Eastern Ganga Dynasty
jp Singh
2025-05-23 12:08:48
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ओडिशा का पूर्वी गंग वंश (1038 ईस्वी से 1435 ईस्वी तक )
ओडिशा का पूर्वी गंग वंश (1038 ईस्वी से 1435 ईस्वी तक )
ओडिशा का पूर्वी गंग वंश (Eastern Ganga Dynasty), जिसे पुर्ब गंग, रुधि गंग या प्राच्य गंग के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मध्यकालीन राजवंश था। इसने मुख्य रूप से कलिंग क्षेत्र (वर्तमान ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों) पर 5वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक शासन किया। इस वंश ने कला, संस्कृति, वास्तुकला और धर्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, विशेष रूप से पुरी के जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। नीचे पूर्वी गंग वंश का विस्तृत विवरण और इसके प्रमुख राजाओं का उल्लेख किया गया है।
पूर्वी गंग वंश का ऐतिहासिक परिदृश्य
उत्पत्ति: पूर्वी गंग वंश की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ स्रोत इसे पश्चिमी गंग वंश (कर्नाटक) से जोड़ते हैं, जबकि अन्य इसे स्वतंत्र मानते हैं। यह वंश चंद्रवंशी क्षत्रियों से संबंधित माना जाता है।
हासिक परिदृश्य
शासनकाल: पूर्वी गंग वंश का प्रारंभिक शासन 5वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ, लेकिन इसकी वास्तविक शक्ति 11वीं शताब्दी में अनंतवर्मन चोडगंगदेव के समय में उभरी। यह वंश 1038 ईस्वी से 1435 ईस्वी तक अपने चरम पर रहा।
क्षेत्र: इस वंश का शासन कलिंग (वर्तमान ओडिशा), उत्तरी आंध्र प्रदेश और दक्षिणी पश्चिम बंगाल तक फैला था। इसकी राजधानी प्रारंभ में कालिंगनगर (वर्तमान श्रीकाकुलम, आंध्र प्रदेश) थी, जो बाद में कटक में स्थानांतरित हुई।
सांस्कृतिक योगदान: पूर्वी गंग वंश ने वैष्णव धर्म, खासकर जगन्नाथ पूजा को बढ़ावा दिया। इस वंश के शासकों ने मंदिर निर्माण, साहित्य और कला को संरक्षण प्रदान किया।
पूर्वी गंग वंश के प्रमुख राजा और उनका विवरण
पूर्वी गंग वंश के कई राजाओं ने अपने शासनकाल में महत्वपूर्ण योगदान दिया। नीचे प्रमुख राजाओं और उनके कार्यों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. इंद्रवर्मन प्रथम (Indravarman I) (लगभग 5वीं शताब्दी):
शासनकाल: 5वीं शताब्दी के अंत में।
विवरण: इंद्रवर्मन प्रथम को पूर्वी गंग वंश का प्रारंभिक शासक माना जाता है। उनके शासनकाल में वंश ने कलिंग क्षेत्र में अपनी नींव रखी।
योगदान: उन्होंने कलिंग क्षेत्र में स्थानीय जनजातियों को एकजुट कर शासन व्यवस्था को मजबूत किया। उनके समय में वंश की सैन्य और प्रशासनिक नींव रखी गई।
2. सैंयभिता माधववर्मन (Sainyabhita Madhavavarman) (7वीं शताब्दी)
शासनकाल: मध्य 7वीं शताब्दी।
विवरण: माधववर्मन अपने अश्वमेध यज्ञ के लिए प्रसिद्ध थे, जो उनकी शक्ति और वैदिक परंपराओं के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
योगदान: उन्होंने पूर्वी गंग वंश की स्थिति को और मजबूत किया और पड़ोसी क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
3. वज्रहस्त तृतीय (Vajrahasta III) (8वीं शताब्दी)
शासनकाल: 8वीं शताब्दी।
विवरण: वज्रहस्त तृतीय ने त्रिकलिंगाधिपति (तीन कलिंगों का शासक) की उपाधि धारण की, जो उनके व्यापक शासन क्षेत्र को दर्शाता है।
योगदान: उनके शासनकाल में पूर्वी गंग वंश ने अपनी क्षेत्रीय सीमाओं का विस्तार किया और स्थानीय शासकों पर नियंत्रण स्थापित किया।
4. अनंतवर्मन वज्रहस्त पंचम (Anantavarman Vajrahasta V) (1038 ईस्वी):
शासनकाल: 1038 ईस्वी से।
विवरण: अनंतवर्मन वज्रहस्त पंचम ने पूर्वी गंग वंश को औपचारिक रूप से स्थापित किया और इसे एक प्रमुख शक्ति बनाया।
योगदान: उन्होंने प्रशासनिक सुधार किए और कलिंग क्षेत्र में स्थिरता लाई। उनके शासनकाल में वंश की सैन्य शक्ति बढ़ी।
5. अनंतवर्मन चोडगंगदेव (Anantavarman Chodagangadeva) (1078–1147 ईस्वी)
शासनकाल: 1078–1147 ईस्वी।
विवरण: चोडगंगदेव पूर्वी गंग वंश के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली शासक थे। उन्होंने उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) में गंग वंश की नींव को और मजबूत किया और कटक को राजधानी बनाया।
जगन्नाथ मंदिर: उन्होंने पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण शुरू किया, जो वैष्णव धर्म का एक प्रमुख केंद्र बना।
सैन्य विजय: चोडगंगदेव ने बंगाल, आंध्र प्रदेश और पड़ोसी क्षेत्रों में सैन्य अभियान चलाए, जिससे गंग वंश का प्रभाव बढ़ा।
प्रशासन: उन्होंने एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसमें स्थानीय सामंतों को नियंत्रित किया गया।
6. नरसिंहदेव प्रथम (Narasimhadeva I) (1238–1264 ईस्वी)
शासनकाल: 1238–1264 ईस्वी।
विवरण: नरसिंहदेव प्रथम, जिन्हें लंगुला नरसिंहदेव के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वी गंग वंश के स्वर्ण युग के शासक थे।
कोणार्क सूर्य मंदिर: उन्होंने कोणार्क में विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
सैन्य शक्ति: नरसिंहदेव ने तुर्की आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया और बंगाल के सुल्तानों को पराजित किया।
कला और संस्कृति: उनके शासनकाल में ओडिशा की कला, वास्तुकला और साहित्य का अभूतपूर्व विकास हुआ।
7. भानुदेव चतुर्थ (Bhanudeva IV) (1414–1435 ईस्वी)
शासनकाल: 1414–1435 ईस्वी।
विवरण: भानुदेव चतुर्थ पूर्वी गंग वंश के अंतिम प्रमुख शासक थे। उनके शासनकाल में वंश की शक्ति कमजोर होने लगी थी।
योगदान: उन्होंने गंग वंश की परंपराओं को बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन गजपति शासकों और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के उदय के कारण वंश का पतन हो गया।
8. गजपति नीलमणि पट्टमहादेई (Gajapati Neelamani Pattamahadei):
शासनकाल: 15वीं शताब्दी।
विवरण: नीलमणि पट्टमहादेई एक रानी थीं, जिनका उल्लेख सिमंचलम (विशाखापत्तनम) में एक लोहे के स्तंभ पर उत्कीर्ण ओडिया शिलालेख में मिलता है।
योगदान: उनके शासनकाल में ओडिया संस्कृति और भाषा को बढ़ावा मिला।
पूर्वी गंग वंश का पतन
अंत: पूर्वी गंग वंश का पतन 1435 ईस्वी के आसपास हुआ, जब गजपति वंश (सूर्यवंशी गजपति) ने सत्ता पर कब्जा कर लिया।
कारण: आंतरिक कमजोरियां और उत्तराधिकार विवाद। गजपति शासकों और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों, जैसे विजयनगर साम्राज्य और बंगाल के सुल्तानों का उदय। बाहरी आक्रमणों, विशेष रूप से तुर्की और मुस्लिम शासकों के दबाव ने वंश को कमजोर किया।
पूर्वी गंग वंश का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक योगदान
1. वास्तुकला:
जगन्नाथ मंदिर, पुरी: अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने इस मंदिर की नींव रखी, जो वैष्णव धर्म का एक प्रमुख केंद्र बना।
कोणार्क सूर्य मंदिर: नरसिंहदेव प्रथम द्वारा निर्मित यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
2. धर्म: पूर्वी गंग वंश ने वैष्णव धर्म, विशेष रूप से जगन्नाथ पूजा को बढ़ावा दिया। उन्होंने बौद्ध और जैन धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया।
3. कला और साहित्य: इस वंश के शासनकाल में ओडिया भाषा और साहित्य का विकास हुआ। शिलालेखों और साहित्यिक कार्यों में ओडिया संस्कृति की झलक मिलती है।
4. सैन्य शक्ति: पूर्वी गंग वंश ने तुर्की आक्रमणों का 250 वर्षों तक सफलतापूर्वक सामना किया, जो उनकी सैन्य शक्ति को दर्शाता है।
5. प्रशासन: वंश ने एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसमें सामंतों और स्थानीय शासकों को नियंत्रित किया गया।
ऐतिहासिक स्रोत और विवाद
स्रोत: पूर्वी गंग वंश के बारे में जानकारी शिलालेखों (जैसे सिमंचलम शिलालेख), मदल पंजी (जगन्नाथ मंदिर का इतिहास), और अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों से प्राप्त होती है।
विवाद: वंश की उत्पत्ति और प्रारंभिक इतिहास के बारे में स्पष्ट दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हैं, जिसके कारण कुछ तथ्यों पर इतिहासकारों में मतभेद है।
रातात्विक साक्ष्य: कोणार्क और पुरी के मंदिर, साथ ही विभिन्न शिलालेख, इस वंश के ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित करते हैं।
Conclusion
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