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Tripartite Struggle
jp Singh 2025-05-23 07:26:36
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त्रिपक्षीय संघर्ष (Tripartite Struggle)

त्रिपक्षीय संघर्ष (Tripartite Struggle)
त्रिपक्षीय संघर्ष (Tripartite Struggle)
त्रिपक्षीय संघर्ष (Tripartite Struggle) भारतीय मध्यकालीन इतिहास में 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच कन्नौज के नियंत्रण के लिए तीन प्रमुख राजवंशों—गुर्जर-प्रतिहार, पाल, और राष्ट्रकूट—के बीच चला एक लंबा और महत्वपूर्ण संघर्ष था। यह संघर्ष भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी, पूर्वी, और दक्षिणी हिस्सों में प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ को दर्शाता है। कन्नौज, जो उस समय उत्तरी भारत का सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र था, इस संघर्ष का मुख्य लक्ष्य था। नीचे त्रिपक्षीय संघर्ष का विस्तृत विवरण दिया गया है, जो ऐतिहासिक स्रोतों, जैसे शिलालेख, अरब यात्रियों के विवरण, और आधुनिक शोध पर आधारित है। यह जानकारी आपके पिछले प्रश्नों (गुर्जर-प्रतिहार और पाल वंश) के संदर्भ में प्रासंगिक है।
1. त्रिपक्षीय संघर्ष का पृष्ठभूमि
समयावधि: लगभग 780-950 ई. तक, हालांकि इसका प्रभाव 10वीं शताब्दी के अंत तक देखा गया।
मुख्य कारण:
गुप्त साम्राज्य के पतन (6वीं शताब्दी) के बाद उत्तरी भारत में कोई केंद्रीकृत सत्ता नहीं रही। कन्नौज, जो गुप्त काल में एक महत्वपूर्ण केंद्र था, क्षेत्रीय शक्तियों के लिए प्रभुत्व का प्रतीक बन गया। कन्नौज की रणनीतिक स्थिति (गंगा-यमुना दोआब) और आर्थिक समृद्धि (व्यापार और कृषि) ने इसे आकर्षक बनाया। तीनों वंश—गुर्जर-प्रतिहार (पश्चिमी और उत्तरी भारत), पाल (पूर्वी भारत), और राष्ट्रकूट (दक्षिणी भारत)—भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बनने की होड़ में थे।
प्रमुख खिलाड़ी:
गुर्जर-प्रतिहार: मालवा, राजस्थान, और कन्नौज से संचालित, जिन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
पाल: बंगाल और बिहार से शासन करने वाले, जो बौद्ध धर्म के संरक्षक थे।
राष्ट्रकूट: दक्षिण भारत (दक्कन) से शासन करने वाले, जिन्होंने उत्तरी भारत में अपने प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश की।
2. त्रिपक्षीय संघर्ष की प्रमुख घटनाएँ
त्रिपक्षीय संघर्ष में कई युद्ध और बदलते गठबंधन शामिल थे, जो मुख्य रूप से कन्नौज के नियंत्रण पर केंद्रित थे। नीचे इसकी प्रमुख घटनाएँ समयानुक्रम में दी गई हैं:
(i) प्रारंभिक चरण (780-790 ई.)
वत्सराज (गुर्जर-प्रतिहार, 783-795 ई.):
गुर्जर-प्रतिहार शासक वत्सराज ने कन्नौज पर कब्जा कर लिया और वहाँ के आयुध वंश को पराजित किया। उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर उत्तरी भारत में प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश की। वत्सराज ने पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया, जिससे पालों का कन्नौज पर दावा कमजोर हुआ।
ध्रुव (राष्ट्रकूट, 780-793 ई.):
राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वत्सराज को पराजित किया और कन्नौज पर कब्जा कर लिया। ध्रुव ने धर्मपाल को भी हराया, जिससे राष्ट्रकूटों का प्रभाव उत्तरी भारत तक फैला। हालांकि, ध्रुव कन्नौज पर स्थायी नियंत्रण नहीं रख सके और दक्षिण लौट गए।
(ii) मध्य चरण (800-833 ई.)
नागभट्ट द्वितीय (गुर्जर-प्रतिहार, 800-833 ई.):
वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज को पुनः प्राप्त किया और आयुध वंश को पूरी तरह समाप्त कर दिया। उन्होंने धर्मपाल को भी पराजित किया। बकुला शिलालेख में नागभट्ट द्वितीय को
धर्मपाल (पाल, 770-810 ई.):
धर्मपाल ने कन्नौज पर पुनः दावा करने की कोशिश की, लेकिन नागभट्ट द्वितीय से हार गए। फिर भी, उन्होंने बंगाल और बिहार में अपनी स्थिति को मजबूत किया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। धर्मपाल ने अपने पुत्र देवपाल के लिए एक मजबूत आधार छोड़ा।
(iii) चरमोत्कर्ष (810-850 ई.)
देवपाल (पाल, 810-850 ई.):
देवपाल ने पाल साम्राज्य को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया। उन्होंने प्राग्ज्योतिषपुर (असम) और उत्कल (ओडिशा) पर विजय प्राप्त की, जैसा कि बदामी शिलालेख में उल्लेख है। देवपाल ने कन्नौज पर दावा किया, लेकिन गुर्जर-प्रतिहारों के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा जारी रही। अरब यात्री सुलेमान ने उनके साम्राज्य की समृद्धि की प्रशंसा की।
मिहिर भोज (गुर्जर-प्रतिहार, 836-885 ई.):
मिहिर भोज ने गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचाया। उन्होंने कन्नौज को स्थायी रूप से प्रतिहार नियंत्रण में रखा और पालों व राष्ट्रकूटों को पराजित किया। ग्वालियर शिलालेख में मिहिर भोज को
राष्ट्रकूट: इस दौरान राष्ट्रकूट शासक (जैसे अमोघवर्ष) ने कन्नौज पर कई हमले किए, लेकिन मिहिर भोज के सामने उनकी सफलता सीमित रही।
(iv) अंतिम चरण (900-950 ई.)
राष्ट्रकूट की अंतिम जीत: राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने 916 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर गुर्जर-प्रतिहारों को पराजित किया। इस हमले ने प्रतिहारों की शक्ति को कमजोर किया।
पालों का पुनर्जनन: महिपाल प्रथम (988-1038 ई.) ने पाल साम्राज्य को पुनर्जनन किया, लेकिन कन्नौज पर उनका नियंत्रण अस्थायी था।
पतन: 10वीं शताब्दी के अंत तक त्रिपक्षीय संघर्ष कमजोर पड़ गया, क्योंकि सभी तीन वंश आंतरिक समस्याओं और बाहरी आक्रमणों (जैसे महमूद गजनी) का सामना कर रहे थे।
3. त्रिपक्षीय संघर्ष का महत्व
कन्नौज का प्रतीकात्मक महत्व: कन्नौज उत्तरी भारत का सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र था। इस पर नियंत्रण ने विजेता वंश को
सैन्य और रणनीतिक प्रभाव: संघर्ष ने भारत में सामंतवादी व्यवस्था को मजबूत किया, क्योंकि प्रत्येक वंश ने अपने सामंतों और सहयोगियों पर निर्भरता दिखाई। अरब आक्रमणों (सिंध से पूर्व की ओर) को रोकने में गुर्जर-प्रतिहारों की भूमिका महत्वपूर्ण रही, जबकि पाल और राष्ट्रकूट ने अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रतिरोध को समर्थन दिया।
सांस्कृतिक योगदान:
गुर्जर-प्रतिहार: मंदिर निर्माण (जैसे खजुराहो) और संस्कृत साहित्य को बढ़ावा।
पाल: बौद्ध धर्म के संरक्षण में योगदान, नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों का विकास।
राष्ट्रकूट: जैन धर्म और द्रविड़ स्थापत्य (जैसे एलोरा के मंदिर) को बढ़ावा।
राजनीतिक परिणाम: त्रिपक्षीय संघर्ष ने भारत में केंद्रीकृत सत्ता की अनुपस्थिति को उजागर किया, जिसने बाद में 11वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणों (महमूद गजनी) के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
5. ऐतिहासिक स्रोत और विवाद
स्रोत:
शिलालेख: खालिमपुर ताम्रपत्र (पाल), ग्वालियर शिलालेख (प्रतिहार), और बदामी शिलालेख (राष्ट्रकूट) इस संघर्ष के प्रमुख स्रोत हैं।
अरब यात्री: सुलेमान और अल-मसूदी ने तीनों वंशों की शक्ति और समृद्धि का वर्णन किया।
आधुनिक शोध: रामशरण शर्मा, बी. पी. सिन्हा, और निहार रंजन राय जैसे इतिहासकारों ने इस संघर्ष का विश्लेषण किया।
विवाद:
कन्नौज पर नियंत्रण की अवधि को लेकर मतभेद है। कुछ इतिहासकार गुर्जर-प्रतिहारों को अंतिम विजेता मानते हैं (मिहिर भोज के समय), जबकि अन्य तर्क देते हैं कि कोई भी वंश स्थायी नियंत्रण नहीं रख सका।
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