Recent Blogs

Perunarikilli (about 300 BC to 300 AD)
jp Singh 2025-05-22 17:01:30
searchkre.com@gmail.com / 8392828781

पेरुनरकिल्लि (Perunarikilli) (लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी)

पेरुनरकिल्लि (Perunarikilli) (लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी)
पेरुनरकिल्लि (Perunarikilli) (लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी)
पेरुनरकिल्लि (Perunarikilli) चोल वंश का एक प्रारंभिक शासक था, जिसका उल्लेख प्राचीन तमिल साहित्य और संगम काल (लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी) के संदर्भ में मिलता है। वह संगम युग के प्रमुख चोल राजाओं में से एक माने जाते हैं, और उनके शासनकाल को तमिलनाडु के इतिहास में सांस्कृतिक और राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि, गुप्तोत्तर काल (550-750 ईस्वी) से उनका सीधा संबंध नहीं है, क्योंकि वे इससे बहुत पहले के शासक थे। फिर भी, चूंकि आपने गुप्तोत्तर काल और वाकाटक वंश के संदर्भ में पूछा है, मैं पेरुनरकिल्लि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करूंगा और उनके ऐतिहासिक महत्व को स्पष्ट करूंगा।
1. पेरुनरकिल्लि की पहचान
नाम का अर्थ:
चोल वंश: पेरुनरकिल्लि प्रारंभिक चोल वंश का हिस्सा थे, जो संगम काल में तमिलनाडु के कावेरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में शासन करते थे। उनकी राजधानी उरैयूर (आधुनिक तिरुचिरापल्ली के पास) थी।
संगम साहित्य में उल्लेख: पेरुनरकिल्लि का उल्लेख संगम साहित्य की कविताओं, जैसे पट्टिनप्पालै और पुरनानूरु, में मिलता है। ये ग्रंथ उनके शासन, युद्धों, और संरक्षण को दर्शाते हैं।
2. शासनकाल और उपलब्धियां
समयकाल: पेरुनरकिल्लि का शासनकाल संगम युग के दौरान (लगभग 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 1वीं शताब्दी ईस्वी के बीच) माना जाता है। उनकी सटीक तिथियां अस्पष्ट हैं, क्योंकि संगम काल के अभिलेख सीमित हैं।
युद्ध और विजय:
पेरुनरकिल्लि को एक योद्धा राजा के रूप में जाना जाता है। संगम साहित्य में उन्हें
रससुयम (राजसूय) वैदिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण यज्ञ था, जो राजा की सर्वोच्चता और शक्ति को दर्शाता था। यह दर्शाता है कि पेरुनरकिल्लि ने न केवल तमिल क्षेत्रों पर शासन किया, बल्कि वैदिक परंपराओं को भी अपनाया।
उन्होंने चेर और पांड्य राजाओं के साथ युद्ध लड़े और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
राजधानी और प्रशासन: उनकी राजधानी उरैयूर एक समृद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र थी। चोलों का प्रशासन संगम काल में स्थानीय स्तर पर संगठित था, जिसमें कृषि और व्यापार पर विशेष ध्यान दिया जाता था।
3. सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
संगम साहित्य का संरक्षण:
पेरुनरकिल्लि ने कवियों और विद्वानों को संरक्षण दिया, जो संगम साहित्य की रचना में योगदान दे रहे थे। संगम साहित्य तमिल भाषा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पुरनानूरु और पट्टिनप्पालै जैसे ग्रंथों में उनकी उदारता और शासन की प्रशंसा की गई है।
धार्मिक सहिष्णुता:
पेरुनरकिल्लि ने वैदिक और तमिल धार्मिक परंपराओं का समन्वय किया। राजसूय यज्ञ का आयोजन उनके वैदिक प्रभाव को दर्शाता है, जबकि वे स्थानीय तमिल देवताओं (जैसे कोर्रवै) की पूजा को भी बढ़ावा देते थे। बौद्ध और जैन धर्म भी इस काल में दक्षिण भारत में प्रचलित थे, और चोल शासकों ने इन्हें सहिष्णुता के साथ संरक्षण दिया।
कला और वास्तुकला: संगम काल में मंदिर निर्माण की परंपरा अभी प्रारंभिक अवस्था में थी, लेकिन पेरुनरकिल्लि के शासन में कावेरी क्षेत्र में समृद्ध सांस्कृतिक गतिविधियां थीं।
4. आर्थिक स्थिति
कृषि: कावेरी नदी का डेल्टा क्षेत्र उपजाऊ था, और चोल अर्थव्यवस्था का आधार कृषि था। धान की खेती प्रमुख थी।
व्यापार: उरैयूर और पंपुहार (पुहार) जैसे चोल बंदरगाह रोम, श्रीलंका, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार के केंद्र थे। पेरुनरकिल्लि के शासन में समुद्री व्यापार फला-फूला, जिसमें मसाले, मोती, और कपड़े प्रमुख निर्यात थे।
मुद्रा: संगम काल में मुद्रा प्रणाली प्रारंभिक अवस्था में थी, लेकिन व्यापार में वस्तु विनिमय और सिक्कों का उपयोग होता था।
5. ऐतिहासिक स्रोत
संगम साहित्य:
पुरनानूरु: इस ग्रंथ में पेरुनरकिल्लि के युद्धों और उदारता का वर्णन है।
पट्टिनप्पालै: यह कविता चोल राजधानी पुहार (पंपुहार) और चोल शासकों की समृद्धि का वर्णन करती है।
शिलालेख: संगम काल के शिलालेख सीमित हैं, लेकिन बाद के चोल शिलालेखों (जैसे तंजावुर के शिलालेख) में प्रारंभिक चोल राजाओं का उल्लेख मिलता है।
पुरातात्विक साक्ष्य: कावेरी डेल्टा क्षेत्र में पुरातात्विक खुदाई (जैसे पुहार और उरैयूर) से संगम काल की समृद्धि के प्रमाण मिलते हैं।
6. पेरुनरकिल्लि और गुप्तोत्तर काल
कालगत अंतर: पेरुनरकिल्लि का शासन संगम युग में था, जो गुप्तोत्तर काल (550-750 ईस्वी) से बहुत पहले का है। गुप्तोत्तर काल में चोल वंश कमजोर पड़ चुका था, और दक्षिण भारत में पल्लव और पांड्य जैसे वंश प्रभावशाली थे।
संदर्भ में भ्रम: यदि आप गुप्तोत्तर काल के किसी अन्य शासक या चोल वंश के बाद के राजा के बारे में पूछ रहे हैं, तो संभवतः यह भ्रम
वाकाटक संबंध: वाकाटक वंश (250-500 ईस्वी) का चोलों से सीधा संबंध नहीं था, क्योंकि वाकाटक दक्कन और मध्य भारत में सक्रिय थे, जबकि चोल दक्षिण में कावेरी क्षेत्र में। हालांकि, वाकाटकों के दक्षिणी शाखा (वत्सगुल्म) और चोलों के बीच व्यापारिक संबंध हो सकते थे।
7. महत्व
संगम युग का प्रतीक: पेरुनरकिल्लि संगम युग की सांस्कृतिक और राजनैतिक समृद्धि का प्रतीक हैं। उनके शासन में चोल वंश ने तमिल संस्कृति और साहित्य को समृद्ध किया।
राजसूय यज्ञ: वैदिक परंपराओं को अपनाने वाला वह पहला तमिल शासक था, जिसने उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया।
तमिल साहित्य का संरक्षण: उनके संरक्षण में संगम साहित्य का विकास हुआ, जो तमिल भाषा की सबसे बड़ी धरोहर है।
चोल वंश की नींव: पेरुनरकिल्लि ने प्रारंभिक चोल वंश की नींव को मजबूत किया, जो बाद में 9वीं शताब्दी में विजयालय चोल के नेतृत्व में पुनर्जनन हुआ।
8. सीमाएं और ऐतिहासिक बहस
सीमित ऐतिहासिक साक्ष्य: पेरुनरकिल्लि के बारे में जानकारी मुख्य रूप से संगम साहित्य से मिलती है, जो काव्यात्मक और अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है। शिलालेखों और पुरातात्विक साक्ष्यों की कमी के कारण उनके शासनकाल की सटीक तिथियां और घटनाएं अस्पष्ट हैं।
कालगत भ्रम: चूंकि आपने गुप्तोत्तर काल के संदर्भ में पूछा है, संभव है कि आप किसी अन्य शासक (जैसे पल्लव या बाद के चोल राजा) के बारे में पूछना चाहते हों। यदि ऐसा है, तो कृपया अधिक विवरण प्रदान करें।
नाम का भ्रम:
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh searchkre.com@gmail.com 8392828781

Our Services

Scholarship Information

Add Blogging

Course Category

Add Blogs

Coaching Information

Add Blogging

Add Blogging

Add Blogging

Our Course

Add Blogging

Add Blogging

Hindi Preparation

English Preparation

SearchKre Course

SearchKre Services

SearchKre Course

SearchKre Scholarship

SearchKre Coaching

Loan Offer

JP GROUP

Head Office :- A/21 karol bag New Dellhi India 110011
Branch Office :- 1488, adrash nagar, hapur, Uttar Pradesh, India 245101
Contact With Our Seller & Buyer