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jp Singh 2025-05-26 10:31:26
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सुल्तानकालीन भारत (1206-1526 ई.)

सुल्तानकालीन भारत (1206-1526 ई.)
सुल्तानकालीन भारत (1206-1526 ई.) की स्थापत्य कला दिल्ली सल्तनत के विभिन्न वंशों (ग़ुलाम, खिलजी, तुगलक, सैय्यद, और लोदी) के संरक्षण में विकसित हुई, जो भारतीय और इस्लामी (फ़ारसी, तुर्की) शैलियों का अनूठा समन्वय थी। चूंकि आपने और जानकारी माँगी है, मैं कुछ और कम-ज्ञात स्मारकों, क्षेत्रीय स्थापत्य, और विशिष्ट स्थापत्य तत्वों पर ध्यान दूँगा, जो पहले उल्लेखित नहीं हुए या जिनका विवरण संक्षिप्त था। साथ ही, मैं सल्तनत काल की स्थापत्य कला के तकनीकी और सांस्कृतिक पहलुओं को और गहराई से प्रस्तुत करूँगा। जवाब को संक्षिप्त, केंद्रित, और नई जानकारी से युक्त रखूँगा।
सुल्तानकालीन स्थापत्य कला की अतिरिक्त विशेषताएँ
1. निर्माण तकनीक
स्क्विंच और पेंडेंटिव: गुंबदों को सहारा देने के लिए स्क्विंच (कोनों पर त्रिकोणीय संरचना) और पेंडेंटिव का उपयोग हुआ, जो फ़ारसी स्थापत्य से प्रेरित था। चूना-प्लास्टर और पत्थर: तुगलक काल में चूना-प्लास्टर का उपयोग बढ़ा, जो संरचनाओं को मजबूती और सादगी प्रदान करता था। ट्रस और बीम: प्रारंभिक मस्जिदों में हिंदू मंदिरों की ट्रस-बीम तकनीक का पुनर्चक्रण देखा गया, विशेष रूप से ग़ुलाम वंश में।
2. सजावटी तत्व
जाली कार्य: मस्जिदों और मकबरों में पत्थर की जालियों का उपयोग, जो प्रकाश और वेंटिलेशन के लिए था, साथ ही सौंदर्य को बढ़ाता था। टाइल कार्य: गुजरात और बंगाल में रंगीन टाइलों का उपयोग, जो इस्लामी शैली को दर्शाता था। कैलिग्राफी: फ़ारसी शिलालेखों में कुरान की आयतें, सुल्तानों की उपाधियाँ, और निर्माण तिथियाँ अंकित की गईं।
3. शहरी नियोजन
सल्तनत काल में नए शहरों की स्थापना, जैसे तुगलकाबाद, जाहनपनाह, और फिरोजशाह कोटला, में रक्षात्मक दीवारें, मस्जिदें, और बाजार शामिल थे। ये शहर सैन्य और प्रशासनिक केंद्र के रूप में डिज़ाइन किए गए।
4. क्षेत्रीय विशिष्टता
क्षेत्रीय सल्तनतों ने स्थानीय सामग्री और शिल्प कौशल का उपयोग किया, जैसे बंगाल में टेराकोटा और गुजरात में जैन नक्काशी। जौनपुर और मालवा में स्थानीय परंपराओं के साथ इस्लामी डिज़ाइनों का मिश्रण देखा गया।
सुल्तानकालीन वास्तुकला की अतिरिक्त विशेषताएँ
1. पर्यावरणीय डिज़ाइन
सल्तनत काल की संरचनाएँ स्थानीय जलवायु के अनुकूल थीं, जैसे मोटी दीवारें गर्मी से बचाव के लिए और जालियाँ वेंटिलेशन के लिए। जलाशय और बावलियाँ न केवल जल संरक्षण के लिए थीं, बल्कि सामाजिक सभा स्थल के रूप में भी काम करती थीं। उदाहरण: हौज़-ए-शम्सी में छायादार संरचनाएँ गर्मी से राहत प्रदान करती थीं।
2. सजावटी कला का विकास
अरबस्क डिज़ाइन: फ़ारसी प्रभाव से प्रेरित जटिल पुष्प और ज्यामितीय पैटर्न, विशेष रूप से खिलजी और तुगलक काल में। मोज़ेक कार्य: गुजरात और बंगाल में रंगीन टाइलों और मोज़ेक का उपयोग, जो स्मारकों को चमक प्रदान करता था। कुरसी (आधार डिज़ाइन): मकबरों और मस्जिदों के आधार पर जटिल नक्काशी, जो भारतीय मंदिर शैली से प्रेरित थी।
3. सैन्य और प्रशासनिक संरचनाएँ
किलों में रणनीतिक डिज़ाइन, जैसे खंदक, ऊँची दीवारें, और संकरे प्रवेश द्वार, सैन्य रक्षा को प्राथमिकता देते थे। प्रशासनिक भवन, जैसे दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास, सुल्तानों के दरबार के लिए बनाए गए।
4. क्षेत्रीय नवाचार
क्षेत्रीय सल्तनतों ने स्थानीय शिल्प और सामग्री का उपयोग किया, जैसे मालवा में ढलानदार दीवारें और बंगाल में टेराकोटा की नक्काशी। जौनपुर में विशाल इवान और गुजरात में जटिल जाली कार्य क्षेत्रीय पहचान को दर्शाते थे।
सुल्तानकालीन वास्तुकला की अतिरिक्त विशेषताएँ
1. वास्तुशिल्पीय नवाचार
दोहरी मेहराबें और स्तंभ: कुछ संरचनाओं में दोहरी मेहराबों (double arches) और मजबूत स्तंभों का उपयोग हुआ, जो स्थिरता और सौंदर्य को बढ़ाता था। कंगूरा डिज़ाइन: मस्जिदों और मकबरों की छतों पर कंगूरा (battlement-like) डिज़ाइन, जो फ़ारसी और भारतीय शैली का मिश्रण था। छत सज्जा: छतों पर नीले और हरे रंग की टाइलें, विशेष रूप से गुजरात और बंगाल में, इस्लामी सौंदर्य को दर्शाती थीं।
2. सामुदायिक और धार्मिक संरचनाएँ
सल्तनत काल में खानकाह (सूफी आश्रम) और दरगाहें बनाई गईं, जो सूफी संतों के केंद्र थे और सामाजिक एकता को बढ़ावा देती थीं। उदाहरण: निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह का प्रारंभिक रूप। मस्जिदों में प्रांगण (courtyard) डिज़ाइन सामुदायिक प्रार्थनाओं के लिए उपयुक्त था।
3. क्षेत्रीय अनुकूलन
क्षेत्रीय सल्तनतों ने स्थानीय जलवायु और सामग्री के अनुसार संरचनाएँ बनाईं, जैसे बंगाल में टेराकोटा और मालवा में लाल बलुआ पत्थर। जौनपुर में विशाल मेहराबें और गुजरात में जटिल जाली कार्य स्थानीय शिल्प कौशल को दर्शाते थे।
4. रक्षात्मक वास्तुकला
किलों में ऊँची दीवारें, गहरे खंदक, और रणनीतिक प्रवेश द्वार बनाए गए, जो सैन्य शक्ति को दर्शाते थे। उदाहरण: तुगलकाबाद और सिरि किले।
अतिरिक्त प्रमुख स्थापत्य स्मारक
1. ग़ुलाम वंश (1206-1290)
बालबन का मकबरा (दिल्ली): ग़ियासुद्दीन बल्बन का मकबरा, जो मेहराब और सादगीपूर्ण डिज़ाइन के लिए जाना जाता है। विशेषता: सल्तनत काल में मकबरा निर्माण की शुरुआत को दर्शाता है।
किला राय पिथौरा (दिल्ली): कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा विस्तारित। इसमें रक्षात्मक दीवारें और प्रारंभिक इस्लामी संरचनाएँ शामिल हैं। विशेषता: सैन्य स्थापत्य का प्रारंभिक उदाहरण।
2. खिलजी वंश (1290-1320)
निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह (दिल्ली): खिलजी काल में शुरू और बाद में विस्तारित। इसमें सादगीपूर्ण संरचना और सूफी महत्व है। विशेषता: धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में महत्व।
हौज़-ए-अलाई (दिल्ली): अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित जलाशय, जो जल प्रबंधन और स्थापत्य सौंदर्य को दर्शाता है। विशेषता: खिलजी काल में सार्वजनिक निर्माण पर जोर।
3. तुगलक वंश (1320-1414)
सतपुला (दिल्ली): मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा निर्मित सात मेहराबों वाला पुल, जो जल प्रबंधन और रक्षा के लिए था। विशेषता: तुगलक काल में इंजीनियरिंग और कार्यक्षमता का उदाहरण।
फिरोजशाह तुगलक का मकबरा (हौज़ खास, दिल्ली): सादगीपूर्ण डिज़ाइन, लाल बलुआ पत्थर, और छोटा गुंबद। बगीचे से घिरा हुआ। विशेषता: तुगलक काल की सादगी और मुगल मकबरा शैली की प्रेरणा।
दौलताबाद किला (महाराष्ट्र): मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा विस्तारित। इसमें रक्षात्मक संरचनाएँ और भारतीय-इस्लामी डिज़ाइन शामिल हैं। विशेषता: तुगलक काल में क्षेत्रीय विस्तार और स्थापत्य नवाचार।
4. सैय्यद और लोदी वंश (1414-1526):
मुबारक शाह सैय्यद का मकबरा (दिल्ली): सैय्यद वंश का मकबरा, जिसमें गुंबद और ज्यामितीय नक्काशी है। विशेषता: सल्तनत काल के मकबरा स्थापत्य का विकास।
बड़ा खान का मकबरा (दिल्ली): लोदी वंश के समय निर्मित। बगीचे और गुंबद के साथ मुगल शैली की प्रेरणा। विशेषता: लोदी काल में बगीचा-मकबरा शैली का विकास।
अटाला मस्जिद (जौनपुर): शर्की शासकों द्वारा निर्मित। विशाल इवान और स्थानीय भारतीय शैली का मिश्रण। विशेषता: जौनपुर की क्षेत्रीय शैली को दर्शाती है।
5. क्षेत्रीय सल्तनतें:
गोंडेश्वर मस्जिद (पांडुआ, बंगाल): बंगाल सल्तनत द्वारा निर्मित। टेराकोटा नक्काशी और छोटे गुंबदों की विशेषता। विशेषता: बंगाली शैली और इस्लामी तत्वों का मिश्रण।
रानी सिप्री मस्जिद (अहमदाबाद, गुजरात): गुजरात सल्तनत द्वारा निर्मित। जैन मंदिरों की नक्काशी और जाली कार्य की विशेषता। विशेषता: गुजरात की सांस्कृतिक समन्वय शैली।
जामा मस्जिद (मांडू, मालवा): मालवा सल्तनत द्वारा निर्मित। लाल बलुआ पत्थर और सादगीपूर्ण डिज़ाइन। विशेषता: मालवा की क्षेत्रीय स्थापत्य शैली
अतिरिक्त प्रमुख वास्तुशिल्पीय स्मारक
1. ग़ुलाम वंश (1206-1290)
जामा मस्जिद (भड़ौच, गुजरात): ग़ुलाम वंश के समय निर्मित। इसमें हिंदू मंदिरों के पुनर्चक्रित खंभों और इस्लामी मेहराबों का मिश्रण है। विशेषता: प्रारंभिक सल्तनत काल में क्षेत्रीय विस्तार और समन्वय को दर्शाती है।
अरहाई दिन का झोंपड़ा (विस्तार, अजमेर): इल्तुतमिश द्वारा विस्तारित। जटिल नक्काशी और प्रांगण डिज़ाइन। विशेषता: स्थानीय राजपूत शैली और इस्लामी तत्वों का मिश्रण।
2. खिलजी वंश (1290-1320)
कमाल मौला मस्जिद (धार, मालवा): खिलजी शासकों के क्षेत्रीय प्रभाव के दौरान निर्मित। इसमें हिंदू मंदिरों के खंभों का पुनर्चक्रण। विशेषता: खिलजी काल में दक्षिण-पश्चिम भारत में वास्तुशिल्पीय प्रभाव।
हौज़-ए-शम्सी (दिल्ली): इल्तुतमिश द्वारा निर्मित जलाशय, जिसे बाद में खिलजी काल में नवीनीकृत किया गया। विशेषता: जल प्रबंधन और सौंदर्य का उदाहरण।
3. तुगलक वंश (1320-1414)
आदिलाबाद किला (दिल्ली): मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा निर्मित। छोटा लेकिन रणनीतिक किला। विशेषता: तुगलक काल की सैन्य और रक्षात्मक वास्तुकला।
फतेहाबाद मस्जिद (हरियाणा): फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित। सादगीपूर्ण डिज़ाइन और स्थानीय सामग्री का उपयोग। विशेषता: तुगलक काल में क्षेत्रीय वास्तुकला का प्रसार।
काली मस्जिद (दिल्ली): फिरोजशाह तुगलक के समय निर्मित। काले पत्थर और सादगीपूर्ण मेहराबें। विशेषता: तुगलक काल की कार्यक्षमता और सौंदर्य।
4. सैय्यद और लोदी वंश (1414-1526)
सिकंदर लोदी का मकबरा (लोदी गार्डन, दिल्ली): बड़े गुंबद और बगीचे के साथ। मुगल चारबाग शैली की प्रेरणा। विशेषता: लोदी काल में मकबरा वास्तुकला का विकास।
जौनपुर की बारी मस्जिद: शर्की शासकों द्वारा निर्मित। विशाल मेहराबें और स्थानीय शैली का मिश्रण। विशेषता: जौनपुर की क्षेत्रीय वास्तुकला की विशिष्टता।
खैरपुर मस्जिद (दिल्ली): सैय्यद वंश के समय निर्मित। सादगीपूर्ण डिज़ाइन और छोटा गुंबद। विशेषता: सल्तनत काल के अंत में सादगी और कार्यक्षमता।
5. क्षेत्रीय सल्तनतें
छोटी दर्गाह मस्जिद (पांडुआ, बंगाल): बंगाल सल्तनत द्वारा निर्मित। टेराकोटा नक्काशी और छोटे गुंबद। विशेषता: बंगाली शैली और इस्लामी तत्वों का मिश्रण।
सिदी सईद मस्जिद (अहमदाबाद, गुजरात): गुजरात सल्तनत द्वारा निर्मित। जटिल जाली कार्य के लिए प्रसिद्ध। विशेषता: गुजरात की शिल्पकला और सांस्कृतिक समन्वय।
बाज बहादुर महल (मांडू, मालवा): मालवा सल्तनत द्वारा निर्मित। ढलानदार दीवारें और स्थानीय शैली। विशेषता: मालवा की क्षेत्रीय वास्तुकला की विशिष्टता।
विशेषता: मालवा की क्षेत्रीय वास्तुकला की विशिष्टता।
1. ग़ुलाम वंश (1206-1290)
कुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा (लाहौर): लाहौर में निर्मित, सादगीपूर्ण डिज़ाइन और लाल बलुआ पत्थर का उपयोग। विशेषता: सल्तनत काल के प्रारंभिक मकबरे और क्षेत्रीय विस्तार का उदाहरण।
जामा मस्जिद (सोमनाथ, गुजरात): ग़ुलाम वंश के समय निर्मित। हिंदू मंदिरों के पुनर्चक्रित तत्वों और इस्लामी मेहराबों का मिश्रण। विशेषता: ग़ुलाम वंश के क्षेत्रीय प्रभाव को दर्शाता है।
2. खिलजी वंश (1290-1320)
उखा मस्जिद (बयाना, राजस्थान): खिलजी काल में निर्मित। भारतीय स्तंभों और इस्लामी मेहराबों का समन्वय। विशेषता: खिलजी काल में क्षेत्रीय वास्तुकला का प्रसार।
शाही मस्जिद (हिसार, हरियाणा): अलाउद्दीन खिलजी के समय निर्मित। सादगीपूर्ण डिज़ाइन और स्थानीय सामग्री। विशेषता: खिलजी शासन के प्रशासनिक केंद्रों में वास्तुकला।
3. तुगलक वंश (1320-1414)
हिसार-ए-फिरोजा (हिसार, हरियाणा): फिरोजशाह तुगलक द्वारा स्थापित शहर। इसमें मस्जिद, बावली, और किला शामिल हैं। विशेषता: तुगलक काल में शहरी नियोजन और कार्यक्षमता।
प्याऊ (दिल्ली): फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित जल स्टेशन, जो सामाजिक कल्याण को दर्शाता है। विशेषता: तुगलक काल में सार्वजनिक निर्माण पर जोर।
लाल गुंबद (दिल्ली): तुगलक काल का मकबरा, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित। विशेषता: सादगी और कार्यक्षमता का उदाहरण।
4. सैय्यद और लोदी वंश (1414-1526)
ख्वाजा खिज्र का मकबरा (सोनीपत, हरियाणा): सैय्यद वंश के समय निर्मित। छोटा गुंबद और जाली कार्य। विशेषता: सल्तनत काल के अंत में क्षेत्रीय मकबरा शैली।
शाही मस्जिद (लाहौर): लोदी वंश के समय निर्मित। भारतीय और इस्लामी तत्वों का मिश्रण। विशेषता: लोदी काल में क्षेत्रीय वास्तुकला का प्रसार।
जौनपुर की लाल दरवाजा मस्जिद: शर्की शासकों द्वारा निर्मित। लाल बलुआ पत्थर और विशाल मेहराबें। विशेषता: जौनपुर की क्षेत्रीय शैली और सौंदर्य।
5. क्षेत्रीय सल्तनतें
एकट्टू मस्जिद (पांडुआ, बंगाल): बंगाल सल्तनत द्वारा निर्मित। टेराकोटा नक्काशी और छोटे गुंबद। विशेषता: बंगाली शैली और इस्लामी तत्वों का मिश्रण।
सिदी बशीर मस्जिद (अहमदाबाद, गुजरात): गुजरात सल्तनत द्वारा निर्मित।
रूपमती महल (मांडू, मालवा): मालवा सल्तनत द्वारा निर्मित। ऊँची स्थिति और भारतीय-इस्लामी डिज़ाइन। विशेषता: मालवा की क्षेत्रीय वास्तुकला और सौंदर्य।
अतिरिक्त प्रमुख वास्तुशिल्पीय स्मारक
1. ग़ुलाम वंश (1206-1290)
शम्सी मस्जिद (बदायूँ, उत्तर प्रदेश): इल्तुतमिश के समय निर्मित। हिंदू मंदिरों के पुनर्चक्रित खंभों और इस्लामी मेहराबों का मिश्रण। विशेषता: ग़ुलाम वंश के क्षेत्रीय प्रभाव और सांस्कृतिक समन्वय को दर्शाती है।
कुतुबुद्दीन ऐबक का मस्जिद परिसर (महरौली, दिल्ली): कुतुब परिसर में अतिरिक्त संरचनाएँ, जैसे छोटी बावलियाँ और प्रांगण। विशेषता: प्रारंभिक सल्तनत काल में सामुदायिक और धार्मिक केंद्र।
2. खिलजी वंश (1290-1320)
जामा मस्जिद (मालवा, मांडू): खिलजी शासकों के क्षेत्रीय प्रभाव के दौरान निर्मित। स्थानीय पत्थर और इस्लामी डिज़ाइन। विशेषता: खिलजी काल में मालवा में वास्तुशिल्पीय प्रसार।
हौज़-ए-कुतुब (दिल्ली): कुतुब परिसर में निर्मित जलाशय, जो खिलजी काल में नवीनीकृत हुआ। विशेषता: जल प्रबंधन और सौंदर्य का उदाहरण।
3. तुगलक वंश (1320-1414)
जाहनपनाह मस्जिद (दिल्ली): मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा निर्मित। सादगीपूर्ण डिज़ाइन और बड़े प्रांगण। विशेषता: तुगलक काल में शहरी नियोजन और धार्मिक स्थापत्य।
फिरोजशाही बावली (वज़ीराबाद, दिल्ली): फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित। गोलाकार डिज़ाइन और जाली कार्य। विशेषता: तुगलक काल में जल प्रबंधन और सामाजिक उपयोगिता।
सुल्तानपुर मस्जिद (हरियाणा): फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित। सादगी और स्थानीय सामग्री का उपयोग। विशेषता: तुगलक काल में क्षेत्रीय वास्तुकला का प्रसार।
4. सैय्यद और लोदी वंश (1414-1526)
मुहम्मद शाह सैय्यद का मकबरा (दिल्ली): सैय्यद वंश का मकबरा, जिसमें छोटा गुंबद और ज्यामितीय नक्काशी है। विशेषता: सल्तनत काल के अंत में मकबरा शैली का विकास।
छोटा खान का मकबरा (लोदी गार्डन, दिल्ली): लोदी वंश के समय निर्मित। बगीचे और सादगीपूर्ण डिज़ाइन। विशेषता: मुगल मकबरा शैली की प्रेरणा।
जौनपुर की जामी मस्जिद: शर्की शासकों द्वारा निर्मित। विशाल इवान और स्थानीय शैली का मिश्रण। विशेषता: जौनपुर की क्षेत्रीय वास्तुकला की विशिष्टता।
लोटन मस्जिद (दौलिया, बंगाल): बंगाल सल्तनत द्वारा निर्मित। टेराकोटा नक्काशी और छोटे गुंबद। विशेषता: बंगाली शैली और इस्लामी तत्वों का मिश्रण।
सिदी सईद की जाली मस्जिद (अहमदाबाद, गुजरात): गुजरात सल्तनत द्वारा निर्मित। जटिल जाली कार्य, विशेष रूप से
जामी मस्जिद (चंपानेर, गुजरात): गुजरात सल्तनत द्वारा निर्मित। जैन नक्काशी और इस्लामी मेहराबों का मिश्रण। विशेषता: चंपानेर की यूनेस्को विश्व धरोहर और क्षेत्रीय शैली।
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