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Chola dynasty (about 850-1279 AD)
jp Singh 2025-05-22 16:35:17
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चोल वंश (लगभग 850-1279 ईस्वी)

चोल वंश (लगभग 850-1279 ईस्वी)
चोल वंश (लगभग 850-1279 ईस्वी)
चोल वंश दक्षिण भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने तमिलनाडु और पड़ोसी क्षेत्रों पर कई शताब्दियों तक शासन किया। चोलों का इतिहास प्राचीन काल से मध्यकाल तक फैला हुआ है, और उनका शासनकाल सांस्कृतिक, स्थापत्य, सैन्य, और समुद्री व्यापार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है। चोल वंश का शासन तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया जा सकता है: प्रारंभिक चोल, मध्यकालीन चोल, और बाद के चोल। मध्यकालीन चोल शासकों का काल (लगभग 850-1279 ईस्वी) चोल वंश का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल में चोलों ने पल्लव वंश को पराजित कर दक्षिण भारत में प्रभुत्व स्थापित किया।
प्रारंभिक चोल वंश (लगभग 300 ईसा पूर्व से 848 ईस्वी तक) दक्षिण भारत के प्रमुख तमिल राजवंशों में से एक था, जिसने तमिलनाडु और आसपास के क्षेत्रों में शासन किया। इस काल के चोल शासक अपनी सांस्कृतिक, साहित्यिक और धार्मिक उपलब्धियों के लिए जाने जाते हैं, हालाँकि उनके बारे में जानकारी मुख्य रूप से साहित्यिक स्रोतों जैसे संगम साहित्य और शिलालेखों से प्राप्त होती है। प्रारंभिक चोलों का शासनकाल मध्यकालीन चोलों (विजयालय चोल से शुरू) की तुलना में कम प्रलेखित है, और कई बार ऐतिहासिक और पौराणिक विवरण आपस में मिले हुए हैं। उनकी राजधानी शुरू में उरैयूर थी, जो तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली के पास स्थित थी।
प्रारंभिक चोल शासकों की जानकारी:
प्रारंभिक चोलों के शासकों की सूची और उनके कार्यकाल के बारे में जानकारी सीमित है, क्योंकि इस काल के अधिकांश अभिलेख खो चुके हैं। फिर भी, संगम साहित्य (जैसे पट्टिनप्पालै, पोरुनरारुपदै, और पुरनानूरु) और बाद के शिलालेखों (जैसे तिरुवलंगडु ताम्रपत्र) में कुछ प्रमुख शासकों का उल्लेख मिलता है। नीचे प्रारंभिक चोलों के कुछ महत्वपूर्ण शासकों और उनकी उपलब्धियों का उल्लेख है:
1. इलमचेत्सेन्नी (प्रारंभिक शताब्दी ईसा पूर्व):
विवरण: इलमचेत्सेन्नी को प्रारंभिक चोल वंश का एक प्रसिद्ध शासक माना जाता है। संगम साहित्य में उन्हें एक शक्तिशाली राजा के रूप में वर्णित किया गया है, जिन्होंने कई युद्ध लड़े।
उपलब्धियाँ: उन्होंने चोल क्षेत्र का विस्तार किया और चेर और पांड्य जैसे पड़ोसी राजवंशों के साथ प्रतिस्पर्धा की। उनके शासनकाल में उरैयूर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र था।
सांस्कृतिक योगदान: संगम साहित्य में उनके समय की समृद्ध तमिल संस्कृति और काव्य परंपरा का वर्णन मिलता है।
2. करिकाल चोल (लगभग 190 ईस्वी):
विवरण: करिकाल चोल प्रारंभिक चोलों के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक हैं और संगम साहित्य में उनकी वीरता और उपलब्धियों की प्रशंसा की गई है। उन्हें
सैन्य उपलब्धियाँ: उन्होंने वेंनी का युद्ध जीता, जिसमें चेर और पांड्य शासकों का गठबंधन पराजित हुआ। इस जीत ने चोल प्रभुत्व को स्थापित किया। संगम साहित्य के अनुसार, उन्होंने श्रीलंका पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा को हराया। उन्होंने कावेरी नदी पर बाँध बनवाए, जिससे सिंचाई और कृषि में सुधार हुआ।
सांस्कृतिक योगदान: करिकाल के शासनकाल में उरैयूर और पुहार (कावेरीपट्टनम) समृद्ध बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र बने। पट्टिनप्पालै जैसे संगम ग्रंथों में पुहार की समृद्धि और उनके शासन की प्रशंसा की गई है।
महत्व: करिकाल चोल को प्रारंभिक चोल वंश का सबसे प्रभावशाली शासक माना जाता है, जिन्होंने चोल साम्राज्य को सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टि से मजबूत किया।
3. नेदुन्जेलियन (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी):
विवरण: नेदुन्जेलियन एक अन्य प्रसिद्ध प्रारंभिक चोल शासक थे, जिनका उल्लेख संगम साहित्य में मिलता है।
उपलब्धियाँ: उन्होंने चेर और पांड्य शासकों के खिलाफ युद्ध लड़े और चोल क्षेत्र का विस्तार किया।
सांस्कृतिक योगदान: उनके शासनकाल में तमिल साहित्य और कला को प्रोत्साहन मिला। संगम साहित्य में उनके दरबार में कवियों और विद्वानों को संरक्षण देने का उल्लेख है।
4. कोप्पेरुन्जोलन (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी):
विवरण: कोप्पेरुन्जोलन एक कवि-राजा थे, जिन्हें संगम साहित्य में एक विद्वान और संरक्षक के रूप में वर्णित किया गया है।
उपलब्धियाँ: उनके शासनकाल में पुहार एक प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बना रहा। वे स्वयं एक कवि थे और संगम साहित्य में उनकी रचनाएँ शामिल हैं।
महत्व: उनकी कहानी में उनके प्रति निष्ठा और दुखद अंत का उल्लेख है, जो संगम साहित्य में उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है।
5. पेरुनरकिल्लि (लगभग तीसरी शताब्दी ईस्वी):
विवरण: पेरुनरकिल्लि को संगम साहित्य में एक शक्तिशाली चोल शासक के रूप में उल्लेखित किया गया है।
उपलब्धियाँ: उन्होंने चेर और पांड्य शासकों के साथ युद्ध लड़े और चोल क्षेत्र की रक्षा की। उनके समय में व्यापार और समुद्री गतिविधियाँ फली-फूलीं।
सांस्कृतिक योगदान: उनके शासनकाल में संगम साहित्य और तमिल काव्य परंपरा को बढ़ावा मिला।
प्रारंभिक चोलों की विशेषताएँ:
संगम साहित्य: प्रारंभिक चोलों का काल संगम साहित्य का स्वर्ण युग था। इस काल में पुरनानूरु, अकनानूरु, पट्टिनप्पालै जैसे ग्रंथों की रचना हुई, जो तमिल संस्कृति, समाज, और शासन का वर्णन करते हैं।
व्यापार और समुद्री गतिविधियाँ: पुहार (कावेरीपट्टनम) एक प्रमुख बंदरगाह था, जो रोम, ग्रीस, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार करता था। चोलों की समुद्री गतिविधियाँ उनकी आर्थिक समृद्धि का आधार थीं।
धार्मिक सहिष्णुता: प्रारंभिक चोल शासक वैदिक धर्म, जैन, और बौद्ध धर्म के संरक्षक थे। संगम साहित्य में विभिन्न धार्मिक परंपराओं का उल्लेख मिलता है।
प्रशासन: प्रारंभिक चोलों का प्रशासन ग्राम-आधारित था, जिसमें स्थानीय सभाएँ (मनरम) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।
प्रारंभिक चोलों का पतन:
प्रारंभिक चोलों का प्रभाव तीसरी शताब्दी ईस्वी के बाद कमजोर होने लगा। कलभ्र विद्रोह (लगभग 3rd-6th सदी ईस्वी) ने चोल, चेर, और पांड्य वंशों को कमजोर किया।
इस काल में चोल वंश की शक्ति पल्लव और पांड्य वंशों के उदय के कारण कम हो गई। चोल पल्लवों के अधीनस्थ बन गए और कई शताब्दियों तक उनकी स्वतंत्र शक्ति समाप्त रही।
चोल वंश का पुनरुत्थान विजयालय चोल (848 ईस्वी से) के साथ मध्यकालीन चोल काल में हुआ, जिसने तंजावुर को अपनी राजधानी बनाकर चोल साम्राज्य को पुनर्जनन किया।
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