Major Historical Works of Sultan Period
jp Singh
2025-05-24 16:29:52
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सुल्तानकालीन प्रमुख ऐताहिसक कृतियाँ
सुल्तानकालीन प्रमुख ऐताहिसक कृतियाँ
सुल्तानकालीन भारत (1206-1526 ई.) में कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कृतियाँ लिखी गईं, जो इतिहास, साहित्य, और संस्कृति के अध्ययन के लिए मूल्यवान हैं। ये कृतियाँ मुख्य रूप से फ़ारसी, अरबी और प्रारंभिक उर्दू में लिखी गईं, क्योंकि दिल्ली सल्तनत के शासकों ने फ़ारसी को प्रशासनिक और साहित्यिक भाषा के रूप में प्रोत्साहित किया। निम्नलिखित कुछ प्रमुख ऐतिहासिक कृतियाँ हैं:
1. तारीख-ए-फिरोजशाही (ज़ियाउद्दीन बरनी)
यह दिल्ली सल्तनत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है। बरनी ने इसमें 1259 से 1357 तक के सुल्तानों (बल्बन से फिरोजशाह तुगलक तक) के शासनकाल का वर्णन किया है। इसमें सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्थाओं का भी विवरण है। विशेषता: बरनी का लेखन पक्षपातपूर्ण है, लेकिन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह कृति अमूल्य है।
2. तबकात-ए-नासिरी (मिनहाज-उस-सिराज)
यह कृति 13वीं शताब्दी में लिखी गई और ग़ुलाम वंश के शासकों का विस्तृत इतिहास प्रस्तुत करती है। इसमें इल्तुतमिश, रजिया सुल्ताना और बल्बन के शासनकाल की घटनाओं का उल्लेख है। यह भारत के साथ-साथ मध्य एशिया और इस्लामी दुनिया के इतिहास को भी दर्शाती है।
3. तारीख-ए-फखरुद्दीन मुबारकशाही (फखर-ए-मुदब्बिर)
यह कृति दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक काल और खिलजी वंश के इतिहास को कवर करती है। इसमें सैन्य अभियानों और शासकों की नीतियों का विवरण मिलता है।
4. खजैन-उल-फुतूह (अमीर खुसरो)
अमीर खुसरो, जो खिलजी वंश के दरबारी कवि थे, ने इस कृति में अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य अभियानों और विजयों का वर्णन किया है। यह कृति फ़ारसी साहित्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें खुसरो की काव्यात्मक शैली झलकती है।
5. फतवा-ए-जहाँदारी (ज़ियाउद्दीन बरनी)
यह एक नीतिशास्त्रीय कृति है, जिसमें शासन और प्रशासन के सिद्धांतों पर विचार किया गया है। बरनी ने इस्लामी शासन के आदर्शों और सुल्तानों के कर्तव्यों पर प्रकाश डाला।
6. तारीख-ए-महमूदशाही
यह कृति ग़ुलाम वंश के संस्थापक महमूद ग़ज़नवी के अभियानों और दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक चरणों को दर्शाती है।
7. मिफ्ताह-उल-फुतूह (अमीर खुसरो)
इस कृति में अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का वर्णन है, विशेष रूप से दक्षिण भारत और मंगोल आक्रमणों के खिलाफ उनकी सफलताओं का।
8. रहला (इब्न बतूता)
यह इब्न बतूता की यात्रा-वृत्तांत कृति है, जो एक मोरक्कन यात्री और विद्वान थे। वे 1333-1341 के बीच भारत आए और तुगलक वंश के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में रहे। इस कृति में दिल्ली सल्तनत के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन का विस्तृत वर्णन है, जैसे बाजार, प्रशासन, और लोगों का जीवन। विशेषता: यह एक बाहरी दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो इसे अन्य दरबारी इतिहासकारों की कृतियों से अलग बनाती है।
9. तुजुक-ए-जाहाँगीरी (अलाउद्दीन खिलजी के संदर्भ में)
हालाँकि यह कृति मूल रूप से मुगल सम्राट जहाँगीर की आत्मकथा है, लेकिन इसमें सल्तनत काल के अंतिम चरणों और खिलजी वंश के कुछ ऐतिहासिक संदर्भ मिलते हैं। यह कृति सल्तनत काल के बाद के इतिहास को समझने में सहायक है।
10. आयीन-ए-सिकंदरी (सिकंदर लोदी के समय)
यह कृति लोदी वंश के सुल्तान सिकंदर लोदी के शासनकाल का वर्णन करती है। इसमें उनकी प्रशासनिक नीतियों, सैन्य अभियानों, और धार्मिक सुधारों का उल्लेख है।
11. तारीख-ए-शेरशाही (शेरशाह सूरी)
यद्यपि शेरशाह सूरी का शासन (1540-1545) सल्तनत काल के अंत के बाद माना जाता है, फिर भी यह कृति सल्तनत काल की परंपराओं को दर्शाती है। इसमें शेरशाह के प्रशासन, सैन्य सुधार, और राजस्व व्यवस्था (जो बाद में अकबर ने अपनाई) का वर्णन है।
12. मसनवी और दीवान (अमीर खुसरो)
अमीर खुसरो की काव्यात्मक रचनाएँ, जैसे खालिक बारी, किरान-उस-सादैन, और नुह सिपिहर, ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इनमें खिलजी और तुगलक सुल्तानों के दरबार, युद्ध, और सांस्कृतिक जीवन का चित्रण है। विशेषता: खुसरो ने फ़ारसी और हिंदवी (प्रारंभिक उर्दू) में लिखकर भारतीय-इस्लामी संस्कृति का समन्वय दर्शाया।
13. फुतूहात-ए-फिरोजशाही (फिरोजशाह तुगलक)
यह फिरोजशाह तुगलक की आत्मकथात्मक कृति है, जिसमें उनके शासनकाल की उपलब्धियों, जैसे सिंचाई परियोजनाएँ (नहरें), मस्जिदों और मदरसों का निर्माण, और प्रशासनिक सुधारों का वर्णन है। विशेषता: यह सुल्तान द्वारा स्वयं लिखित दुर्लभ कृतियों में से एक है।
14. तारीख-ए-अलई (अमीर खुसरो)
यह अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जो उनके सैन्य अभियानों और प्रशासनिक नीतियों को दर्शाती है। इसमें मंगोल आक्रमणों को विफल करने और दक्षिण भारत की विजयों का उल्लेख है।
15. किताब-उल-हिंद (अल-बिरूनी)
यद्यपि यह कृति तकनीकी रूप से सल्तनत काल से पहले की है (11वीं सदी, महमूद ग़ज़नवी के समय), लेकिन यह दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक संदर्भ को समझने में महत्वपूर्ण है। अल-बिरूनी, एक विद्वान और यात्री, ने इस कृति में भारतीय समाज, धर्म, विज्ञान, और संस्कृति का विस्तृत वर्णन किया है।
विशेषता: यह भारत के बारे में सबसे प्रारंभिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली रचनाओं में से एक है, जो सल्तनत काल की पृष्ठभूमि को समझने में सहायक है।
16. तारीख-ए-मसूदी (बैहाकी)
यह कृति ग़ज़नवी वंश के इतिहासकार अबुल फज़ल बैहाकी द्वारा लिखी गई और महमूद ग़ज़नवी के शासनकाल का वर्णन करती है। इसमें सल्तनत काल की शुरुआत से पहले के तुर्की शासकों की भारत पर विजय और उनके प्रशासन का विवरण है।
विशेषता: यह कृति सल्तनत काल के प्रारंभिक सैन्य और प्रशासनिक ढाँचे को समझने में सहायक है।
17. आदाब-उल-हरब वा-शुजा’आ (फखर-ए-मुदब्बिर)
यह कृति युद्ध कला और शासन के सिद्धांतों पर आधारित है, जो ग़ुलाम वंश के दौरान लिखी गई। इसमें सैन्य रणनीतियों, हथियारों, और शासकों के कर्तव्यों का वर्णन है। विशेषता: यह सल्तनत काल की सैन्य संगठन और प्रशासनिक नीतियों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
18. लुब्ब-उत-तवारीख (याह्या बिन अहमद सिरहिंदी)
यह कृति लोदी वंश के समय लिखी गई और दिल्ली सल्तनत के इतिहास का संक्षिप्त लेकिन व्यापक विवरण प्रस्तुत करती है। इसमें ग़ुलाम, खिलजी, तुगलक, और लोदी वंशों के शासकों का उल्लेख है।
विशेषता: यह सल्तनत काल के अंतिम चरणों को समझने के लिए उपयोगी है।
19. तारीख-ए-मुहम्मदी (मुहम्मद बिहामद खानी)
यह कृति तुगलक वंश के बाद के समय और सल्तनत के पतन के दौर को दर्शाती है। इसमें सल्तनत की कमजोरियों, मंगोल आक्रमणों, और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय का विवरण है। विशेषता: यह सल्तनत काल के अंत और मुगल काल की शुरुआत के बीच के परिवर्तन को समझने में सहायक है।
20. नुह सिपिहर (अमीर खुसरो)
अमीर खुसरो की यह कृति मुबारकशाह खिलजी के शासनकाल को समर्पित है और इसमें नौ खंडों (सिपिहर) में भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशेषताओं का वर्णन है। यह कृति सल्तनत काल की सांस्कृतिक समृद्धि और भारतीय-इस्लामी समन्वय को दर्शाती है। विशेषता: खुसरो की काव्यात्मक शैली इसे साहित्यिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाती है।
21. किरान-उस-सादैन (अमीर खुसरो)
इस कृति में अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन खिलजी और उनके पुत्र क़ुतुबुद्दीन मुबारकशाह के बीच मुलाकात का काव्यात्मक वर्णन किया है। यह खिलजी वंश के शासनकाल की राजनीतिक और सांस्कृतिक घटनाओं को दर्शाती है। विशेषता: यह कृति ऐतिहासिक घटनाओं को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करती है।
22. जवामि-उल-हिकायत वा लवामि-उर-रिवायत (सद्रुद्दीन मुहम्मद औफी)
यह कृति 13वीं सदी की शुरुआत में लिखी गई और ग़ुलाम वंश के समय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कहानियों का संग्रह है। इसमें भारत और इस्लामी दुनिया की ऐतिहासिक घटनाओं, नैतिक कहानियों, और शासकों की जीवनी का उल्लेख है। विशेषता: यह सल्तनत काल के प्रारंभिक सामाजिक और धार्मिक जीवन को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
23. चचनामा (अली बिन हामिद कूफी)
यद्यपि यह कृति तकनीकी रूप से सल्तनत काल से पहले की है (8वीं सदी, मुहम्मद बिन कासिम के सिंध विजय के समय), लेकिन यह दिल्ली सल्तनत की नींव को समझने में महत्वपूर्ण है। इसमें सिंध पर अरब विजय और स्थानीय शासकों के साथ संबंधों का वर्णन है। विशेषता: यह भारत में इस्लामी शासन की शुरुआत और सांस्कृतिक समन्वय का प्रारंभिक दस्तावेज है।
24. तारीख-ए-यामिनी (उत्बी)
यह कृति महमूद ग़ज़नवी के दरबारी इतिहासकार उत्बी द्वारा लिखी गई और उनके भारत पर आक्रमणों और ग़ज़नवी साम्राज्य का वर्णन करती है। इसमें सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण (1025 ई.) जैसे महत्वपूर्ण अभियानों का उल्लेख है। विशेषता: यह सल्तनत काल से पहले के तुर्की आक्रमणों और सल्त
25. कशफ-उल-महजूब (अली बिन उस्मान हजवेरी)
यह एक सूफी साहित्यिक कृति है, जो 11वीं सदी में लिखी गई, लेकिन सल्तनत काल में सूफी विचारधारा के प्रसार को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें सूफी सिद्धांतों, आध्यात्मिक प्रथाओं, और इस्लामी रहस्यवाद का वर्णन है। विशेषता: यह सल्तनत काल में सूफी मत के प्रभाव और सामाजिक एकीकरण को दर्शाती है।
26. फवाइद-उल-फुवाद (अमीर हसन सिज़्जी)
यह कृति चिश्ती सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया के उपदेशों और बातचीत का संग्रह है, जो तुगलक काल में लिखी गई। इसमें धार्मिक, सामाजिक, और नैतिक शिक्षाओं का वर्णन है, जो सल्तनत काल के समाज को दर्शाता है। विशेषता: यह कृति सल्तनत काल में सूफी मत की लोकप्रियता और सांस्कृतिक प्रभाव को उजागर करती है।
27. खैर-उल-मजालिस (नासिरुद्दीन चिराग-ए-दिल्ली)
यह एक और सूफी कृति है, जिसमें चिश्ती संत नासिरुद्दीन की शिक्षाओं का संग्रह है। इसमें सल्तनत काल के धार्मिक और सामाजिक जीवन का विवरण मिलता है। विशेषता: यह सूफी संतों और सुल्तानों के बीच संबंधों को समझने में सहायक है।
28. मलफूजात-ए-शेख बुरहानुद्दीन गरीब
यह कृति तुगलक काल के सूफी संत बुरहानुद्दीन गरीब की शिक्षाओं का संग्रह है। इसमें सल्तनत काल के दक्षिण भारत में सूफी प्रभाव और स्थानीय समुदायों के साथ उनके संबंधों का वर्णन है। विशेषता: यह सल्तनत काल में सूफी मत के क्षेत्रीय प्रसार को दर्शाती है।
29. तहकीक-ए-हिंद (अल-बिरूनी)
यद्यपि यह कृति ग़ज़नवी काल (11वीं सदी) की है, लेकिन यह सल्तनत काल की पृष्ठभूमि को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। अल-बिरूनी ने इसमें भारतीय विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, धर्म, और सामाजिक रीति-रिवाजों का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया। विशेषता: यह सल्तनत काल के प्रारंभिक इस्लामी शासकों और भारतीय संस्कृति के बीच संपर्क को दर्शाती है।
30. सिरात-ए-फिरोजशाही (अनाम लेखक)
यह फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल पर केंद्रित एक कम-ज्ञात कृति है, जो उनके प्रशासनिक सुधारों, जैसे नहर निर्माण, कर प्रणाली, और धार्मिक नीतियों का वर्णन करती है। विशेषता: यह सल्तनत काल के तुगलक वंश के पतन के कारणों और सामाजिक स्थिति को समझने में सहायक है।
31. मिरात-ए-अहमदी (अली मुहम्मद खान)
यद्यपि यह कृति बाद में लिखी गई, लेकिन इसमें दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रीय प्रभाव, विशेष रूप से गुजरात में सल्तनत के शासकों के प्रशासन का उल्लेख है। यह सल्तनत काल के अंतिम चरणों में क्षेत्रीय शक्तियों के उदय को दर्शाती है। विशेषता: यह सल्तनत की केंद्रीकृत शक्ति के कमजोर होने और क्षेत्रीय स्वायत्तता को समझने में सहायक है।
32. असार-उस-सनादीद (सय्यद अहमद खान)
यह कृति 19वीं सदी में लिखी गई, लेकिन इसमें दिल्ली सल्तनत के समय के स्मारकों, जैसे कुतुब मीनार, और ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन है। यह सल्तनत काल की स्थापत्य कला और शिलालेखों को समझने के लिए अप्रत्यक्ष स्रोत के रूप में उपयोगी है। विशेषता: यह सल्तनत काल की भौतिक विरासत को दर्शाती है।
33. कामिल-उत-तवारीख (इब्न असिर)
यह एक व्यापक इस्लामी इतिहास की कृति है, जो सल्तनत काल से पहले और प्रारंभिक काल को कवर करती है। इसमें ग़ज़नवी और ग़ोरी शासकों के भारत पर आक्रमणों का उल्लेख है। विशेषता: यह सल्तनत काल की स्थापना के लिए मध्य एशियाई और इस्लामी संदर्भ प्रदान करती है।
34. मलफूजात-ए-शेख शरफुद्दीन याह्या मनेरी
यह सूफी संत शरफुद्दीन मनेरी की शिक्षाओं का संग्रह है, जो तुगलक काल में बिहार में सक्रिय थे। इसमें सल्तनत काल के धार्मिक और सामाजिक जीवन, विशेष रूप से पूर्वी भारत में सूफी प्रभाव, का वर्णन है। विशेषता: यह सल्तनत काल में सूफी मत के क्षेत्रीय प्रसार और स्थानीय समुदायों पर प्रभाव को दर्शाती है।
35. तारीख-ए-बयहकी (अबुल फज़ल बयहकी)
यह ग़ज़नवी वंश की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जो सल्तनत काल की नींव को समझने में सहायक है। इसमें महमूद ग़ज़नवी और उनके उत्तराधिकारियों के शासनकाल का विस्तृत विवरण है। विशेषता: यह सल्तनत काल के सैन्य और प्रशासनिक ढाँचे की प्रारंभिक जानकारी देती है।
36. तवारीख-ए-गुज़ीदा (हमदुल्लाह मुस्तौफी)
यह 14वीं सदी की फ़ारसी कृति है, जो इस्लामी दुनिया के इतिहास को कवर करती है और इसमें दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक शासकों, विशेष रूप से ग़ुलाम और खिलजी वंशों, का उल्लेख है। विशेषता: यह सल्तनत काल को मध्य एशियाई और इस्लामी संदर्भ में रखकर समझने में मदद करती है।
37. मुन्तखब-उत-तवारीख (अब्दुल कादिर बदायूँनी)
यद्यपि यह कृति मुगल काल में लिखी गई, लेकिन इसमें दिल्ली सल्तनत के अंतिम चरणों, विशेष रूप से लोदी वंश और शेरशाह सूरी के समय, का ऐतिहासिक विवरण है। विशेषता: यह सल्तनत से मुगल काल के परिवर्तन को समझने में सहायक है
38. सियार-उल-मुतख्खिरीन (गुलाम हुसैन तबातबाई)
यह बाद की कृति है, लेकिन इसमें सल्तनत काल के अंत और क्षेत्रीय शक्तियों, जैसे जौनपुर और बंगाल की सल्तनतों, का उल्लेख है। विशेषता: यह सल्तनत काल के पतन और क्षेत्रीय स्वायत्तता के उदय को दर्शाती है।
39. खुलासत-उत-तवारीख (सुजान राय भंडारी)
यह कृति सल्तनत काल के इतिहास और भारत के विभिन्न क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण देती है। विशेषता: यह सल्तनत काल के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे को समझने के लिए उपयोगी है।
40. मलफूजात-ए-शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी
यह तुगलक और लोदी काल के सूफी संत अब्दुल हक की शिक्षाओं का संग्रह है। इसमें सल्तनत काल के धार्मिक और सामाजिक जीवन, विशेष रूप से दिल्ली में सूफी प्रभाव, का वर्णन है। विशेषता: यह सल्तनत काल में इस्लामी विद्वानों और सूफी संतों की भूमिका को दर्शाती है।
41. तारीख-ए-हिंद (अनाम लेखक, क्षेत्रीय संदर्भ)
यह एक सामान्य शीर्षक है, जो सल्तनत काल के कुछ क्षेत्रीय इतिहासकारों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों को दर्शाता है, जैसे बंगाल और दक्कन के स्थानीय इतिहास। विशेषता: यह सल्तनत काल में दिल्ली की केंद्रीकृत शक्ति और क्षेत्रीय शासकों के बीच संबंधों को दर्शाती है।
42. तारीख-ए-मुबारकशाही (याह्या बिन अहमद सिरहिंदी)
यह कृति दिल्ली सल्तनत के इतिहास, विशेष रूप से सैय्यद और लोदी वंशों के समय (1414-1526), का वर्णन करती है। इसमें मुबारकशाह सैय्यद और सिकंदर लोदी के शासनकाल की घटनाओं का उल्लेख है। विशेषता: यह सल्तनत काल के अंतिम चरण और मुगल काल की शुरुआत की पृष्ठभूमि को दर्शाती है।
43. मसालिक-उल-अब्सार (शिहाबुद्दीन अल-उमरी)
यह 14वीं सदी की कृति एक मिस्री विद्वान द्वारा लिखी गई, जिसमें दिल्ली सल्तनत, विशेष रूप से तुगलक वंश, का बाहरी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। इसमें मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल, उनकी नीतियों, और भारत की आर्थिक स्थिति का वर्णन है। विशेषता: यह सल्तनत काल को इस्लामी दुनिया के संदर्भ में रखकर समझने में मदद करती है।
44. फतह-नामा (विभिन्न लेखक)
सल्तनत काल में सुल्तानों द्वारा जारी किए गए विजय पत्र (फतह-नामा) ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, जो सैन्य अभियानों की सफलता का वर्णन करते हैं। उदाहरण: अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण भारत अभियानों के फतह-नामे। विशेषता: ये सैन्य इतिहास और सुल्तानों की प्रचार नीतियों को दर्शाते हैं।
45. आइना-ए-सिकंदरी (अमीर खुसरो या समकालीन लेखक)
यह कृति सिकंदर लोदी के शासनकाल पर केंद्रित है और उनकी धार्मिक नीतियों, प्रशासन, और सैन्य अभियानों का वर्णन करती है। विशेषता: यह लोदी वंश की स्थिरता और सल्तनत काल के अंतिम चरण को समझने में सहायक है।
46. मलफूजात-ए-शेख बख्तियार काकी
यह सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की शिक्षाओं का संग्रह है, जो ग़ुलाम वंश के समय दिल्ली में सक्रिय थे। इसमें सल्तनत काल के प्रारंभिक धार्मिक और सामाजिक जीवन का विवरण है। विशेषता: यह चिश्ती सूफी मत के प्रभाव और सुल्तानों के साथ उनके संबंधों को दर्शाती है।
47. तारीख-ए-बंगाला (क्षेत्रीय बंगाल सल्तनत)
यह बंगाल के क्षेत्रीय सुल्तानों द्वारा प्रायोजित कृति है, जो दिल्ली सल्तनत के साथ उनके संबंधों और स्वायत्तता का वर्णन करती है। विशेषता: यह सल्तनत काल में क्षेत्रीय शक्तियों के उदय को दर्शाती है।
48. किताब-ए-यमनी (अनाम लेखक)
यह एक दुर्लभ कृति है, जो दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभाव, विशेष रूप से खिलजी और तुगलक अभियानों, का उल्लेख करती है। विशेषता: यह सल्तनत काल में दक्षिण भारत के साथ दिल्ली के संबंधों को समझने में सहायक है।
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