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Nandivarman II about 731-796 AD
jp Singh 2025-05-22 16:18:18
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नंदिवर्मन द्वितीय (लगभग 731-796 ईस्वी)

नंदिवर्मन द्वितीय (लगभग 731-796 ईस्वी)
नंदिवर्मन द्वितीय (लगभग 731-796 ईस्वी)
नंदिवर्मन द्वितीय (लगभग 731-796 ईस्वी), जिन्हें पल्लवमल्ल के नाम से भी जाना जाता है, पल्लव वंश के एक प्रमुख और प्रभावशाली शासक थे। वे परमेश्वरवर्मन द्वितीय की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुए उत्तराधिकार संकट के बाद सिंहासन पर आसीन हुए। नंदिवर्मन द्वितीय का शासनकाल पल्लव साम्राज्य के पुनरुत्थान और स्थिरता का काल माना जाता है। उन्होंने न केवल सैन्य शक्ति को पुनर्जनन किया, बल्कि सांस्कृतिक और स्थापत्य क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1. सिंहासन पर आगमन:
परमेश्वरवर्मन द्वितीय की मृत्यु के बाद पल्लव वंश में उत्तराधिकार का संकट उत्पन्न हुआ, क्योंकि कोई प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी नहीं था। नंदिवर्मन द्वितीय, जो पल्लव वंश की एक समानांतर शाखा से संबंधित थे, को काँचीपुरम के प्रमुख लोगों और अधिकारियों ने सिंहासन के लिए चुना। उनकी उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वान मानते हैं कि वे श्रीलंका या दक्षिण-पूर्व एशिया में पल्लव वंश की एक शाखा से संबंधित थे, जो व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से भारत लौटे। सिंहासन पर उनका चयन एक कठिन परिस्थिति में हुआ, क्योंकि चालुक्य वंश ने काँचीपुरम पर कब्जा कर लिया था।
2. सैन्य उपलब्धियाँ:
नंदिवर्मन द्वितीय ने चालुक्य वंश के आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया और काँचीपुरम को पुनः पल्लव नियंत्रण में लाया। उन्होंने चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय के खिलाफ कई युद्ध लड़े। तोल्लूर का युद्ध (लगभग 735 ईस्वी) उनकी सबसे महत्वपूर्ण सैन्य जीत थी, जिसमें उन्होंने चालुक्यों को पराजित किया और पल्लव साम्राज्य की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया। उन्होंने पांड्य, चोल, और अन्य दक्षिण भारतीय शक्तियों के साथ भी युद्ध किए और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। पांड्यों के खिलाफ उनकी जीत ने पल्लव प्रभाव को दक्षिण में और बढ़ाया। उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य ने समुद्री व्यापार और श्रीलंका के साथ संबंधों को भी मजबूत किया।
3. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान:
नंदिवर्मन द्वितीय ने अपने पूर्वजों की द्रविड़ स्थापत्य परंपरा को आगे बढ़ाया। उनके शासनकाल में कई महत्वपूर्ण मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार हुआ।
उनके प्रमुख स्थापत्य कार्यों में शामिल हैं:
मुकुंदेश्वर मंदिर, काँचीपुरम: यह मंदिर उनकी स्थापत्य दृष्टि का एक उदाहरण है।
वैकुंठ पेरुमाल मंदिर, काँचीपुरम: इस वैष्णव मंदिर का निर्माण उनके शासनकाल में हुआ, जो अपनी जटिल नक्काशी और ऐतिहासिक शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है।
उनके समय में काँचीपुरम और महाबलीपुरम सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत करते रहे। तमिल और संस्कृत साहित्य को उनके संरक्षण में प्रोत्साहन मिला। उनके दरबार में विद्वानों और कवियों को सम्मान प्राप्त था।
4. धर्म और प्रशासन:
नंदिवर्मन द्वितीय वैष्णव धर्म के प्रबल अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने शैव और जैन धर्मों को भी संरक्षण प्रदान किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता की पल्लव परंपरा बनी रही। उनके शासनकाल में काँचीपुरम एक प्रमुख धार्मिक और बौद्धिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ, जो वैष्णव और शैव विद्वानों का आकर्षण केंद्र था। उन्होंने प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से साम्राज्य को संगठित और स्थिर बनाए रखा।
5. उत्तराधिकार और विरासत:
नंदिवर्मन द्वितीय का शासनकाल लंबा (लगभग 65 वर्ष) और प्रभावशाली रहा। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र दंतिवर्मन ने शासन संभाला। उनकी सैन्य और सांस्कृतिक उपलब्धियों ने पल्लव वंश को दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध साम्राज्य के रूप में बनाए रखा। उनके द्वारा निर्मित मंदिर और स्थापत्य कार्य आज भी पल्लव कला और वास्तुकला की महिमा को दर्शाते हैं।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
तोल्लूर का युद्ध: चालुक्यों पर जीत ने पल्लव साम्राज्य की शक्ति को पुनर्स्थापित किया।
वैकुंठ पेरुमाल मंदिर: यह मंदिर उनकी धार्मिक और स्थापत्य दृष्टि का प्रतीक है।
काँची का पुनरुत्थान: चालुक्य आक्रमणों के बाद काँचीपुरम को पुनः एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया।
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