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Gulam Vansh
jp Singh 2025-05-23 13:56:38
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गुलाम वंश (1206-1290 ई.)

गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
गुलाम वंश (1206-1290 ई.) दिल्ली सल्तनत का प्रथम वंश था, जिसने भारत में इस्लामी शासन की नींव रखी। इसे
1. कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210)
पृष्ठभूमि: कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गोरी का विश्वसनीय दास और सेनापति था। गोरी की मृत्यु (1206) के बाद उसने स्वतंत्र रूप से दिल्ली पर शासन शुरू किया और गुलाम वंश की स्थापना की।
शासनकाल: ऐबक ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और सल्तनत की नींव रखी। उसने लाहौर और दिल्ली में शासन को संगठित करने का प्रयास किया। उसने कुतुब मीनार की नींव रखी, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा किया। यह मीनार दिल्ली में इस्लामी वास्तुकला का प्रतीक बनी। उसने दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण शुरू किया।
विजय: ऐबक ने हांसी, मेरठ, और रणथंभौर जैसे क्षेत्रों पर कब्जा किया। उसने राजपूत शासकों के विद्रोहों को दबाया।
मृत्यु: 1210 में लाहौर में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
मूल्यांकन: ऐबक को
2. इल्तुतमिश (1211-1236)
पृष्ठभूमि: इल्तुतमिश भी एक तुर्की दास था, जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने खरीदा था। वह ऐबक का दामाद था और उसकी मृत्यु के बाद सत्ता में आया।
शासनकाल:
प्रशासनिक सुधार: इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संगठक माना जाता है। उसने निम्नलिखित सुधार किए:
चांदी का टका और तांबे का जीतल: उसने सल्तनत में एकरूप मुद्रा प्रणाली शुरू की।
इक्ता प्रणाली: उसने भूमि को इक्ता के रूप में सैन्य अधिकारियों को बांटा, जिससे प्रशासन और सेना को मजबूती मिली।
चालीस का दल (चहलगान): उसने तुर्की अमीरों का एक समूह बनाया, जो सल्तनत के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
विजय: इल्तुतमिश ने ग्वालियर, रणथंभौर, मालवा, और भिलसा पर कब्जा किया। उसने बंगाल और बिहार में विद्रोहों को दबाया।
मंगोल खतरे का सामना: उसने मंगोल आक्रमणों को भारत से दूर रखने के लिए कूटनीति और सैन्य शक्ति का उपयोग किया।
खिलाफत से मान्यता: इल्तुतमिश ने बगदाद के खलीफा से
वास्तुकला: उसने कुतुब मीनार को पूरा किया और दिल्ली में सुल्तान गढ़ी का निर्माण करवाया।
मृत्यु: 1236 में उसकी मृत्यु हुई। उसने अपनी बेटी रजिया को उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जो एक विवादास्पद निर्णय था।
मूल्यांकन: इल्तुतमिश एक कुशल प्रशासक, सैन्य नेता, और कूटनीतिज्ञ था। उसने सल्तनत को एक मजबूत आधार प्रदान किया और मंगोल आक्रमणों से भारत की रक्षा की।
3. रजिया सुल्तान (1236-1240)
पृष्ठभूमि: रजिया इल्तुतमिश की बेटी थी और भारत की पहली महिला शासक बनी। इल्तुतमिश ने उसे अपने बेटों से अधिक योग्य समझकर उत्तराधिकारी बनाया।
शासनकाल:
प्रशासन: रजिया ने पुरुष वेश (कबा और कुलाह) में शासन किया और दरबार में परदा प्रथा को त्याग दिया। उसने जनता से सीधे संपर्क रखा और प्रशासन को मजबूत करने का प्रयास किया।
विरोध: तुर्की अमीरों (चहलगान) ने उसका विरोध किया, क्योंकि वे एक महिला शासक को स्वीकार नहीं करना चाहते थे। उसने अमीरों के विद्रोह को दबाने की कोशिश की।
याकूत के साथ विवाद: रजिया ने अपने विश्वसनीय हब्शी (अफ्रीकी) दास याकूत को उच्च पद दिया, जिससे तुर्की अमीर और असंतुष्ट हो गए।
विवाह और विद्रोह: अमीरों के दबाव में रजिया ने अल्तूनिया (भटिंडा के गवर्नर) से विवाह किया, लेकिन यह विद्रोह को रोक न सका।
मृत्यु: 1240 में कैथल के पास एक युद्ध में रजिया और अल्तूनिया की हत्या कर दी गई।
मूल्यांकन: रजिया एक साहसी और योग्य शासक थी, लेकिन तुर्की अमीरों की पुरुषवादी मानसिकता और आंतरिक कलह के कारण उसका शासन अल्पकालिक रहा। वह भारत के इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व है।
4. कमजोर उत्तराधिकारी (1240-1266)
रजिया के बाद गुलाम वंश में कई कमजोर शासक आए, जिनके शासनकाल में सल्तनत अस्थिर रही:
मुहम्मद बहराम शाह (1240-1242): रजिया का भाई, जिसका शासन अस्थिर रहा। उसे अमीरों ने हटा दिया।
अलाउद्दीन मसूद शाह (1242-1246): वह भी एक कमजोर शासक था, जिसे तुर्की अमीरों ने नियंत्रित किया।
नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266): वह एक शांतिप्रिय शासक था, लेकिन वास्तविक शक्ति उसके मंत्री बलबन के हाथों में थी। बलबन ने सल्तनत को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. गियासुद्दीन बलबन (1266-1287)
पृष्ठभूमि: बलबन एक तुर्की दास था, जो इल्तुतमिश के चालीस के दल का सदस्य था। उसने नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में वजीर के रूप में कार्य किया और 1266 में सुल्तान बना।
शासनकाल:
रक्त और लोहा की नीति: बलबन ने विद्रोहियों और डकैतों को कठोर दंड देकर सल्तनत को स्थिर किया। उसने बंगाल और दोआब क्षेत्र में विद्रोहों को कुचल दिया।
सुल्तान की सर्वोच्चता: उसने सुल्तान को
सैन्य सुधार: बलबन ने एक मजबूत सेना का गठन किया और मंगोल आक्रमणों को रोकने के लिए सीमाओं पर किलों का निर्माण करवाया।
प्रशासन: उसने इक्ता प्रणाली को और सुदृढ़ किया और जासूसी व्यवस्था (बरिद) को मजबूत किया ताकि अमीरों और गवर्नरों पर नजर रखी जा सके।
मंगोल खतरे का सामना: बलबन ने मंगोल आक्रमणों को प्रभावी ढंग से रोका और भारत को उनकी तबाही से बचाया।
मृत्यु: 1287 में उसकी मृत्यु हुई। उसने अपने पोते कैखुसरो को उत्तराधिकारी नियुक्त किया, लेकिन अमीरों ने कैकुबाद को सुल्तान बनाया।
मूल्यांकन: बलबन एक कठोर लेकिन प्रभावी शासक था। उसने सल्तनत को मजबूत किया और तुर्की अमीरों के प्रभाव को कम किया। उसकी नीतियों ने सल्तनत को स्थिरता प्रदान की।
6. कैकुबाद और गुलाम वंश का अंत (1287-1290)
कैकुबाद (1287-1290): बलबन का पोता, जो एक अयोग्य और विलासप्रिय शासक था। उसका शासनकाल अस्थिर रहा, और तुर्की अमीरों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष बढ़ गया।
खिलजी क्रांति: 1290 में जलालुद्दीन खिलजी ने कैकुबाद की हत्या कर सत्ता हथिया ली और खिलजी वंश की स्थापना की, जिससे गुलाम वंश का अंत हुआ।
गुलाम वंश की विशेषताएँ
1. प्रशासन: गुलाम वंश ने सल्तनत की नींव रखी और इक्ता प्रणाली शुरू की। सुल्तान सर्वोच्च शक्ति था, और प्रशासन में तुर्की अमीरों का प्रभाव था। इल्तुतमिश और बलबन ने केंद्रीकृत शासन को मजबूत किया।
2. सैन्य संगठन: गुलाम वंश की सेना मुख्य रूप से तुर्की और दास सैनिकों पर आधारित थी। बलबन ने मंगोल आक्रमणों के खिलाफ सीमाओं को सुरक्षित किया।
3. वास्तुकला: कुतुब मीनार, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, और सुल्तान गढ़ी जैसे स्मारक इस दौर की देन हैं। इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की शुरुआत हुई।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: हिंदू-मुस्लिम संस्कृतियों का प्रारंभिक मिश्रण हुआ। सूफी संतों (जैसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) का प्रभाव बढ़ा।
5. अर्थव्यवस्था: कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी, और भूमि कर (खराज) मुख्य आय का स्रोत था। इल्तुतमिश ने मुद्रा प्रणाली को संगठित किया।
गुलाम वंश का महत्व
गुलाम वंश ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की और भारत में इस्लामी शासन को स्थापित किया। इसने प्रशासनिक, सैन्य, और सांस्कृतिक नींव रखी, जो बाद के वंशों (खिलजी, तुगलक) ने आगे बढ़ाई। इल्तुतमिश और बलबन जैसे शासकों ने सल्तनत को मंगोल आक्रमणों से बचाया और इसे एक मजबूत साम्राज्य बनाया।
पतन के कारण
कमजोर उत्तराधिकारी (रजिया के बाद)।
तुर्की अमीरों (चहलगान) के बीच सत्ता का संघर्ष।
जलालुद्दीन खिलजी द्वारा सत्ता पर कब्जा।
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