Gurjara-Pratihara Dynasty: Mid 8th to 11th Century
jp Singh
2025-05-23 07:13:02
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
गुर्जर-प्रतिहार वंश: एक अवलोकन
गुर्जर-प्रतिहार वंश: एक अवलोकन
गुर्जर-प्रतिहार वंश: एक अवलोकन
गुर्जर-प्रतिहार वंश (मध्य 8वीं से 11वीं शताब्दी) भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन और मध्यकालीन दौर के बीच का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने मध्य-उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया। यह वंश अपनी सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक योगदान, और अरब आक्रमणों के खिलाफ प्रतिरोध के लिए जाना जाता है। नीचे वंश के प्रमुख पहलुओं का वर्णन है, जो उपलब्ध स्रोतों, जैसे विकिपीडिया और अन्य ऐतिहासिक लेखों, पर आधारित है।
1. उत्पत्ति और स्थापना
संस्थापक: गुर्जर-प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.) को माना जाता है, जिन्होंने 725 ई. के आसपास साम्राज्य की नींव रखी। हालाँकि, कुछ स्रोतों में हरिश्चन्द्र को वंश का आदि पुरुष माना जाता है, जिनकी क्षत्रिय पत्नी भद्रा से चार पुत्रों—भोगभट्ट, कक्क, रज्जिल, और दह—ने मंडोर को जीतकर वंश की शुरुआत की।
नाम की उत्पत्ति:
प्रारंभिक केंद्र: वंश ने शुरू में मंडोर (मारवाड़, राजस्थान) और भीनमाल (जालौर) से शासन किया, बाद में उज्जैन और कन्नौज को राजधानी बनाया।
2. प्रमुख शासक और उपलब्धियाँ
नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.):
अरब आक्रमणकारियों (उमय्यद ख़िलाफ़त) के खिलाफ सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया, विशेष रूप से सिंध के जुनैद और तामिन के नेतृत्व में। उनकी इस उपलब्धि ने भारत में इस्लाम के विस्तार को धीमा करने में मदद की। मेड़ता को राजधानी बनाया और गुजरात, मालवा, और राजपूताना के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित किया।
वत्सराज (783-795 ई.):
कन्नौज पर अधिकार किया और पाल वंश के धर्मपाल को पराजित किया। उन्होंने त्रिकोणीय संघर्ष (प्रतिहार, पाल, और राष्ट्रकूट) की शुरुआत की। राष्ट्रकूट शासक ध्रुव प्रथम से पराजित हुए, जिसके कारण कन्नौज और उज्जैन पर उनका नियंत्रण कमजोर हुआ।
नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.):
कन्नौज को पुनः प्राप्त किया और आयुध वंश को पराजित किया। बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी हराया। बकुला शिलालेख के अनुसार, उन्हें
मिहिर भोज (836-885 ई.):
गुर्जर-प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक, जिसके शासनकाल को स्वर्ण युग माना जाता है। उनका साम्राज्य हिमालय से बुंदेलखंड और उत्तर प्रदेश से गुजरात व काठियावाड़ तक फैला था। अरब यात्री सुलेमान ने मिहिर भोज की शक्ति और समृद्धि की प्रशंसा की, उन्हें
महेन्द्रपाल प्रथम (885-910 ई.):
मिहिर भोज के पुत्र, जिनके शासनकाल में साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। उनके दरबार में प्रसिद्ध कवि राजशेखर थे, जिन्होंने कई साहित्यिक रचनाएँ कीं।
महीपाल प्रथम (912-944 ई.):
राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय के आक्रमण (916 ई.) के बाद कन्नौज पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया। अरब यात्री अल-मसूदी ने उन्हें
3. सैन्य और सांस्कृतिक योगदान
सैन्य शक्ति:
गुर्जर-प्रतिहारों ने अरब आक्रमणों (सिंध से पूर्व की ओर) को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नागभट्ट प्रथम और मिहिर भोज को
सांस्कृतिक योगदान:
प्रतिहारों ने शिल्पकला और मंदिर निर्माण को बढ़ावा दिया। खजुराहो के मंदिर (यूनेस्को विश्व धरोहर) उनकी स्थापत्य शैली का उदाहरण हैं। ओसियाँ के जैन मंदिर और जोधपुर के महादेव मंदिर उनके शासनकाल में निर्मित हुए। मिहिर भोज और महेन्द्रपाल के दरबार में साहित्य और शिक्षा को प्रोत्साहन मिला। उद्योतन सूरी ने
समृद्धि: अरब यात्री सुलेमान और अल-मसूदी ने प्रतिहार साम्राज्य की समृद्धि और शक्ति की प्रशंसा की।
4. पतन
आंतरिक संघर्ष: महेन्द्रपाल की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार युद्ध (भोज द्वितीय बनाम महीपाल प्रथम) ने वंश को कमजोर किया।
राष्ट्रकूट आक्रमण: राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने 916 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर इसे ध्वस्त किया।
सामंतों की स्वतंत्रता: मालवा के परमार, बुंदेलखंड के चंदेल, हरियाणा के तोमर, और चौहान जैसे सामंत स्वतंत्र हो गए।
महमूद गजनी का आक्रमण: 1018 ई. में महमूद गजनी ने कन्नौज पर हमला किया, और राजा राज्यपाल को चंदेलों ने पकड़कर मार डाला।
अंतिम शासक: यशपाल (मृत्यु 1036 ई.) इस वंश का अंतिम राजा था, जिसके बाद वंश समाप्त हो गया।
5. विवाद और ऐतिहासिक बहस
जातीय उत्पत्ति: गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ (जैसे रमा शंकर त्रिपाठी, बैज नाथ पूरी) उन्हें गुर्जर जाति से जोड़ते हैं, जबकि अन्य (जैसे गौरीशंकर ओझा) उन्हें राजपूत मानते हैं।
शिलालेख और साक्ष्य: ग्वालियर शिलालेख में प्रतिहारों को लक्ष्मण के वंशज कहा गया, जबकि अरब यात्रियों (सुलेमान, अल-मसूदी) ने उन्हें
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781