Tuluv vansh
jp Singh
2025-05-27 09:50:43
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
तुलुव वंश
तुलुव वंश
तुलुव वंश विजयनगर साम्राज्य का तीसरा शासक वंश था, जिसने 1505 से 1570 ई. तक शासन किया। यह वंश विजयनगर साम्राज्य के स्वर्ण युग के लिए प्रसिद्ध है, विशेष रूप से कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान, जिन्हें दक्षिण भारत के सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है। तुलुव वंश ने साम्राज्य को सैन्य, प्रशासनिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से अभूतपूर्व ऊँचाइयों पर पहुँचाया। इस वंश ने हिंदू धर्म और दक्षिण भारतीय संस्कृति की रक्षा की और दक्कनी सल्तनतों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा) के खिलाफ विजयनगर की शक्ति को मजबूत किया।
1. ऐतिहासिक संदर्भ
उदय: तुलुव वंश की स्थापना 1505 ई. में वीर नरसिंह ने की, जिन्होंने सालुव वंश के अंतिम शासक इम्मडि नरसिंह को अपदस्थ किया। सालुव वंश के शासनकाल में आंतरिक विद्रोह और नायकों की स्वायत्तता के कारण साम्राज्य अस्थिर हो गया था। वीर नरसिंह, जो एक शक्तिशाली सेनापति और तुलुव कुल (तेलुगु मूल) से थे, ने सत्ता हथिया कर साम्राज्य को स्थिर किया। पृष्ठभूमि: तुलुव वंश तेलुगु भाषी क्षेत्रों से संबंधित था और संभवतः काकतीय वंश या स्थानीय योद्धा कुलों से उत्पन्न हुआ। इस वंश ने विजयनगर साम्राज्य को एक नया जीवन दिया और इसे दक्षिण भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बनाया। उद्देश्य: तुलुव वंश का मुख्य उद्देश्य विजयनगर साम्राज्य को दक्कनी सल्तनतों, गजपति शासकों, और अन्य शत्रुओं से बचाना, हिंदू धर्म और संस्कृति को संरक्षित करना, और व्यापार व समृद्धि को बढ़ावा देना था।
राजधानी: तुलुव वंश ने हम्पी (तुंगभद्रा नदी के तट पर, वर्तमान कर्नाटक) को ही राजधानी बनाए रखा, जो विजयनगर साम्राज्य का सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था। अवधि: तुलुव वंश ने 1505 से 1570 तक शासन किया। इसके बाद तालिकोटा के युद्ध (1565) में हार और आंतरिक कमजोरियों के कारण अरविदु वंश ने सत्ता संभाली।
2. प्रमुख शासक
तुलुव वंश का शासनकाल विजयनगर साम्राज्य का सबसे गौरवशाली काल था, विशेष रूप से कृष्णदेव राय के शासन में। प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं
(i) वीर नरसिंह (1505-1509)
उदय: वीर नरसिंह एक तुलुव सेनापति थे, जिन्होंने सालुव वंश के कमजोर शासक इम्मडि नरसिंह को अपदस्थ कर सत्ता हथिया ली। उनका शासनकाल अल्पकालिक लेकिन महत्वपूर्ण था। सैन्य उपलब्धियाँ: आंतरिक विद्रोहों को दबाया और नायकों की स्वायत्तता को नियंत्रित किया। बहमनी सल्तनत और दक्कनी सल्तनतों (जैसे बीजापुर और गोलकुंडा) के खिलाफ सैन्य अभियान चलाए। प्रशासनिक सुधार: नायंक व्यवस्था को पुनर्गठित किया और साम्राज्य के केंद्रीय नियंत्रण को मजबूत किया। कर प्रणाली को सुव्यवस्थित किया और व्यापार को बढ़ावा दिया। सांस्कृतिक योगदान: वीर नरसिंह का शासनकाल सांस्कृतिक दृष्टि से ज्यादा उल्लेखनीय नहीं था, लेकिन उन्होंने तुलुव वंश की नींव रखी। मृत्यु: 1509 में उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई कृष्णदेव राय ने सत्ता संभाली।
(ii) कृष्णदेव राय (1509-1529)
स्वर्ण युग: कृष्णदेव राय तुलुव वंश और विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक थे। उनके शासनकाल को दक्षिण भारत का स्वर्ण युग माना जाता है। सैन्य उपलब्धियाँ: रायचूर का युद्ध (1520): कृष्णदेव राय ने बीजापुर सल्तनत के सुल्तान इस्माइल आदिल शाह को पराजित कर रायचूर दोआब पर कब्जा किया। यह युद्ध विजयनगर की सैन्य शक्ति का प्रतीक था। गजपति शासकों के खिलाफ: ओडिशा के गजपति शासक प्रतापरुद्र देव को हराकर कोंडविडु और उत्कल क्षेत्र पर कब्जा किया। दक्कनी सल्तनतों के खिलाफ: अहमदनगर, बीजापुर, और गोलकुंडा के साथ युद्धों में विजयी रहे और दक्कन में विजयनगर का प्रभुत्व स्थापित किया। श्रीलंका अभियान: श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया। प्रशासनिक सुधार: नायंक व्यवस्था को और मजबूत किया, लेकिन नायकों की निष्ठा सुनिश्चित की। भूमि सर्वेक्षण और कर प्रणाली को सुव्यवस्थित किया, जिससे राजस्व बढ़ा। पुर्तगालियों के साथ गठबंधन बनाए, जिससे घोड़ों और हथियारों का आयात बढ़ा।
सांस्कृतिक योगदान: साहित्य: कृष्णदेव राय स्वयं एक विद्वान और कवि थे। उन्होंने तेलुगु में आमुक्तमाल्यदा लिखा, जो भक्ति और नीति पर आधारित एक महाकाव्य है। उनके दरबार में अष्टदिग्गज (आठ प्रमुख तेलुगु कवि) थे, जैसे अल्लसानी पेद्दाना और तेनाली रामकृष्ण। स्थापत्य: हम्पी में विट्ठल मंदिर, हजारा राम मंदिर, और कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया। ये द्रविड़ शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। संगीत और नृत्य: कर्नाटक संगीत और भरतनाट्यम को संरक्षण दिया। उनके समय में पुरंदरदास ने कर्नाटक संगीत की नींव रखी। विदेशी यात्री: पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस और फर्नाओ नुनीज ने कृष्णदेव राय के शासनकाल की समृद्धि, हम्पी के बाजारों, और साम्राज्य की भव्यता का वर्णन किया। धार्मिक नीति: वैष्णव और शैव धर्म को संरक्षण दिया, लेकिन जैन और इस्लाम के प्रति सहिष्णुता दिखाई।
(iii) अच्युतदेव राय (1529-1542)
उत्तराधिकार: कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद उनके भाई अच्युतदेव राय ने सत्ता संभाली। उनका शासनकाल कृष्णदेव राय की तुलना में कमजोर था। सैन्य और प्रशासनिक कमजोरियाँ: दक्कनी सल्तनतों (बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर) का दबाव बढ़ा। नायकों के बीच विद्रोह शुरू हुए, विशेष रूप से मधुरै और तंजावुर के नायकों ने स्वायत्तता की मांग की। सांस्कृतिक योगदान: मंदिरों और साहित्य को संरक्षण जारी रखा, लेकिन कृष्णदेव राय की तरह उत्कृष्ट योगदान नहीं दे सके। तेलुगु साहित्य में कुछ रचनाएँ उनके समय में लिखी गईं। चुनौतियाँ: अच्युतदेव राय को अपने सौतेले भाई सदाशिव राय और नायकों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा।
(iv) सदाशिव राय (1542-1570)
नाममात्र शासक: सदाशिव राय अच्युतदेव राय के बाद सत्ता में आए, लेकिन वे एक कमजोर और नाममात्र शासक थे। वास्तविक सत्ता उनके ससुर और सेनापति राम राय (रामराजा) के हाथ में थी। राम राय की भूमिका: राम राय तुलुव वंश के अंतिम प्रभावशाली शासक थे, जो रीजेंट के रूप में शासन करते थे। उन्होंने दक्कनी सल्तनतों के साथ युद्ध लड़े और प्रारंभ में कुछ सफलताएँ प्राप्त कीं। पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक और सैन्य गठबंधन को मजबूत किया। तालिकोटा का युद्ध (1565): राम राय के नेतृत्व में विजयनगर ने अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, और बीदर की संयुक्त सेना के खिलाफ तालिकोटा (या राक्षस-तंगडी) के युद्ध में भाग लिया। विजयनगर की हार हुई, और राम राय मारे गए। हम्पी को लूटा गया और नष्ट कर दिया गया, जिसने तुलुव वंश की शक्ति को समाप्त कर दिया। पतन: तालिकोटा के युद्ध के बाद तुलुव वंश कमजोर हो गया। सदाशिव राय को नाममात्र शासक के रूप में रखा गया, लेकिन वास्तविक सत्ता अरविदु वंश के तिरुमल राय ने संभाली।
3. प्रशासन और शासन व्यवस्था
केंद्रीकृत प्रशासन: तुलुव वंश, विशेष रूप से कृष्णदेव राय, ने एक मजबूत केंद्रीकृत शासन व्यवस्था स्थापित की। सम्राट सर्वोच्च था, जिसके अधीन अमात्य (मंत्री), सेनापति, और नायकों का प्रशासन था। नायंक व्यवस्था: साम्राज्य को प्रांतों (रज्य) में बांटा गया, जिन्हें नायकों द्वारा शासित किया जाता था। कृष्णदेव राय ने नायकों की निष्ठा सुनिश्चित की, लेकिन अच्युतदेव और सदाशिव के समय नायकों की स्वायत्तता बढ़ी। प्रमुख नायक्क क्षेत्र: मधुरै, तंजावुर, और चंद्रगिरि। न्याय व्यवस्था: स्थानीय पंचायतें और धर्मशास्त्रों के आधार पर न्याय प्रदान किया जाता था। कृष्णदेव राय ने निष्पक्षता और पारदर्शिता पर जोर दिया।
सैन्य संगठन: तुलुव वंश की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक, हाथी, और तोपखाना शामिल था। पुर्तगालियों से आयातित घोड़े और हथियारों ने सैन्य शक्ति को बढ़ाया। कृष्णदेव राय ने सैन्य प्रशिक्षण और रणनीति पर विशेष ध्यान दिया, जिसने रायचूर जैसे युद्धों में जीत दिलाई। धार्मिक नीति: तुलुव शासकों ने वैष्णव और शैव संप्रदायों को प्राथमिकता दी, लेकिन जैन, बौद्ध, और मुस्लिम समुदायों के प्रति सहिष्णुता दिखाई।
4. आर्थिक समृद्धि
कृषि: तुंगभद्रा, कावेरी, और कृष्णा नदियों पर आधारित सिंचाई प्रणालियों ने कृषि को समृद्ध किया। कृष्णदेव राय ने नहरों और तालाबों का विस्तार किया। प्रमुख फसलें: चावल, गन्ना, कपास, और मसाले (काली मिर्च, इलायची)। व्यापार: विजयनगर तुलुव काल में वैश्विक व्यापार का केंद्र था। मंगलोर, भटकल, और कालीकट जैसे बंदरगाहों के माध्यम से अरब, फारस, पुर्तगाल, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार होता था। निर्यात: मसाले, कपड़ा, रत्न, और चंदन। आयात: घोड़े, सोना, मोती, और हथियार। पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस ने हम्पी के बाजारों को
हस्तशिल्प: कपड़ा बुनाई, मूर्तिकला, और आभूषण निर्माण में उत्कृष्टता थी। हम्पी के बाजार हस्तशिल्प और रत्नों के लिए प्रसिद्ध थे। मुद्रा: सोने (वराह या पागोडा), चांदी, और तांबे के सिक्के प्रचलन में थे। सिक्कों पर धार्मिक चिह्न, जैसे विष्णु, शिव, या हनुमान, अंकित होते थे।
5. सांस्कृतिक योगदान
तुलुव वंश, विशेष रूप से कृष्णदेव राय के शासनकाल में, विजयनगर साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से अपने चरम पर था।
(i) स्थापत्य
द्रविड़ शैली का चरम: तुलुव वंश ने द्रविड़ स्थापत्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। मंदिरों में विशाल गोपुरम, मंडप, और जटिल नक्काशी प्रमुख थी। प्रमुख स्मारक: विट्ठल मंदिर (हम्पी): कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित, यह द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका संगीतमय स्तंभ मंडप विश्व प्रसिद्ध है। हजारा राम मंदिर: रामायण की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध, जो कृष्णदेव राय का निजी मंदिर था। कृष्ण मंदिर: कृष्णदेव राय ने रायचूर की जीत के बाद बनवाया। हम्पी का किलेबंदी और नगर नियोजन: सात परतों वाली दीवारें, तालाब, नहरें, और बाजार तुलुव काल की देन हैं। विशेषताएँ: तुलुव स्थापत्य में ग्रेनाइट और साबुन पत्थर का उपयोग, जटिल मूर्तिकला, और मंदिर-केंद्रित नगर नियोजन प्रमुख था। हम्पी आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
(ii) साहित्य
तुलुव वंश ने तेलुगु, कन्नड़, और संस्कृत साहित्य को अभूतपूर्व संरक्षण दिया। प्रमुख रचनाएँ: आमुक्तमाल्यदा (कृष्णदेव राय): तेलुगु में भक्ति और नीति पर आधारित महाकाव्य, जो आंध्र महाभागवत का हिस्सा है। अष्टदिग्गज: कृष्णदेव राय के दरबार में आठ प्रमुख तेलुगु कवि थे, जैसे: अल्लसानी पेद्दाना:
(iii) संगीत और नृत्य
कर्नाटक संगीत: तुलुव काल में पुरंदरदास ने कर्नाटक संगीत की नींव रखी, जिन्हें
6. सामाजिक ढांचा
जाति व्यवस्था: तुलुव काल में समाज वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था। ब्राह्मण विद्वानों और पुजारियों को उच्च स्थान प्राप्त था, जबकि क्षत्रिय (नायक और योद्धा), वैश्य (व्यापारी), और शूद्र (कृषक और कारीगर) समाज के अन्य वर्ग थे। महिलाओं की स्थिति: महिलाएँ मंदिर नृत्य, कला, और धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय थीं। कृष्णदेव राय की रानियाँ, जैसे तिरुमलादेवी और चिन्नादेवी, दरबारी और धार्मिक कार्यों में सहयोग करती थीं। शिक्षा: संस्कृत, तेलुगु, और कन्नड़ में शिक्षा मंदिरों, मठों, और विद्वानों के माध्यम से दी जाती थी। अष्टदिग्गज और व्यासतीर्थ जैसे विद्वानों ने शिक्षा को बढ़ावा दिया।
7. बाहरी संबंध और युद्ध
दक्कनी सल्तनतें: तुलुव वंश, विशेष रूप से कृष्णदेव राय, ने अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, और बीदर के खिलाफ कई युद्ध लड़े। रायचूर का युद्ध (1520) उनकी सबसे बड़ी जीत थी। तालिकोटा का युद्ध (1565) तुलुव वंश के पतन का कारण बना, जिसमें दक्कनी सल्तनतों की संयुक्त सेना ने विजयनगर को पराजित किया। गजपति शासक: कृष्णदेव राय ने ओडिशा के गजपति शासकों को हराकर पूर्वी तट पर प्रभुत्व स्थापित किया। पुर्तगाली: तुलुव वंश ने पुर्तगालियों के साथ मजबूत व्यापारिक और सैन्य गठबंधन बनाए। गोवा में पुर्तगालियों से घोड़े और हथियार आयात किए गए। श्रीलंका: कृष्णदेव राय ने श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया।
8. पतन
तालिकोटा का युद्ध (1565): राम राय के नेतृत्व में विजयनगर ने दक्कनी सल्तनतों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, बीदर) की संयुक्त सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा। विजयनगर की हार हुई, और हम्पी को लूटा गया और नष्ट कर दिया गया। यह युद्ध तुलुव वंश के पतन का प्रमुख कारण था। आंतरिक कमजोरियाँ: अच्युतदेव और सदाशिव राय के समय नायकों की स्वायत्तता बढ़ी, जिसने केंद्रीय सत्ता को कमजोर किया। उत्तराधिकार विवाद और आंतरिक कलह ने साम्राज्य को अस्थिर किया। अरविदु वंश का उदय: तालिकोटा के बाद तिरुमल राय ने पेनुकोंडा को नई राजधानी बनाकर अरविदु वंश की स्थापना की। तुलुव वंश का प्रभाव समाप्त हो गया।
9. महत्व और विरासत
स्वर्ण युग: तुलुव वंश, विशेष रूप से कृष्णदेव राय का शासन, विजयनगर साम्राज्य का स्वर्ण युग था। इस काल में साम्राज्य सैन्य, आर्थिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से अपने चरम पर था। स्थापत्य विरासत: हम्पी के विट्ठल मंदिर, हजारा राम मंदिर, और अन्य स्मारक तुलुव काल की देन हैं। हम्पी आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। साहित्यिक योगदान: तेलुगु साहित्य में अष्टदिग्गज और आमुक्तमाल्यदा जैसे कार्य तुलुव वंश की साहित्यिक समृद्धि को दर्शाते हैं। संगीत और नृत्य: कर्नाटक संगीत और भरतनाट्यम की नींव तुलुव काल में मजबूत हुई। हिंदू धर्म का संरक्षण: तुलुव वंश ने हिंदू धर्म और दक्षिण भारतीय संस्कृति को दक्कनी सल्तनतों और अन्य आक्रमणों से बचाया। वैश्विक प्रभाव: पुर्तगाली और अरब व्यापारियों के साथ संबंधों ने विजयनगर को वैश्विक व्यापार का केंद्र बनाया।
10. विदेशी यात्रियों के विवरण
डोमिंगो पेस (1520): पुर्तगाली यात्री, जिसने कृष्णदेव राय के शासनकाल की समृद्धि, हम्पी के बाजारों, और मंदिरों की भव्यता का वर्णन किया। उन्होंने विजयनगर को
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781