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Nasiruddin Mahmud
jp Singh 2025-05-23 17:27:56
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नासिरुद्दीन महमूद (1394-1413 ईस्वी)

नासिरुद्दीन महमूद (1394-1413 ईस्वी)
नासिरुद्दीन महमूद (1394-1413 ईस्वी) दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश का अंतिम शासक था। वह फिरोज शाह तुगलक का पोता और तुगलक वंश के पतन के दौर का एक कमजोर शासक था। उनका शासनकाल आंतरिक अस्थिरता, प्रांतीय विद्रोहों, और तैमूर के आक्रमण (1398 ईस्वी) के बाद सल्तनत के अंतिम पतन का साक्षी रहा। नासिरुद्दीन महमूद का शासन दो चरणों में विभाजित था: पहला चरण 1390-1394 ईस्वी तक और दूसरा चरण 1394-1413 ईस्वी तक। उनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत पूरी तरह से विघटित हो गई, और तुगलक वंश का अंत हो गया। नीचे उनके जीवन, शासन, और ऐतिहासिक महत्व का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है।
प्रारंभिक जीवन और सत्ता प्राप्ति
जन्म और पृष्ठभूमि: नासिरुद्दीन महमूद फिरोज शाह तुगलक का पोता था। कुछ स्रोतों के अनुसार, वह फिरोज के पुत्रों में से एक (संभवतः जफर खान या मुहम्मद शाह) का बेटा था। फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल (1351-1388 ईस्वी) के बाद तुगलक वंश पहले ही कमजोर हो चुका था। फिरोज की नीतियों, जैसे जागीरदारी प्रथा और वंशानुगत सैन्य पदों, ने सल्तनत की केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया था, जिसके कारण उनके बाद उत्तराधिकार संकट और आंतरिक अराजकता फैल गई थी।
सत्ता प्राप्ति (पहला चरण, 1390 ईस्वी): फिरोज शाह की मृत्यु (1388 ईस्वी) के बाद गयासुद्दीन तुगलक शाह II और फिर अबू बकर शाह ने क्रमशः सत्ता संभाली, लेकिन दोनों का शासन संक्षिप्त और अस्थिर रहा। 1390 ईस्वी में, नासिरुद्दीन महमूद ने अबू बकर शाह को अपदस्थ कर दिल्ली की गद्दी पर कब्जा किया। उनका पहला शासनकाल (1390-1394 ईस्वी) भी अस्थिर रहा, और 1394 में वह दिल्ली से भागने को मजबूर हो गया।
दूसरा चरण (1394-1413 ईस्वी): 1394 ईस्वी में, नासिरुद्दीन महमूद ने फिर से दिल्ली पर कब्जा किया और सुल्तान के रूप में शासन शुरू किया। इस बार उनका शासन तैमूर के आक्रमण (1398 ईस्वी) तक और उसके बाद भी कुछ समय तक चला, लेकिन यह पूरी तरह नाममात्र का था।
शासनकाल :- नासिरुद्दीन महमूद का शासनकाल दो चरणों में विभाजित था, और यह तुगलक वंश के अंतिम दिनों की अराजकता को दर्शाता है। उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. पहला शासनकाल (1390-1394 ईस्वी)
आंतरिक अस्थिरता: नासिरुद्दीन महमूद ने अबू बकर शाह को अपदस्थ कर सत्ता हासिल की, लेकिन उनके पास सल्तनत को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त सैन्य शक्ति या प्रशासनिक कौशल नहीं था। जागीरदारों और अमीरों की बढ़ती शक्ति ने उनकी सत्ता को कमजोर कर दिया।
प्रांतीय विद्रोह: इस समय सल्तनत के कई प्रांत, जैसे गुजरात, मालवा, जौनपुर, और बंगाल, लगभग स्वतंत्र हो चुके थे। नासिरुद्दीन के पास इन प्रांतों को फिर से सल्तनत के अधीन लाने की क्षमता नहीं थी।
अपदस्थ होना: 1394 ईस्वी में, दिल्ली के एक शक्तिशाली अमीर, नासिर-उल-मुल्क, ने नासिरुद्दीन महमूद को दिल्ली से बाहर निकाल दिया। इसके बाद, नासिरुद्दीन फिरोजाबाद (फिरोज शाह द्वारा स्थापित शहर) में शरण लेने को मजबूर हुआ। इस दौरान दिल्ली में कुछ समय के लिए कोई स्पष्ट शासक नहीं था, और सल्तनत की स्थिति अराजक हो गई।
2. दूसरा शासनकाल (1394-1413 ईस्वी)
दिल्ली पर पुनः कब्जा: 1394 ईस्वी में, नासिरुद्दीन महमूद ने कुछ वफादार अमीरों और सैन्य समर्थकों की मदद से दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया। हालाँकि, उनका शासन नाममात्र का था, क्योंकि सल्तनत की अधिकांश शक्ति अब जागीरदारों और प्रांतीय शासकों के हाथों में थी।
तैमूर का आक्रमण (1398 ईस्वी): नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल का सबसे महत्वपूर्ण और विनाशकारी घटनाक्रम तैमूर लंग (तैमूर-ए-लंग) का आक्रमण था। 1398 ईस्वी में, तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया। नासिरुद्दीन के पास तैमूर का सामना करने के लिए पर्याप्त सैन्य शक्ति नहीं थी। तैमूर ने दिल्ली को लूटा, हजारों लोगों का कत्ल किया, और सल्तनत की राजधानी को भारी नुकसान पहुँचाया। इस आक्रमण ने तुगलक वंश की शक्ति को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
तैमूर के बाद का शासन: तैमूर के आक्रमण के बाद, नासिरुद्दीन महमूद ने दिल्ली में नाममात्र का शासन जारी रखा। तैमूर ने दिल्ली का नियंत्रण अपने एक गवर्नर को सौंपा था, लेकिन नासिरुद्दीन ने फिर से सत्ता हासिल की। हालाँकि, उनका नियंत्रण केवल दिल्ली और उसके आसपास के छोटे क्षेत्र तक सीमित था। प्रांतों पर उनका कोई प्रभाव नहीं रहा।
प्रशासनिक और सैन्य कमजोरियाँ: नासिरुद्दीन का शासनकाल पूरी तरह से कमजोर और अस्थिर था। उनके पास न तो सैन्य शक्ति थी और न ही प्रशासनिक संगठन। जागीरदारों और प्रांतीय शासकों ने उनकी सत्ता को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।
3. प्रांतीय स्वायत्तता और सल्तनत का विघटन
प्रांतों का स्वतंत्र होना: नासिरुद्दीन के शासनकाल में सल्तनत के कई प्रांत पूरी तरह स्वतंत्र हो गए:
गुजरात: मुजफ्फर शाह ने गुजरात को स्वतंत्र सल्तनत बनाया।
मालवा: दिलावर खान ने मालवा को स्वायत्त घोषित किया।
जौनपुर: मलिक सरवर ने जौनपुर में शर्की वंश की नींव रखी।
बंगाल: बंगाल पहले ही फिरोज शाह के समय से स्वतंत्र था।
जागीरदारी प्रथा का प्रभाव: फिरोज शाह की जागीरदारी प्रथा ने स्थानीय जमींदारों और अमीरों को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वे अब सुल्तान के प्रति वफादारी नहीं दिखाते थे। नासिरुद्दीन के पास इन शक्तिशाली जागीरदारों को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं थी।
4. शासन का अंत
मृत्यु और तुगलक वंश का अंत: नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु 1413 ईस्वी में हुई। उनकी मृत्यु के साथ ही तुगलक वंश का औपचारिक रूप से अंत हो गया। कुछ स्रोतों के अनुसार, उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं था, और सल्तनत पूरी तरह से विघटित हो गई।
सैय्यद वंश की स्थापना: तैमूर के आक्रमण के बाद, उसने खिज्र खान को दिल्ली का गवर्नर नियुक्त किया था। खिज्र खान ने 1414 ईस्वी में सैय्यद वंश की स्थापना की, जिसने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। यह तुगलक वंश के अंत का अंतिम चरण था।
ऐतिहासिक महत्व
तुगलक वंश का अंत: नासिरुद्दीन महमूद का शासनकाल तुगलक वंश के अंत का प्रतीक है। उनके शासन में सल्तनत की केंद्रीय सत्ता पूरी तरह से समाप्त हो गई, और प्रांतों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।
तैमूर का आक्रमण: तैमूर के आक्रमण (1398 ईस्वी) ने दिल्ली सल्तनत को अपूरणीय क्षति पहुँचाई। नासिरुद्दीन की अक्षमता और सैन्य शक्ति की कमी ने तैमूर का सामना करना असंभव बना दिया।
ऐतिहासिक स्रोतों में सीमित जानकारी: नासिरुद्दीन महमूद के बारे में ऐतिहासिक स्रोतों, जैसे यहया बिन अहमद सिरहिंदी की
उपलब्धियाँ और कमजोरियाँ
उपलब्धियाँ: नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में कोई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ दर्ज नहीं हैं। उनका शासन पूरी तरह से अस्थिर और नाममात्र का था। तैमूर के आक्रमण के बाद भी दिल्ली में सत्ता बनाए रखना उनकी एकमात्र उपलब्धि मानी जा सकती है, लेकिन यह भी केवल प्रतीकात्मक थी।
कमजोरियाँ:
अल्प प्रभावी शासन: नासिरुद्दीन का शासन दिल्ली और उसके आसपास के छोटे क्षेत्र तक सीमित था। प्रांतों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था।
सैन्य और प्रशासनिक अक्षमता: उनके पास न तो मजबूत सेना थी और न ही प्रभावी प्रशासन, जिसके कारण वह विद्रोहों को दबाने या सल्तनत को पुनर्जनन करने में असफल रहा।
तैमूर का आक्रमण: तैमूर के आक्रमण ने सल्तनत को पूरी तरह नष्ट कर दिया, और नासिरुद्दीन की अक्षमता ने इस विनाश को और बढ़ाया।
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