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Karikala Chola (2nd century AD, possibly around 190 AD)
jp Singh 2025-05-22 16:48:36
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करिकाल चोल (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी, संभावित रूप से 190 ईस्वी के आसपास)

करिकाल चोल (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी, संभावित रूप से 190 ईस्वी के आसपास)
करिकाल चोल (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी, संभावित रूप से 190 ईस्वी के आसपास)
करिकाल चोल (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी, संभावित रूप से 190 ईस्वी के आसपास) प्रारंभिक चोल वंश के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उनका उल्लेख तमिल संगम साहित्य में व्यापक रूप से मिलता है, विशेष रूप से पुरनानूरु, पट्टिनप्पालै, और पोरुनरारुपदै जैसे ग्रंथों में। करिकाल चोल को उनकी सैन्य विजयों, प्रशासनिक कुशलता, और सांस्कृतिक योगदान के लिए जाना जाता है। उन्हें चोल साम्राज्य को दक्षिण भारत में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करने और तमिल संस्कृति को समृद्ध करने का श्रेय दिया जाता है। उनकी राजधानी उरैयूर थी, और पुहार (कावेरीपट्टनम) उनके शासनकाल में एक महत्वपूर्ण बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा।
1. सैन्य उपलब्धियाँ:
वेंनी का युद्ध: करिकाल चोल की सबसे प्रसिद्ध सैन्य उपलब्धि वेंनी का युद्ध था, जिसमें उन्होंने चेर और पांड्य शासकों के गठबंधन को पराजित किया। इस युद्ध में उनकी जीत ने चोल वंश को दक्षिण भारत में एक प्रबल शक्ति के रूप में स्थापित किया।
श्रीलंका पर आक्रमण: संगम साहित्य के अनुसार, करिकाल ने श्रीलंका पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा को पराजित किया। यह चोलों की समुद्री शक्ति और प्रभाव का प्रारंभिक संकेत था।
अन्य विजय: उन्होंने दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने साम्राज्य का विस्तार किया और कई छोटे-मोटे शासकों को अपने अधीन किया।
2. प्रशासनिक और आर्थिक योगदान:
कावेरी नदी पर बाँध: करिकाल चोल को कावेरी नदी पर बाँध और सिंचाई प्रणालियों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। इन बाँधों ने कृषि को बढ़ावा दिया और चोल क्षेत्र की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पुहार का विकास: उनके शासनकाल में पुहार (कावेरीपट्टनम) एक प्रमुख समुद्री बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र बना। यह रोम, ग्रीस, और दक्षिण-पूर्व एशिया (जैसे श्रीविजय) के साथ व्यापार का केंद्र था।
प्रशासन: संगम साहित्य में उनके प्रशासन को संगठित और जनकल्याणकारी बताया गया है। स्थानीय सभाएँ (मनरम) उनके शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।
3. सांस्कृतिक और साहित्यिक योगदान:
करिकाल चोल के शासनकाल में संगम साहित्य का स्वर्ण युग था। उनके दरबार में कवियों, विद्वानों, और कलाकारों को संरक्षण प्राप्त था। पट्टिनप्पालै में पुहार की समृद्धि, व्यापार, और सांस्कृतिक वैभव का वर्णन है, जो करिकाल के शासन की उपलब्धियों को दर्शाता है। उनके समय में तमिल कविता, संगीत, और नृत्य फले-फूले, और तमिल संस्कृति ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
4. धार्मिक योगदान:
करिकाल चोल ने वैदिक धर्म, जैन, और बौद्ध धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, जो उस समय तमिल समाज में प्रचलित थे। संगम साहित्य में विभिन्न धार्मिक परंपराओं के प्रति उनकी सहिष्णुता का उल्लेख है। उनके शासनकाल में धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ, जैसे यज्ञ और उत्सव, आम थे।
5. विरासत और किंवदंतियाँ:
संगम साहित्य में करिकाल चोल को एक वीर और दयालु शासक के रूप में चित्रित किया गया है। उनके नाम का अर्थ
संगम साहित्य में उल्लेख:
पुरनानूरु: इस ग्रंथ में करिकाल की सैन्य विजयों और उनके शासन की प्रशंसा की गई है।
पट्टिनप्पालै: यह काव्य पुहार की समृद्धि और करिकाल के शासनकाल के वैभव का विस्तृत वर्णन करता है।
पोरुनरारुपदै: इस ग्रंथ में उनके शासन की उदारता और कवियों को दिए गए संरक्षण का उल्लेख है।
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