Nandivarman III about 847-869 AD
jp Singh
2025-05-22 16:24:18
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नंदिवर्मन तृतीय (लगभग 847-869 ईस्वी)
नंदिवर्मन तृतीय (लगभग 847-869 ईस्वी)
नंदिवर्मन तृतीय (लगभग 847-869 ईस्वी)
नंदिवर्मन तृतीय (लगभग 847-869 ईस्वी) पल्लव वंश के अंतिम प्रमुख शासकों में से एक थे और दंतिवर्मन के पुत्र थे। उनका शासनकाल पल्लव साम्राज्य के लिए एक आंशिक पुनरुत्थान का काल था, जिसमें उन्होंने सैन्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालाँकि, इस समय तक पल्लव साम्राज्य की शक्ति पहले की तुलना में कमजोर हो चुकी थी, और चोल, पांड्य, और राष्ट्रकूट जैसे पड़ोसी राजवंशों का प्रभाव बढ़ रहा था। नंदिवर्मन तृतीय का शासनकाल पल्लव वंश के पतन के अंतिम चरणों में से एक माना जाता है।
1. शासनकाल और सैन्य उपलब्धियाँ:
नंदिवर्मन तृतीय ने अपने पिता दंतिवर्मन की मृत्यु के बाद शासन संभाला। उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य ने कुछ समय के लिए अपनी सैन्य शक्ति को पुनर्जनन करने का प्रयास किया।
उन्होंने पांड्य शासक श्रीमारा श्रीवल्लभ के खिलाफ तलैचंगम की लड़ाई (लगभग 859 ईस्वी) में महत्वपूर्ण जीत हासिल की। इस युद्ध में पल्लवों ने पांड्यों और उनके सहयोगी श्रीलंका के सैन्य बलों को पराजित किया, जिससे पल्लव साम्राज्य की प्रतिष्ठा कुछ हद तक बहाल हुई।
नंदिवर्मन तृतीय ने राष्ट्रकूटों और चोलों के साथ भी संघर्ष किया, लेकिन इन शक्तियों के बढ़ते प्रभाव को पूरी तरह रोक पाना उनके लिए संभव नहीं रहा। उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य का क्षेत्रीय नियंत्रण धीरे-धीरे सिकुड़ता गया, विशेष रूप से चोल वंश के उदय के कारण।
2. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान:
नंदिवर्मन तृतीय के शासनकाल में पल्लव वंश की द्रविड़ स्थापत्य परंपरा जारी रही, लेकिन कोई बड़े पैमाने पर नए मंदिरों का निर्माण उनके नाम से स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है। उनके समय में काँचीपुरम और महाबलीपुरम धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बने रहे। पहले से निर्मित मंदिरों, जैसे कैलासनाथ मंदिर और वैकुंठ पेरुमाल मंदिर, का रखरखाव और संरक्षण उनके शासनकाल में हुआ। तमिल और संस्कृत साहित्य को उनके दरबार में प्रोत्साहन मिला, और काँचीपुरम विद्वानों और कवियों का केंद्र बना रहा।
3. धर्म और प्रशासन:
नंदिवर्मन तृतीय ने अपने पूर्वजों की तरह शैव और वैष्णव धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता की पल्लव परंपरा बरकरार रही।
काँचीपुरम उनके शासनकाल में भी एक प्रमुख धार्मिक और प्रशासनिक केंद्र बना रहा, हालाँकि इसकी राजनीतिक शक्ति कमजोर हो रही थी। उनके शासनकाल में प्रशासनिक ढांचा कुछ हद तक स्थिर रहा, लेकिन पड़ोसी शक्तियों के दबाव ने साम्राज्य की एकता को प्रभावित किया।
4. उत्तराधिकार और विरासत:
नंदिवर्मन तृतीय की मृत्यु के बाद उनके पुत्र नृपतुंगवर्मन ने शासन संभाला। हालाँकि, इस समय तक पल्लव वंश का प्रभाव तेजी से कम हो रहा था।
नंदिवर्मन तृतीय का शासनकाल पल्लव वंश के अंतिम महत्वपूर्ण कालों में से एक था। उनके बाद चोल वंश ने धीरे-धीरे पल्लव क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप पल्लव साम्राज्य का अंत हुआ।
उनकी सैन्य जीत, विशेष रूप से तलैचंगम की लड़ाई, ने पल्लव वंश को कुछ समय के लिए जीवित रखा, लेकिन यह पतन को पूरी तरह रोक नहीं सका।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
तलैचंगम की लड़ाई: पांड्यों पर जीत ने पल्लव साम्राज्य की प्रतिष्ठा को अस्थायी रूप से बहाल किया।
काँची का संरक्षण: काँचीपुरम को धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में बनाए रखा।
पल्लव परंपरा का पालन: द्रविड़ स्थापत्य और धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा को उनके शासनकाल में भी कायम रखा गया।
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