Vijayalaya Chola (about 848-871 AD)
jp Singh
2025-05-22 17:04:43
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विजयालय चोल (लगभग 848-871 ई.)
विजयालय चोल (लगभग 848-871 ई.)
विजयालय चोल (लगभग 848-871 ई.)
विजयालय चोल (लगभग 848-871 ई.) चोल वंश के संस्थापक और दक्षिण भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने तंजावुर को अपनी राजधानी बनाकर चोल साम्राज्य की नींव रखी, जो बाद में दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक बना। उनकी उपलब्धियों, शासन, और योगदान को विस्तार से समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दे सकते हैं:
1. पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन
विजयालय चोल वंश के प्रारंभिक शासकों में से थे, जो संभवतः पहले पल्लवों और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के सामंत के रूप में कार्य करते थे। उस समय दक्षिण भारत में पल्लव, पांड्य, और चेर जैसे शक्तिशाली वंशों का प्रभुत्व था, लेकिन 9वीं शताब्दी में पल्लव और पांड्य शक्तियों के कमजोर होने से विजयालय को अवसर प्राप्त हुआ। तमिल साहित्य और शिलालेखों में विजयालय को एक साहसी और रणनीतिक योद्धा के रूप में वर्णित किया गया है।
2. तंजावुर पर विजय
विजयालय की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी तंजावुर (वर्तमान तमिलनाडु) पर कब्जा करना। उस समय तंजावुर मुथरायरों (स्थानीय सामंतों) के नियंत्रण में था, जो पांड्य और पल्लवों के अधीन थे। विजयालय ने मुथरायरों को पराजित कर तंजावुर को अपनी राजधानी बनाया। यह क्षेत्र उपजाऊ कावेरी डेल्टा में स्थित था, जो चोल साम्राज्य की आर्थिक और सैन्य शक्ति का आधार बना। तंजावुर को जीतने के बाद विजयालय ने इसे चोल साम्राज्य का केंद्रीय केंद्र बनाया, जो बाद में राजराज चोल और राजेंद्र चोल के समय में विश्व प्रसिद्ध हुआ।
3. सैन्य अभियान और शक्ति विस्तार
विजयालय ने अपने शासनकाल में कई सैन्य अभियान चलाए। उन्होंने पांड्य और पल्लवों के साथ संघर्ष किया और अपने क्षेत्र का विस्तार किया। तिरुकोवलूर की लड़ाई (लगभग 850 ई.) में विजयालय ने पल्लवों और उनके सहयोगियों के खिलाफ जीत हासिल की। इस जीत ने चोल वंश की स्वतंत्रता को मजबूत किया। उन्होंने कावेरी नदी के आसपास के क्षेत्रों को एकीकृत किया, जिससे चोल साम्राज्य की नींव मजबूत हुई।
4. धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान
विजयालय एक प्रबल शिव भक्त थे और उन्होंने शैव धर्म को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में कई शिव मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार हुआ। तंजावुर में उनके द्वारा स्थापित या समर्थित मंदिर बाद में चोल वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण बने। यद्यपि उनके समय के मंदिर राजराज चोल के बृहदीश्वर मंदिर जितने भव्य नहीं थे, फिर भी उन्होंने मंदिर-केंद्रित प्रशासन और संस्कृति की नींव रखी। विजयालय ने स्थानीय सामाजिक और धार्मिक परंपराओं को मजबूत किया, जो चोल शासकों की विशेषता रही।
5. प्रशासन और शासन
विजयालय का शासनकाल अपेक्षाकृत छोटा था, लेकिन उन्होंने एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा तैयार किया। उन्होंने स्थानीय सामंतों को अपने अधीन किया और चोल साम्राज्य की सैन्य और आर्थिक नींव रखी। कावेरी डेल्टा की उर्वर भूमि ने चोल अर्थव्यवस्था को समृद्ध किया, और विजयालय ने कृषि और व्यापार को प्रोत्साहन दिया। उनके शासन में स्थानीय समुदायों और व्यापारियों को संगठित करने पर जोर दिया गया, जो बाद में चोल साम्राज्य की समृद्धि का आधार बना।
6. उत्तराधिकार और विरासत
विजयालय के बाद उनके पुत्र आदित्य प्रथम ने चोल वंश को और मजबूत किया। आदित्य ने पल्लव साम्राज्य को पूरी तरह से समाप्त कर चोल प्रभुत्व स्थापित किया।
विजयालय की सबसे बड़ी देन थी एक छोटे से क्षेत्रीय शासक से चोल वंश को एक शक्तिशाली साम्राज्य में बदलने की नींव रखना। उनके शासनकाल ने चोल वंश को दक्षिण भारत में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया, जिसने बाद में श्रीलंका, मालदीव, और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपना प्रभाव फैलाया।
7. ऐतिहासिक स्रोत
विजयालय के बारे में जानकारी मुख्य रूप से तमिल शिलालेखों, जैसे तंजावुर और तिरुकोवलूर के शिलालेखों, और ताम्रपत्रों से मिलती है। चोल वंश के इतिहास को समझने में “तिरुवलंगाडु ताम्रपत्र” और अन्य समकालीन स्रोत महत्वपूर्ण हैं। तमिल साहित्य, जैसे “पेरिय पुराणम,” में भी चोल शासकों और उनकी धार्मिक गतिविधियों का उल्लेख मिलता है।
8. महत्व और प्रभाव
विजयालय का शासनकाल चोल वंश के स्वर्ण युग का प्रारंभिक चरण था। उनके द्वारा स्थापित नींव पर ही बाद के चोल शासकों ने साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता और सैन्य कौशल ने चोल वंश को दक्षिण भारत की राजनीति में एक स्थायी स्थान दिलाया। तंजावुर को चोल राजधानी के रूप में स्थापित करना एक ऐतिहासिक निर्णय था, क्योंकि यह शहर बाद में चोल कला, संस्कृति, और वास्तुकला का केंद्र बना।
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