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Demonic Battle of Tangadi or Talikota
jp Singh 2025-05-27 09:54:13
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राक्षसी तंगडी अथवा तालीकोटा का युद्ध

राक्षसी तंगडी अथवा तालीकोटा का युद्ध
राक्षस-तंगड़ी युद्ध या तालिकोटा का युद्ध (23 जनवरी 1565) मध्यकालीन दक्षिण भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक युद्ध था, जिसने विजयनगर साम्राज्य की शक्ति और तुलुव वंश की सत्ता को लगभग समाप्त कर दिया। यह युद्ध विजयनगर साम्राज्य और दक्कनी सल्तनतों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, और बीदर) की संयुक्त सेनाओं के बीच लड़ा गया। युद्ध का नाम राक्षस-तंगड़ी (कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के संगम के पास का क्षेत्र) या तालिकोटा (नजदीकी कस्बा) से लिया गया है। इस युद्ध ने विजयनगर की राजधानी हम्पी को तबाह कर दिया और साम्राज्य के पतन की शुरुआत की।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
विजयनगर साम्राज्य का स्वर्ण युग: तुलुव वंश के शासक कृष्णदेव राय (1509-1529) के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। कृष्णदेव राय ने दक्कनी सल्तनतों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा) और गजपति शासकों को कई बार पराजित किया, विशेष रूप से रायचूर का युद्ध (1520) में बीजापुर को हराकर।
कृष्णदेव राय के बाद कमजोरी: कृष्णदेव राय की मृत्यु (1529) के बाद उनके उत्तराधिकारी अच्युतदेव राय और सदाशिव राय कमजोर शासक साबित हुए। वास्तविक सत्ता उनके ससुर और सेनापति राम राय (रामराजा) के हाथ में थी, जो एक कुशल लेकिन विवादास्पद शासक थे।
दक्कनी सल्तनतों का गठबंधन: राम राय की नीतियों ने दक्कनी सल्तनतों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया। राम राय ने दक्कनी सल्तनतों के बीच आपसी विवादों में हस्तक्षेप किया, जैसे:
बीजापुर और अहमदनगर के बीच युद्ध में बीजापुर का समर्थन करना।
गोलकुंडा के खिलाफ बीजापुर की सहायता करना। इन हस्तक्षेपों ने दक्कनी सल्तनतों को विजयनगर के खिलाफ एकजुट होने के लिए मजबूर किया। युद्ध का तात्कालिक कारण: राम राय की आक्रामक नीतियाँ और दक्कनी सल्तनतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ने चार प्रमुख सल्तनतों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, और बीदर) को एक अभूतपूर्व गठबंधन बनाने के लिए प्रेरित किया। गोलकुंडा के सुल्तान इब्राहिम कुतुबशाह के दामाद को राम राय ने अपमानित किया, जिसने गठबंधन को और मजबूत किया। स्थान: युद्ध तालिकोटा कस्बे के पास, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच राक्षस-तंगड़ी क्षेत्र में लड़ा गया। यह क्षेत्र वर्तमान कर्नाटक में है।
2. युद्ध की तैयारी
विजयनगर की सेना: नेतृत्व: राम राय, जो विजयनगर के रीजेंट थे, ने सेना का नेतृत्व किया। उनके साथ उनके भाई तिरुमल राय और वेंकटाद्रि राय थे। नाममात्र शासक सदाशिव राय युद्ध में शामिल नहीं थे। शक्ति: विजयनगर की सेना में लगभग 1 लाख सैनिक, 10,000 घुड़सवार, और सैकड़ों हाथी शामिल थे। पुर्तगालियों से आयातित घोड़े और तोपखाने ने सेना को मजबूत बनाया। रणनीति: राम राय ने आक्रामक रणनीति अपनाई और युद्ध के लिए राक्षस-तंगड़ी के मैदान को चुना, जो खुला और उनकी विशाल सेना के लिए उपयुक्त था। दक्कनी सल्तनतों की सेना: नेतृत्व: गठबंधन सेना का नेतृत्व अहमदनगर के हुसैन निज़ामशाह, बीजापुर के अली आदिल शाह प्रथम, और गोलकुंडा के इब्राहिम कुतुबशाह ने किया। बीदर की सल्तनत ने भी समर्थन दिया। शक्ति: गठबंधन सेना में लगभग 80,000 सैनिक, 30,000 घुड़सवार, और उन्नत तोपखाना शामिल था। दक्कनी सेना में तुर्की और फारसी सैनिकों के साथ-साथ स्थानीय योद्धा भी थे।
रणनीति: दक्कनी सल्तनतों ने एकजुट रणनीति अपनाई और तोपखाने का प्रभावी उपयोग किया। उन्होंने विजयनगर की सेना को थकाने और आश्चर्यजनक हमले की योजना बनाई। पुर्तगाली प्रभाव: विजयनगर ने पुर्तगालियों से घोड़े और हथियार प्राप्त किए, लेकिन दक्कनी सल्तनतों ने भी तुर्की और फारसी सल्तनतों से तोपखाने और सैन्य विशेषज्ञों की सहायता ली।
3. युद्ध का विवरण
दिनांक: 23 जनवरी 1565। स्थान: राक्षस-तंगड़ी, तालिकोटा के पास (वर्तमान कर्नाटक)। युद्ध का प्रारंभ: युद्ध की शुरुआत में विजयनगर की सेना ने आक्रामक हमला किया और प्रारंभिक सफलता प्राप्त की। राम राय की सेना ने दक्कनी सल्तनतों की अग्रिम पंक्तियों को पीछे धकेल दिया। विजयनगर की विशाल सेना और हाथी दस्तों ने गठबंधन सेना पर भारी दबाव डाला। निर्णायक मोड़: विश्वासघात: विजयनगर की सेना में दो मुस्लिम सेनापति, गिलानी बंधु, जो दक्कनी मूल के थे, ने युद्ध के बीच में पक्ष बदल लिया। वे गठबंधन सेना में शामिल हो गए, जिसने विजयनगर की रणनीति को भारी नुकसान पहुँचाया। तोपखाने का उपयोग: दक्कनी सल्तनतों ने अपने उन्नत तोपखाने का प्रभावी उपयोग किया, जिसने विजयनगर की सेना को तितर-बितर कर दिया। तोपों ने हाथी दस्तों और घुड़सवारों को भारी नुकसान पहुँचाया।
राम राय की हत्या: युद्ध के दौरान राम राय को पकड़ लिया गया और अहमदनगर के सुल्तान हुसैन निज़ामशाह के आदेश पर उनकी हत्या कर दी गई। राम राय की मृत्यु ने विजयनगर सेना का मनोबल तोड़ दिया। परिणाम: विजयनगर की सेना पूरी तरह पराजित हो गई। हजारों सैनिक मारे गए, और सेना तितर-बितर हो गई। दक्कनी सल्तनतों ने विजयनगर की राजधानी हम्पी पर कब्जा कर लिया और इसे लूटा। मंदिरों, महलों, और बाजारों को नष्ट कर दिया गया। हम्पी, जो कभी विश्व का सबसे समृद्ध शहर था, खंडहर में बदल गया।
4. युद्ध के परिणाम
विजयनगर का पतन: तालिकोटा का युद्ध विजयनगर साम्राज्य के पतन का प्रतीक था। तुलुव वंश की शक्ति समाप्त हो गई, और साम्राज्य कभी अपनी पूर्व गौरव को पुनः प्राप्त नहीं कर सका। राम राय की मृत्यु के बाद तिरुमल राय ने पेनुकोंडा को नई राजधानी बनाकर अरविदु वंश की स्थापना की, लेकिन विजयनगर केवल नाममात्र का साम्राज्य रह गया। हम्पी की तबाही: दक्कनी सल्तनतों ने हम्पी को कई महीनों तक लूटा। मंदिरों, जैसे विट्ठल मंदिर और हजारा राम मंदिर, को क्षतिग्रस्त किया गया, और बाजार नष्ट हो गए। हम्पी की आबादी छितर गई, और यह एक सुनसान खंडहर बन गया।
दक्कनी सल्तनतों की स्थिति: युद्ध के बाद दक्कनी सल्तनतों ने दक्कन में प्रभुत्व स्थापित किया, लेकिन उनका गठबंधन जल्द ही टूट गया, और आपसी विवाद फिर से शुरू हो गए। बीजापुर और गोलकुंडा ने विजयनगर के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा किया। नायकों की स्वायत्तता: विजयनगर की केंद्रीय सत्ता के कमजोर होने से नायकों (मधुरै, तंजावुर, चंद्रगिरि) ने स्वायत्तता की घोषणा की। मधुरै और तंजावुर नायक्क राजवंश स्वतंत्र हो गए। सांस्कृतिक प्रभाव: तालिकोटा के युद्ध ने दक्षिण भारत में हिंदू धर्म के सबसे बड़े गढ़ को कमजोर किया। हालांकि, विजयनगर की सांस्कृतिक विरासत (स्थापत्य, साहित्य, संगीत) मधुरै और तंजावुर जैसे क्षेत्रों में जीवित रही। मुगल प्रभाव: युद्ध के बाद दक्कन में मुगल साम्राज्य (औरंगजेब के समय) का प्रभाव बढ़ा, जिसने बाद में दक्कनी सल्तनतों और विजयनगर के अवशेषों को अपने अधीन किया।
5. युद्ध के कारण
राम राय की नीतियाँ: राम राय की आक्रामक और हस्तक्षेपकारी नीतियों ने दक्कनी सल्तनतों को एकजुट होने के लिए मजबूर किया। उनके द्वारा गोलकुंडा और अहमदनगर के खिलाफ बीजापुर का समर्थन करना युद्ध का प्रमुख कारण था। विजयनगर की सैन्य कमजोरी: कृष्णदेव राय के बाद विजयनगर की सैन्य शक्ति और केंद्रीय प्रशासन कमजोर हो गया था। नायकों की स्वायत्तता और उत्तराधिकार विवादों ने स्थिति को और बिगाड़ा। दक्कनी सल्तनतों का गठबंधन: चार दक्कनी सल्तनतों का अभूतपूर्व गठबंधन तालिकोटा युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण कारक था। यह गठबंधन विजयनगर की विशाल सेना को पराजित करने में सक्षम था। विश्वासघात: गिलानी बंधुओं का विश्वासघात युद्ध का एक निर्णायक कारक था, जिसने विजयनगर की रणनीति को नष्ट कर दिया।
6. युद्ध की रणनीति और महत्व
रणनीति: विजयनगर: राम राय ने अपनी विशाल सेना और हाथी दस्तों पर भरोसा किया। उनकी रणनीति आक्रामक थी, लेकिन तोपखाने का उपयोग सीमित था। दक्कनी सल्तनतें: गठबंधन सेना ने तोपखाने और घुड़सवारों का प्रभावी उपयोग किया। विश्वासघात और आश्चर्यजनक हमले ने उनकी जीत सुनिश्चित की। महत्व: तालिकोटा का युद्ध दक्षिण भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने विजयनगर साम्राज्य को समाप्त कर दक्कनी सल्तनतों को दक्कन का प्रमुख शक्ति बना दिया। यह युद्ध हिंदू-मुस्लिम संघर्ष के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि विजयनगर हिंदू धर्म का गढ़ था, जबकि दक्कनी सल्तनतें इस्लामी शासनों का प्रतिनिधित्व करती थीं। युद्ध ने दक्षिण भारत में सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया, क्योंकि हम्पी की तबाही ने क्षेत्र की समृद्धि को नष्ट कर दिया।
7. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रभाव
स्थापत्य हानि: हम्पी के मंदिरों और महलों की तबाही ने द्रविड़ स्थापत्य की एक समृद्ध परंपरा को नष्ट कर दिया। हालांकि, कुछ स्मारक, जैसे विट्ठल मंदिर, आज भी खंडहरों में जीवित हैं। साहित्य और कला: तालिकोटा के बाद विजयनगर की साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपराएँ मधुरै, तंजावुर, और मैसूर जैसे क्षेत्रों में जीवित रहीं। तेलुगु साहित्य और कर्नाटक संगीत का विकास जारी रहा। हिंदू धर्म: विजयनगर के पतन ने दक्षिण भारत में हिंदू धर्म के एक प्रमुख केंद्र को कमजोर किया, लेकिन मधुरै नायक्क और मैसूर जैसे राज्यों ने इसकी रक्षा की। आर्थिक प्रभाव: हम्पी के व्यापारिक बाजारों की तबाही ने दक्षिण भारत की आर्थिक समृद्धि को प्रभावित किया। व्यापार अब गोवा और मसूलिपट्टनम जैसे बंदरगाहों की ओर स्थानांतरित हो गया।
8. समकालीन स्रोत और दस्तावेज
पुर्तगाली यात्री: डोमिंगो पेस और फर्नाओ नुनीज ने तालिकोटा युद्ध से पहले विजयनगर की समृद्धि का वर्णन किया, लेकिन युद्ध के बाद के विनाश का कोई प्रत्यक्ष विवरण नहीं दिया। फारसी स्रोत: दक्कनी सल्तनतों के इतिहासकारों, जैसे फरिश्ता, ने तालिकोटा युद्ध का वर्णन किया और गठबंधन की जीत को इस्लामी विजय के रूप में प्रस्तुत किया। स्थानीय स्रोत: तेलुगु और कन्नड़ साहित्य में तालिकोटा युद्ध को विजयनगर के पतन के रूप में चित्रित किया गया, जिसमें
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