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Sangam Era (about 300 BC to 300 AD)
jp Singh 2025-05-22 22:07:22
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संगम युग (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.)

संगम युग (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.)
संगम युग (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.)
संगम युग (लगभग 300 ई.पू. से 300 ई.) तमिल इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण काल था, जिसे तमिल साहित्य, कला, और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। यह युग दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु और केरल के क्षेत्रों में, तमिल भाषा और साहित्य के उत्कर्ष के लिए प्रसिद्ध है। संगम युग का नाम तमिल संगम (साहित्यिक सभाओं) से लिया गया है, जो विद्वानों और कवियों की सभाएँ थीं, जिन्हें पांड्य शासकों द्वारा संरक्षण प्राप्त था। नीचे संगम युग के प्रमुख पहलुओं को विस्तार से बताया गया है।
1. संगम युग का ऐतिहासिक संदर्भ
काल: संगम युग का समय निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इतिहासकार इसे लगभग 300 ई.पू. से 300 ई. के बीच मानते हैं। कुछ विद्वान इसे 600 ई.पू. से शुरू होने वाला मानते हैं।
राजवंश: इस युग में तमिल क्षेत्र तीन प्रमुख राजवंशों चेर, चोल, और पांड्य द्वारा शासित था। इसके अलावा, कई छोटे सामंत और स्थानीय शासक भी थे।
राजधानी और केंद्र:
पांड्य: मदुरै उनकी राजधानी थी, जो सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र थी।
चोल: उरैयूर (वर्तमान तिरुचिरापल्ली के पास) उनकी राजधानी थी।
चेर: वंजी (वर्तमान केरल में करूर के पास) उनकी राजधानी थी।
संगम सभाएँ: परंपरा के अनुसार, मदुरै में तीन संगम सभाएँ आयोजित की गईं, जिनमें कवियों और विद्वानों ने तमिल साहित्य की रचना की। हालाँकि, केवल तीसरे संगम के साहित्य का कुछ हिस्सा ही आज उपलब्ध है।
2. संगम साहित्य
संगम युग का सबसे महत्वपूर्ण योगदान इसका साहित्य है, जो तमिल भाषा में रचित है और तमिल संस्कृति, समाज, और इतिहास की गहरी झलक प्रदान करता है।
प्रमुख रचनाएँ:
एट्टुत्तोकै (आठ संकलन): इसमें आठ काव्य संग्रह शामिल हैं, जैसे नर्रिनै, कुरुंतोकै, ऐनकुरुनुरु, पट्टिनाप्पालै, और परिपादल। ये प्रेम, युद्ध, और सामाजिक जीवन पर आधारित हैं।
पत्तुपट्टु (दस गीत): इसमें दस लंबे काव्य शामिल हैं, जैसे तिरुमुरुगात्रुपदै और मदुरैकांची, जो शासकों, प्रकृति, और तमिल संस्कृति का वर्णन करते हैं।
तोलकाप्पियम्: यह तमिल व्याकरण और काव्यशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रंथ है, जिसे तोलकाप्पियार ने लिखा। यह संगम साहित्य की आधारशिला है।
शिलप्पतिकारम् और मणिमेगलै: ये महाकाव्य बाद के संगम युग (लगभग 2वीं-3वीं शताब्दी ई.) से संबंधित हैं और तमिल समाज, धर्म, और नैतिकता को दर्शाते हैं।
विषय: संगम साहित्य दो प्रमुख विषयों में विभाजित है:
अकम: प्रेम, भावनाएँ, और व्यक्तिगत जीवन पर आधारित कविताएँ।
पुरम: युद्ध, शासकों की वीरता, सामाजिक व्यवस्था, और शासन पर आधारित कविताएँ।
महत्व: संगम साहित्य तमिल भाषा की समृद्धि और तत्कालीन समाज की सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक स्थिति को दर्शाता है।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन
सामाजिक संरचना:
संगम युग में समाज विभिन्न समूहों में विभाजित था, जैसे किसान, व्यापारी, योद्धा, और विद्वान। सामाजिक व्यवस्था में ऊँच-नीच का उल्लेख कम है, जो उस समय की समानता को दर्शाता है। स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी, और कई महिला कवयित्रियाँ, जैसे अव्वैयार, संगम साहित्य में प्रसिद्ध थीं।
भूमि और जीवन शैली:
तमिल क्षेत्र को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों (तिनै) में विभाजित किया गया था: कुरिंजी (पहाड़ी), मुल्लै (जंगल), मरुदम (कृषि क्षेत्र), नेयदल (समुद्र तट), और पालै (रेगिस्तान)। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी जीवन शैली और संस्कृति थी।
धर्म:
संगम युग में प्राचीन तमिल धर्म प्रचलित था, जिसमें प्रकृति पूजा, मुरुगन (कार्तिकेय), कोर्रवै (युद्ध देवी), और अन्य स्थानीय देवताओं की पूजा की जाती थी। जैन और बौद्ध धर्म का प्रभाव भी बढ़ रहा था, और संगम साहित्य में इन धर्मों का उल्लेख मिलता है। वैदिक धर्म (शैव और वैष्णव) का प्रभाव बाद में बढ़ा।
कला और संगीत:
संगम साहित्य में नृत्य, संगीत, और कला का उल्लेख है। याल (एक प्रकार का वीणा) और अन्य वाद्य यंत्र प्रचलित थे। कविताएँ और गीत तमिल संस्कृति का अभिन्न हिस्सा थे।
4. आर्थिक जीवन
कृषि: संगम युग में कृषि अर्थव्यवस्था का आधार थी। धान, गन्ना, और अन्य फसलें प्रमुख थीं।
व्यापार:
पांड्य, चोल, और चेर शासकों ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया। कोरकई, कावेरीपट्टिनम, और मुजिरिस जैसे बंदरगाह रोम, ग्रीस, दक्षिण-पूर्व एशिया, और चीन के साथ व्यापार के केंद्र थे। मोती, रत्न, मसाले, और कपास जैसे उत्पादों का निर्यात होता था, जबकि सोना, शराब, और अन्य सामान आयात किए जाते थे।
मुद्रा: संगम युग में वस्तु विनिमय प्रणाली के साथ-साथ सिक्कों का उपयोग भी होने लगा था। रोमन सिक्कों का उल्लेख पुरातात्विक साक्ष्यों में मिलता है।
5. राजनीतिक और सैन्य जीवन
शासक और प्रशासन:
पांड्य, चोल, और चेर शासकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में शासन किया। पांड्य शासक मदुरै से, चोल उरैयूर से, और चेर वंजी से शासन करते थे। शासकों को
युद्ध:
संगम युग में युद्ध आम थे। शासक एक-दूसरे के खिलाफ और बाहरी शक्तियों (जैसे श्रीलंका के शासकों) के खिलाफ युद्ध लड़ते थे। तलियालंगनम का युद्ध (नेदुंजेलियन् II द्वारा चेर-चोल गठबंधन के खिलाफ) एक प्रसिद्ध उदाहरण है।
सैन्य संगठन: संगम साहित्य में हाथी, घोड़े, और रथों से युक्त सेनाओं का उल्लेख है।
6. प्रमुख शासक
संगम युग में कई शासकों का उल्लेख मिलता है, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
पांड्य:
नेदुंजेलियन् I और II: तलियालंगनम के युद्ध में विजय और तमिल संगम को संरक्षण के लिए प्रसिद्ध।
पलयमुदुक्कुदुमी: व्यापार और साहित्य के संरक्षक।
चोल:
करिकाल चोल: चोल वंश का एक महान शासक, जिसने कावेरी नदी पर बाँध बनवाया और व्यापार को बढ़ावा दिया।
चेर:
शेंगुत्तुवन: शिलप्पतिकारम् में उल्लिखित, श्रीलंका पर अभियान और कन्नगी की पूजा स्थापित करने के लिए प्रसिद्ध।
7. संगम युग का अंत
कारण:
संगम युग का अंत लगभग 300 ई. के आसपास हुआ, जब कलभ्र शासकों ने तमिल क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। इस काल को
पुनरुत्थान: 6वीं शताब्दी में पांड्य और चोल शासकों ने कलभ्रों को पराजित कर अपने साम्राज्यों का पुनरुत्थान किया।
8. ऐतिहासिक महत्व
सांस्कृतिक योगदान: संगम युग ने तमिल भाषा और साहित्य को एक समृद्ध विरासत दी। तोलकाप्पियम्, शिलप्पतिकारम्, और अन्य रचनाएँ तमिल साहित्य की नींव हैं।
आर्थिक समृद्धि: समुद्री व्यापार ने तमिल क्षेत्र को विश्व व्यापार का केंद्र बनाया, और रोम, ग्रीस, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंध स्थापित हुए।
सामाजिक समानता: संगम युग में सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत समान थी, और स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी।
धार्मिक विविधता: प्राचीन तमिल धर्म, जैन, और बौद्ध धर्म का प्रभाव संगम युग में देखा जा सकता है।
9. संगम युग की विरासत
संगम साहित्य आज भी तमिल भाषा और संस्कृति का आधार है। यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है। मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), जो पांड्य शासकों का केंद्र था, संगम युग की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है। संगम युग के बंदरगाह, जैसे कावेरीपट्टिनम और कोरकई, दक्षिण भारत के समुद्री व्यापार की समृद्धि को दर्शाते हैं।
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