Kalyani Chalukya (973-1200 AD)
jp Singh
2025-05-22 22:31:52
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कल्याणी चालुक्य (973-1200 ई.)
कल्याणी चालुक्य (973-1200 ई.)
कल्याणी चालुक्य (973-1200 ई.)
कल्याणी चालुक्य बादामी चालुक्य के वंशज थे, जिन्होंने राष्ट्रकूटों को पराजित कर अपनी शक्ति पुनः स्थापित की। उनकी राजधानी कल्याणी (वर्तमान बसवकल्याण, कर्नाटक) थी।
प्रमुख शासक:
1. तैलप द्वितीय (973-997 ई.):
कल्याणी चालुक्य वंश के संस्थापक। उन्होंने राष्ट्रकूट शासक खोट्टिग को पराजित कर कल्याणी में अपनी शक्ति स्थापित की। उनके शासनकाल में चालुक्य साम्राज्य ने पुनर्जनन प्राप्त किया।
2. सोमेश्वर प्रथम (1042-1068 ई.):
उन्होंने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया और चोल, पांड्य, और होयसाल शासकों के साथ युद्ध लड़े। उनके शासनकाल में चालुक्य साम्राज्य का विस्तार हुआ।
3. विक्रमादित्य षष्ठम (1076-1126 ई.):
कल्याणी चालुक्य वंश का सबसे महान शासक। उन्होंने चोल शासक कुलोत्तुंग चोल प्रथम के खिलाफ युद्ध लड़े और चालुक्य शक्ति को बनाए रखा। उनके शासनकाल में साहित्य और कला को प्रोत्साहन मिला। कन्नड़ कवि बिल्हण और संस्कृत विद्वान विज्ञानेश्वर (मिताक्षरा के लेखक) उनके दरबार में थे। उनके शासनकाल में मंदिर निर्माण और स्थापत्य कला का विकास हुआ।
4. सोमेश्वर तृतीय (1126-1138 ई.):
उनके शासनकाल में चालुक्य साम्राज्य ने स्थिरता बनाए रखी, लेकिन होयसाल और काकतिय जैसे क्षेत्रीय शक्तियों के उदय ने इसे कमजोर किया। वे एक विद्वान शासक थे और मानसोल्लास नामक ग्रंथ के लेखक थे, जो शासन, कला, और संस्कृति पर आधारित है।
5. सोमेश्वर चतुर्थ (1184-1200 ई.):
कल्याणी चालुक्य वंश का अंतिम शासक। उनके शासनकाल में होयसाल और यादव (सेवुण) शासकों ने चालुक्य क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद कल्याणी चालुक्य वंश समाप्त हो गया।
योगदान:
स्थापत्य: कल्याणी चालुक्य ने गदग, लक्कुंडी, और धारवाड़ में कई मंदिरों का निर्माण किया। काशी विश्वनाथ मंदिर (लक्कुंडी) और महादेव मंदिर (इटगी) उनके स्थापत्य की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
साहित्य: कन्नड़ और संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहन मिला। बिल्हण (विक्रमान्कदेवचरित), रन्न (अजितपुराण), और विज्ञानेश्वर (मिताक्षरा) जैसे विद्वानों ने उनके दरबार को समृद्ध किया।
धर्म: उन्होंने शैव, वैष्णव, और जैन धर्म को संरक्षण दिया। जैन मंदिरों का निर्माण विशेष रूप से लक्कुंडी और अन्य क्षेत्रों में हुआ।
चालुक्य वंश का पतन
बादामी चालुक्य: 753 ई. में राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने बादामी पर कब्जा कर लिया, जिसने बादामी चालुक्य वंश को समाप्त कर दिया। वेंगी चालुक्य: 11वीं शताब्दी में चोल शासक कुलोत्तुंग चोल प्रथम के साथ एकीकरण के बाद वेंगी चालुक्य स्वतंत्र रूप से समाप्त हो गए। कल्याणी चालुक्य: 12वीं शताब्दी के अंत में होयसाल, यादव, और काकतिय शासकों के उदय ने कल्याणी चालुक्य वंश को कमजोर किया, और 1200 ई. तक उनका शासन समाप्त हो गया।
सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
स्थापत्य:
चालुक्य वंश ने द्रविड़ और नागर शैली के मिश्रित स्थापत्य को विकसित किया, जिसे वेसर शैली कहा जाता है। बादामी के गुफा मंदिर, ऐहोल के दुर्गा मंदिर, और पट्टदकल के विरुपाक्ष और मल्लिकार्जुन मंदिर उनके स्थापत्य की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। कल्याणी चालुक्य ने लक्कुंडी और गदग में जटिल नक्काशी वाले मंदिर बनवाए।
धर्म:
चालुक्य शासकों ने शैव और वैष्णव धर्म को प्रोत्साहन दिया, लेकिन जैन और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया। जैन मंदिरों का निर्माण, जैसे लक्कुंडी और पट्टदकल में, उनके धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
साहित्य:
कन्नड़ और संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहन मिला। मानसोल्लास (सोमेश्वर तृतीय), विक्रमान्कदेवचरित (बिल्हण), और मिताक्षरा (विज्ञानेश्वर) उनके साहित्यिक योगदान हैं।
प्रशासन:
चालुक्य शासकों ने एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखी, जिसमें स्थानीय सामंतों और ग्राम सभाओं की भूमिका थी। उनके शिलालेख, जैसे ऐहोल शिलालेख, उनके प्रशासन और इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
आर्थिक योगदान
कृषि: चालुक्य क्षेत्र में कृषि अर्थव्यवस्था का आधार थी। धान, गन्ना, और मसालों की खेती प्रचलित थी।
व्यापार: पूर्वी चालुक्य ने वेंगी और अन्य बंदरगाहों के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार को बढ़ावा दिया। बादामी और कल्याणी चालुक्य ने स्थलीय व्यापार को प्रोत्साहित किया।
मुद्रा: चालुक्य शासकों ने सोने, चाँदी, और ताँबे के सिक्कों का उपयोग किया, जिनमें वराह और अन्य प्रतीकों का उल्लेख मिलता है।
ऐतिहासिक महत्व
चालुक्य वंश ने दक्षिण भारत की राजनीति, संस्कृति, और स्थापत्य में अमिट छाप छोड़ी। बादामी, ऐहोल, और पट्टदकल के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। उनके सैन्य अभियानों, विशेष रूप से पुलकेशिन द्वितीय द्वारा हर्षवर्धन की पराजय, ने दक्षिण भारत की शक्ति को उत्तर भारत में स्थापित किया। चालुक्य-चोल एकीकरण ने दक्षिण भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता को बढ़ावा दिया। कन्नड़ और संस्कृत साहित्य में उनके योगदान ने दक्षिण भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया।
उपाधियाँ और स्मृति
चालुक्य शासकों ने कई उपाधियाँ धारण कीं, जैसे वल्लभ (प्रिय), पृथ्वीवल्लभ, और सत्याश्रय। ये उपाधियाँ उनकी सैन्य और प्रशासनिक उपलब्धियों को दर्शाती हैं। उनके शिलालेख, जैसे ऐहोल शिलालेख (पुलकेशिन द्वितीय) और तारिसापल्ली शिलालेख (पूर्वी चालुक्य), उनके इतिहास और योगदानों का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
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