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jp Singh 2025-05-26 16:48:03
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विजयनगर साम्राज्य का विस्तार से परिवर्तन

विजयनगर साम्राज्य का विस्तार से परिवर्तन
विजयनगर साम्राज्य मध्यकालीन भारत का एक प्रमुख हिंदू साम्राज्य था, जो दक्षिण भारत में 14वीं से 17वीं सदी तक शक्तिशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहा। इसकी स्थापना 1336 ई. में हरिहर प्रथम और बुक्का प्रथम ने की थी, और यह दक्कन और दक्षिण भारत में इस्लामी सल्तनतों, विशेष रूप से बहमनी सल्तनत, के खिलाफ हिंदू धर्म और संस्कृति का गढ़ बना। विजयनगर साम्राज्य अपनी भव्य राजधानी हम्पी, समृद्ध व्यापार, और उत्कृष्ट स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। नीचे विजयनगर साम्राज्य का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
स्थापना: विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में हरिहर प्रथम और बुक्का प्रथम ने की, जो संभवतः होयसाल साम्राज्य या काकतीय वंश से संबंधित थे। ऐसा माना जाता है कि उन्हें दिल्ली सल्तनत के खिलाफ विद्रोह करने के लिए विद्या गुरु विद्यारण्य ने प्रेरित किया।
उद्देश्य: विजयनगर की स्थापना का मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करना था, जो दिल्ली सल्तनत और बाद में बहमनी सल्तनत के आक्रमणों से खतरे में थी।
भौगोलिक स्थिति: साम्राज्य तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा था, जो वर्तमान कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को कवर करता था। हम्पी की रणनीतिक स्थिति ने इसे सैन्य और व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाया।
अवधि: विजयनगर साम्राज्य 1336 से 1646 तक अस्तित्व में रहा, हालांकि इसका प्रभाव 1565 में तालिकोटा के युद्ध के बाद कमजोर हो गया।
2. शासक वंश और प्रमुख शासक
विजयनगर साम्राज्य में चार प्रमुख वंशों—संगम, सलुवा, तुलुव, और अरविदु—का शासन रहा। प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं
संगम वंश (1336-1485)
हरिहर प्रथम (1336-1356): साम्राज्य के संस्थापक, जिन्होंने तुंगभद्रा नदी के तट पर विजयनगर शहर की स्थापना की। उन्होंने होयसाल और अन्य स्थानीय शासकों को एकजुट किया।
बुक्का प्रथम (1356-1377): हरिहर के भाई, जिन्होंने साम्राज्य का विस्तार किया और बहमनी सल्तनत के खिलाफ युद्ध लड़े। उन्होंने वैष्णव धर्म को बढ़ावा दिया।
हरिहर द्वितीय (1377-1404): साम्राज्य को और मजबूत किया और दक्षिण में तमिल क्षेत्रों तक विस्तार किया।
सलुवा वंश (1485-1505)
सलुवा नरसिंह (1485-1491): संगम वंश के पतन के बाद सत्ता संभाली। उन्होंने साम्राज्य को स्थिर किया, लेकिन आंतरिक विद्रोहों का सामना किया।
तुलुव वंश (1505-1570)
कृष्णदेव राय (1509-1529): विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक, जिनके शासनकाल में साम्राज्य अपनी चरम समृद्धि पर था।
सैन्य उपलब्धियाँ: उन्होंने रायचूर का युद्ध (1520) में बीजापुर सल्तनत को हराया और ओडिशा के गजपति शासकों को पराजित किया।
सांस्कृतिक योगदान: तेलुगु साहित्य को संरक्षण दिया, विशेष रूप से अष्टदिग्गज (आठ प्रमुख कवि) को। उनकी रचना आमुक्तमाल्यदा तेलुगु साहित्य की उत्कृष्ट कृति है।
व्यापार और कूटनीति: पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए और घोड़ों का आयात बढ़ाया।
स्थापत्य: हम्पी में विट्ठल मंदिर और हजारा राम मंदिर जैसे भव्य स्मारक बनवाए।
अच्युत राय (1529-1542): कृष्णदेव राय के भाई, जिनके शासनकाल में आंतरिक कमजोरियाँ बढ़ीं।
अरविदु वंश (1570-1646): तिरुमल राय (1570-1572): तालिकोटा के युद्ध के बाद साम्राज्य को पुनर्गठित करने की कोशिश की। वेंकट द्वितीय (1586-1614): अरविदु वंश का अंतिम प्रमुख शासक, जिन्होंने साम्राज्य को स्थिर रखने की कोशिश की, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम हुआ।
3. प्रशासन और शासन व्यवस्था
केंद्रीकृत प्रशासन: विजयनगर में एक मजबूत केंद्रीकृत शासन था। सम्राट सर्वोच्च शासक होता था, जिसके अधीन प्रांतों (नायंक) का प्रशासन था।
नायंक व्यवस्था: साम्राज्य को प्रांतों में बांटा गया, जिन्हें नायकों (स्थानीय शासकों) द्वारा नियंत्रित किया जाता था। ये नायक स्वायत्त थे, लेकिन सम्राट के प्रति निष्ठावान रहते थे।
न्याय व्यवस्था: स्थानीय पंचायतें और राजा द्वारा नियुक्त अधिकारी न्याय प्रदान करते थे। धर्मशास्त्रों और स्थानीय परंपराओं का पालन किया जाता था।
सैन्य संगठन: विजयनगर की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक, हाथी, और तोपखाने शामिल थे। पुर्तगालियों से घोड़ों और हथियारों का आयात किया जाता था।
धार्मिक नीति: विजयनगर हिंदू धर्म का गढ़ था, लेकिन शासकों ने जैन, बौद्ध, और इस्लाम धर्म को भी संरक्षण दिया। वैष्णव और शैव संप्रदायों को विशेष प्रोत्साहन मिला।
4. आर्थिक समृद्धि
कृषि: विजयनगर की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी। तुंगभद्रा, कावेरी, और कृष्णा नदियों ने सिंचाई में सहायता की। चावल, गन्ना, और कपास प्रमुख फसलें थीं।
विजयनगर एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, जो अरब, फारस, पुर्तगाल, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ समुद्री व्यापार करता था।
प्रमुख बंदरगाह: मंगलोर, भटकल, और कालीकट।
निर्यात: कपड़ा, मसाले (काली मिर्च, इलायची), और रत्न।
आयात: घोड़े, मोती, और सोना।
हस्तशिल्प: विजयनगर में कपड़ा, आभूषण, और मूर्तिकला का विकास हुआ। हम्पी के बाजार हस्तशिल्प और रत्नों के लिए प्रसिद्ध थे।
मुद्रा: साम्राज्य में सोने (वराह), चांदी, और तांबे के सिक्के प्रचलन में थे, जो व्यापार को सुगम बनाते थे।
5. सांस्कृतिक योगदान
विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारतीय कला, स्थापत्य, और साहित्य का स्वर्ण युग था। हम्पी की भव्यता और सांस्कृतिक समृद्धि ने इसे विश्व प्रसिद्ध बनाया।
स्थापत्य: विजयनगर की स्थापत्य शैली, जिसे द्रविड़ शैली कहा जाता है, में गोपुरम, मंडप, और जटिल नक्काशी की विशेषताएँ थीं।
प्रमुख स्मारक
विट्ठल मंदिर, हम्पी: कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित, इसका संगीतमय स्तंभ और रथ-आकार का गर्भगृह प्रसिद्ध है। हजारा राम मंदिर: रामायण के दृश्यों से सजा यह मंदिर विजयनगर की कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। विरुपाक्ष मंदिर: विजयनगर का प्रमुख धार्मिक केंद्र, जो शैव संप्रदाय को समर्पित है। कमल महल और रानी का स्नानघर: ये स्मारक स्थापत्य और इंजीनियरिंग की उन्नति को दर्शाते हैं। हम्पी के खंडहर आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जो विजयनगर की भव्यता को दर्शाते हैं।
साहित्य: विजयनगर में संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, और तमिल साहित्य का विकास हुआ। कृष्णदेव राय के दरबार में अष्टदिग्गज (आठ प्रमुख तेलुगु कवि) जैसे अल्लसानी पेद्दाना और तेनाली रामकृष्ण थे। प्रमुख रचनाएँ: आमुक्तमाल्यदा (कृष्णदेव राय), परिजातापहरणम (नंदी तिम्मना)। संस्कृत में मधुरविजयम (गंगादेवी) जैसी रचनाएँ लिखी गईं। संगीत और नृत्य: विजयनगर में कर्नाटक संगीत और भरतनाट्यम का विकास हुआ। मंदिरों में नृत्य और संगीत की परंपरा थी। पुरंदरदास, जिन्हें कर्नाटक संगीत का पितामह माना जाता है, विजयनगर काल से प्रभावित थे।
धार्मिक सहिष्णुता: विजयनगर वैष्णव और शैव संप्रदायों का केंद्र था, लेकिन जैन और इस्लामी विद्वानों को भी संरक्षण मिला। विदेशी यात्री, जैसे डोमिंगो पेस और नूनिज, ने इसकी धार्मिक सहिष्णुता की प्रशंसा की।
6. बाहरी संबंध और युद्ध
बहमनी सल्तनत: विजयनगर का बहमनी सल्तनत के साथ लगातार संघर्ष रहा, विशेष रूप से रायचूर दोआब (तुंगभद्रा-कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र) के लिए।
दक्कन सल्तनतें: तालिकोटा के युद्ध (1565) में बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर, और बीदर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर को हराया, जिससे साम्राज्य कमजोर हुआ।
पुर्तगाली: विजयनगर ने पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक संबंध बनाए, विशेष रूप से घोड़ों और हथियारों के आयात के लिए।
गजपति और अन्य: विजयनगर ने ओडिशा के गजपति शासकों और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों के खिलाफ युद्ध लड़े।
7. पतन
तालिकोटा का युद्ध (1565): विजयनगर की हार ने साम्राज्य को अपूरणीय क्षति पहुँचाई। हम्पी को लूटा गया और नष्ट कर दिया गया।
आंतरिक कमजोरियाँ: उत्तराधिकार विवाद और नायकों की स्वतंत्रता की मांग ने साम्राज्य को कमजोर किया।
मुगल और दक्कन सल्तनतों का दबाव: 17वीं सदी में बीजापुर और गोलकुंडा ने विजयनगर के क्षेत्रों पर कब्जा किया।
अंत: 1646 में अरविदु वंश के अंतिम शासक श्रीरंग तृतीय के समय साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया।
8. महत्व और विरासत
हिंदू धर्म का गढ़: विजयनगर ने दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा की, जो इस्लामी आक्रमणों से खतरे में थी।
सांस्कृतिक केंद्र: हम्पी की भव्यता, साहित्य, और स्थापत्य ने दक्षिण भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।
स्थापत्य विरासत: हम्पी के खंडहर, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, विजयनगर की कला और इंजीनियरिंग की गवाही देते हैं।
आर्थिक योगदान: विजयनगर ने दक्षिण भारत को वैश्विक व्यापार के नक्शे पर स्थापित किया, जिसका प्रभाव औपनिवेशिक काल तक रहा।
साहित्य और संगीत: तेलुगु और कन्नड़ साहित्य के साथ-साथ कर्नाटक संगीत की नींव इस काल में पड़ी।
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