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Shamsuddin Iltutmish
jp Singh 2025-05-23 14:31:52
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शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (1211-1236)

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (1211-1236)
इल्तुतमिश (शासनकाल: 1211-1236) दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश के तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण सुल्तान थे। वे कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद और उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत को एक मजबूत और संगठित साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने इसकी नींव को सुदृढ़ किया और इसे एक स्थायी साम्राज्य में परिवर्तित किया। नीचे उनके जीवन, शासन, और योगदान का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और प्रारंभिक जीवन: इल्तुतमिश का जन्म 12वीं शताब्दी के अंत में मध्य एशिया के तुर्किस्तान में एक तुर्क कबीले में हुआ था। वह एक कुलीन परिवार से थे, लेकिन ईर्ष्यालु भाइयों द्वारा उन्हें बचपन में ही गुलाम के रूप में बेच दिया गया।
कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन: इल्तुतमिश को कुतुबुद्दीन ऐबक ने खरीदा, जो उस समय मुहम्मद गोरी का सेनापति और बाद में दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था। कुतुबुद्दीन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। इल्तुतमिश ने अपनी बुद्धिमत्ता, सैन्य कौशल, और प्रशासनिक क्षमता से कुतुबुद्दीन का विश्वास जीता।
कुतुबुद्दीन का दामाद: इल्तुतमिश की शादी कुतुबुद्दीन की बेटी से हुई, जिससे उनका रिश्ता और मजबूत हुआ। कुतुबुद्दीन ने उन्हें बदायूं का प्रशासक नियुक्त किया, जहां उन्होंने अपनी योग्यता सिद्ध की।
सुल्तान बनने का मार्ग: 1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद उनके पुत्र आराम शाह को सुल्तान बनाया गया, लेकिन वह अक्षम शासक साबित हुआ। 1211 में दिल्ली के तुर्की अमीरों ने इल्तुतमिश को सुल्तान घोषित किया।
2. दिल्ली सल्तनत का सुदृढ़ीकरण
इल्तुतमिश का शासनकाल (1211-1236) दिल्ली सल्तनत के लिए एक महत्वपूर्ण काल था। उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया और सल्तनत को एक स्थायी साम्राज्य में परिवर्तित किया।
आंतरिक चुनौतियां और समाधान
आंतरिक विद्रोह: इल्तुतमिश को सत्ता संभालने के बाद कई तुर्की अमीरों और स्थानीय शासकों के विद्रोह का सामना करना पड़ा। उन्होंने इन विद्रोहों को दबाया और अपनी सत्ता को मजबूत किया।
उदाहरण: बंगाल और बिहार में तुर्की गवर्नरों के विद्रोह को कुचलकर उन्होंने इन क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में लिया।
इक्ता प्रणाली: इल्तुतमिश ने इक्ता प्रणाली (भूमि अनुदान प्रणाली) को व्यवस्थित किया, जिसके तहत सैन्य अधिकारियों को भूमि दी जाती थी। इससे प्रशासन और सेना को मजबूती मिली।
चालीस गुलामों का समूह (चहलगानी): इल्तुतमिश ने 40 विश्वसनीय तुर्की सरदारों का एक समूह बनाया, जिसे
बाहरी खतरों का सामना
मंगोल आक्रमण: इल्तुतमिश के शासनकाल में मंगोलों के आक्रमण मध्य एशिया और भारत की सीमाओं तक पहुंच गए थे। इल्तुतमिश ने चंगेज खान के नेतृत्व में मंगोलों से बचने के लिए कूटनीतिक रणनीति अपनाई। उन्होंने मंगोलों के साथ सीधा टकराव टाला और दिल्ली सल्तनत को उनके आक्रमणों से सुरक्षित रखा।
ख्वारिज्म शाही: मंगोलों से भागे ख्वारिज्म शाही शासक जलालुद्दीन मंगबरनी ने भारत में शरण मांगी। इल्तुतमिश ने उन्हें शरण देने से इनकार कर दिया, ताकि मंगोलों का ध्यान भारत की ओर न आए।
3. सैन्य अभियान और क्षेत्रीय विस्तार
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रीय विस्तार और समेकन के लिए कई सैन्य अभियान चलाए:
राजपूतों पर विजय: उन्होंने कई राजपूत रियासतों को अपने अधीन किया, जैसे रणथंभौर (1226), मंदौर, और ग्वालियर। इन विजयों ने सल्तनत की शक्ति को बढ़ाया।
बंगाल और बिहार: बंगाल में विद्रोह करने वाले तुर्की गवर्नरों को पराजित कर इल्तुतमिश ने इन क्षेत्रों को दिल्ली सल्तनत के अधीन किया।
मुल्तान और सिंध: उन्होंने मुल्तान और सिंध पर भी नियंत्रण स्थापित किया, जिससे सल्तनत की पश्चिमी सीमाएं सुरक्षित हुईं।
दक्कन की ओर प्रयास: हालांकि इल्तुतमिश ने दक्कन में ज्यादा विस्तार नहीं किया, लेकिन उन्होंने दक्षिणी भारत के कुछ क्षेत्रों पर प्रभाव बनाए रखा।
4. प्रशासनिक सुधार
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत को एक संगठित साम्राज्य बनाने के लिए कई प्रशासनिक सुधार किए:
मुद्रा प्रणाली: इल्तुतमिश ने भारत में चांदी का
न्याय व्यवस्था: इल्तुतमिश ने इस्लामी कानून (शरिया) के आधार पर न्याय व्यवस्था को लागू किया, लेकिन स्थानीय परंपराओं का भी सम्मान किया।
कानूनी मान्यता: 1230 में बगदाद के खलीफा अल-मुस्तंसिर बिल्लाह ने इल्तुतमिश को
5. वास्तुकलात्मक योगदान
इल्तुतमिश ने भारत में इंडो-इस्लामिक वास्तुकला को और समृद्ध किया। उनके द्वारा पूर्ण या शुरू किए गए स्मारक आज भी उनकी विरासत को दर्शाते हैं:
कुतुब मीनार का विस्तार: कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा शुरू की गई कुतुब मीनार को इल्तुतमिश ने पूरा किया। उन्होंने मीनार की ऊंचाई बढ़ाई और इसे और भव्य बनाया। यह आज भारत का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्मारक है।
कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद का विस्तार: इल्तुतमिश ने इस मस्जिद का विस्तार करवाया और इसमें कई नए मेहराब और संरचनाएं जोड़ीं।
सुल्तान गढ़ी: दिल्ली में इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की याद में
अजमेर और अन्य स्थानों पर निर्माण: इल्तुतमिश ने अजमेर और अन्य क्षेत्रों में मस्जिदों और अन्य संरचनाओं का निर्माण करवाया, जो इंडो-इस्लामिक शैली को दर्शाते हैं।
6. उत्तराधिकार और रजिया सुल्ताना
उत्तराधिकार की समस्या: इल्तुतमिश के शासनकाल की एक प्रमुख चुनौती उत्तराधिकार थी। उनके पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु उनके जीवनकाल में ही हो गई थी। इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया सुल्ताना को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना, जो भारतीय इतिहास में एक अभूतपूर्व निर्णय था।
रजिया की नियुक्ति: इल्तुतमिश ने रजिया को सुल्तान बनाने का फैसला किया, क्योंकि वह उनकी बुद्धिमत्ता और नेतृत्व क्षमता से प्रभावित थे। उन्होंने अपने अन्य पुत्रों को अक्षम माना। यह निर्णय तुर्की अमीरों के बीच विवादास्पद रहा, लेकिन इल्तुतमिश ने इसे लागू किया।
मृत्यु (1236): 1236 में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद रजिया को सुल्तान बनाया गया, लेकिन तुर्की अमीरों के विरोध के कारण उनकी स्थिति अस्थिर रही।
7. विरासत और प्रभाव
दिल्ली सल्तनत का संस्थापक: हालांकि कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की, लेकिन इल्तुतमिश को इसका वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उन्होंने सल्तनत को एक संगठित और वैध साम्राज्य में परिवर्तित किया।
सांस्कृतिक मिश्रण: इल्तुतमिश ने हिंदू और इस्लामी परंपराओं के बीच संतुलन बनाए रखा। उनकी मुद्रा प्रणाली और वास्तुकला में स्थानीय और इस्लामी तत्वों का समन्वय दिखता है।
वास्तुकलात्मक योगदान: कुतुब मीनार और सुल्तान गढ़ी जैसे स्मारक उनकी वास्तुकलात्मक विरासत को दर्शाते हैं। ये स्मारक आज भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
प्रशासनिक ढांचा: उनकी इक्ता प्रणाली, चहलगानी, और मुद्रा सुधारों ने दिल्ली सल्तनत को आर्थिक और प्रशासनिक स्थिरता प्रदान की।
महिलाओं को शक्ति: रजिया सुल्ताना को उत्तराधिकारी बनाने का उनका निर्णय भारतीय इतिहास में महिलाओं की नेतृत्व भूमिका को दर्शाता है।
8. विशेषताएं और व्यक्तित्व
नेतृत्व और कूटनीति: इल्तुतमिश एक कुशल सेनापति, प्रशासक, और कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने मंगोलों जैसे शक्तिशाली शत्रुओं से बचने के लिए सावधानी बरती और आंतरिक विद्रोहों को कुशलता से दबाया।
उदारता और धार्मिक सहिष्णुता: इल्तुतमिश धार्मिक रूप से उदार थे। उन्होंने हिंदुओं और जैनियों के साथ सह-अस्तित्व की नीति अपनाई और स्थानीय परंपराओं का सम्मान किया।
शिक्षा और संस्कृति का संरक्षण: उनके दरबार में कई विद्वान और कवि थे, जिन्होंने फारसी साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा दिया।
9. ऐतिहासिक महत्व
इल्तुतमिश का शासनकाल दिल्ली सल्तनत के इतिहास में स्वर्णिम काल माना जाता है। उन्होंने न केवल सल्तनत को मजबूत किया, बल्कि इसे इस्लामी दुनिया में मान्यता दिलाई। उनकी नीतियों और सुधारों ने सल्तनत को एक स्थायी साम्राज्य बनाया, जो बाद में खिलजी, तुगलक, और अन्य वंशों के शासन का आधार बना। उनकी वास्तुकलात्मक कृतियां और प्रशासनिक व्यवस्था आज भी उनके योगदान को जीवित रखती हैं।
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