्रीरंग राय प्रथम अरविदु वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासक थे, जिन्होंने साम्राज्य को स्थिर करने का प्रयास किया। सैन्य उपलब्धियाँ: बीजापुर और गोलकुंडा की सल्तनतों के खिलाफ युद्ध लड़े और कुछ क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया। पुर्तगालियों के साथ गठबंधन बनाए रखा, जिससे घोड़े और हथियारों का आयात जारी रहा। तमिल क्षेत्रों में मधुरै और तंजावुर के नायकों को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन नायकों की स्वायत्तता बढ़ती गई।
प्रशासनिक सुधार: पेनुकोंडा में प्रशासन को पुनर्गठित किया और कर प्रणाली को सुधारने का प्रयास किया। चंद्रगिरि को वैकल्पिक प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया, जो बाद में राजधानी बनी। सांस्कृतिक योगदान: तेलुगु और कन्नड़ साहित्य को संरक्षण दिया। उनके समय में कुछ स्थानीय कवियों ने रचनाएँ लिखीं। वैष्णव और शैव मंदिरों को समर्थन दिया, विशेष रूप से चंद्रगिरि और तिरुपति में। चुनौतियाँ: श्रीरंग राय को दक्कनी सल्तनतों के निरंतर हमलों और नायकों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा।
(iii) वेंकट राय द्वितीय (1586-1614)
शासन: वेंकट राय द्वितीय ने चंद्रगिरि को स्थायी राजधानी बनाया और साम्राज्य को और दक्षिण की ओर स्थानांतरित किया। सैन्य और प्रशासनिक प्रयास: बीजापुर और गोलकुंडा के खिलाफ रक्षात्मक युद्ध लड़े, लेकिन विजयनगर की शक्ति सीमित थी। पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक और सैन्य संबंधों को मजबूत किया। वेल्लोर किला उनके समय में महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र बना। नायकों की स्वायत्तता को स्वीकार किया, जिसने मधुरै और तंजावुर नायक्क राजवंशों को स्वतंत्र बना दिया। सांस्कृतिक योगदान: तिरुपति के वेंकटेश्वर मंदिर को संरक्षण दिया, जो दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया। तेलुगु साहित्य और कर्नाटक संगीत को प्रोत्साहन दिया। चुनौतियाँ: वेंकट राय को उभरते मुगल साम्राज्य (औरंगजेब के समय) और दक्कनी सल्तनतों के दबाव का सामना करना पड़ा।
(iv) श्रीरंग राय द्वितीय (1614-1617)
शासन: श्रीरंग राय द्वितीय का शासनकाल संक्षिप्त और अस्थिर था। सैन्य और प्रशासनिक कमजोरियाँ: दक्कनी सल्तनतों और नायकों के विद्रोहों ने साम्राज्य को और कमजोर किया। आंतरिक उत्तराधिकार विवादों ने प्रशासन को अस्थिर किया। पतन: श्रीरंग राय द्वितीय की मृत्यु के बाद अरविदु वंश की सत्ता और कमजोर हुई।
(v) श्रीरंग राय तृतीय (1642-1646) अंतिम शासक: श्रीरंग राय तृतीय अरविदु वंश और विजयनगर साम्राज्य के अंतिम शासक थे। सैन्य प्रयास: बीजापुर और गोलकुंडा के खिलाफ अंतिम बार युद्ध लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। मुगल साम्राज्य (औरंगजेब) ने दक्कन में दबाव बढ़ाया, जिसने विजयनगर को और कमजोर किया। पतन: 1646 में श्रीरंग राय तृतीय की मृत्यु के बाद विजयनगर साम्राज्य पूरी तरह विघटित हो गया। इसके क्षेत्र मधुरै नायक्क, मैसूर, और मुगल साम्राज्य के अधीन हो गए।
3. प्रशासन और शासन व्यवस्था
कमजोर केंद्रीकृत प्रशासन: अरविदु वंश का प्रशासन तुलुव वंश की तुलना में कमजोर था। तालिकोटा के बाद केंद्रीय सत्ता सीमित हो गई, और नायकों की स्वायत्तता बढ़ गई। नायंक व्यवस्था: साम्राज्य के प्रांतों को नायकों द्वारा शासित किया जाता था, लेकिन मधुरै, तंजावुर, और चंद्रगिरि के नायकों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। अरविदु शासकों ने नायकों को नियंत्रित करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी शक्ति अपर्याप्त थी। न्याय व्यवस्था: स्थानीय पंचायतें और धर्मशास्त्रों के आधार पर न्याय प्रदान किया जाता था, लेकिन केंद्रीय नियंत्रण की कमी ने इसे प्रभावित किया। सैन्य संगठन: अरविदु वंश की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक, और कुछ हाथी शामिल थे, लेकिन तालिकोटा के बाद सैन्य शक्ति बहुत कमजोर हो गई।
पुर्तगालियों से घोड़े और हथियारों का आयात जारी रहा, लेकिन पहले की तरह प्रभावी नहीं था। धार्मिक नीति: अरविदु शासकों ने वैष्णव और शैव संप्रदायों को संरक्षण दिया। तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर उनके समय में प्रमुख तीर्थ स्थल बना। जैन और मुस्लिम समुदायों के प्रति सहिष्णुता बरती गई।
4. आर्थिक समृद्धि
कृषि: कावेरी और तमिल क्षेत्रों की नदियों ने कृषि को समर्थन दिया। चावल, गन्ना, और कपास प्रमुख फसलें थीं। तालिकोटा के बाद हम्पी के विनाश ने कृषि और सिंचाई प्रणालियों को प्रभावित किया, लेकिन चंद्रगिरि और वेल्लोर में कृषि जारी रही। व्यापार: तालिकोटा के बाद विजयनगर का वैश्विक व्यापार कमजोर हो गया। मंगलोर और कालीकट जैसे बंदरगाह अब नायकों और पुर्तगालियों के नियंत्रण में थे। अरविदु शासकों ने पुर्तगालियों के साथ व्यापार बनाए रखा, विशेष रूप से मसाले, कपड़ा, और रत्नों के निर्यात के लिए।
हस्तशिल्प: कपड़ा बुनाई और मूर्तिकला चंद्रगिरि और तिरुपति जैसे क्षेत्रों में जारी रही, लेकिन तुलुव वंश की तरह समृद्ध नहीं थी। मुद्रा: सोने (वराह), चांदी, और तांबे के सिक्के प्रचलन में थे, लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण सिक्कों की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
5. सांस्कृतिक योगदान
अरविदु वंश का सांस्कृतिक योगदान तुलुव वंश की तुलना में सीमित था, लेकिन उन्होंने विजयनगर की परंपराओं को बनाए रखने का प्रयास किया।
(i) स्थापत्य
द्रविड़ शैली का संरक्षण: अरविदु वंश ने द्रविड़ स्थापत्य की परंपरा को बनाए रखा, लेकिन तालिकोटा के बाद नए मंदिरों का निर्माण सीमित था। प्रमुख स्मारक: तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर: अरविदु शासकों ने इस मंदिर को संरक्षण दिया और इसका विस्तार किया। यह दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल बना। वेल्लोर किला: वेंकट राय द्वितीय के समय वेल्लोर किला एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया। चंद्रगिरि किला: चंद्रगिरि में कुछ मंदिरों और महलों का निर्माण हुआ, जो द्रविड़ शैली को दर्शाते हैं। विशेषताएँ: अरविदु काल में स्थापत्य गतिविधियाँ मुख्य रूप से मौजूदा मंदिरों के रखरखाव और छोटे पैमाने के निर्माण तक सीमित थीं।
(ii) साहित्य
अरविदु वंश ने तेलुगु, कन्नड़, और संस्कृत साहित्य को संरक्षण दिया, लेकिन तुलुव वंश की तरह उत्कृष्ट रचनाएँ कम थीं। प्रमुख रचनाएँ: तेलुगु में स्थानीय कवियों ने भक्ति और नीति पर आधारित रचनाएँ लिखीं। संस्कृत में वैष्णव और शैव विद्वानों ने धार्मिक ग्रंथ लिखे। विद्वान: वैष्णव संतों, जैसे तिरुपति के पुजारियों, ने साहित्य और दर्शन को बढ़ावा दिया।
(iii) संगीत और नृत्य
कर्नाटक संगीत: अरविदु काल में कर्नाटक संगीत की परंपरा बनी रही। पुरंदरदास की रचनाएँ इस काल में भी लोकप्रिय थीं। भरतनाट्यम: मंदिरों में देवदासियों द्वारा नृत्य प्रदर्शन जारी रहे, विशेष रूप से तिरुपति और चंद्रगिरि में। उत्सव: तिरुपति में वार्षिक उत्सव और ब्रह्मोत्सव अरविदु शासकों द्वारा आयोजित किए गए।
(iv) धार्मिक सहिष्णुता
अरविदु शासकों ने वैष्णव और शैव संप्रदायों को प्राथमिकता दी, लेकिन जैन और मुस्लिम समुदायों के प्रति सहिष्णुता बरती। तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर अरविदु काल में दक्षिण भारत का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र बन गया।
6. सामाजिक ढांचा
जाति व्यवस्था: अरविदु काल में समाज वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था। ब्राह्मण विद्वानों और पुजारियों को उच्च स्थान प्राप्त था, जबकि क्षत्रिय (नायक और योद्धा), वैश्य (व्यापारी), और शूद्र (कृषक और कारीगर) समाज के अन्य वर्ग थे। महिलाओं की स्थिति: महिलाएँ मंदिर नृत्य और धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय थीं। सामंती समाज में उनकी स्थिति सामान्यतः पुरुषों के अधीन थी। शिक्षा: संस्कृत, तेलुगु, और कन्नड़ में शिक्षा मंदिरों और मठों के माध्यम से दी जाती थी। तिरुपति के वैष्णव विद्वानों ने शिक्षा को बढ़ावा दिया।
7. बाहरी संबंध और युद्ध
दक्कनी सल्तनतें: अरविदु वंश ने बीजापुर और गोलकुंडा के खिलाफ रक्षात्मक युद्ध लड़े, लेकिन तालिकोटा के बाद उनकी सैन्य शक्ति सीमित थी। श्रीरंग राय प्रथम और वेंकट राय द्वितीय ने कुछ क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन स्थायी सफलता नहीं मिली। मुगल साम्राज्य: औरंगजेब के समय मुगल साम्राज्य ने दक्कन में दबाव बढ़ाया। अरविदु वंश के अंतिम वर्षों में मुगलों ने विजयनगर के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा किया।
पुर्तगाली: अरविदु शासकों ने पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक और सैन्य संबंध बनाए रखे। गोवा और अन्य बंदरगाहों के माध्यम से घोड़े और हथियार आयात किए गए। नायक्क राजवंश: मधुरै और तंजावुर के नायकों ने स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन कुछ समय तक अरविदु शासकों को नाममात्र कर भेजा। चंद्रगिरि के नायकों ने अरविदु शासकों के साथ निकट संबंध बनाए रखा।
8. पतन
आंतरिक कमजोरियाँ: नायकों की स्वायत्तता और आंतरिक उत्तराधिकार विवादों ने अरविदु वंश को कमजोर किया। केंद्रीय सत्ता की कमी और सैन्य शक्ति का अभाव पतन का प्रमुख कारण था। बाहरी दबाव: बीजापुर और गोलकुंडा की सल्तनतों ने विजयनगर के क्षेत्रों पर कब्जा किया। मुगल साम्राज्य (औरंगजेब) ने दक्कन में प्रभुत्व स्थापित किया, जिसने अरविदु वंश को और कमजोर किया। अंत: 1646 में श्रीरंग राय तृतीय की मृत्यु के बाद विजयनगर साम्राज्य पूरी तरह विघटित हो गया। इसके क्षेत्र मधुरै नायक्क, मैसूर, और मुगल साम्राज्य के अधीन हो गए।
9. महत्व और विरासत
साम्राज्य का पुनर्जनन: अरविदु वंश ने तालिकोटा की तबाही के बाद विजयनगर साम्राज्य को पुनर्जनन करने का प्रयास किया। हालांकि सीमित सफलता मिली, लेकिन उन्होंने साम्राज्य को कुछ समय तक जीवित रखा। हिंदू धर्म का संरक्षण: अरविदु शासकों ने हिंदू धर्म और दक्षिण भारतीय संस्कृति को संरक्षित किया। तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर उनकी सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक विरासत है। स्थापत्य और सांस्कृतिक योगदान: अरविदु वंश ने तिरुपति, चंद्रगिरि, और वेल्लोर में मंदिरों और किलों को संरक्षण दिया। तेलुगु साहित्य और कर्नाटक संगीत की परंपराएँ बनी रहीं। नायक्क राजवंशों का उदय: अरविदु वंश की कमजोरी ने मधुरै और तंजावुर नायक्क राजवंशों को स्वतंत्र होने का अवसर दिया, जो दक्षिण भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र बने। विरासत: अरविदु वंश की विरासत तिरुपति मंदिर, चंद्रगिरि किला, और दक्षिण भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं में आज भी जीवित है।
10. समकालीन स्रोत और दस्तावेज
पुर्तगाली यात्री: पुर्तगाली व्यापारियों ने चंद्रगिरि और वेल्लोर के व्यापारिक महत्व का उल्लेख किया, लेकिन अरविदु वंश के समय में विजयनगर की समृद्धि तुलुव वंश की तुलना में बहुत कम थी। स्थानीय स्रोत: तेलुगु और कन्नड़ साहित्य में अरविदु शासकों को विजयनगर की अंतिम आशा के रूप में चित्रित किया गया। तिरुपति मंदिर के अभिलेख उनके धार्मिक योगदान को दर्शाते हैं। मुगल और दक्कनी स्रोत: फारसी इतिहासकारों, जैसे फरिश्ता, ने अरविदु वंश को एक कमजोर राज्य के रूप में वर्णित किया, जो दक्कनी सल्तनतों और मुगलों के दबाव में था।
Conclusion
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