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Nriptungavarman (about 869-880 AD)
jp Singh 2025-05-22 16:27:13
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नृपतुंगवर्मन (लगभग 869-880 ईस्वी)

नृपतुंगवर्मन (लगभग 869-880 ईस्वी)
नृपतुंगवर्मन (लगभग 869-880 ईस्वी)
नृपतुंगवर्मन (लगभग 869-880 ईस्वी) पल्लव वंश के अंतिम शासकों में से एक थे और नंदिवर्मन तृतीय के पुत्र थे। उनका शासनकाल पल्लव साम्राज्य के पतन के अंतिम चरण का प्रतीक है, जब चोल, पांड्य, और राष्ट्रकूट जैसे पड़ोसी राजवंशों की बढ़ती शक्ति ने पल्लवों को कमजोर कर दिया था। नृपतुंगवर्मन का शासनकाल अपेक्षाकृत संक्षिप्त रहा, और इस दौरान पल्लव साम्राज्य का प्रभाव तेजी से सिकुड़ गया। उनके शासनकाल के बारे में जानकारी सीमित है, लेकिन वे पल्लव वंश की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं।
1. शासनकाल और सैन्य चुनौतियाँ:
नृपतुंगवर्मन ने अपने पिता नंदिवर्मन तृतीय की मृत्यु के बाद शासन संभाला। उनका शासनकाल चोल, पांड्य, और राष्ट्रकूट वंशों के बढ़ते दबाव के बीच बीता।
इस समय तक चोल वंश, विशेष रूप से आदित्य चोल प्रथम के नेतृत्व में, तेजी से शक्तिशाली हो रहा था। चोलों ने पल्लव क्षेत्रों पर आक्रमण शुरू किए, और नृपतुंगवर्मन इन आक्रमणों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में असमर्थ रहे।
पांड्य और राष्ट्रकूट शासकों ने भी पल्लव क्षेत्रों पर दबाव बनाए रखा, जिसके कारण पल्लव साम्राज्य का क्षेत्रीय नियंत्रण और सैन्य शक्ति कमजोर हो गई।
कुछ शिलालेखों से पता चलता है कि नृपतुंगवर्मन ने पांड्य शासक वरगुण वर्मन द्वितीय के खिलाफ युद्ध लड़ा, लेकिन इस युद्ध में उनकी हार हुई, जिसने पल्लव साम्राज्य को और कमजोर किया।
2. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान:
नृपतुंगवर्मन के शासनकाल में पल्लव वंश की द्रविड़ स्थापत्य परंपरा का कोई नया बड़ा कार्य दर्ज नहीं है, जो संभवतः साम्राज्य की कमजोर स्थिति और सैन्य चुनौतियों के कारण था।
काँचीपुरम और महाबलीपुरम जैसे केंद्र उनके समय में भी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण बने रहे। पहले से निर्मित मंदिरों, जैसे कैलासनाथ मंदिर और वैकुंठ पेरुमाल मंदिर, का रखरखाव और संरक्षण उनके शासनकाल में जारी रहा।
तमिल और संस्कृत साहित्य को उनके दरबार में सीमित स्तर पर प्रोत्साहन मिला, लेकिन सांस्कृतिक गतिविधियाँ पहले की तुलना में कम प्रभावशाली थीं।
3. धर्म और प्रशासन:
नृपतुंगवर्मन ने अपने पूर्वजों की तरह शैव और वैष्णव धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता की पल्लव परंपरा बरकरार रही।
काँचीपुरम उनके शासनकाल में भी एक धार्मिक और बौद्धिक केंद्र बना रहा, हालाँकि इसकी राजनीतिक और सैन्य शक्ति लगभग समाप्त हो चुकी थी।
प्रशासनिक ढांचा कमजोर होने के बावजूद, नृपतुंगवर्मन ने पल्लव साम्राज्य को एकजुट रखने का प्रयास किया।
4. उत्तराधिकार और पल्लव वंश का अंत:
नृपतुंगवर्मन की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अपराजितवर्मन (लगभग 880-897 ईस्वी) ने शासन संभाला। अपराजितवर्मन को पल्लव वंश का अंतिम शासक माना जाता है।
नृपतुंगवर्मन के शासनकाल के अंत तक पल्लव साम्राज्य लगभग पूरी तरह से चोल वंश के अधीन आ चुका था। चोल शासक आदित्य चोल प्रथम ने अपराजितवर्मन को पराजित कर पल्लव साम्राज्य का अंत कर दिया, और काँचीपुरम सहित पल्लव क्षेत्र चोल साम्राज्य का हिस्सा बन गए।
नृपतुंगवर्मन का शासनकाल पल्लव वंश के पतन का अंतिम पड़ाव था, जिसके बाद पल्लव वंश का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया।
महत्वपूर्ण बिंदु:
चोल और पांड्य दबाव: नृपतुंगवर्मन के शासनकाल में चोल और पांड्य वंशों के आक्रमणों ने पल्लव साम्राज्य को कमजोर कर दिया।
काँची का धार्मिक महत्व: काँचीपुरम धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण बना रहा, लेकिन इसकी राजनीतिक शक्ति समाप्त हो गई।
पल्लव पतन: नृपतुंगवर्मन का शासनकाल पल्लव वंश के अंतिम चरण को दर्शाता है, जिसके बाद चोल वंश ने दक्षिण भारत में प्रभुत्व स्थापित किया।
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