Later Chola Rulers (1122-1279 AD)
jp Singh
2025-05-22 16:45:19
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बाद के चोल शासक (1122-1279 ईस्वी)
बाद के चोल शासक (1122-1279 ईस्वी)
बाद के चोल शासक (1122-1279 ईस्वी)
विक्रम चोल (1118-1135 ईस्वी): उन्होंने पांड्य और श्रीलंका में चोल प्रभुत्व को पुनर्जनन किया।
कुलोत्तुंग चोल द्वितीय (1133-1150 ईस्वी): उनके शासनकाल में चिदंबरम मंदिर का विस्तार हुआ।
राजराज चोल द्वितीय (1146-1173 ईस्वी): उन्होंने दरासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर बनवाया, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
राजाधिराज चोल द्वितीय (1166-1178 ईस्वी) और कुलोत्तुंग चोल तृतीय (1178-1218 ईस्वी): इन शासकों ने चोल साम्राज्य को अंतिम बार स्थिरता प्रदान की, लेकिन पांड्य और होयसाल जैसे वंशों के उदय ने चोलों को कमजोर किया।
राजराज चोल तृतीय (1216-1256 ईस्वी) और राजेंद्र चोल तृतीय (1246-1279 ईस्वी): ये चोल वंश के अंतिम शासक थे। पांड्य शासक जटावरमन सुंदर पांड्य ने चोल साम्राज्य को समाप्त कर दिया।
चोल वंश की प्रमुख विशेषताएँ:
स्थापत्य: चोलों ने द्रविड़ स्थापत्य को चरम पर पहुंचाया। बृहदीश्वर मंदिर (तंजावुर), गंगैकोण्डचोलपुरम मंदिर, और ऐरावतेश्वर मंदिर उनकी स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
नौसेना और व्यापार: चोलों की शक्तिशाली नौसेना ने दक्षिण-पूर्व एशिया (श्रीविजय, मलय प्रायद्वीप) के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए।
प्रशासन: चोलों का प्रशासनिक ढांचा अत्यधिक संगठित था, जिसमें ग्राम सभाएँ (ऊर और सभा) स्थानीय शासन में महत्वपूर्ण थीं।
साहित्य और संस्कृति: तमिल साहित्य, विशेष रूप से कंबन का रामायण, और नayanमार और आलवार संतों के भक्ति भजन उनके काल में फले-फूले।
इलमचेत्सेन्नी (लगभग दूसरी से पहली शताब्दी ईसा पूर्व)
इलमचेत्सेन्नी (लगभग दूसरी से पहली शताब्दी ईसा पूर्व) प्रारंभिक चोल वंश के एक प्रमुख और प्रसिद्ध शासक थे, जिनका उल्लेख तमिल संगम साहित्य में मिलता है। वे चोल वंश के शुरुआती शासकों में से एक थे और उनकी वीरता, शासन कौशल, और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए जाने जाते हैं। इलमचेत्सेन्नी को चोल साम्राज्य की नींव को मजबूत करने और उरैयूर (आधुनिक तिरुचिरापल्ली के पास) को एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है।
1. शासनकाल और सैन्य उपलब्धियाँ:
इलमचेत्सेन्नी को संगम साहित्य में एक शक्तिशाली और युद्ध-कुशल शासक के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने चोल साम्राज्य का विस्तार किया और पड़ोसी राजवंशों, जैसे चेर और पांड्य, के साथ प्रतिस्पर्धा की। उनके शासनकाल में चोलों ने दक्षिण भारत में अपनी स्थिति को मजबूत किया। संगम ग्रंथों में उनके युद्धों और विजयों का उल्लेख है, हालाँकि विशिष्ट युद्धों के बारे में विस्तृत जानकारी सीमित है। कुछ स्रोतों के अनुसार, उन्होंने श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर भी प्रभाव बनाए रखा, जो चोलों की समुद्री शक्ति का प्रारंभिक संकेत है।
2. सांस्कृतिक और व्यापारिक योगदान:
इलमचेत्सेन्नी के शासनकाल में उरैयूर चोल साम्राज्य की राजधानी थी और एक प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। संगम साहित्य, विशेष रूप से पुरनानूरु और पट्टिनप्पालै, में उनके समय की समृद्ध तमिल संस्कृति, काव्य परंपरा, और व्यापारिक गतिविधियों का वर्णन मिलता है। उनके शासनकाल में पुहार (कावेरीपट्टनम) एक महत्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में उभर रहा था, जो रोम, ग्रीस, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार करता था।
3. धार्मिक और सामाजिक योगदान:
इलमचेत्सेन्नी ने वैदिक धर्म, जैन, और बौद्ध धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, जो उस समय तमिल समाज में प्रचलित थे। संगम साहित्य में उनके दरबार में विभिन्न धार्मिक परंपराओं के विद्वानों और कवियों का उल्लेख है। उनके शासनकाल में तमिल समाज में कवियों और विद्वानों को विशेष सम्मान प्राप्त था, जिसने संगम साहित्य के विकास को बढ़ावा दिया।
4. विरासत:
इलमचेत्सेन्नी को चोल वंश के प्रारंभिक शासकों में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है, जिन्होंने चोल साम्राज्य की नींव को मजबूत किया। उनके बाद के शासक, जैसे करिकाल चोल, ने उनकी नीतियों और उपलब्धियों को आगे बढ़ाया, जिससे चोल वंश दक्षिण भारत में एक प्रमुख शक्ति बना। संगम साहित्य में उनकी प्रशंसा और उनके शासनकाल की समृद्धि का वर्णन चोल वंश की प्रारंभिक शक्ति और सांस्कृतिक गौरव को दर्शाता है।
संगम साहित्य में उल्लेख:
पुरनानूरु और अकनानूरु जैसे संगम ग्रंथों में इलमचेत्सेन्नी को एक उदार और शक्तिशाली शासक के रूप में चित्रित किया गया है। उनके समय में तमिल कविता, संगीत, और नृत्य जैसे सांस्कृतिक तत्व फले-फूले, और उरैयूर एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में उभरा।
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