Khizr Khan
jp Singh
2025-05-24 12:06:04
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खिज्र खान (1414-1421 ईस्वी)
खिज्र खान (1414-1421 ईस्वी)
खिज्र खान (1414-1421 ईस्वी) सैय्यद वंश का संस्थापक और दिल्ली सल्तनत का पहला सैय्यद शासक था। वह तैमूर लंग द्वारा नियुक्त मुल्तान और दिल्ली का गवर्नर था, जिसने तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद दिल्ली पर कब्जा कर सैय्यद वंश की स्थापना की। खिज्र खान का शासनकाल दिल्ली सल्तनत के पतन के दौर में आया, जब सल्तनत की शक्ति पहले ही कमजोर हो चुकी थी, और कई प्रांत जैसे गुजरात, मालवा, जौनपुर, और बंगाल स्वतंत्र हो गए थे। खिज्र खान ने सल्तनत को स्थिर करने और तैमूर के आक्रमण (1398 ईस्वी) के बाद की अराजकता को नियंत्रित करने की कोशिश की। हालाँकि, उनका शासन केवल दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों तक सीमित रहा। नीचे खिज्र खान के जीवन, शासन, नीतियों, उपलब्धियों, और ऐतिहासिक महत्व का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और उत्पत्ति: खिज्र खान का जन्म 14वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, और वह मुल्तान (आधुनिक पाकिस्तान) का एक प्रभावशाली सामंत था। वह स्वयं को सैय्यद (पैगंबर मुहम्मद के वंशज) होने का दावा करता था, लेकिन इतिहासकारों में इस दावे को लेकर विवाद है। कुछ इतिहासकार, जैसे यहया बिन अहमद सिरहिंदी, उनके सैय्यद होने की पुष्टि करते हैं, जबकि अन्य इसे प्रचार मानते हैं। खिज्र खान का परिवार तुर्क मूल का हो सकता है, जो मुल्तान में बस गया था।
तैमूर के साथ संबंध: खिज्र खान तैमूर लंग का वफादार सहयोगी था। 1398 ईस्वी में तैमूर के आक्रमण के दौरान, खिज्र खान ने तैमूर की सेना का समर्थन किया। तैमूर ने दिल्ली को लूटने के बाद खिज्र खान को मुल्तान और दिल्ली का गवर्नर नियुक्त किया। इस नियुक्ति ने खिज्र खान को दिल्ली पर सत्ता स्थापित करने का अवसर प्रदान किया।
सत्ता प्राप्ति: तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु (1413 ईस्वी) के बाद दिल्ली में सत्ता का शून्य पैदा हो गया। खिज्र खान ने इस अवसर का लाभ उठाया और 1414 ईस्वी में दिल्ली पर कब्जा कर लिया। उसने स्वयं को
शासनकाल (1414-1421 ईस्वी)
खिज्र खान का शासनकाल लगभग सात वर्षों तक रहा, और यह तैमूर के आक्रमण के बाद सल्तनत को स्थिर करने की कोशिशों का दौर था। उनका शासन दिल्ली, पंजाब, और दोआब (गंगा-यमुना के बीच का क्षेत्र) तक सीमित था। उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. प्रशासनिक सुधार
स्थिरता की कोशिश: तैमूर के आक्रमण ने दिल्ली को आर्थिक और प्रशासनिक रूप से तबाह कर दिया था। खिज्र खान ने सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था को पुनर्जनन करने की कोशिश की। उसने जागीरदारों और स्थानीय अमीरों को नियंत्रित करने के लिए कूटनीतिक नीतियाँ अपनाईं।
भू-राजस्व व्यवस्था: खिज्र खान ने भू-राजस्व प्रणाली को व्यवस्थित करने का प्रयास किया ताकि सल्तनत की आय बढ़े। उसने किसानों पर अत्यधिक करों से बचने की कोशिश की, जो फिरोज शाह तुगलक के समय से चली आ रही थी।
न्याय और प्रशासन: खिज्र खान ने इस्लामी शरिया के सिद्धांतों के आधार पर न्याय व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की। उसने उलेमाओं और विद्वानों का सम्मान किया और उन्हें प्रशासन में शामिल किया।
2. सैन्य अभियान
खिज्र खान ने सल्तनत की एकता बनाए रखने और विद्रोहों को दबाने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए, लेकिन उनकी सफलता सीमित रही:
दोआब और कटेहर: खिज्र खान ने दोआब क्षेत्र और कटेहर (आधुनिक रोहिलखंड) में विद्रोहों को दबाने के लिए अभियान चलाए। कटेहर में राजपूत जमींदारों ने विद्रोह किया था, जिन्हें उसने कुछ हद तक नियंत्रित किया।
मेवात: मेवात के स्थानीय शासकों ने सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया था। खिज्र खान ने मेवात पर सैन्य अभियान चलाकर वहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिश की।
जौनपुर और मालवा: जौनपुर में शर्की वंश और मालवा में खिलजी वंश ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। खिज्र खान ने इन प्रांतों को सल्तनत के अधीन लाने की कोशिश की, लेकिन वह पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ। जौनपुर के मलिक सरवर और मालवा के दिलावर खान ने उसकी सत्ता को चुनौती दी।
पंजाब और सिंध: खिज्र खान ने मुल्तान और पंजाब में अपनी स्थिति को मजबूत किया, क्योंकि यह उसका मूल आधार था। उसने इन क्षेत्रों में विद्रोहों को दबाने में कुछ सफलता हासिल की।
3. प्रांतीय स्वायत्तता
प्रांतों का स्वतंत्र होना: खिज्र खान के शासनकाल में सल्तनत के कई प्रमुख प्रांत स्वतंत्र हो गए थे:
गुजरात: मुजफ्फर शाह ने गुजरात को स्वतंत्र सल्तनत बनाया।
मालवा: दिलावर खान ने मालवा को स्वायत्त घोषित किया।
जौनपुर: मलिक सरवर ने जौनपुर में शर्की वंश की नींव रखी।
बंगाल: बंगाल तुगलक वंश के समय से ही स्वतंत्र था।
जागीरदारों की शक्ति: तुगलक वंश की जागीरदारी प्रथा ने स्थानीय जमींदारों और अमीरों को शक्तिशाली बना दिया था। खिज्र खान के पास इन जागीरदारों को पूरी तरह नियंत्रित करने की क्षमता नहीं थी, जिसके कारण उसका शासन कमजोर रहा।
4. तैमूर के प्रति वफादारी
खिज्र खान ने तैमूर और उसके वंशजों (तैमूरी वंश) के प्रति औपचारिक वफादारी बनाए रखी। उसने अपने सिक्कों और खुतबा (मस्जिदों में पढ़े जाने वाले उपदेश) में तैमूर के उत्तराधिकारी शाहरुख मिर्जा का नाम शामिल किया। यह वफादारी केवल प्रतीकात्मक थी, क्योंकि तैमूरी शासकों का दिल्ली पर कोई वास्तविक नियंत्रण नहीं था।
5. सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियाँ
धार्मिक नीति: खिज्र खान एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम था और उसने इस्लामी शरिया के सिद्धांतों के आधार पर शासन चलाने की कोशिश की। उसने उलेमाओं और सूफी संतों का संरक्षण किया। हालाँकि, उसने गैर-मुस्लिमों, विशेष रूप से हिंदुओं, के खिलाफ कट्टर नीतियाँ नहीं अपनाईं, जो फिरोज शाह तुगलक के समय में प्रचलित थीं।
सांस्कृतिक योगदान: खिज्र खान के शासनकाल में कोई उल्लेखनीय वास्तुशिल्पीय या सांस्कृतिक कार्य दर्ज नहीं हैं, क्योंकि उसका अधिकांश समय सल्तनत को स्थिर करने और विद्रोहों को दबाने में बीता।
उपलब्धियाँ
सल्तनत की स्थिरता: तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली सल्तनत पूरी तरह तबाह हो गई थी। खिज्र खान ने दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में कुछ हद तक प्रशासनिक स्थिरता लाने में सफलता हासिल की।
सैन्य अभियान: उसने दोआब, कटेहर, और मेवात में विद्रोहों को दबाने में कुछ सफलता प्राप्त की, जिससे दिल्ली की सत्ता को बनाए रखने में मदद मिली।
कूटनीति: खिज्र खान ने जागीरदारों और अमीरों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखने की कोशिश की, जिससे सल्तनत में आंतरिक अराजकता को कम किया जा सका।
कमजोरियाँ
सीमित नियंत्रण: खिज्र खान का शासन दिल्ली, पंजाब, और दोआब तक सीमित था। सल्तनत के प्रमुख प्रांत जैसे गुजरात, मालवा, और जौनपुर स्वतंत्र हो गए थे, और वह इन्हें पुनः सल्तनत के अधीन नहीं ला सका।
जागीरदारों की शक्ति: तुगलक वंश की जागीरदारी प्रथा ने स्थानीय जमींदारों और अमीरों को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वे केंद्रीय सत्ता को चुनौती देते थे। खिज्र खान इन जागीरदारों को पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सका।
सैन्य कमजोरी: खिज्र खान के पास एक मजबूत और केंद्रीकृत सेना नहीं थी, जिसके कारण वह बड़े पैमाने पर सैन्य अभियानों में असफल रहा।
मृत्यु और उत्तराधिकार
खिज्र खान की मृत्यु 20 मई, 1421 ईस्वी को दिल्ली में हुई। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र, मुबारक शाह, सुल्तान बना। मुबारक शाह सैय्यद वंश का सबसे सक्षम शासक माना जाता है, जिसने खिज्र खान की नीतियों को आगे बढ़ाने की कोशिश की।
ऐतिहासिक मूल्यांकन
खिज्र खान को इतिहासकार एक मध्यम स्तर का शासक मानते हैं, जिसने तैमूर के आक्रमण के बाद की अराजकता में सल्तनत को कुछ हद तक स्थिर करने की कोशिश की। इतिहासकार सतीश चंद्रा के अनुसार, खिज्र खान का शासन सल्तनत के पतन को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हुआ, लेकिन उसने सल्तनत की केंद्रीय सत्ता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहया बिन अहमद सिरहिंदी की
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