Chandela dynasty
jp Singh
2025-05-23 07:47:03
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चंदेल वंश
चंदेल वंश
चंदेल वंश: उत्पत्ति और प्रारंभिक इतिहास
उत्पत्ति: चंदेल वंश को राजपूत वंश माना जाता है, और उनकी उत्पत्ति के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, चंदेल चंद्रवंशी क्षत्रिय थे, जो चंद्रमा (सोमवंश) से अपना वंशज मानते थे। कुछ स्रोत उन्हें गोंड या अन्य स्थानीय जनजातियों से जोड़ते हैं, जो बाद में राजपूत संस्कृति में समाहित हो गए।
प्रारंभिक केंद्र: चंदेलों का प्रारंभिक केंद्र खजुराहो (वर्तमान मध्य प्रदेश) था, और उनका शासन क्षेत्र जेजाकभुक्ति (बुंदेलखंड) कहलाता था।
संस्थापक: नन्नुक को चंदेल वंश का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने 9वीं शताब्दी में खजुराहो में शासन स्थापित किया।
काल: चंदेल वंश का शासन 9वीं से 13वीं शताब्दी तक रहा, हालाँकि 13वीं शताब्दी के बाद उनकी शक्ति कमजोर हो गई।
प्रमुख शासक और उनके योगदान
चंदेल वंश के कई शासकों ने अपनी सैन्य शक्ति, प्रशासनिक कुशलता और सांस्कृतिक योगदान से इतिहास में नाम कमाया। यहाँ प्रमुख शासकों का विस्तृत विवरण है:
1. नन्नुक (9वीं शताब्दी)
शासन: नन्नुक ने चंदेल वंश की नींव रखी। उनके समय में चंदेल एक छोटा सामंती राज्य था। योगदान: उन्होंने खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया और पड़ोसी क्षेत्रों में प्रभाव बढ़ाया। महत्व: नन्नुक ने चंदेल वंश को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करने की आधारशिला रखी।
2. यशोवर्मन (लक्ष्मणवर्मन, 925–950)
शासन: यशोवर्मन चंदेल वंश के पहले प्रमुख शासक थे, जिन्होंने वंश को शक्तिशाली बनाया। विजय: उन्होंने कालिंजर किले पर कब्जा किया, जो चंदेलों का एक महत्वपूर्ण सैन्य गढ़ बना। पड़ोसी राज्यों, जैसे प्रतिहारों और राठौड़ों, के खिलाफ युद्ध किए। सांस्कृतिक योगदान: यशोवर्मन ने खजुराहो में लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया, जो खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर समूह का पहला प्रमुख मंदिर था। यह मंदिर विष्णु को समर्पित है और चंदेल स्थापत्य की उत्कृष्टता को दर्शाता है। महत्व: यशोवर्मन ने चंदेल वंश को एक सांस्कृतिक और सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित किया।
3. धंगदेव (950–999)
शासन: धंगदेव चंदेल वंश के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थे। विजय: उन्होंने प्रतिहारों, चेदियों और अन्य पड़ोसी राज्यों के खिलाफ अपने क्षेत्र का विस्तार किया। धंगदेव ने अपने शासनकाल में जेजाकभुक्ति को एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य बनाया। सांस्कृतिक योगदान: खजुराहो में विश्वनाथ मंदिर और पार्श्वनाथ मंदिर (जैन मंदिर) का निर्माण उनके समय में हुआ। धंगदेव ने हिंदू और जैन धर्म दोनों को संरक्षण दिया, जिससे खजुराहो एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना। महत्व: धंगदेव के शासनकाल में चंदेल वंश अपनी चरम शक्ति और सांस्कृतिक वैभव पर था।
4. विद्याधर (1003–1035)
शासन: विद्याधर ने चंदेल वंश की शक्ति को और मजबूत किया। विजय: उन्होंने महमूद गजनवी के आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। 1019 में महमूद ने कालिंजर पर हमला किया, लेकिन विद्याधर ने उसका प्रतिरोध किया और समझौता किया। चालुक्यों और परमारों के खिलाफ भी युद्ध किए। सांस्कृतिक योगदान: विद्याधर ने खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया, जो खजुराहो मंदिर समूह का सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर शिव को समर्पित है और अपनी जटिल नक्काशी और स्थापत्य के लिए यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। महत्व: विद्याधर का शासनकाल चंदेल वंश का स्वर्ण युग माना जाता है।
5. परमर्दिदेव (1165–1203)
शासन: परमर्दिदेव चंदेल वंश के अंतिम प्रमुख शासक थे। युद्ध: उन्होंने पृथ्वीराज चौहान (चौहान वंश) के साथ गठबंधन किया और मुहम्मद गोरी के खिलाफ युद्ध लड़ा। 1182 में पृथ्वीराज और परमर्दिदेव ने मिलकर चंदेल क्षेत्र पर हमला करने वाले गोरी को हराया। हालांकि, 1203 में कुतुबुद्दीन ऐबक (दिल्ली सल्तनत) ने कालिंजर पर हमला किया और परमर्दिदेव को पराजित किया। पतन: परमर्दिदेव की हार के बाद चंदेल वंश की शक्ति कमजोर हो गई, और उनका शासन बुंदेलखंड के छोटे क्षेत्रों तक सीमित हो गया।
चंदेल वंश की शाखाएँ और क्षेत्र
मुख्य केंद्र: खजुराहो, कालिंजर, और महोबा।
क्षेत्र: चंदेलों का शासन बुंदेलखंड (जेजाकभुक्ति) में केंद्रित था, जो वर्तमान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों को कवर करता था।
शाखाएँ: चंदेल वंश की कोई प्रमुख शाखाएँ नहीं थीं, लेकिन बाद में उनके वंशजों ने बुंदेलखंड में छोटे-छोटे रियासतों (जैसे ओरछा और दतिया) में शासन किया, जिन्हें
सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान
चंदेल वंश का सबसे बड़ा योगदान उनकी स्थापत्य कला और सांस्कृतिक उपलब्धियाँ हैं:
खजुराहो मंदिर समूह:
खजुराहो के मंदिर चंदेल वंश की स्थापत्य कला का सर्वोच्च उदाहरण हैं। ये मंदिर 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बनाए गए और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।
प्रमुख मंदिर:
लक्ष्मण मंदिर (विष्णु को समर्पित, यशोवर्मन द्वारा निर्मित)।
कंदरिया महादेव मंदिर (शिव को समर्पित, विद्याधर द्वारा निर्मित)।
विश्वनाथ मंदिर (शिव को समर्पित)।
पार्श्वनाथ मंदिर और आदिनाथ मंदिर (जैन मंदिर)।
मंदिरों की विशेषताएँ:
जटिल नक्काशी, जिसमें देवी-देवता, अप्सराएँ, मिथुन (कामुक मूर्तियाँ), और दैनिक जीवन के दृश्य शामिल हैं। नागर शैली का स्थापत्य, जिसमें ऊँचे शिखर और मंडप शामिल हैं। ये मंदिर हिंदू और जैन धर्म के प्रति चंदेलों की सहिष्णुता को दर्शाते हैं।
कालिंजर किला:
कालिंजर चंदेलों का एक महत्वपूर्ण सैन्य गढ़ था। यह मंदिरों और किलों के संयोजन के लिए प्रसिद्ध है। कालिंजर में नीलकंठ मंदिर (शिव को समर्पित) चंदेल स्थापत्य का एक और उदाहरण है।
साहित्य और कला:
चंदेल शासकों ने संस्कृत साहित्य और कला को संरक्षण दिया। उनके शासनकाल में कई शिलालेख और अभिलेख लिखे गए, जो उनकी विजय और धार्मिक गतिविधियों का विवरण देते हैं।
धार्मिक सहिष्णुता: चंदेलों ने हिंदू और जैन धर्म को समान रूप से संरक्षण दिया, जिससे खजुराहो एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना।
पतन
चंदेल वंश का पतन निम्नलिखित कारणों से हुआ:
दिल्ली सल्तनत का उदय:
1203 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद चंदेलों की शक्ति कमजोर हो गई। दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों ने चंदेलों को छोटे क्षेत्रों तक सीमित कर दिया।
आंतरिक कमजोरी:
चंदेल शासकों के बीच उत्तराधिकार विवाद और आंतरिक कलह ने उनकी शक्ति को कमजोर किया।
पड़ोसी राज्यों का दबाव:
चंदेलों को चालुक्य, परमार और बाद में चौहानों जैसे पड़ोसी राज्यों से लगातार चुनौतियाँ मिलती रहीं।
बुंदेला उदय: चंदेलों के पतन के बाद उनके वंशजों ने बुंदेलखंड में छोटी रियासतें (जैसे ओरछा, दतिया) स्थापित कीं, जिन्हें बुंदेला राजपूत कहा गया।
आधुनिक संदर्भ
वंशज: चंदेल वंश के वंशज आज भी बुंदेलखंड क्षेत्र में राजपूत समुदाय के रूप में मौजूद हैं। बुंदेला राजपूत चंदेलों के प्रत्यक्ष वंशज माने जाते हैं।
खजुराहो का महत्व: खजुराहो मंदिर आज भी विश्व भर में पर्यटकों और इतिहासकारों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। ये मंदिर भारतीय कला और स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने हैं।
लोककथाएँ: चंदेल वंश की कहानियाँ और उनके मंदिरों की कथाएँ बुंदेलखंड की लोक संस्कृति में जीवित हैं।
चंदेल और चौहान वंश का संबंध
पृथ्वीराज चौहान और परमर्दिदेव: दोनों ने मुहम्मद गोरी के खिलाफ गठबंधन किया, लेकिन पृथ्वीराज की हार (तराइन का द्वितीय युद्ध, 1192) और परमर्दिदेव की हार (1203) ने दोनों वंशों को कमजोर किया।
क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा: चंदेल और चौहान दोनों ही मध्य और उत्तरी भारत में शक्तिशाली थे, जिसके कारण उनके बीच कई बार युद्ध हुए।
महत्वपूर्ण तथ्य
स्थापत्य: चंदेल वंश का सबसे बड़ा योगदान खजुराहो मंदिर हैं, जो भारतीय कला का प्रतीक हैं।
सैन्य शक्ति: चंदेलों ने महमूद गजनवी और दिल्ली सल्तनत जैसे शक्तिशाली आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया।
धार्मिक सहिष्णुता: हिंदू और जैन धर्म को समान संरक्षण देकर चंदेलों ने धार्मिक समन्वय को बढ़ावा दिया।
पतन का प्रभाव: चंदेलों के पतन ने बुंदेलखंड में छोटी रियासतों के उदय को प्रेरित किया।
Conclusion
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