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Sangam Dynasty
jp Singh 2025-05-26 17:13:35
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संगम राजवंश

संगम राजवंश
संगम राजवंश विजयनगर साम्राज्य का प्रथम शासक वंश था, जिसने 1336 से 1485 ई. तक शासन किया। यह दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू साम्राज्य की नींव रखने वाला वंश था, जिसने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगम राजवंश की स्थापना हरिहर प्रथम और बुक्का प्रथम ने की थी, जिन्हें उनके गुरु विद्यारण्य से प्रेरणा मिली। यह वंश विजयनगर साम्राज्य के चार वंशों (संगम, सलुवा, तुलुव, और अरविदु) में से पहला था। नीचे संगम राजवंश का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. ऐतिहासिक संदर्भ
पृष्ठभूमि: संगम राजवंश की स्थापना 1336 ई. में हरिहर प्रथम और बुक्का प्रथम ने तुंगभद्रा नदी के तट पर की। यह मध्यकालीन भारत में दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य, विजयनगर साम्राज्य, की शुरुआत थी। उस समय दक्षिण भारत दिल्ली सल्तनत (विशेष रूप से तुगलक वंश) और नवगठित बहमनी सल्तनत के आक्रमणों से जूझ रहा था। संगम राजवंश का उदय हिंदू धर्म और दक्षिण भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए एक प्रतिक्रिया था।
संस्थापकों का मूल: हरिहर और बुक्का के मूल के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ स्रोत उन्हें होयसाल साम्राज्य के सामंत मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें काकतीय वंश (वारंगल) से जोड़ते हैं। एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, वे दिल्ली सल्तनत के सैनिक थे, जिन्हें काकतीय विद्रोह को दबाने के लिए भेजा गया था, लेकिन उन्होंने विद्या गुरु विद्यारण्य के मार्गदर्शन में हिंदू धर्म अपनाकर स्वतंत्रता की घोषणा की।
नामकरण:
उद्देश्य: संगम राजवंश का मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत में हिंदू धर्म, संस्कृति, और परंपराओं को संरक्षित करना था, जो इस्लामी आक्रमणों से खतरे में थी। साथ ही, यह साम्राज्य दक्कन और दक्षिण भारत में क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करने में भी सक्रिय था।
2. प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ
संगम राजवंश ने लगभग डेढ़ सदी तक शासन किया और कई उल्लेखनीय शासकों ने साम्राज्य को सैन्य, प्रशासनिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से मजबूत किया।
(i) हरिहर प्रथम (1336-1356)
संस्थापक: हरिहर प्रथम ने अपने भाई बुक्का के साथ मिलकर विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने तुंगभद्रा नदी के तट पर हम्पी को राजधानी बनाया, जो रणनीतिक और प्राकृतिक रूप से सुरक्षित थी।
सैन्य उपलब्धियाँ: स्थानीय शासकों, जैसे होयसाल और काकतीय अवशेषों, को एकजुट किया। दिल्ली सल्तनत के तुगलक शासकों के खिलाफ विद्रोह किया और दक्कन में स्वतंत्रता स्थापित की। बहमनी सल्तनत (1347 में स्थापित) के साथ प्रारंभिक संघर्ष शुरू हुए। प्रशासन: हरिहर ने एक केंद्रीकृत प्रशासन की नींव रखी, जिसमें प्रांतों को नायकों द्वारा शासित किया जाता था। उन्होंने स्थानीय सामंतों को अपने अधीन किया। धार्मिक नीति: वैष्णव और शैव संप्रदायों को संरक्षण दिया। विरुपाक्ष मंदिर को राजकीय मंदिर बनाया और विद्यारण्य जैसे विद्वानों को सम्मानित किया। सांस्कृतिक योगदान: संस्कृत और कन्नड़ साहित्य को प्रोत्साहन दिया। उनके समय में हम्पी का प्रारंभिक विकास शुरू हुआ।
(ii) बुक्का प्रथम (1356-1377)
विस्तार: बुक्का ने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में तमिल क्षेत्रों (मदुरै तक) और पश्चिम में कोंकण तट तक किया। बहमनी संघर्ष: बहमनी सल्तनत के साथ रायचूर दोआब के लिए युद्ध लड़े, जो एक उपजाऊ और रणनीतिक क्षेत्र था। विदेशी संबंध: अरब व्यापारियों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए, जिससे मसाले और कपड़ा निर्यात बढ़ा। सांस्कृतिक योगदान: बुक्का की पत्नी गंगादेवी ने संस्कृत काव्य मधुरविजयम लिखा, जो विजयनगर की विजयों का वर्णन करता है। प्रशासन: नायंक व्यवस्था को और मजबूत किया, जिसमें स्थानीय शासकों को स्वायत्तता दी गई, लेकिन केंद्रीय नियंत्रण बनाए रखा।
(iii) हरिहर द्वितीय (1377-1404)
सैन्य अभियान: हरिहर द्वितीय ने साम्राज्य को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और कर्नाटक के बड़े हिस्सों तक विस्तारित किया। उन्होंने गोलकुंडा के काकतीय शासकों और बहमनी सल्तनत के खिलाफ युद्ध लड़े। प्रशासनिक सुधार: उन्होंने साम्राज्य को प्रांतों में संगठित किया और कर प्रणाली को व्यवस्थित किया। सांस्कृतिक योगदान: संस्कृत विद्वानों और मंदिरों को संरक्षण दिया। विरुपाक्ष मंदिर का विस्तार और हम्पी में जल प्रबंधन प्रणालियों का निर्माण उनके समय में हुआ। धार्मिक नीति: वैष्णव और शैव धर्म के साथ-साथ जैन धर्म को भी समर्थन दिया।
(iv) देवराय प्रथम (1406-1422)
सैन्य उपलब्धियाँ: देवराय प्रथम ने बहमनी सल्तनत और रेड्डी शासकों के खिलाफ युद्ध जीते। उन्होंने तमिल क्षेत्रों में पांड्य और चोल अवशेषों को अपने अधीन किया। पुर्तगाली संबंध: पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए, विशेष रूप से घोड़ों और हथियारों के आयात के लिए, जिसने विजयनगर की सैन्य शक्ति को बढ़ाया। सिंचाई और विकास: तुंगभद्रा नदी पर बांध और नहरों का निर्माण करवाया, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ा। सांस्कृतिक योगदान: कन्नड़ और तेलुगु साहित्य को प्रोत्साहन दिया। उनके समय में विदेशी यात्री निकोलो कोंटी (इटैलियन) ने विजयनगर की समृद्धि का वर्णन किया।
(v) देवराय द्वितीय (1424-1446)
स्वर्ण युग: देवराय द्वितीय संगम वंश के सबसे शक्तिशाली शासक थे। उन्होंने साम्राज्य को श्रीलंका और ओडिशा के गजपति शासकों तक विस्तारित किया। सैन्य शक्ति: उन्हें
(vi) विरुपाक्ष राय द्वितीय (1465-1485)
कमजोर शासक: विरुपाक्ष राय द्वितीय का शासनकाल संगम वंश का अंतिम चरण था। उनकी कमजोर नीतियों और आंतरिक विद्रोहों ने साम्राज्य को अस्थिर किया। पतन: बहमनी सल्तनत और गजपति शासकों के हमलों के साथ-साथ नायकों के विद्रोह ने सल्तनत को कमजोर किया। 1485 में सलुवा नरसिंह ने सत्ता हथिया ली, जिससे संगम वंश का अंत हुआ।
3. प्रशासन और शासन व्यवस्था
केंद्रीकृत शासन: संगम वंश ने एक मजबूत केंद्रीकृत शासन प्रणाली स्थापित की, जिसमें सम्राट सर्वोच्च था। उनके अधीन अमात्य (मंत्री), सेनापति, और प्रांतीय नायक थे। नायंक व्यवस्था: साम्राज्य को प्रांतों (रज्य) में बांटा गया, जिन्हें नायकों द्वारा शासित किया जाता था। नायकों को सैन्य और प्रशासनिक स्वायत्तता थी, लेकिन उन्हें सम्राट को कर और सैन्य सहायता प्रदान करनी होती थी। कर प्रणाली: भूमि कर (उपज का हिस्सा) और व्यापार कर साम्राज्य की आय का मुख्य स्रोत थे। कर प्रणाली को व्यवस्थित करने के लिए भूमि सर्वेक्षण किए गए। न्याय व्यवस्था: स्थानीय पंचायतें और धर्मशास्त्रों के आधार पर न्याय प्रदान किया जाता था। सम्राट और उनके अधिकारी उच्चतम अपील के लिए जिम्मेदार थे। सैन्य संगठन: संगम वंश की सेना में चार प्रमुख अंग थे: घुड़सवार: पुर्तगालियों से आयातित घोड़ों पर आधारित। पैदल सैनिक: स्थानीय योद्धाओं से निर्मित। हाथी दस्ते: युद्ध में महत्वपूर्ण, विशेष रूप से देवराय द्वितीय के समय।
तोपखाना: प्रारंभिक तोपों का उपयोग, जो पुर्तगालियों से प्राप्त हुए। धार्मिक नीति: संगम शासकों ने हिंदू धर्म (वैष्णव और शैव) को प्राथमिकता दी, लेकिन जैन, बौद्ध, और मुस्लिम समुदायों के प्रति सहिष्णुता दिखाई। विद्या गुरु विद्यारण्य और अन्य ब्राह्मण विद्वानों को विशेष सम्मान मिला।
4. आर्थिक समृद्धि
कृषि: तुंगभद्रा, कावेरी, और कृष्णा नदियों ने सिंचाई को समर्थन दिया। देवराय प्रथम द्वारा बनाए गए बांध और नहरें कृषि उत्पादन को बढ़ाने में सहायक थीं। प्रमुख फसलें: चावल, गन्ना, कपास, और मसाले (काली मिर्च, इलायची)। व्यापार: संगम काल में विजयनगर दक्षिण भारत का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। मंगलोर, भटकल, और कालीकट जैसे बंदरगाहों के माध्यम से व्यापार होता था। निर्यात: मसाले, कपड़ा, रत्न, और चंदन। आयात: घोड़े (अरब और पुर्तगाल से), मोती, और सोना। विदेशी यात्री, जैसे निकोलो कोंटी और अब्दुर रज्जाक, ने हम्पी के बाजारों को
हस्तशिल्प: कपड़ा बुनाई, मूर्तिकला, और आभूषण निर्माण विकसित था। हम्पी के बाजार हस्तशिल्प, रत्न, और विलासिता की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध थे। मुद्रा: संगम वंश ने सोने (वराह या पागोडा), चांदी, और तांबे के सिक्के जारी किए। सिक्कों पर धार्मिक चिह्न, जैसे विष्णु, शिव, या हनुमान, अंकित होते थे।
5. सांस्कृतिक योगदान
संगम राजवंश ने विजयनगर साम्राज्य को कला, स्थापत्य, और साहित्य का केंद्र बनाया, जिसने दक्षिण भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया।
(i) स्थापत्य द्रविड़ शैली: संगम वंश ने द्रविड़ स्थापत्य शैली को बढ़ावा दिया, जिसमें विशाल गोपुरम, मंडप, और जटिल नक्काशी शामिल थी। प्रमुख स्मारक: विरुपाक्ष मंदिर (हम्पी): संगम शासकों का प्रमुख धार्मिक केंद्र, जिसका विस्तार हरिहर और बुक्का ने किया। इसका गोपुरम और मंडप द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। हम्पी का प्रारंभिक विकास: संगम काल में हम्पी में मंदिर, बाजार, और जल प्रबंधन प्रणालियाँ (जैसे तालाब और नहरें) बनाई गईं। किलेबंदी: हम्पी के चारों ओर सात परतों वाली दीवारें और किलों का निर्माण शुरू हुआ, जो बाद में तुलुव वंश में पूर्ण हुआ।
विशेषताएँ: संगम काल के स्थापत्य में ग्रेनाइट पत्थरों का उपयोग, जटिल नक्काशी, और मंदिर-केंद्रित नगर नियोजन प्रमुख था।
(ii) साहित्य
संगम वंश ने संस्कृत, कन्नड़, और तेलुगु साहित्य को संरक्षण दिया। प्रमुख रचनाएँ: मधुरविजयम (गंगादेवी): बुक्का प्रथम की पत्नी द्वारा लिखित संस्कृत काव्य, जो विजयनगर की विजयों का वर्णन करता है। कर्णाटक भारत कथा (कुमारव्यास): कन्नड़ में महाभारत पर आधारित रचना, जो देवराय द्वितीय के समय लिखी गई। महानाटक सुधनिधि: संस्कृत में नाटक, जो संगम काल की साहित्यिक समृद्धि को दर्शाता है। विद्या गुरु विद्यारण्य ने वेदांतदशिका और पंचदशी जैसे दार्शनिक ग्रंथ लिखे, जो वैष्णव और अद्वैत वेदांत को बढ़ावा देते हैं।
(iii) संगीत और नृत्य
संगम वंश ने मंदिर-केंद्रित संगीत और नृत्य परंपराओं को प्रोत्साहन दिया। कर्नाटक संगीत: मंदिरों में भक्ति संगीत का विकास हुआ, जो बाद में तुलुव वंश में पुरंदरदास के साथ चरम पर पहुँचा। भरतनाट्यम: मंदिरों में देवदासियों द्वारा नृत्य प्रदर्शन आम थे, जो धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों का हिस्सा थे। (iv) धार्मिक सहिष्णुता संगम शासकों ने वैष्णव और शैव संप्रदायों को प्राथमिकता दी, लेकिन जैन और बौद्ध समुदायों को भी संरक्षण दिया। विदेशी यात्रियों, जैसे निकोलो कोंटी (1420) और अब्दुर रज्जाक (1443), ने विजयनगर की धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता की प्रशंसा की। जैन मंदिरों (जैसे चंद्रगिरि में) और बौद्ध अवशेषों को संरक्षण मिला।
6. सामाजिक ढांचा
जाति व्यवस्था: संगम काल में समाज वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था। ब्राह्मण विद्वानों और पुजारियों को उच्च स्थान प्राप्त था, जबकि क्षत्रिय (योद्धा), वैश्य (व्यापारी), और शूद्र (कृषक और कारीगर) समाज के अन्य प्रमुख वर्ग थे। महिलाओं की स्थिति: महिलाएँ मंदिर नृत्य (देवदासी), कला, और साहित्य में सक्रिय थीं। गंगादेवी जैसे विदुषियों ने साहित्य में योगदान दिया। हालांकि, सामंती समाज में महिलाओं की स्थिति सामान्यतः पुरुषों के अधीन थी। शिक्षा: संस्कृत और स्थानीय भाषाओं में शिक्षा मंदिरों और मठों के माध्यम से दी जाती थी। विद्यारण्य जैसे विद्वानों ने शिक्षा को बढ़ावा दिया।
7. बाहरी संबंध और युद्ध
बहमनी सल्तनत: संगम वंश का बहमनी सल्तनत (1347 से) के साथ लगातार संघर्ष रहा, विशेष रूप से रायचूर दोआब के नियंत्रण के लिए। यह क्षेत्र उपजाऊ और व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। स्थानीय शासक: संगम शासकों ने होयसाल, काकतीय, रेड्डी, और पांड्य जैसे स्थानीय शासकों को अपने अधीन किया या उनके साथ गठबंधन बनाए। पुर्तगाली और अरब: देवराय प्रथम और द्वितीय ने पुर्तगालियों और अरब व्यापारियों के साथ संबंध स्थापित किए। घोड़ों और हथियारों का आयात सैन्य शक्ति के लिए महत्वपूर्ण था। गजपति और अन्य: संगम वंश ने ओडिशा के गजपति शासकों और तमिल क्षेत्रों के छोटे शासकों के खिलाफ युद्ध लड़े। देवराय द्वितीय ने श्रीलंका तक प्रभाव बढ़ाया।
8. पतन
आंतरिक कमजोरियाँ: विरुपाक्ष राय द्वितीय के शासनकाल में नायकों और सामंतों के बीच विद्रोह बढ़े। प्रशासनिक ढीलापन और उत्तराधिकार विवाद ने साम्राज्य को कमजोर किया। बाहरी दबाव: बहमनी सल्तनत और गजपति शासकों के निरंतर हमलों ने संगम वंश को अस्थिर किया। सलुवा वंश का उदय: 1485 में सलुवा नरसिंह, जो एक शक्तिशाली नायक और सेनापति था, ने सत्ता हथिया ली, जिससे संगम वंश का अंत हुआ और सलुवा वंश की शुरुआत हुई।
9. महत्व और विरासत
हिंदू धर्म का संरक्षण: संगम राजवंश ने दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति को इस्लामी आक्रमणों से बचाया, जिसने विजयनगर को
विजयनगर का आधार: संगम वंश ने विजयनगर साम्राज्य को एक मजबूत आधार प्रदान किया, जिसे बाद में कृष्णदेव राय (तुलुव वंश) ने चरम पर पहुँचाया। 10. विदेशी यात्रियों के विवरण संगम काल की समृद्धि को विदेशी यात्रियों ने अपने लेखों में वर्णित किया
निकोलो कोंटी (1420): इटैलियन यात्री, जिसने विजयनगर को एक विशाल और समृद्ध शहर बताया, जिसमें 90,000 सैनिक और विशाल बाजार थे। अब्दुर रज्जाक (1443): फारसी यात्री, जिसने देवराय द्वितीय के शासनकाल की प्रशंसा की और हम्पी को
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