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Medieval Chola Rulers (around 850-1279 AD)
jp Singh 2025-05-22 16:40:35
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मध्यकालीन चोल शासक (लगभग 850-1279 ईस्वी)

मध्यकालीन चोल शासक (लगभग 850-1279 ईस्वी)
मध्यकालीन चोल शासक (लगभग 850-1279 ईस्वी)
1. विजयालय चोल (लगभग 848-871 ईस्वी)
योगदान: विजयालय ने मध्यकालीन चोल वंश की नींव रखी। उन्होंने तंजावुर को अपनी राजधानी बनाया और पल्लवों और पांड्यों को पराजित कर चोल साम्राज्य का विस्तार शुरू किया।
महत्व: तंजावुर के निकट नार्थेश्वर मंदिर का निर्माण उनके शासनकाल में हुआ। उन्होंने चोल वंश को एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में पुनर्जनन किया।
2. आदित्य चोल प्रथम (लगभग 871-907 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: आदित्य प्रथम ने पल्लव शासक अपराजितवर्मन को पराजित कर काँचीपुरम पर कब्जा किया, जिसके साथ पल्लव वंश का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हुआ। उन्होंने पांड्यों को भी हराया।
स्थापत्य: उन्होंने कई शिव मंदिरों का निर्माण करवाया, जो चोल स्थापत्य की शुरुआत को दर्शाते हैं।
महत्व: आदित्य ने चोल साम्राज्य को दक्षिण भारत में एक प्रमुख शक्ति बनाया।
3. परांतक चोल प्रथम (907-955 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: परांतक प्रथम ने पांड्य और श्रीलंका पर आक्रमण किया। उन्होंने मदुरै पर कब्जा कर
स्थापत्य: उनके शासनकाल में चोल मंदिर निर्माण की परंपरा शुरू हुई, और कई छोटे मंदिर बनाए गए।
महत्व: परांतक ने चोल साम्राज्य का विस्तार किया और प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया।
4. राजराज चोल प्रथम (985-1014 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: राजराज चोल प्रथम चोल वंश के सबसे महान शासकों में से एक थे। उन्होंने पांड्य, चेर, और श्रीलंका के उत्तरी हिस्सों पर विजय प्राप्त की। उन्होंने चालुक्यों और गंग वंश को भी पराजित किया।
स्थापत्य: उन्होंने तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर (यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल) का निर्माण करवाया, जो द्रविड़ स्थापत्य का शिखर है।
प्रशासन और व्यापार: राजराज ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और नौसेना को मजबूत किया। उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया (श्रीविजय साम्राज्य) के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
महत्व: उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य अपने चरम पर पहुंचा, और उनकी नौसेना ने दक्षिण भारत को वैश्विक व्यापार का केंद्र बनाया।
5. राजेंद्र चोल प्रथम (1012-1044 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: राजेंद्र ने अपने पिता राजराज की नीतियों को आगे बढ़ाया। उन्होंने श्रीलंका को पूरी तरह जीत लिया और गंगा नदी तक अभियान किया, जिसके लिए उन्हें
स्थापत्य: उन्होंने गंगैकोण्डचोलपुरम में बृहदीश्वर मंदिर के समान एक भव्य मंदिर बनवाया, जो उनकी राजधानी थी।
महत्व: राजेंद्र ने चोल साम्राज्य को एक सामुद्रिक साम्राज्य में बदल दिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति का प्रसार किया।
6. राजाधिराज चोल (1044-1054 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: राजाधिराज ने चालुक्यों और श्रीलंका के विद्रोहों के खिलाफ युद्ध लड़े। कोप्पम का युद्ध (1054 ईस्वी) में उन्होंने चालुक्यों को हराया, लेकिन इस युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई।
महत्व: उन्होंने चोल साम्राज्य की शक्ति को बनाए रखा, लेकिन उनका शासनकाल संक्षिप्त रहा।
7. राजेंद्र चोल द्वितीय (1054-1063 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: राजेंद्र द्वितीय ने अपने भाई राजाधिराज की मृत्यु के बाद शासन संभाला। उन्होंने चालुक्यों और श्रीलंका में चोल प्रभुत्व को बनाए रखा।
महत्व: उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य स्थिर रहा, लेकिन कोई बड़े सैन्य अभियान नहीं हुए।
8. वीरराजेंद्र चोल (1063-1070 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: वीरराजेंद्र ने चालुक्यों और श्रीलंका के खिलाफ युद्ध लड़े। उन्होंने चालुक्य शासक सोमेश्वर प्रथम को पराजित किया और काँची में एक विजय स्मारक बनवाया।
महत्व: उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य की शक्ति बरकरार रही, लेकिन चालुक्य-पांड्य गठबंधन ने चुनौतियाँ पेश कीं।
9. आदित्य चोल द्वितीय (1070 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: आदित्य द्वितीय का शासनकाल बहुत संक्षिप्त था। उनकी हत्या कर दी गई, और उनके बाद कुलोत्तुंग चोल प्रथम ने शासन संभाला।
महत्व: उनका शासनकाल चोल वंश के लिए एक अस्थिर काल था।
10. कुलोत्तुंग चोल प्रथम (1070-1122 ईस्वी)
सैन्य उपलब्धियाँ: कुलोत्तुंग प्रथम चालुक्य और चोल वंशों के बीच एक मिश्रित वंशज थे। उन्होंने चालुक्य क्षेत्रों (वेंगी) को चोल साम्राज्य में मिलाया और श्रीलंका में चोल प्रभाव को बनाए रखा। पांड्यों और चेरों को भी अधीन रखा।
स्थापत्य: उनके शासनकाल में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ, और चोल स्थापत्य परंपरा को बढ़ावा मिला।
प्रशासन: उन्होंने प्रशासनिक सुधार किए और समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया। उनके समय में चोल नौसेना शक्तिशाली बनी रही।
महत्व: कुलोत्तुंग प्रथम ने चोल साम्राज्य को एक लंबा और स्थिर शासन प्रदान किया।
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