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Chauhan dynasty
jp Singh 2025-05-23 07:37:55
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चौहान वंश

चौहान वंश
चौहान वंश
चौहान वंश, जिसे चहमान वंश के नाम से भी जाना जाता है, मध्यकालीन भारत का एक प्रमुख राजपूत वंश था, जिसने मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली के कुछ हिस्सों में शासन किया। यह वंश अपनी वीरता, शौर्य और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध रहा। चौहान वंश का इतिहास 7वीं शताब्दी से शुरू होता है और यह मध्यकाल तक प्रभावशाली रहा।
उत्पत्ति और प्रारंभिक इतिहास
मूल: चौहान वंश की उत्पत्ति के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि वे अग्निकुल राजपूतों में से एक हैं, जिनकी उत्पत्ति माउंट आबू के अग्निकुंड से हुई थी।
प्रारंभिक केंद्र: चौहानों का प्रारंभिक केंद्र सपादलक्ष (वर्तमान शाकम्भरी या सांभर, राजस्थान) था।
संस्थापक: वासुदेव को चौहान वंश का प्रारंभिक शासक माना जाता है, जिन्होंने 7वीं शताब्दी में सांभर में शासन स्थापित किया।
प्रमुख शासक
1. अजयराज चौहान:
अजयराज ने अजमेर को अपनी राजधानी बनाया और चौहान वंश को शक्ति प्रदान की। अजमेर का नाम उनके नाम पर पड़ा। उन्होंने अजमेर में कई किलों और मंदिरों का निर्माण करवाया।
2. विग्रहराज चतुर्थ (विशालदेव):
12वीं शताब्दी के मध्य में शासन किया। उन्होंने गुर्जर-प्रतिहारों और तोमरों को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया। संस्कृत नाटक
3. पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान):
परिचय: चौहान वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक, जिन्हें
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ
सांस्कृतिक योगदान: चौहानों ने कला, साहित्य और स्थापत्य को बढ़ावा दिया। अजमेर का तारागढ़ किला और कई मंदिर उनके योगदान के उदाहरण हैं।
सैन्य शक्ति: चौहानों ने कई पड़ोसी राजवंशों, जैसे चालुक्यों और तोमरों, के साथ युद्ध लड़े और अपनी सैन्य शक्ति का विस्तार किया।
प्रशासन: चौहानों ने कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की और सांभर झील जैसे जल प्रबंधन के कार्य किए।
पतन
तराइन के द्वितीय युद्ध (1192) में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद चौहान वंश का प्रभाव कमजोर हुआ। दिल्ली और अजमेर पर दिल्ली सल्तनत का कब्जा हो गया, लेकिन चौहान वंश की शाखाएँ रणथंभौर, जालौर और अन्य क्षेत्रों में शासन करती रहीं। रणथंभौर के हम्मीरदेव चौहान ने 13वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा, लेकिन अंततः हार गए।
वंश की शाखाएँ
रणथंभौर चौहान: हम्मीरदेव चौहान इस शाखा के प्रमुख शासक थे।
जालौर चौहान: कनहदेव चौहान ने इस क्षेत्र में शासन किया।
हाडा चौहान: बूंदी और कोटा के हाडा चौहान भी इस वंश की शाखा थे।
सांस्कृतिक प्रभाव
चौहान वंश ने राजपूत संस्कृति और परंपराओं को मजबूत किया।
आधुनिक संदर्भ
वंशज: चौहान वंश के वंशज आज भी राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में राजपूत समुदाय के रूप में मौजूद हैं। कई चौहान परिवार अपने गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करते हैं। लोककथाएँ: पृथ्वीराज चौहान और हम्मीरदेव की कहानियाँ राजस्थान की लोककथाओं और गीतों में जीवित हैं। सांस्कृतिक प्रभाव: चौहान वंश की वीरता और शौर्य को भारतीय इतिहास में राजपूत संस्कृति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
हम्मीरदेव चौहान (1282–1301, रनथम्भौर)
शासन: पृथ्वीराज की हार के बाद रनथम्भौर के चौहानों ने स्वतंत्र शासन स्थापित किया। हम्मीरदेव इस शाखा के सबसे प्रसिद्ध शासक थे।
विजय और युद्ध:
हम्मीरदेव ने अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ रनथम्भौर के किले में वीरतापूर्वक युद्ध किया। 1301 में अलाउद्दीन खिलजी ने रनथम्भौर पर आक्रमण किया, जिसमें हम्मीरदेव और उनके सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।
महत्व: हम्मीरदेव को राजपूत शौर्य और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। उनकी कहानी
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