Lagaan System (Tax or Revenue System) in Delhi Sultanate
jp Singh
2025-05-24 15:41:44
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दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.) में लगान व्यवस्था (कर या राजस्व व्यवस्था)
दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.) में लगान व्यवस्था (कर या राजस्व व्यवस्था)
दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.) में लगान व्यवस्था (कर या राजस्व व्यवस्था) शासन की आर्थिक रीढ़ थी, जो सैन्य, प्रशासनिक, और सांस्कृतिक गतिविधियों को वित्तपोषित करती थी। यह व्यवस्था मुख्य रूप से कृषि-आधारित थी, क्योंकि अर्थव्यवस्था का आधार कृषि था। लगान व्यवस्था इस्लामी सिद्धांतों (जैसे ख़राज, ज़कात), तुर्की-फारसी परंपराओं, और स्थानीय भारतीय प्रथाओं का मिश्रण थी। सुल्तान, अमीर, और स्थानीय अधिकारी (जैसे शिकदार, मुहस्सिल) इस व्यवस्था को लागू करते थे। विभिन्न वंशों (गुलाम, खलजी, तुगलक, सैय्यद, लोदी) में लगान व्यवस्था की संरचना और कार्यप्रणाली भिन्न थी। चूंकि आपने पहले लोदी वंश, इब्राहिम लोदी, मंत्रिपरिषद, राजदरबार, सुल्तान, अमीर, सैन्य संगठन, और न्याय-दंड व्यवस्था के संदर्भ में सवाल पूछे थे, मैं इस प्रतिक्रिया में सुल्तानकालीन लगान व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करूंगा, जिसमें इसकी संरचना, प्रकार, सुधार, और लोदी वंश (विशेष रूप से सिकंदर और इब्राहिम लोदी) में इसकी भूमिका व सल्तनत के पतन में इसकी कमजोर
1. सुल्तानकालीन लगान व्यवस्था का अवलोकन
उद्देश्य: लगान व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ख़ज़ाना-ए-आम (केंद्रीय कोष) को भरना, सैन्य अभियानों, प्रशासन, और सांस्कृतिक संरक्षण (जैसे मस्जिद, खानकाह) को वित्तपोषित करना था।
प्रकृति: व्यवस्था सामंती और केंद्रीकृत थी, जो इक्ता, जागीर, और ख़राज पर आधारित थी। यह इस्लामी कर सिद्धांतों (ख़राज, ज़कात, जजिया) और स्थानीय प्रथाओं (जैसे भट्टाई, बटाई) का मिश्रण थी।
प्रमुख सिद्धांत
ख़राज: कृषि भूमि पर लगने वाला कर, जो मुस्लिम और गैर-मुस्लिम किसानों से वसूला जाता था।
जजिया: गैर-मुस्लिमों पर लगने वाला धार्मिक कर, जो उनकी सुरक्षा के बदले लिया जाता था।
ज़कात: मुस्लिमों पर लगने वाला धार्मिक कर, जो दान और कल्याण के लिए था।
उश्र: मुस्लिम किसानों से लिया जाने वाला कृषि कर, जो ख़राज से कम था।
खर्रा: राजस्व का अनुमान, जो भूमि की उत्पादकता पर आधारित था।
तक़सीम: राजस्व का बँटवारा, जो सुल्तान, अमीर, और स्थानीय अधिकारियों के बीच होता था।
शब्दावली: ख़राज-ए-मुकर्रर (निश्चित कर), जरीब (भूमि मापन), मुहस्सिल (कर वसूलने वाला), ख़ज़ाना-ए-आम (केंद्रीय कोष), मुज़ाफ़र (कर-मुक्त भूमि)।
2. लगान व्यवस्था की संरचना
लगान व्यवस्था को केंद्रीय, प्रांतीय, और स्थानीय स्तर पर संगठित किया गया था, जिसमें विभिन्न अधिकारी और संस्थाएँ शामिल थीं।
(i) केंद्रीय स्तर
1. सुल्तान: सर्वोच्च प्राधिकारी, जो लगान नीतियाँ बनाता और ख़ज़ाना-ए-आम का प्रबंधन करता था। वह इक्ता और जागीर वितरित करता था, जिसके बदले राजस्व और सैन्य सहायता मिलती थी। उदाहरण: सिकंदर लोदी ने जरीब प्रणाली लागू कर राजस्व संग्रह को व्यवस्थित किया।
2. वज़ीर: दिवान-ए-विज़ारत (वित्त विभाग) का प्रमुख, जो केंद्रीय राजस्व नीतियों और ख़ज़ाना-ए-आम की देखरेख करता था। वह खर्रा (राजस्व अनुमान) और तक़सीम (बँटवारा) को मंजूरी देता था। उदाहरण: अलाउद्दीन खलजी के वज़ीर ने बाजार नियंत्रण और कर संग्रह को समन्वित किया।
3. मुस्तौफी-ए-ममालिक: राजस्व लेखा और रिकॉर्ड का प्रभारी। वह खर्रा और सनद-ए-ख़राज (कर दस्तावेज) तैयार करता था। उदाहरण: सिकंदर लोदी के मुस्तौफी ने जरीब रिकॉर्ड व्यवस्थित किए।
4. मीर-ए-दफ्तर: राजस्व दस्तावेजों और सनद-ए-इक्ता का संरक्षक, जो वज़ीर और मुस्तौफी के साथ समन्वय करता था। उदाहरण: तुगलक काल में मीर-ए-दफ्तर ने वक़्फ भूमि के रिकॉर्ड रखे।
(ii) प्रांतीय और स्थानीय स्तर
1. मुक्ती/वली: प्रांतीय गवर्नर, जो प्रांतों में ख़राज, जजिया, और अन्य करों का संग्रह करते थे। वे इक्ता के बदले राजस्व और सैन्य सहायता प्रदान करते थे। उदाहरण: दौलत खान लोदी (इब्राहिम लोदी के समय) ने पंजाब में कर संग्रह किया, लेकिन बाद में विद्रोह किया।
2. शिकदार: परगना स्तर पर कर संग्रह और प्रशासनिक अधिकारी। वे खर्रा और जरीब के आधार पर कर निर्धारित करते थे। उदाहरण: सिकंदर लोदी के शिकदारों ने जरीब प्रणाली को लागू किया।
3. मुहस्सिल: कर और जुर्माना वसूलने वाला अधिकारी, जो शिकदार और कोतवाल के अधीन कार्य करता था। उदाहरण: खलजी काल में मुहस्सिल ने बाजार कर और ख़राज वसूला।
4. अमील: स्थानीय स्तर पर कर संग्रह के लिए नियुक्त छोटे अधिकारी, जो गाँवों में कार्य करते थे। उदाहरण: फिरोज शाह तुगलक के समय अमील ने तकावी (कृषि ऋण) और कर संग्रह को समन्वित किया।
5. कोतवाल: नगरों में बाजार कर, व्यापार कर, और स्थानीय करों का प्रभारी। उदाहरण: अलाउद्दीन खलजी के कोतवाल ने दिल्ली में बाजार नियमों के उल्लंघन पर कर वसूला।
(iii) राजस्व स्रोत
1. कृषि कर: ख़राज: गैर-मुस्लिम और कुछ मुस्लिम किसानों से लिया जाने वाला भूमि कर, जो उपज का 1/3 से 1/2 हिस्सा था। उश्र: मुस्लिम किसानों से लिया जाने वाला कर, जो उपज का 1/10 हिस्सा था। बटाई: उपज का हिस्सा (जैसे 1/3 या 1/2), जो स्थानीय प्रथाओं पर आधारित था। ख़राज-ए-मुकर्रर: निश्चित कर, जो भूमि की उत्पादकता पर आधारित था।
2. धार्मिक कर: जजिया: गैर-मुस्लिमों पर लगने वाला कर, जो उनकी आय और सामाजिक स्थिति पर आधारित था। ज़कात: मुस्लिमों पर लगने वाला 2.5% धार्मिक कर, जो कल्याण के लिए था।
3. व्यापार और बाजार कर: महसूल: व्यापार और बाजार लेनदेन पर कर। बाज़ार-ए-ख़ास: विशेष बाजारों (जैसे घोड़े, हथियार) पर कर। उदाहरण: अलाउद्दीन खलजी ने शहना-ए-मंडी के तहत बाजार कर लागू किया।
4. अन्य कर: ग़नीमत: युद्ध में प्राप्त लूट का हिस्सा, जो ख़ज़ाना-ए-आम में जाता था। ख़म्स: ग़नीमत का 1/5 हिस्सा, जो सुल्तान और सैनिकों के बीच बँटता था। वक़्फ और मुज़ाफ़र: धार्मिक संस्थानों को दी गई कर-मुक्त भूमि।
3. लगान व्यवस्था के सिद्धांत और कार्यप्रणाली
लगान व्यवस्था विभिन्न सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर आधारित थी, जो सुल्तान और स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर थी।
(i) सिद्धांत
ख़राज और उश्र: इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार, ख़राज गैर-मुस्लिमों और उश्र मुस्लिमों से लिया जाता था। यह भूमि की उत्पादकता और सिंचाई (नहर, कुआँ) पर आधारित था।
जजिया: गैर-मुस्लिमों की सुरक्षा के बदले लिया जाने वाला कर, जो उनकी आर्थिक स्थिति (गरीब, मध्यम, धनी) पर निर्भर था।
खर्रा और जरीब: भूमि की माप और उत्पादकता का अनुमान, जो कर निर्धारण का आधार था।
तक़सीम: राजस्व का बँटवारा, जिसमें सुल्तान, अमीर, और स्थानीय अधिकारी शामिल थे।
मुज़ाफ़र: धार्मिक संस्थानों (मस्जिद, खानकाह) और सूफी संतों को दी गई कर-मुक्त भूमि।
क़रार: ठेके पर कर वसूली, जो कुछ क्षेत्रों में प्रचलित थी।
(ii) कार्यप्रणाली
भूमि मापन (जरीब): शिकदार और अमील भूमि की माप और उत्पादकता का आकलन करते थे। जरीब (मापन इकाई) का उपयोग सिकंदर लोदी ने औपचारिक बनाया।
खर्रा (राजस्व अनुमान): भूमि की उपज और सिंचाई के आधार पर कर का अनुमान लगाया जाता था। यह मुस्तौफी द्वारा रिकॉर्ड किया जाता था।
कर संग्रह
बटाई: उपज का हिस्सा (नकद या अनाज) सीधे किसानों से लिया जाता था।
ख़राज-ए-मुकर्रर: निश्चित कर, जो नकद या अनाज में लिया जाता था।
मुहस्सिल और अमील: गाँवों और परगनाओं में कर वसूलते थे।
लेखांकन: मीर-ए-दफ्तर और मुस्तौफी कर रिकॉर्ड (सनद-ए-ख़राज) रखते थे, जो दिवान-ए-विज़ारत को भेजे जाते थे।
जुर्माना और दंड: कर चोरी या देरी पर मुहस्सिल द्वारा जुर्माना वसूला जाता था। गंभीर मामलों में सियासत (कठोर दंड) लागू होता था।
वक़्फ और मुज़ाफ़र: धार्मिक और कल्याणकारी संस्थानों को कर-मुक्त भूमि दी जाती थी। उदाहरण: सिकंदर लोदी ने सूफी खानकाहों को मुज़ाफ़र भूमि दी।
(iii) कर छूट और कल्याण:
तकावी: कृषि ऋण, जो किसानों को बीज और उपकरण के लिए दिया जाता था। फिरोज शाह तुगलक ने इसे लोकप्रिय बनाया।
ख़ैरात-खाना: गरीबों और सूफी संस्थानों के लिए राजस्व से दान। मुज़ाफ़र: मस्जिदों, मदरसों, और खानकाहों को कर-मुक्त भूमि।
4. विभिन्न वंशों में लगान व्यवस्था
लगान व्यवस्था की प्रभावशीलता सुल्तानों की नीतियों और प्रशासनिक ढांचे पर निर्भर थी। नीचे प्रत्येक वंश में इसकी विशेषताएँ दी गई हैं:
गुलाम वंश (1206-1290)
विशेषताएँ: सामंती और इक्ता-आधारित। ख़राज और जजिया पर जोर।
प्रमुख विशेषताएँ: इल्तुतमिश ने इक्ता प्रणाली को औपचारिक बनाया, जिसके तहत अमीरों को राजस्व के बदले सैन्य सहायता देनी होती थी। खर्रा और बटाई प्रणाली शुरू की गई, जो स्थानीय प्रथाओं पर आधारित थी। बलबन ने कर चोरी पर कठोर दंड (सियासत) लागू किया। उदाहरण: इल्तुतमिश ने ख़राज से कुतुब मीनार का निर्माण वित्तपोषित किया। कमजोरी: चालिसा (अमीरों का समूह) की स्वतंत्रता ने केंद्रीय राजस्व को सीमित किया।
खलजी वंश (1290-1320)
विशेषताएँ: केंद्रीकृत और कठोर व्यवस्था। ख़राज और बाजार कर पर जोर।
रमुख विशेषताएँ: अलाउद्दीन खलजी ने जरीब प्रणाली शुरू कर भूमि मापन और ख़राज को व्यवस्थित किया। शहना-ए-मंडी के तहत व्यापार और बाजार कर लागू किया, जिसने ख़ज़ाना-ए-आम को समृद्ध किया। ख़राज-ए-मुकर्रर को उपज का 1/2 हिस्सा निर्धारित किया, जो कठोर लेकिन प्रभावी था। कर चोरी पर भारी जुर्माना और सियासत लागू की। उदाहरण: मलिक काफूर की दक्षिण विजय से प्राप्त ग़नीमत ने ख़ज़ाना-ए-आम को बढ़ाया। कमजोरी: अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद प्रांतीय अमीरों की स्वतंत्रता ने राजस्व संग्रह को कमजोर किया।
तुगलक वंश (1320-1413)
विशेषताएँ: कल्याणकारी और प्रयोगात्मक नीतियाँ। ख़राज और तकावी पर जोर।
प्रमुख विशेषताएँ: मुहम्मद बिन तुगलक ने ख़राज को बढ़ाया (उपज का 1/2), लेकिन सांकेतिक मुद्रा और दौलताबाद स्थानांतरण ने आर्थिक संकट पैदा किया। फिरोज शाह तुगलक ने तकावी (कृषि ऋण) और वक़्फ भूमि को प्रोत्साहित किया। उन्होंने जजिया को व्यवस्थित किया और नहर निर्माण से कृषि उत्पादकता बढ़ाई। खर्रा और क़रार (ठेके) प्रणाली को बेहतर किया। उदाहरण: फिरोज शाह ने यमुना नहर बनाकर ख़राज संग्रह को बढ़ाया।
कमजोरी: प्रांतीय अमीरों की स्वतंत्रता और आर्थिक संकट ने राजस्व संग्रह को प्रभावित किया।
सैय्यद वंश (1414-1451)
विशेषताएँ: कमजोर केंद्रीय व्यवस्था। प्रांतीय अमीरों पर निर्भरता।
प्रमुख विशेषताएँ: ख़राज और जजिया संग्रह प्रांतीय मुक्ती और शिकदारों द्वारा किया जाता था। केंद्रीय ख़ज़ाना-ए-आम सीमित था, क्योंकि प्रांत स्वतंत्र हो गए। उदाहरण: जौनपुर और मालवा के अमीरों ने स्वायत्त राजस्व व्यवस्था स्थापित की।
कमजोरी: तैमूर के आक्रमण और क्षेत्रीय विखंडन ने लगान व्यवस्था को नष्ट कर दिया।
लोदी वंश (1451-1526)
विशेषताएँ: अफगान कबीलाई संरचना और जरीब-आधारित। सिकंदर लोदी के समय व्यवस्थित, इब्राहिम लोदी के समय अक्षम।
प्रमुख विशेषताएँ: सिकंदर लोदी: जरीब प्रणाली को औपचारिक बनाकर भूमि मापन और ख़राज को व्यवस्थित किया। खर्रा और क़रार प्रणाली से राजस्व अनुमान और ठेके को बेहतर किया। जजिया और ख़राज-ए-मुकर्रर को संतुलित ढंग से लागू किया, जिसने सामाजिक तनाव कम किया। मुज़ाफ़र भूमि देकर सूफी खानकाहों और मस्जिदों को समर्थन दिया। कर चोरी पर मुहस्सिल और शिकदार द्वारा जुर्माना और सियासत लागू की।
कठोर जजिया और ख़राज-ए-मुकर्रर नीतियों ने किसानों और गैर-मुस्लिमों में असंतोष पैदा किया। ख़ज़ाना-ए-आम की कमी और तक़सीम की अनियमितता ने राजस्व संग्रह को कमजोर किया। अमीरों (जैसे दौलत खान लोदी) की स्वतंत्रता ने प्रांतीय कर संग्रह को प्रभावित किया। मुहस्सिल और शिकदार भ्रष्टाचार में लिप्त रहे। उदाहरण: सिकंदर लोदी ने जौनपुर और बिहार से ख़राज बढ़ाकर सल्तनत को समृद्ध किया, जबकि इब्राहिम लोदी की कठोर नीतियों ने विद्रोह को बढ़ावा दिया।
कमजोरी: इब्राहिम लोदी के समय कबीलाई असहमति, भ्रष्टाचार, और कठोर कर नीतियों ने लगान व्यवस्था को अप्रभावी बनाया।
5. लोदी वंश में लगान व्यवस्था
सिकंदर लोदी (1489-1517)
संरचना: वज़ीर और मुस्तौफी: केंद्रीय स्तर पर खर्रा और जरीब रिकॉर्ड व्यवस्थित किए। मुक्ती और शिकदार: जौनपुर और बिहार में ख़राज और जजिया संग्रह। मुहस्सिल और अमील: गाँवों और परगनाओं में बटाई और ख़राज-ए-मुकर्रर वसूलते थे। कोतवाल: आगरा में व्यापार और बाजार कर संग्रह।
विशेषताएँ: जरीब प्रणाली को औपचारिक बनाकर भूमि मापन और राजस्व अनुमान को सटीक किया। खर्रा और क़रार से कर संग्रह को व्यवस्थित और पारदर्शी बनाया। जजिया को संतुलित ढंग से लागू किया, जिसने सामाजिक तनाव कम किया। मुज़ाफ़र और ख़ैरात-खाना के माध्यम से सूफी खानकाहों और गरीबों को समर्थन दिया। कर चोरी पर कठोर दंड (जुर्माना, सियासत) और तफ्तीश (जांच)।
उपलब्धियाँ: ख़ज़ाना-ए-आम को समृद्ध कर सैन्य अभियान (जौनपुर, बिहार) और सांस्कृतिक गतिविधियाँ (मुशायरा, मकबरे) वित्तपोषित कीं। निष्पक्ष कर नीतियों ने किसानों और व्यापारियों का समर्थन बढ़ाया। सूफी संरक्षण ने सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया।
प्रभाव: सिकंदर लोदी की लगान व्यवस्था व्यवस्थित और प्रभावी थी, जिसने सल्तनत को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत रखा।
इब्राहिम लोदी (1517-1526)
संरचना: वज़ीर और मुस्तौफी: केंद्रीय नियंत्रण कमजोर, क्योंकि अमीरों का प्रभाव बढ़ा। मुक्ती और शिकदार: प्रांतीय स्तर पर स्वतंत्र, जिसने ख़राज और जजिया संग्रह को प्रभावित किया। मुहस्सिल और अमील: भ्रष्टाचार और अक्षमता में लिप्त। कोतवाल: नगरों में व्यापार कर संग्रह प्रभावहीन।
कमजोरियाँ: कठोर जजिया और ख़राज-ए-मुकर्रर (उपज का 1/2) ने किसानों और गैर-मुस्लिमों में असंतोष पैदा किया। ख़ज़ाना-ए-आम की कमी और तक़सीम की अनियमितता ने सैन्य और प्रशासनिक वित्त को कमजोर किया। जरीब और खर्रा की अव्यवस्था ने कर अनुमान को गलत बनाया। अमीरों (जैसे दौलत खान लोदी, आलम खान) की स्वतंत्रता ने प्रांतीय राजस्व को सुल्तान से दूर किया। मुज़ाफ़र और ख़ैरात-खाना का अभाव ने सामाजिक समर्थन कम किया।
पानीपत की पहली लड़ाई (1526): कठोर कर नीतियों और आर्थिक संकट ने सैन्य वित्त को सीमित किया, जिसने बाबर के खिलाफ तैयारी को कमजोर किया। दौलत खान लोदी और आलम खान जैसे अमीरों ने ख़िलाफ़त-नामा तैयार कर बाबर को समर्थन दिया, जो राजस्व असंतुलन से प्रेरित था।
प्रभाव: इब्राहिम लोदी की लगान व्यवस्था अक्षम, कठोर, और भ्रष्ट थी, जिसने आर्थिक संकट, सामाजिक तनाव, और अमीरों के विद्रोह को बढ़ावा देकर सल्तनत का पतन सुनिश्चित किया।
6. लगान व्यवस्था की चुनौतियाँ
अमीरों की स्वतंत्रता: चालिसा (गुलाम वंश) और अफगान अमीर (लोदी वंश) ने प्रांतीय राजस्व को केंद्रीय नियंत्रण से दूर किया। दौलत खान लोदी का विद्रोह इसका उदाहरण है।
कठोर कर नीतियाँ: जजिया और ख़राज-ए-मुकर्रर की कठोरता ने सामाजिक तनाव पैदा किया, विशेष रूप से इब्राहिम लोदी के समय।
भ्रष्टाचार: मुहस्सिल, शिकदार, और अमील अक्सर कर चोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त थे, जो ख़ज़ाना-ए-आम को कमजोर करता था।
आर्थिक अस्थिरता: ख़ज़ाना-ए-आम की कमी और तक़सीम की अनियमितता ने सैन्य और प्रशासनिक खर्चों को प्रभावित किया।
प्रांतीय असंगठन: प्रांतीय मुक्ती और शिकदार की स्वतंत्रता ने केंद्रीय राजस्व संग्रह को कमजोर किया, विशेष रूप से सैय्यद और लोदी वंश में।
7. लगान व्यवस्था का प्रभाव और विरासत
आर्थिक स्थिरता: निष्पक्ष और व्यवस्थित लगान व्यवस्था (जैसे सिकंदर लोदी के समय) ने सल्तनत को समृद्ध और स्थिर रखा।
सैन्य और प्रशासनिक वित्त: ख़राज और ग़नीमत ने सैन्य अभियान (जैसे जौनपुर, दक्षिण विजय) और प्रशासनिक ढांचे को वित्तपोषित किया।
सांस्कृतिक योगदान: मुज़ाफ़र और ख़ैरात-खाना ने मस्जिदों, खानकाहों, और सांस्कृतिक गतिविधियों (मुशायरा, ख़त्ताती) को समर्थन दिया।
मुगल विरासत: सल्तनत की जरीब, खर्रा, और इक्ता प्रणालियाँ मुगल ज़मींदारी और मनसबदारी में अपनाई गईं। अकबर की ज़ब्त और आमिल-गुज़ार प्रणाली इसका विस्तार थी।
ऐतिहासिक स्रोत: बाबरनामा, तारीख-ए-फिरोजशाही (बरनी), और अमीर खुसरो जैसे स्रोत लगान व्यवस्था की उपलब्धियों और कमजोरियों को दर्शाते हैं।
8. सल्तनत के पतन में लगान व्यवस्था की भूमिका
कठोर कर नीतियाँ: इब्राहिम लोदी की जजिया और ख़राज-ए-मुकर्रर ने किसानों और गैर-मुस्लिमों में असंतोष पैदा किया, जिसने सामाजिक समर्थन कम किया। खर्रा की अव्यवस्था और कठोर वसूली ने आर्थिक संकट पैदा किया।
आर्थिक संकट: ख़ज़ाना-ए-आम की कमी और तक़सीम की अनियमितता ने सैन्य और प्रशासनिक वित्त को कमजोर किया, जिसने पानीपत की लड़ाई (1526) में तैयारी को प्रभावित किया।
अमीरों का विद्रोह: दौलत खान लोदी और आलम खान जैसे अमीरों ने कठोर कर नीतियों और राजस्व असंतुलन के खिलाफ ख़िलाफ़त-नामा तैयार कर बाबर को समर्थन दिया।
भ्रष्टाचार और असंगठन: मुहस्सिल और शिकदार की भ्रष्टाचार ने कर संग्रह को कमजोर किया। प्रांतीय अमीरों की स्वतंत्रता ने केंद्रीय राजस्व को सीमित किया।
सामाजिक असंतोष: मुज़ाफ़र और ख़ैरात-खाना का अभाव ने सूफी समुदायों और गरीबों का समर्थन खो दिया।
Conclusion
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