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Chera Dynasty (approximately 300 BC to 300 AD)
jp Singh 2025-05-22 22:15:55
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चेर वंश (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.)

चेर वंश (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.)
चेर वंश (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.)
चेर वंश दक्षिण भारत का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण राजवंश था, जो मुख्य रूप से वर्तमान केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में शासन करता था। चेर शासक संगम युग (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.) से लेकर मध्यकाल तक सक्रिय रहे। वे तमिल संस्कृति, समुद्री व्यापार, और सैन्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। चेर वंश की राजधानी वंजी (वर्तमान केरल में करूर के पास) थी, और उनका राजचिह्न
1. संगम युग के चेर शासक (300 ई.पू.-300 ई.)
संगम युग में चेर शासकों ने तमिल साहित्य, व्यापार, और सैन्य गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगम साहित्य (पत्तुपट्टु, एट्टुत्तोकै, शिलप्पतिकारम्, आदि) में उनकी वीरता और उदारता का उल्लेख मिलता है। प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं:
उदियंजेरल (लगभग 2वीं शताब्दी ई.पू.):
संगम साहित्य में उदियंजेरल को एक उदार और शक्तिशाली शासक के रूप में वर्णित किया गया है। वे अपने सैनिकों और जनता को भोजन प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध थे, जिसके कारण उन्हें
नेदुंजेरल आदन (लगभग 2वीं शताब्दी ई.पू.):
उदियंजेरल के पुत्र, जो अपनी सैन्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने पांड्य और चोल शासकों के खिलाफ युद्ध लड़े और तलियालंगनम के युद्ध में पांड्य शासक नेदुंजेलियन् II से पराजित हुए। संगम साहित्य में उनकी वीरता और युद्ध कौशल का उल्लेख है।
शेंगुत्तुवन (लगभग 2वीं शताब्दी ई.):
चेर वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक, जिनका उल्लेख शिलप्पतिकारम् (इलंगो आदिगल द्वारा रचित महाकाव्य) में मिलता है। उन्होंने श्रीलंका पर अभियान चलाया और वहाँ से कन्नगी (शिलप्पतिकारम् की नायिका) की पूजा के लिए पत्थिनी देवी की मूर्ति लाए। उनके शासनकाल में चेर साम्राज्य ने समुद्री व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और मुजिरिस बंदरगाह रोम, ग्रीस, और अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार का केंद्र था। शेंगुत्तुवन ने हिमालय तक एक अभियान चलाया, जैसा कि शिलप्पतिकारम् में उल्लेख है, हालाँकि यह प्रतीकात्मक हो सकता है। उन्होंने कन्नगी के सम्मान में मंदिर बनवाए, जो तमिल संस्कृति में पत्थिनी पूजा की शुरुआत थी।
पेरुंजेरल अधन (2वीं शताब्दी ई.):
शेंगुत्तुवन के समकालीन या उत्तराधिकारी। उन्होंने चोल और पांड्य शासकों के साथ युद्ध लड़े और चेर साम्राज्य की सैन्य शक्ति को बनाए रखा। उनके शासनकाल में चेर क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि बढ़ी।
योगदान:
संगम युग के चेर शासकों ने तमिल साहित्य को संरक्षण दिया, विशेष रूप से पत्तुपट्टु और शिलप्पतिकारम् जैसे ग्रंथों में उनकी प्रशंसा है। मुजिरिस और अन्य बंदरगाहों के माध्यम से रोम, ग्रीस, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार ने चेर साम्राज्य को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। कन्नगी की पूजा और पत्थिनी मंदिरों की स्थापना ने तमिल धार्मिक संस्कृति को समृद्ध किया।
2. संगम युग के बाद का काल (4वीं-9वीं शताब्दी)
संगम युग के बाद, चेर वंश का प्रभाव कलभ्र शासकों के आक्रमण के कारण कमजोर हुआ। इस काल को
चेर शासक (अस्पष्ट):
इस काल में चेर शासकों के बारे में स्पष्ट जानकारी कम है, लेकिन कुछ शिलालेखों और साहित्यिक उल्लेखों से पता चलता है कि चेर शासकों ने छोटे स्तर पर शासन किया। पल्लव और पांड्य शासकों के साथ उनके संघर्ष थे, और चेर साम्राज्य का प्रभाव केरल तक सीमित हो गया।
आर्थिक गतिविधियाँ:
इस काल में भी मुजिरिस और अन्य बंदरगाह व्यापार के केंद्र बने रहे। पुरातात्विक साक्ष्यों में रोमन सिक्कों और मिट्टी के बर्तनों का उल्लेख मिलता है।
धार्मिक योगदान:
चेर शासकों ने जैन और बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, और बाद में वैदिक धर्म (शैव और वैष्णव) का प्रभाव बढ़ा।
3. द्वितीय चेर साम्राज्य (9वीं-12वीं शताब्दी)
9वीं शताब्दी में चेर वंश ने पुनरुत्थान किया, जिसे
कुलशेखर वर्मन (800-820 ई.):
द्वितीय चेर साम्राज्य के संस्थापक और कुलशेखर अलवार के रूप में प्रसिद्ध। वे वैष्णव भक्ति आंदोलन के 12 अलवार संतों में से एक थे और पेरुमाल तिरुमोझी जैसे भक्ति ग्रंथों की रचना की। उनके शासनकाल में चेर साम्राज्य ने पल्लव और पांड्य शासकों के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत की। उन्होंने वैष्णव धर्म को प्रोत्साहन दिया और मंदिर निर्माण में योगदान दिया।
राजशेखर वर्मन (820-844 ई.):
कुलशेखर वर्मन के उत्तराधिकारी। उन्होंने चोल शासकों के साथ गठबंधन बनाया और पांड्य शासकों के खिलाफ युद्ध लड़े। उनके शासनकाल में चेर साम्राज्य ने समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
स्थानु रवि वर्मन (844-885 ई.):
उनके शासनकाल में चेर साम्राज्य ने चोल और पांड्य शासकों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखे। उन्होंने जैन और बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, और उनके शासनकाल में कई मंदिरों और मठों का निर्माण हुआ। तारिसापल्ली शिलालेख (849 ई.) उनके शासनकाल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो व्यापारियों और धार्मिक समुदायों को दी गई सुविधाओं का उल्लेख करता है।
राम वर्मन कुलशेखर (लगभग 11वीं शताब्दी):
चेर वंश के अंतिम प्रमुख शासकों में से एक। उनके शासनकाल में चोल शासक कुलोत्तुंग चोल प्रथम ने चेर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद चेर साम्राज्य चोलों के अधीन हो गया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राम वर्मन कुलशेखर ने चोल प्रभुत्व के खिलाफ विद्रोह किया और अपनी राजधानी को कोडुंगलूर से क्विलोन (वर्तमान कोल्लम) स्थानांतरित किया।
योगदान:
द्वितीय चेर साम्राज्य ने केरल की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत किया। वैष्णव भक्ति आंदोलन (अलवार) और मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन मिला। मुजिरिस और क्विलोन जैसे बंदरगाहों ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया।
4. चेर साम्राज्य का पतन
चोल आधिपत्य: 11वीं शताब्दी में चोल शासक कुलोत्तुंग चोल प्रथम ने चेर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद चेर शासक चोलों के अधीन हो गए।
विभाजन: 12वीं शताब्दी के बाद चेर साम्राज्य छोटे-छोटे सामंती राज्यों में विभाजित हो गया, जैसे वेनाड, कोच्चि, और कोझिकोड।
विजयनगर और बाद का इतिहास: बाद में, चेर क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य और यूरोपीय उपनिवेशवादियों (पुर्तगाली, डच) के प्रभाव में आया।
5. सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
साहित्य:
चेर शासकों ने संगम साहित्य को संरक्षण दिया। शिलप्पतिकारम् और मणिमेगलै जैसे महाकाव्य चेर संस्कृति को दर्शाते हैं। द्वितीय चेर साम्राज्य में कुलशेखर अलवार जैसे शासकों ने वैष्णव भक्ति साहित्य को समृद्ध किया।
मंदिर निर्माण:
चेर शासकों ने शैव और वैष्णव मंदिरों का निर्माण और संरक्षण किया। त्रिशूर का वडक्कुनाथन मंदिर और तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभस्वामी मंदिर उनके योगदानों से जुड़े हैं। कन्नगी (पत्थिनी) के मंदिर संगम युग के चेर शासक शेंगुत्तुवन से संबंधित हैं।
धार्मिक सहिष्णुता:
चेर शासकों ने प्राचीन तमिल धर्म, जैन, बौद्ध, और वैदिक धर्म (शैव-वैष्णव) को संरक्षण दिया। तारिसापल्ली शिलालेख में ईसाई और यहूदी व्यापारियों को दी गई सुविधाओं का उल्लेख है।
6. आर्थिक योगदान
समुद्री व्यापार:
चेर साम्राज्य का मुजिरिस बंदरगाह रोम, ग्रीस, मिस्र, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार का प्रमुख केंद्र था। मसाले, मोती, और कपास जैसे उत्पादों का निर्यात होता था, जबकि सोना, शराब, और अन्य सामान आयात किए जाते थे।
कृषि:
चेर क्षेत्र में धान, नारियल, और मसालों की खेती प्रमुख थी।
मुद्रा:
संगम युग में वस्तु विनिमय प्रणाली के साथ-साथ सिक्कों का उपयोग होता था। रोमन सिक्के पुरातात्विक साक्ष्यों में मिले हैं।
7. ऐतिहासिक महत्व
चेर शासकों ने संगम युग में तमिल संस्कृति और साहित्य को समृद्ध किया। शिलप्पतिकारम् जैसे ग्रंथ उनकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। उनके समुद्री व्यापार ने दक्षिण भारत को विश्व व्यापार का केंद्र बनाया। द्वितीय चेर साम्राज्य ने केरल की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया और वैष्णव भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया। चेर शासकों की धार्मिक सहिष्णुता ने जैन, बौद्ध, और ईसाई समुदायों को फलने-फूलने का अवसर दिया।
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