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Ghiyasuddin Tughlaq Shah II
jp Singh 2025-05-23 17:21:41
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गयासुद्दीन तुगलक शाह II (1388-1389 ईस्वी)

गयासुद्दीन तुगलक शाह II (1388-1389 ईस्वी)
दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश का एक अल्पकालिक शासक था। वह फिरोज शाह तुगलक का पोता था और उनकी मृत्यु के बाद सत्ता में आया। उसका शासनकाल केवल कुछ महीनों (लगभग सात महीने) का रहा, और यह तुगलक वंश के पतन के दौर का प्रतीक था। गयासुद्दीन तुगलक शाह II का शासनकाल आंतरिक अस्थिरता, विद्रोहों, और सत्ता के लिए आपसी संघर्षों से भरा था, जिसने तुगलक वंश को और कमजोर किया। नीचे उनके जीवन, शासन, और ऐतिहासिक महत्व का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है।
प्रारंभिक जीवन और सत्ता प्राप्ति
जन्म और पृष्ठभूमि: गयासुद्दीन तुगलक शाह II फिरोज शाह तुगलक के पुत्र फतेह खान का बेटा था। फिरोज शाह तुगलक के लंबे शासनकाल (1351-1388 ईस्वी) के दौरान तुगलक वंश की शक्ति पहले ही कमजोर हो चुकी थी। फिरोज की धार्मिक कट्टरता, वंशानुगत सैन्य पदों की नीति, और जागीरदारी प्रथा ने सल्तनत को अस्थिर कर दिया था। गयासुद्दीन का जन्म इस अस्थिर दौर में हुआ, और उनके बारे में ज्यादा व्यक्तिगत जानकारी उपलब्ध नहीं है।
सत्ता प्राप्ति: 1388 ईस्वी में फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत में उत्तराधिकार का संकट पैदा हुआ। फिरोज ने अपने जीवनकाल में स्पष्ट उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की थी, जिसके कारण उनके परिवार के कई सदस्यों और अमीरों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया। गयासुद्दीन तुगलक शाह II को फिरोज के कुछ वफादार अमीरों और दरबारियों ने सुल्तान के रूप में चुना। वह सितंबर 1388 ईस्वी में सुल्तान बना।
शासनकाल :- गयासुद्दीन तुगलक शाह II का शासनकाल बहुत ही संक्षिप्त (1388-1389 ईस्वी) और अशांत रहा। उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. आंतरिक अस्थिरता और विद्रोह
सत्ता के लिए संघर्ष: गयासुद्दीन के सत्ता में आने के साथ ही तुगलक वंश के अन्य सदस्यों और अमीरों ने उनके खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। फिरोज शाह के शासनकाल में जागीरदारी प्रथा और वंशानुगत सैन्य पदों की नीति ने स्थानीय जमींदारों और अमीरों को शक्तिशाली बना दिया था, जो अब केंद्रीय सत्ता को चुनौती दे रहे थे।
अबू बकर शाह का विरोध: गयासुद्दीन का चचेरा भाई, अबू बकर शाह (फिरोज शाह का एक अन्य पोता), उनके शासन के खिलाफ था। अबू बकर ने दिल्ली में समर्थन जुटाना शुरू किया और गयासुद्दीन के खिलाफ साजिश रची।
प्रांतीय विद्रोह: इस समय सल्तनत के कई प्रांत, जैसे गुजरात, बंगाल, और मालवा, स्वायत्तता की मांग कर रहे थे। गयासुद्दीन के पास इन विद्रोहों को दबाने के लिए न तो सैन्य शक्ति थी और न ही पर्याप्त संसाधन।
2. प्रशासनिक कमजोरियाँ
कमजोर केंद्रीय सत्ता: गयासुद्दीन का शासनकाल तुगलक वंश के पतन के दौर में आया, जब केंद्रीय सत्ता पहले ही कमजोर हो चुकी थी। फिरोज शाह की नीतियों ने अमीरों और जागीरदारों को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वे सुल्तान के आदेशों का पालन करने में रुचि नहीं लेते थे।
सैन्य शक्ति की कमी: गयासुद्दीन के पास एक मजबूत सेना नहीं थी, और फिरोज शाह द्वारा शुरू की गई जागीरदारी प्रथा ने सैन्य संगठन को और कमजोर कर दिया था।
3. शासन की अवधि
गयासुद्दीन का शासनकाल केवल सात महीने (सितंबर 1388 से मार्च 1389 ईस्वी) तक चला। इस दौरान वह कोई उल्लेखनीय प्रशासनिक या सैन्य सुधार लागू नहीं कर सका। उसका अधिकांश समय सत्ता को बनाए रखने और विरोधियों को नियंत्रित करने में बीता।
4. अंत और अपदस्थ होना
अबू बकर शाह द्वारा अपदस्थ: 1389 ईस्वी में, गयासुद्दीन तुगलक शाह II को उनके चचेरे भाई अबू बकर शाह ने एक साजिश के तहत अपदस्थ कर दिया। कुछ स्रोतों के अनुसार, गयासुद्दीन को कैद कर लिया गया और संभवतः उसकी हत्या कर दी गई। अबू बकर शाह ने इसके बाद दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया।
शासन का अंत: गयासुद्दीन का अपदस्थ होना तुगलक वंश के अंतिम चरण का प्रतीक था। उनके बाद अबू बकर शाह और फिर नासिरुद्दीन महमूद जैसे शासकों ने सत्ता संभाली, लेकिन कोई भी सल्तनत की खोई हुई शक्ति को पुनः स्थापित नहीं कर सका।
ऐतिहासिक महत्व
तुगलक वंश का पतन: गयासुद्दीन तुगलक शाह II का संक्षिप्त शासनकाल तुगलक वंश के पतन की शुरुआत को दर्शाता है। उनके शासनकाल में सल्तनत की आंतरिक कमजोरियाँ, जैसे जागीरदारों की बढ़ती शक्ति और केंद्रीय सत्ता का कमजोर होना, स्पष्ट हो गईं।
तैमूर के आक्रमण की पृष्ठभूमि: गयासुद्दीन के शासन के बाद तुगलक वंश और भी अस्थिर हो गया, जिसने 1398 ईस्वी में तैमूर लंग के आक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तैयार कीं। तैमूर के आक्रमण ने तुगलक वंश को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
ऐतिहासिक स्रोतों में सीमित जानकारी: गयासुद्दीन तुगलक शाह II के बारे में ज्यादा ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी और यहया बिन अहमद सिरहिंदी जैसे स्रोतों में उनके शासन का उल्लेख संक्षिप्त रूप में मिलता है। उनकी आत्मकथा या कोई प्रमुख कार्य उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण उनका शासनकाल ऐतिहासिक रूप से कम चर्चित है।
उपलब्धियाँ और कमजोरियाँ
उपलब्धियाँ: गयासुद्दीन तुगलक शाह II के शासनकाल में कोई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ दर्ज नहीं हैं। उनका शासन इतना संक्षिप्त और अशांत था कि वह कोई महत्वपूर्ण प्रशासनिक, सैन्य, या सांस्कृतिक योगदान नहीं दे सका।
कमजोरियाँ
अल्पकालिक शासन: उनका शासन केवल सात महीने तक चला, जिसके कारण वह सल्तनत को स्थिर करने में असफल रहा।
आंतरिक संघर्ष: सत्ता के लिए परिवार के सदस्यों और अमीरों के बीच संघर्ष ने उनके शासन को कमजोर किया।
प्रशासनिक अक्षमता: गयासुद्दीन के पास न तो अनुभव था और न ही ऐसी परिस्थितियाँ थीं कि वह सल्तनत की कमजोरियों को दूर कर सके।
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