Jain Saahity
jp Singh
2025-05-17 16:30:58
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जैन धर्म / बौद्ध साहित्य
जैन साहित्य एक समृद्ध और प्राचीन साहित्यिक परंपरा है, जो जैन धर्म के सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों, आध्यात्मिक साधना तथा दर्शन को प्रस्तुत करता है। यह साहित्य मुख्यतः दो शाखाओं – दिगंबर और श्वेतांबर – में विभाजित है, जो दोनों जैन संप्रदायों के अनुसार विकसित हुआ है।
जैन साहित्य का ऐतिहासिक विकास
जैन साहित्य का विकास प्राचीन भारत की धार्मिक, दार्शनिक एवं भाषिक परंपराओं के साथ जुड़ा हुआ है। यह विकास मुख्यतः चार प्रमुख कालों में देखा जा सकता है:
1. आदिकाल (ईसा पूर्व 6वीं सदी – ईसा की प्रारंभिक शताब्दियाँ)
यह काल महावीर स्वामी के उपदेशों के संकलन का समय है। जैन मुनियों ने श्रुति परंपरा में सुरक्षित ज्ञान को ग्रंथों का रूप दिया। आचारांग सूत्र, सूतकृतांग, दसवेयालिय जैसे अर्धमागधी ग्रंथ इसी काल में आए।
भाषा: मुख्यतः प्राकृत (अर्धमागधी, शौरसेनी)
2. मध्यकाल (ईसा की 4वीं सदी – 12वीं सदी तक)
इस समय दार्शनिक ग्रंथों की रचना हुई, जैसे – तत्त्वार्थसूत्र (उमास्वाति), समयसार, नियमसार (कुंदकुंदाचार्य), भद्रबाहु चरित्र, हरिवंश पुराण (जिनसे भारतीय इतिहास को भी लाभ हुआ), हेमचंद्राचार्य जैसे विद्वानों ने अनेक विषयों पर रचनाएँ कीं (व्याकरण, कोश, छंदशास्त्र आदि)।
3. भक्ति और नीतिकाल (13वीं – 17वीं सदी)
इस काल में भक्तिकाव्य, नीति साहित्य, चरित्र कथाएँ आदि प्रमुख हुईं। दोहा, चौपाई, कथा-काव्य, चरित्र आदि में जैन धर्म के आदर्श प्रस्तुत किए गए।
भाषा: अपभ्रंश, ब्रजभाषा, गुजराती, कन्नड़, राजस्थानी
4. आधुनिक काल (18वीं सदी से वर्तमान तक)
धार्मिक सुधार, समाज सेवा, इतिहास लेखन एवं प्रकाशन पर जोर। आधुनिक भाषाओं में जैन दर्शन को लोकप्रिय बनाने के प्रयास। जिनवाणी प्रचारक मंडल, भारतीय जैन मिलन जैसी संस्थाओं का योगदान। इंटरनेट और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए जैन साहित्य का प्रसार।
जैन साहित्य के प्रमुख विषय
विषय - विवरण
आध्यात्मिक साधना - आत्मा की शुद्धि, मोक्ष का मार्ग, तपस्या
नैतिक शिक्षाएँ - अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, संयम
चरित्र निर्माण - तीर्थंकरों, गणधर, श्रावक-श्राविकाओं के आदर्श
दार्शनिक तर्क - अनेकांतवाद, स्यादवाद, कर्म सिद्धांत
लोकहितकारी दृष्टिकोण- जीवदया, सेवा, सत्य पर आधारित जीवन शैली
जैन साहित्य की भाषिक विविधता
भाषा - योगदान
प्राकृत - मूल आगम साहित्य, गाथाएँ, सूत्र
संस्कृत - दार्शनिक ग्रंथ, महाकाव्य
अपभ्रंश - भक्ति और नीति साहित्य
हिंदी - चरित्रकथाएँ, दोहा-साहित्य
गुजराती - कथा-नाटक, प्रवचन साहित्य
कन्नड़/मराठी - दक्षिण भारत में प्रचारित जैन साहित्य
जैन साहित्य के कुछ प्रमुख ग्रंथों का परिचय
ग्रंथ - लेखक
तत्त्वार्थसूत्र - उमास्वाति - दोनों संप्रदायों द्वारा मान्य दार्शनिक ग्रंथ
समयसार - कुंदकुंदाचार्य - आत्मा और मोक्ष का दर्शन
आचारांग सूत्र - महावीर के उपदेशों पर आधारित - जैनाचार का मूल ग्रंथ
उत्तराध्ययन सूत्र - अनुशासन व संयम पर केंद्रित
नीतिवाक्यामृत - हेमचंद्राचार्य - नीति संबंधी कथन
हरिवंश पुराण - जीवंधर, नेमिनाथ, कृष्ण आदि के चरित्र
पर्युषण महापर्व से जुड़े ग्रंथ - आत्मशुद्धि और प्रायश्चित पर आधारित
जैन साहित्य का सांस्कृतिक योगदान
1. भारत की भाषाओं का विकास – प्राकृत, अपभ्रंश से आधुनिक भाषाओं तक।
2. लोक साहित्य पर प्रभाव – नीति-कथाओं, लोककथाओं में जैन मूल्यों का समावेश।
3. शिल्प व चित्रकला में प्रेरणा – साहित्य में वर्णित कथाएँ मंदिरों और पेंटिंग्स में अभिव्यक्त।
4. साहित्यिक विधाओं का विकास – कथा, चरित्र, महाकाव्य, नीति श्लोक, कोश, नाटक आदि।
5. शिक्षा का माध्यम – प्राचीन जैन पाठशालाओं और ग्रंथ भंडारों की समृद्ध परंपरा।
जैन साहित्य की प्रमुख साहित्यिक विधाएँ (Genres)
जैन साहित्य केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है, यह अनेक साहित्यिक विधाओं में विभाजित है:
1. चरित्रकाव्य / जीवनी साहित्य
तीर्थंकरों, मुनियों, श्रावकों आदि के जीवन पर आधारित। उदाहरण: आदिपुराण (जिनसेनाचार्य) – ऋषभदेव के जीवन पर हरिवंश पुराण, नेमिकुमार चरित्र
2. कथा साहित्य
उपदेशात्मक व नीति आधारित कथाएँ।
जैन
ग्रंथ: वृहत्कथा कोश, पंचाशक, उपदेशमाला
3. महाकाव्य / खंडकाव्य
दार्शनिक, धार्मिक व ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित काव्य।
शैली: संस्कृत, प्राकृत, कन्नड़, हिंदी।
उदाहरण: त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र (हेमचंद्राचार्य)
4. नाटक और नाट्य साहित्य
जैन मुनियों ने नाट्य रूप में भी साहित्य को प्रस्तुत किया।
विषय: आत्मशुद्धि, तप, वैराग्य, पात्रों का संघर्ष।
उदाहरण: राजनृपालचरित नाटक, सुदर्शनचरित नाटक
5. नीति साहित्य
नीति, धर्म और व्यवहारिक ज्ञान से युक्त ग्रंथ।
नीतिवाक्यामृत (हेमचंद्राचार्य) – नीति के सूत्रों का संकलन।
6. दार्शनिक साहित्य
गहन तर्कशास्त्र, आत्मा-कर्म-निर्वाण विषयक चर्चा।
उदाहरण: समयसार, नयचक्र, प्रमाणनय तत्वालोक
नारी योगदान जैन साहित्य में
जैन साहित्य में महिलाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है—लेखन, पात्र और विचारों में।
साहित्यिक पात्र
चंद्रनना, राजीमती, ब्राह्मी-सुंदरी जैसी पात्रों को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है – जो संयम, त्याग और ज्ञान की प्रतीक हैं।
महिला मुनियों का योगदान
प्राचीन जैन मुनियों में मरुदेवी, प्रभा, श्रीदेवी, यशोमती जैसी स्त्रियाँ भी थीं जिन्होंने साधना की और उनकी कथाएँ ग्रंथों में वर्णित हैं।
रचनाकार
कुछ श्वेतांबर परंपरा की साध्वियों ने भी भक्ति और नीति साहित्य की रचना की।
जैन ग्रंथ भंडार और शिलालेख
1. शास्त्र भंडार (Libraries)
जैसालमेर जैन ग्रंथ भंडार, पाटन (गुजरात), श्रवणबेलगोला आदि में हजारों हस्तलिखित ग्रंथ संरक्षित हैं।
विषय: दर्शन, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, काव्य, इतिहास।
2. शिलालेख और ताम्रपत्र
जैन मंदिरों, गुफाओं और मूर्तियों पर धार्मिक-ऐतिहासिक जानकारी। श्रवणबेलगोला के स्तंभ लेख (983 ई.) – भद्रबाहु और चंद्रगुप्त मौर्य से संबंधित।
आलोचना और विवेचना (Criticism and Analysis)
जैन साहित्य में तर्कशास्त्र, प्रमाणवाद, नयवाद, स्यादवाद जैसे विचारात्मक स्तंभ हैं।
विश्लेषणात्मक शैली में
आत्मा और अनात्मा का भेद
कर्म सिद्धांत की प्रक्रिया
दृष्टिकोणों की विविधता (अनेकांतवाद)
जैन विचारधारा में
आधुनिक युग में जैन साहित्य की प्रासंगिकता
क्षेत्र - योगदान
शिक्षा - स्कूलों, विश्वविद्यालयों में जैन दर्शन और साहित्य पर पाठ्यक्रम
अनुसंधान - राष्ट्रीय जैन संस्थान, जैन शोध केंद्रों द्वारा रिसर्च कार्य
डिजिटल युग - ऑनलाइन पोर्टल, पीडीएफ ग्रंथ, YouTube प्रवचन आदि
सांस्कृतिक चेतना - जैन महापुरुषों के चरित्र से प्रेरणा, नैतिक शिक्षा
संवाद और सहिष्णुता- अनेकांतवाद आज के सामाजिक संघर्षों में सामंजस्य सिखाता है
महत्वपूर्ण आधुनिक संस्थान
1. भारतीय जैन मिलन
2. जैन विश्व भारती संस्थान (लाडनूं, राजस्थान)
3. श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी
4. जैन शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
Conclusion
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