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jp Singh 2025-05-26 16:25:55
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जौनपुर का विस्तार से वर्णन

जौनपुर का विस्तार से वर्णन
मध्यकालीन भारत में जौनपुर सल्तनत एक महत्वपूर्ण स्वतंत्र प्रांतीय राज्य था, जिसे
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
स्थापना: जौनपुर सल्तनत की स्थापना 1394 ई. में मलिक सरवर ने की, जो दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह तुगलक के समय जौनपुर का गवर्नर था। दिल्ली सल्तनत के कमजोर होने और तैमूर के आक्रमण (1398 ई.) के बाद मलिक सरवर ने स्वतंत्रता की घोषणा की और
2. प्रमुख शासक
जौनपुर सल्तनत का शासन शर्की वंश के अधीन रहा, जिसके प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं
मलिक सरवर (1394-1399): जौनपुर सल्तनत के संस्थापक, जिन्हें
मुबारक शाह (1399-1402): मलिक सरवर के दत्तक पुत्र, जिन्होंने अल्पकाल तक शासन किया। उनके शासनकाल में जौनपुर ने अपनी स्वतंत्रता को मजबूत किया।
इब्राहिम शाह शर्की (1402-1440): शर्की वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक, जिनके शासनकाल में जौनपुर संस्कृति और कला का केंद्र बना। उन्होंने दिल्ली सल्तनत के साथ कई युद्ध लड़े और बंगाल, मालवा जैसे पड़ोसी राज्यों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए। शिक्षा और स्थापत्य को बढ़ावा दिया; कई मस्जिदें और मदरसे बनवाए।
महमूद शाह शर्की (1440-1457): इब्राहिम शाह के पुत्र, जिन्होंने क्षेत्र विस्तार की नीति अपनाई। दिल्ली सल्तनत के सैय्यद वंश के खिलाफ कई युद्ध लड़े।
हुसैन शाह शर्की (1458-1479): शर्की वंश का अंतिम प्रमुख शासक। उन्होंने दिल्ली के लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी के खिलाफ युद्ध लड़ा, लेकिन अंततः हार गए। 1479 में बहलोल लोदी ने जौनपुर पर कब्जा कर लिया, जिससे शर्की वंश का अंत हुआ।
3. प्रशासन और शासन व्यवस्था
केंद्रीकृत प्रशासन: शर्की शासकों ने एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया। जौनपुर को प्रांतों में बांटा गया, जिन्हें स्थानीय गवर्नर नियंत्रित करते थे। न्याय व्यवस्था: काजी और मुंशी जैसे अधिकारी न्याय और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। शासकों ने निष्पक्ष न्याय प्रणाली को बढ़ावा दिया। सैन्य संगठन: जौनपुर की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक और तोपखाने शामिल थे। शर्की शासकों ने पड़ोसी राज्यों के साथ युद्धों में सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। धार्मिक नीति: शर्की शासक मुस्लिम थे, लेकिन उन्होंने हिंदुओं के साथ सहिष्णुता की नीति अपनाई। हिंदू स्थानीय प्रशासन में शामिल थे, और हिंदू संस्कृति को भी संरक्षण मिला।
4. आर्थिक समृद्धि
कृषि: जौनपुर की उपजाऊ भूमि ने कृषि को बढ़ावा दिया। चावल, गेहूं, और गन्ना प्रमुख फसलें थीं। व्यापार: जौनपुर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, जो बंगाल, मालवा, और दिल्ली के साथ व्यापार करता था। गोमती नदी ने व्यापार और परिवहन में सहायता की। हस्तशिल्प: जौनपुर में कपड़ा, चमड़ा, और धातु के हस्तशिल्प विकसित हुए। खासकर सूती और रेशमी वस्त्रों का उत्पादन प्रसिद्ध था। मुद्रा: शर्की शासकों ने चांदी और तांबे के सिक्के जारी किए, जो व्यापार में प्रचलित थे।
5. सांस्कृतिक योगदान
जौनपुर सल्तनत को
शिक्षा और साहित्य: जौनपुर को
संगीत: जौनपुर सल्तनत संगीत का भी केंद्र थी। ऐसा माना जाता है कि जौनपुरी राग का विकास यहीं हुआ, जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रसिद्ध है। धार्मिक सहिष्णुता: शर्की शासकों ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया। जौनपुर में सूफी संतों, जैसे शेख नाथन, का प्रभाव भी था।
6. बाहरी संबंध और युद्ध
दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष: शर्की शासकों ने दिल्ली के तुगलक, सैय्यद, और लोदी वंशों के साथ कई युद्ध लड़े। खासकर इब्राहिम शाह और हुसैन शाह ने दिल्ली पर कब्जे की कोशिश की। पड़ोसी राज्यों के साथ: जौनपुर का बंगाल, मालवा, और मेवाड़ जैसे राज्यों के साथ कूटनीतिक और युद्ध दोनों तरह के संबंध थे। पतन का कारण: हुसैन शाह शर्की की हार और बहलोल लोदी द्वारा 1479 में जौनपुर पर कब्जा सल्तनत के अंत का प्रमुख कारण बना।
7. पतन
लोदी वंश का उदय: दिल्ली में लोदी वंश की स्थापना के बाद बहलोल लोदी ने जौनपुर पर हमला किया। 1479 में हुसैन शाह शर्की की हार के बाद जौनपुर दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया। आंतरिक कमजोरियाँ: उत्तराधिकार विवाद और स्थानीय सरदारों की महत्वाकांक्षा ने सल्तनत को कमजोर किया। मुगल शासन: 16वीं सदी में मुगल साम्राज्य के उदय के बाद जौनपुर पूरी तरह मुगल सूबे का हिस्सा बन गया।
8. महत्व और विरासत
सांस्कृतिक केंद्र: जौनपुर ने मध्यकाल में भारतीय उपमहाद्वीप में कला, संस्कृति, और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसकी स्थापत्य शैली आज भी अटाला और जामी मस्जिद जैसे स्मारकों में देखी जा सकती है। शिक्षा: जौनपुर के मदरसों ने इस्लामी और भारतीय विद्या को बढ़ावा दिया, जिसका प्रभाव बाद के काल में भी रहा। संगीत और साहित्य: जौनपुरी राग और स्थानीय साहित्य ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया। वास्तुकला: जौनपुर की शर्की शैली ने उत्तर भारत में इस्लामी स्थापत्य को एक नया आयाम दिया, जिसमें भारतीय और फारसी तत्वों का मिश्रण था।
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