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Abu Bakar Shah
jp Singh 2025-05-23 17:24:34
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अबू बकर शाह (1389-1390 ईस्वी)

अबू बकर शाह (1389-1390 ईस्वी)
दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश का एक अल्पकालिक और कमजोर शासक था। वह फिरोज शाह तुगलक का पोता और गयासुद्दीन तुगलक शाह II का चचेरा भाई था। उनका शासनकाल केवल लगभग एक वर्ष तक चला और तुगलक वंश के पतन के अंतिम चरण का प्रतीक था। अबू बकर शाह का शासन आंतरिक अस्थिरता, सत्ता के लिए संघर्ष, और प्रांतीय विद्रोहों से ग्रस्त था। नीचे उनके जीवन, शासन, और ऐतिहासिक महत्व का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है।
प्रारंभिक जीवन और सत्ता प्राप्ति
जन्म और पृष्ठभूमि: अबू बकर शाह फिरोज शाह तुगलक के एक अन्य पुत्र (संभवतः नासिरुद्दीन या जफर खान) का बेटा था। फिरोज शाह तुगलक के लंबे शासनकाल (1351-1388 ईस्वी) के बाद तुगलक वंश पहले ही कमजोर हो चुका था। फिरोज की नीतियों, जैसे जागीरदारी प्रथा और वंशानुगत सैन्य पदों ने सल्तनत की केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया था। अबू बकर का जन्म इस अशांत दौर में हुआ, और उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
सत्ता प्राप्ति: 1388 ईस्वी में फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन तुगलक शाह II सुल्तान बना, लेकिन उसका शासन केवल सात महीने तक चला। गयासुद्दीन की अक्षमता और सत्ता के लिए बढ़ते असंतोष ने अबू बकर शाह को मौका दिया। 1389 ईस्वी में, अबू बकर ने दिल्ली के कुछ अमीरों और सैन्य समर्थकों की मदद से गयासुद्दीन तुगलक शाह II को अपदस्थ कर दिया। कुछ स्रोतों के अनुसार, गयासुद्दीन को कैद किया गया और संभवतः उसकी हत्या कर दी गई। अबू बकर शाह मार्च 1389 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना।
शासनकाल
अबू बकर शाह का शासनकाल (1389-1390 ईस्वी) अत्यंत संक्षिप्त और अशांत था। उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. आंतरिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष
परिवार के भीतर संघर्ष: अबू बकर शाह को सत्ता में आने के बाद भी तुगलक वंश के अन्य सदस्यों और अमीरों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा। नासिरुद्दीन महमूद, जो फिरोज शाह का एक अन्य पोता था, ने अबू बकर के खिलाफ साजिश शुरू की और सत्ता पर दावा ठोका।
अमीरों का विरोध: फिरोज शाह के शासनकाल में जागीरदारों और अमीरों की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि वे केंद्रीय सत्ता को मानने को तैयार नहीं थे। अबू बकर के पास इन शक्तिशाली जागीरदारों को नियंत्रित करने की न तो सैन्य शक्ति थी और न ही क diplomatic कौशल।
नासिरुद्दीन महमूद का विद्रोह: अबू बकर के शासन के दौरान नासिरुद्दीन महमूद ने समर्थन जुटाया और दिल्ली पर कब्जे की योजना बनाई। इस आंतरिक संघर्ष ने अबू बकर के शासन को और कमजोर कर दिया।
2. प्रांतीय विद्रोह
प्रांतों की स्वायत्तता: अबू बकर के शासनकाल में सल्तनत के कई प्रांत, जैसे गुजरात, मालवा, और बंगाल, ने स्वायत्तता की मांग शुरू कर दी। बंगाल पहले ही फिरोज शाह के समय से लगभग स्वतंत्र हो चुका था, और अबू बकर के पास इन प्रांतों को फिर से सल्तनत के अधीन लाने की क्षमता नहीं थी।
जागीरदारों की शक्ति: फिरोज शाह की जागीरदारी प्रथा ने स्थानीय जमींदारों और जागीरदारों को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वे अब सुल्तान के प्रति वफादारी दिखाने के बजाय अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने में लगे थे।
3. प्रशासनिक और सैन्य कमजोरियाँ
कमजोर प्रशासन: अबू बकर शाह का शासनकाल इतना संक्षिप्त था कि वह कोई महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधार लागू नहीं कर सका। सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था पहले ही चरमरा चुकी थी, और अबू बकर के पास इसे पुनर्जनन करने के लिए न तो समय था और न ही संसाधन।
सैन्य शक्ति की कमी: फिरोज शाह की नीतियों ने सल्तनत की सैन्य शक्ति को कमजोर कर दिया था। अबू बकर के पास एक मजबूत सेना नहीं थी, जिसके कारण वह विद्रोहों को दबाने में असमर्थ रहा।
4. अपदस्थ होना
नासिरुद्दीन महमूद द्वारा अपदस्थ: 1390 ईस्वी में, अबू बकर शाह को उनके चचेरे भाई नासिरुद्दीन महमूद ने अपदस्थ कर दिया। नासिरुद्दीन ने दिल्ली के कुछ अमीरों और सैन्य नेताओं का समर्थन प्राप्त किया और अबू बकर को सत्ता से हटा दिया। कुछ स्रोतों के अनुसार, अबू बकर को कैद कर लिया गया, और उनके बाद के जीवन के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।
शासन का अंत: अबू बकर का अपदस्थ होना तुगलक वंश के अंतिम चरण का हिस्सा था। उनके बाद नासिरुद्दीन महमूद ने सत्ता संभाली, लेकिन वह भी सल्तनत की खोई हुई शक्ति को पुनः स्थापित नहीं कर सका।
ऐतिहासिक महत्व
तुगलक वंश का पतन: अबू बकर शाह का शासनकाल तुगलक वंश के अंतिम दौर को दर्शाता है। उनका संक्षिप्त शासन सल्तनत की आंतरिक कमजोरियों, जैसे उत्तराधिकार संकट, जागीरदारों की बढ़ती शक्ति, और प्रांतीय स्वायत्तता, को उजागर करता है।
तैमूर के आक्रमण की पृष्ठभूमि: अबू बकर के शासन के बाद सल्तनत और अधिक अस्थिर हो गई। 1398 ईस्वी में तैमूर लंग के आक्रमण ने तुगलक वंश को पूरी तरह समाप्त कर दिया। अबू बकर का शासन इस विनाशकारी आक्रमण की पृष्ठभूमि तैयार करने में एक कड़ी था।
ऐतिहासिक स्रोतों में सीमित जानकारी: अबू बकर शाह के बारे में ऐतिहासिक स्रोतों, जैसे ज़ियाउद्दीन बरनी और यहया बिन अहमद सिरहिंदी, में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उनके शासनकाल में कोई उल्लेखनीय कार्य या नीति दर्ज नहीं है, जिसके कारण वह इतिहास में एक गौण शासक के रूप में देखे जाते हैं।
उपलब्धियाँ और कमजोरियाँ
उपलब्धियाँ: अबू बकर शाह के शासनकाल में कोई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ दर्ज नहीं हैं। उनका शासन इतना संक्षिप्त और अशांत था कि वह कोई महत्वपूर्ण प्रशासनिक, सैन्य, या सांस्कृतिक योगदान नहीं दे सका।
कमजोरियाँ
अल्पकालिक शासन: उनका शासन केवल एक वर्ष तक चला, जिसके कारण वह सल्तनत को स्थिर करने में असफल रहा।
आंतरिक संघर्ष: परिवार के सदस्यों और अमीरों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष ने उनके शासन को कमजोर किया।
प्रशासनिक और सैन्य अक्षमता: अबू बकर के पास सल्तनत की कमजोरियों को दूर करने के लिए न तो अनुभव था और न ही संसाधन।
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