Ibrahim Lodi
jp Singh
2025-05-24 12:35:34
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इब्राहिम लोदी (शासनकाल: 1517-1526 ई.)
इब्राहिम लोदी (शासनकाल: 1517-1526 ई.)
इब्राहिम लोदी (शासनकाल: 1517-1526 ई.) दिल्ली सल्तनत के लोदी वंश का अंतिम सुल्तान था। वह सिकंदर लोदी का पुत्र था और दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक, जिसका शासन पानीपत की पहली लड़ाई (1526) में बाबर द्वारा पराजित होने के साथ समाप्त हुआ। यह घटना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि इसने दिल्ली सल्तनत का अंत और मुगल साम्राज्य की शुरुआत को चिह्नित किया। इब्राहिम लोदी का शासनकाल अस्थिरता, आंतरिक विद्रोह, और अफगान अमीरों के असंतोष से चिह्नित था। उनकी कठोर नीतियों और नेतृत्व की कमी ने लोदी वंश के पतन को तेज किया। नीचे उनके जीवन, शासन, और प्रभाव का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और परिवार: इब्राहिम लोदी का जन्म 15वीं शताब्दी के अंत में हुआ था। वह सिकंदर लोदी (1489-1517) और उनकी पत्नी का पुत्र था। लोदी वंश एक अफगान (पश्तून) वंश था, जो दिल्ली सल्तनत के तुर्की और तुर्क-अफगान शासकों से भिन्न था। इब्राहिम के पिता सिकंदर लोदी लोदी वंश के सबसे कुशल शासक थे, जिन्होंने सल्तनत को स्थिरता और समृद्धि प्रदान की थी।
शिक्षा और प्रशिक्षण: इब्राहिम को सैन्य प्रशिक्षण और प्रशासनिक शिक्षा दी गई थी। वह अपने पिता के शासनकाल में एक शाही राजकुमार के रूप में प्रशासन और सैन्य अभियानों में शामिल रहा। हालाँकि, इतिहासकारों के अनुसार, वह अपने पिता की तरह बुद्धिमान या रणनीतिक नहीं था।
पृष्ठभूमि: सिकंदर लोदी की मृत्यु (1517) के समय दिल्ली सल्तनत एक मजबूत साम्राज्य थी, जिसमें जौनपुर, बिहार, और राजपूत क्षेत्रों पर नियंत्रण था। लेकिन सिकंदर की कठोर नीतियों ने कुछ अफगान अमीरों में असंतोष पैदा किया था, जो इब्राहिम के शासनकाल में उभरकर सामने आया।
2. सुल्तान बनने का मार्ग
सिकंदर लोदी की मृत्यु: 1517 में सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद इब्राहिम लोदी को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया। सिकंदर ने अपने जीवनकाल में इब्राहिम को दिल्ली का शासक नियुक्त करने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसे अफगान अमीरों ने स्वीकार किया।
सत्ता में आना: इब्राहिम ने
प्रारंभिक चुनौतियाँ: इब्राहिम को सत्ता में आने के बाद कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अफगान अमीरों की स्वतंत्रता की प्रवृत्ति, राजपूत राजाओं के विद्रोह, और बाहरी खतरों (जैसे बाबर का आक्रमण) ने उनके शासन को अस्थिर किया। उनकी कठोर और अलोकप्रिय नीतियों ने इन समस्याओं को और बढ़ा दिया।
3. शासनकाल (1517-1526)
इब्राहिम लोदी का शासनकाल लगभग 9 वर्षों का था, जो दिल्ली सल्तनत के इतिहास में अस्थिरता और पतन का काल था। उनकी नीतियों और नेतृत्व की कमी ने सल्तनत को कमजोर किया, जिसका परिणाम पानीपत की पहली लड़ाई में उनकी हार और सल्तनत के अंत के रूप में हुआ।
सैन्य अभियान और विद्रोह
अफगान अमीरों का असंतोष: इब्राहिम ने अपने पिता सिकंदर लोदी की तरह अफगान अमीरों की शक्ति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन उनकी कठोर नीतियों ने अमीरों को नाराज कर दिया। उसने कई प्रभावशाली अमीरों को दंडित किया और उनकी जागीरें छीन लीं, जिसने सल्तनत में असंतोष बढ़ाया।
दौलत खान लोदी का विद्रोह: पंजाब का गवर्नर दौलत खान लोदी, जो इब्राहिम का रिश्तेदार था, ने उसकी नीतियों का विरोध किया। दौलत खान ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया, जो इब्राहिम के पतन का एक प्रमुख कारण बना।
आलम खान: इब्राहिम का चाचा आलम खान भी सत्ता का दावेदार था। उसने बाबर का समर्थन मांगा, लेकिन बाद में बाबर ने उसे दरकिनार कर दिया।
राजपूत राजाओं के खिलाफ अभियान
ग्वालियर और मेवाड़: इब्राहिम ने ग्वालियर और मेवाड़ के राजपूत राजाओं के खिलाफ अभियान चलाए, लेकिन वह सिकंदर लोदी की तरह प्रभावी ढंग से उन्हें नियंत्रित नहीं कर सका। मेवाड़ के राणा सांगा ने उसकी सत्ता को चुनौती दी और बाद में बाबर का समर्थन किया।
धौलपुर और चंदेरी: इब्राहिम ने इन क्षेत्रों में सल्तनत का नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन राजपूत विद्रोहों ने उसकी सेना को कमजोर किया।
बिहार और जौनपुर: बिहार और जौनपुर में स्थानीय शासकों ने स्वतंत्रता की कोशिश की। इब्राहिम ने इन विद्रोहों को दबाने के लिए सैन्य अभियान चलाए, लेकिन वह पूरी तरह सफल नहीं हुआ।
बाबर का आक्रमण: 1525 में तैमूरी शासक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने काबुल से भारत पर आक्रमण शुरू किया। दौलत खान लोदी और आलम खान के निमंत्रण पर बाबर ने पंजाब पर कब्जा किया और 1526 में पानीपत की ओर बढ़ा।
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