paramaar vansh
jp Singh
2025-05-23 10:16:13
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
परमार वंश 800 ई. से 1305 ई.
परमार वंश 800 ई. से 1305 ई.
परमार वंश, जिसे धार वंश के नाम से भी जाना जाता है, मध्यकालीन भारत का एक प्रमुख राजपूत वंश था, जो मुख्य रूप से मालवा क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) में शासन करता था। उनकी राजधानी धार (मध्य प्रदेश) थी, और वे अपनी सैन्य शक्ति, कला, साहित्य और स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध थे। परमार वंश का शासन 9वीं से 13वीं शताब्दी तक अपने चरम पर रहा। नीचे मालवा के परमार वंश और उनके शासकों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
1. परमार वंश: उत्पत्ति और प्रारंभिक इतिहास
उत्पत्ति: परमार वंश की उत्पत्ति के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, परमार अग्निकुल राजपूतों में से एक थे, जो माउंट आबू में एक यज्ञ से अग्नि द्वारा उत्पन्न हुए। कुछ स्रोत उन्हें सूर्यवंशी या चंद्रवंशी क्षत्रिय भी मानते हैं।
प्रारंभिक केंद्र: परमारों का प्रारंभिक शासन मालवा क्षेत्र में था, और उनकी राजधानी धार थी। बाद में, उनके प्रभाव का विस्तार गुजरात, राजस्थान और मध्य भारत के अन्य हिस्सों तक हुआ।
संस्थापक: उपेंद्र राज (8वीं-9वीं शताब्दी) को परमार वंश का संस्थापक माना जाता है। उनके समय में परमार एक छोटा सामंती राज्य था।
काल: परमारों का शासन 9वीं से 13वीं शताब्दी तक रहा, हालाँकि बाद में वे दिल्ली सल्तनत और अन्य शक्तियों के अधीन कमजोर हो गए।
2. प्रमुख शासक और उनके योगदान
परमार वंश के कई शासकों ने अपनी वीरता, प्रशासनिक कुशलता और सांस्कृतिक योगदान से इतिहास में नाम कमाया। यहाँ प्रमुख शासकों का विस्तृत विवरण है:
1. सियक II (सियक हरिराज, 949–972)
शासन: सियक II परमार वंश के पहले प्रमुख शासक थे, जिन्होंने वंश को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।
विजय: सियक II ने राष्टकूट शासक कृष्ण III को पराजित किया और मालवा में परमारों की स्वतंत्रता स्थापित की। उन्होंने धार को अपनी राजधानी बनाया और पड़ोसी राज्यों के खिलाफ अपने क्षेत्र का विस्तार किया।
महत्व: सियक II ने परमार वंश को मालवा में एक शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित किया।
2. मुंज (वाक्पति II, 972–990)
शासन: मुंज परमार वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक थे, जिन्हें उनकी सैन्य विजय और साहित्यिक संरक्षण के लिए जाना जाता है।
विजय: मुंज ने चालुक्यों, चेदियों और गुर्जर-प्रतिहारों के खिलाफ कई युद्ध लड़े। उन्होंने मालवा के पड़ोसी क्षेत्रों, जैसे कालिंजर और गुजरात, पर आक्रमण किए। हालांकि, चालुक्य शासक तैलप II के खिलाफ युद्ध में उन्हें हार का सामना
सांस्कृतिक योगदान: मुंज स्वयं एक कवि और विद्वान थे। उन्हें
महत्व: मुंज ने परमार वंश को सैन्य और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया।
3. भोजदेव (भोज I, 1010–1055)
शासन: भोजदेव परमार वंश के सबसे महान शासक थे, जिन्हें
विजय: भोज ने मालवा के पड़ोसी राज्यों, जैसे चालुक्य, चेदि, कालचुरि और गुर्जर-प्रतिहार, के खिलाफ कई युद्ध लड़े। उन्होंने कोंकण, गुजरात और मालवा के कुछ हिस्सों पर कब्जा किया। महमूद गजनवी के आक्रमणों का भी प्रतिरोध किया, हालाँकि गजनवी ने मालवा पर हमला किया था।
सांस्कृतिक योगदान: साहित्य: भोज स्वयं एक महान विद्वान और लेखक थे। उन्होंने कई ग्रंथ लिखे, जिनमें शामिल हैं
युक्तिकल्पतरु: शासन और युद्ध कला प
समरांगणसूत्रधार: स्थापत्य और वास्तुशास्त्र पर।
शृंगारप्रकाश: साहित्य और काव्यशास्त्र प
आयुर्वेदसर्वस्व: आयुर्वेद पर।
शिक्षा: भोज ने धार में एक संस्कृत विश्वविद्यालय (भोजशाला) स्थापित किया, जो विद्या का प्रमुख केंद्र था।
स्थापत्य: भोज ने भोजपुर में भोजेश्वर मंदिर (शिव मंदिर) का निर्माण करवाया, जो अपनी विशाल शिवलिंग और स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। मालवा में कई तालाबों और जल संरचनाओं का निर्माण करवाया, जैसे भोपाल का ऊपरी ताल (भोज ताल)।
महत्व: राजा भोज को उनकी विद्वता, सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक योगदान के लिए
4. जयसिंह (1120–1143)
शासन: जयसिंह ने परमार वंश की शक्ति को पुनर्जनन करने की कोशिश की, जब यह कमजोर होने लगा था।
विजय: उन्होंने चालुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज के खिलाफ युद्ध लड़े। मालवा में परमार शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया।
महत्व: जयसिंह ने परमार वंश को कुछ समय तक स्थिर रखा, लेकिन उनके बाद वंश कमजोर होने लगा।
5. परमारों का पतन
शासक: 13वीं शताब्दी तक परमार वंश कमजोर हो गया था। अंतिम प्रमुख शासक भोज II (1285–1305) थे।
पतन: 1305 में दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने धार पर हमला किया और परमार शासन को समाप्त कर दिया। मालवा दिल्ली सल्तनत के अधीन आ गया।
3. परमार वंश की शाखाएँ
परमार वंश की कई शाखाएँ थीं, जो विभिन्न क्षेत्रों में शासन करती थीं
मालवा के परमार: मुख्य शाखा, जिसकी राजधानी धार थी।
आबू के परमार: माउंट आबू और आसपास के क्षेत्रों में शासन।
चंद्रावती के परमार: गुजरात के कुछ हिस्सों में शा
वागड़ के परमार: दक्षिणी राजस्थान और गुजरात में।
जालौर के परमार: कुछ समय तक जालौर में शासन किया।
4. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान
परमार वंश ने कला, साहित्य और स्थापत्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया
भोजेश्वर मंदिर (भोजपुर): राजा भोज द्वारा निर्मित, यह मंदिर अपनी विशाल संरचना और शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है।
भोजशाला (धार): एक संस्कृत विद्यालय और मंदिर, जो शिक्षा और संस्कृति का केंद्र था। वर्तमान में यह सरस्वती मंदिर और कमाल मौला मस्जिद के रूप में विवादास्पद है। उदयपुर का उदयेश्वर मंदिर: परमार शासकों द्वारा निर्मित एक अन्य महत्वपूर्ण मंदिर। जल संरचनाएँ: राजा भोज ने भोपाल में भोज ताल (ऊपरी ताल) का निर्माण करवाया, जो जल प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण है।
साहित्य: राजा भोज के लेखन, जैसे समरांगणसूत्रधार और शृंगारप्रकाश, भारतीय साहित्य और वास्तुशास्त्र में महत्वपूर्ण हैं। परमार दरबार में कई कवियों और विद्वानों को संरक्षण मिला, जैसे धनपाल और पद्मगुप्त।
धर्म: परमार शासक मुख्य रूप से शैव (शिव भक्त) थे, लेकिन उन्होंने जैन और वैष्णव धर्म को भी संरक्षण दिया।
5. परमार और चौहान वंश का संबंध
चूंकि आपने पहले चौहान वंश के बारे में पूछा था, यह उल्लेखनीय है कि परमार और चौहान वंश के बीच कई बार युद्ध और गठबंधन हुए:
युद्ध: पृथ्वीराज चौहान ने परमारों के खिलाफ कुछ युद्ध लड़े, विशेष रूप से मालवा क्षेत्र में प्रभाव के लिए।
गठबंधन: कुछ अवसरों पर, परमार और चौहान शासकों ने विदेशी आक्रमणकारियों, जैसे महमूद गजनवी और मुहम्मद गोरी, के खिलाफ गठबंधन किया।
सांस्कृतिक समानताएँ: दोनों वंश राजपूत थे और अपनी वीरता, कला और धार्मिक सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध थे।
6. पतन
दिल्ली सल्तनत का आक्रमण: 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने धार पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद परमार शासन समाप्त हो गया।
आंतरिक कमजोरी: उत्तराधिकार विवाद और आंतरिक कलह ने परमारों को कमजोर किया।
पड़ोसी राज्यों का दबाव: चालुक्य, चंदेल और चौहान जैसे पड़ोसी राज्यों से लगातार युद्धों ने परमारों की शक्ति को कम किया।
मालवा का अधिग्रहण: परमारों के पतन के बाद मालवा दिल्ली सल्तनत, और बाद में मालवा सल्तनत, के अधीन आ गया।
7. आधुनिक संदर्भ
वंशज: परमार वंश के वंशज आज भी मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में राजपूत समुदाय के रूप में मौजूद हैं।
सांस्कृतिक प्रभाव: राजा भोज की कहानियाँ और उनके योगदान मालवा और बुंदेलखंड की लोककथाओं में जीवित हैं।
स्थापत्य धरोहर: भोजेश्वर मंदिर और भोज ताल आज भी पर्यटकों और इतिहासकारों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
8. महत्वपूर्ण तथ्य
सैन्य शक्ति: परमारों ने महमूद गजनवी और चालुक्यों जैसे शक्तिशाली शत्रुओं का सामना किया।
साहित्यिक योगदान: राजा भोज के ग्रंथ भारतीय साहित्य और वास्तुशास्त्र में आज भी प्रासंगिक हैं।
स्थापत्य: भोजेश्वर मंदिर और भोजशाला परमार स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
धार्मिक सहिष्णुता: परमारों ने हिंदू, जैन और वैष्णव धर्म को संरक्षण दिया।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781