Mubarak Shah
jp Singh
2025-05-24 12:09:43
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मुबारक शाह (1421-1434 ईस्वी)
मुबारक शाह (1421-1434 ईस्वी)
मुबारक शाह (1421-1434 ईस्वी) सैय्यद वंश का दूसरा शासक और दिल्ली सल्तनत का एक महत्वपूर्ण शासक था। वह खिज्र खान का पुत्र था और सैय्यद वंश के सबसे सक्षम शासक के रूप में माना जाता है। अपने पिता के विपरीत, जिन्होंने स्वयं को
प्रारंभिक जीवन और सत्ता प्राप्ति
जन्म और पृष्ठभूमि: मुबारक शाह खिज्र खान का पुत्र था, जो सैय्यद वंश का संस्थापक और तैमूर लंग द्वारा नियुक्त मुल्तान का गवर्नर था। खिज्र खान के शासनकाल (1414-1421 ईस्वी) में मुबारक शाह ने प्रशासन और सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह एक कुशल और महत्वाकांक्षी शासक था, जिसने सल्तनत की खोई हुई शक्ति को पुनः स्थापित करने की कोशिश की।
सत्ता प्राप्ति: खिज्र खान की मृत्यु के बाद, 20 मई, 1421 ईस्वी को मुबारक शाह दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना। उसने अपने पिता की नीति को छोड़कर
शासनकाल (1421-1434 ईस्वी)
मुबारक शाह का शासनकाल लगभग 13 वर्षों तक रहा, जो सैय्यद वंश के इतिहास में सबसे लंबा और प्रभावी शासनकाल था। उनका शासन सल्तनत को स्थिर करने, विद्रोहों को दबाने, और प्रशासनिक सुधारों के लिए जाना जाता है। उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. सैन्य अभियान
मुबारक शाह ने सल्तनत की एकता बनाए रखने और विद्रोहों को दबाने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए:
कटेहर (रोहिलखंड): कटेहर क्षेत्र में राजपूत जमींदारों ने सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया था। मुबारक शाह ने कई अभियानों के माध्यम से इन विद्रोहों को दबाया और क्षेत्र में सल्तनत की सत्ता को मजबूत किया।
मेवात: मेवात के स्थानीय शासकों ने स्वायत्तता की माँग की थी। मुबारक शाह ने मेवात पर सैन्य अभियान चलाकर वहाँ अपनी सत्ता स्थापित की।
दोआब क्षेत्र: गंगा-यमुना के बीच का दोआब क्षेत्र सल्तनत का आर्थिक आधार था। मुबारक शाह ने इस क्षेत्र में विद्रोहों को नियंत्रित किया और भू-राजस्व वसूली को व्यवस्थित किया।
जौनपुर: जौनपुर में शर्की वंश के संस्थापक मलिक सरवर और उनके उत्तराधिकारी ने सल्तनत के खिलाफ स्वायत्तता की घोषणा की थी। मुबारक शाह ने जौनपुर के खिलाफ कई अभियान चलाए, लेकिन वह इसे पूरी तरह सल्तनत के अधीन नहीं ला सका।
मालवा: मालवा के सुल्तान दिलावर खान और उनके पुत्र होशंग शाह ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी। मुबारक शाह ने मालवा पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन उनकी सफलता सीमित रही।
बयाना और ग्वालियर: मुबारक शाह ने बयाना और ग्वालियर के स्थानीय शासकों के खिलाफ अभियान चलाए और इन क्षेत्रों में सल्तनत की सत्ता को बनाए रखने की कोशिश की।
2. प्रशासनिक सुधार
भू-राजस्व व्यवस्था: मुबारक शाह ने भू-राजस्व प्रणाली को सुधारने की कोशिश की। उसने तुगलक वंश के समय की कठोर कर नीतियों को हल्का किया और किसानों को राहत देने की कोशिश की। भू-राजस्व को व्यवस्थित करने के लिए उसने स्थानीय जमींदारों के साथ सहयोग किया।
जागीरदारों पर नियंत्रण: तुगलक वंश की जागीरदारी प्रथा ने स्थानीय जमींदारों और अमीरों को शक्तिशाली बना दिया था। मुबारक शाह ने इन जागीरदारों पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन उनकी शक्ति को पूरी तरह कम नहीं कर सका।
सैन्य संगठन: उसने सल्तनत की सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए सेना का पुनर्गठन किया। उसने केंद्रीकृत सैन्य व्यवस्था को पुनर्जनन करने की कोशिश की, जो फिरोज शाह तुगलक के समय कमजोर हो गई थी।
न्याय व्यवस्था: मुबारक शाह ने इस्लामी शरिया के आधार पर न्याय व्यवस्था को लागू किया और उलेमाओं को प्रशासन में महत्वपूर्ण स्थान दिया।
3. वास्तुकला और सांस्कृतिक योगदान
मुबारकाबाद की स्थापना: मुबारक शाह ने दिल्ली में
सूफी संतों का संरक्षण: मुबारक शाह ने सूफी संतों, विशेष रूप से चिश्ती और सुहरावर्दी संप्रदाय, को संरक्षण दिया। उनके दरबार में कई विद्वान और सूफी संत आते थे।
सांस्कृतिक गतिविधियाँ: उनके शासनकाल में सल्तनत की सांस्कृतिक गतिविधियाँ सीमित थीं, क्योंकि उनका अधिकांश समय सैन्य अभियानों और प्रशासनिक सुधारों में बीता। फिर भी, उन्होंने विद्वानों और कवियों को प्रोत्साहित किया।
4. प्रांतीय स्वायत्तता
मुबारक शाह के शासनकाल में सल्तनत के कई प्रांत पहले ही स्वतंत्र हो चुके थे:
गुजरात: मुजफ्फर शाह ने गुजरात को स्वतंत्र सल्तनत बनाया।
मालवा: दिलावर खान और होशंग शाह ने मालवा को स्वायत्त घोषित किया।
जौनपुर: शर्की वंश ने जौनपुर को स्वतंत्र सल्तनत बनाया।
बंगाल: बंगाल तुगलक वंश के समय से ही स्वतंत्र था।
मुबारक शाह ने इन प्रांतों को सल्तनत के अधीन लाने की कोशिश की, लेकिन उनकी सैन्य और प्रशासनिक सीमाओं के कारण वह असफल रहा।
5. तैमूरी प्रभाव
मुबारक शाह ने अपने पिता खिज्र खान की तरह तैमूरी शासकों (शाहरुख मिर्जा) के प्रति औपचारिक वफादारी बनाए रखी, लेकिन उसने इस प्रभाव को कम करने की कोशिश की। उसने सिक्कों और खुतबा में तैमूरी शासकों का नाम शामिल किया, लेकिन उसकी नीतियाँ सल्तनत की स्वायत्तता को मजबूत करने पर केंद्रित थीं।
उपलब्धियाँ
प्रशासनिक स्थिरता: मुबारक शाह ने तैमूर के आक्रमण के बाद की अराजकता को कम करने और दिल्ली सल्तनत को स्थिर करने में कुछ सफलता हासिल की। उसने प्रशासन को पुनर्गठित किया और भू-राजस्व व्यवस्था को सुधारा।
सैन्य अभियान: उसने कटेहर, मेवात, और दोआब में विद्रोहों को दबाने में सफलता प्राप्त की, जिससे दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में सल्तनत की सत्ता बनी रही।
वास्तुकला: मुबारकाबाद शहर की स्थापना उनकी वास्तुशिल्पीय विरासत का हिस्सा है।
कूटनीति: उसने जागीरदारों और स्थानीय अमीरों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखने की कोशिश की, जिससे सल्तनत में आंतरिक अस्थिरता को कम किया जा सका।
कमजोरियाँ
प्रांतीय स्वायत्तता: मुबारक शाह सल्तनत के स्वतंत्र प्रांतों, जैसे जौनपुर, मालवा, और गुजरात, को पुनः एकजुट करने में असफल रहा। यह सल्तनत की सबसे बड़ी कमजोरी थी।
जागीरदारों की शक्ति: तुगलक वंश की जागीरदारी प्रथा ने जागीरदारों को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वे केंद्रीय सत्ता को चुनौती देते थे। मुबारक शाह इन जागीरदारों पर पूर्ण नियंत्रण नहीं स्थापित कर सका।
सैन्य सीमाएँ: उसकी सैन्य शक्ति सीमित थी, जिसके कारण वह बड़े पैमाने पर सैन्य अभियानों में सफलता प्राप्त नहीं कर सका।
मृत्यु और उत्तराधिकार
मुबारक शाह की मृत्यु 19 फरवरी, 1434 ईस्वी को दिल्ली में हुई। उसकी हत्या उसके ही वजीर, सरवर-उल-मुल्क, ने एक साजिश के तहत कर दी। सरवर-उल-मुल्क और अन्य अमीरों की साजिश ने सल्तनत को और कमजोर कर दिया। मुबारक शाह की मृत्यु के बाद उसका भतीजा, मुहम्मद शाह, सुल्तान बना, लेकिन वह एक अक्षम शासक साबित हुआ।
ऐतिहासिक मूल्यांकन
मुबारक शाह को इतिहासकार सैय्यद वंश का सबसे सक्षम शासक मानते हैं। यहया बिन अहमद सिरहिंदी की
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