Parameshwaravarman II about 728-731 AD
jp Singh
2025-05-22 16:15:11
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परमेश्वरवर्मन द्वितीय (लगभग 728-731 ईस्वी)
परमेश्वरवर्मन द्वितीय (लगभग 728-731 ईस्वी)
परमेश्वरवर्मन द्वितीय (लगभग 728-731 ईस्वी)
पल्लव वंश के शासक थे और नरसिंहवर्मन द्वितीय (रजसिंह) के पुत्र थे। उनका शासनकाल बहुत संक्षिप्त (लगभग तीन वर्ष) रहा और यह पल्लव वंश के इतिहास में एक अस्थिर और चुनौतीपूर्ण काल के रूप में देखा जाता है। परमेश्वरवर्मन द्वितीय का शासनकाल चालुक्य आक्रमणों और आंतरिक अस्थिरता से प्रभावित रहा, जिसके कारण उनकी मृत्यु के बाद पल्लव वंश में उत्तराधिकार का संकट उत्पन्न हुआ।
1. शासनकाल और सैन्य चुनौतियाँ:
परमेश्वरवर्मन द्वितीय ने अपने पिता नरसिंहवर्मन द्वितीय की मृत्यु के बाद शासन संभाला। उनका शासनकाल चालुक्य वंश के आक्रमणों से चिह्नित था, विशेष रूप से चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय के नेतृत्व में। चालुक्यों ने पल्लव क्षेत्रों पर आक्रमण किया और काँचीपुरम पर कब्जा कर लिया। परमेश्वरवर्मन द्वितीय इस आक्रमण का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर सके और संभवतः युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई। इस हार के परिणामस्वरूप पल्लव साम्राज्य में अस्थिरता बढ़ी, और उनके शासनकाल के अंत में उत्तराधिकार का संकट उत्पन्न हुआ।
2. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान:
परमेश्वरवर्मन द्वितीय का शासनकाल बहुत संक्षिप्त होने के कारण उनके नाम से कोई प्रमुख स्थापत्य कार्य या सांस्कृतिक योगदान स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है। उनके पिता नरसिंहवर्मन द्वितीय द्वारा शुरू की गई द्रविड़ स्थापत्य परंपरा, जैसे काँचीपुरम के कैलासनाथ मंदिर और महाबलीपुरम के किनारे के मंदिर, उनके समय में भी सांस्कृतिक महत्व रखती थी, लेकिन नए निर्माण कार्यों का अभाव रहा। काँचीपुरम धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने में सक्षम रहा, लेकिन चालुक्य आक्रमणों ने इसकी प्रगति को प्रभावित किया।
3. धर्म और प्रशासन:
परमेश्वरवर्मन द्वितीय ने अपने पूर्वजों की तरह शैव और वैष्णव धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, लेकिन उनके संक्षिप्त शासनकाल और युद्धों के कारण धार्मिक गतिविधियों पर ज्यादा ध्यान देना संभव नहीं हुआ। उनके शासनकाल में काँचीपुरम का प्रशासनिक महत्व बना रहा, लेकिन चालुक्य आक्रमणों ने साम्राज्य की स्थिरता को कमजोर किया।
4. उत्तराधिकार और विरासत:
परमेश्वरवर्मन द्वितीय की मृत्यु के बाद पल्लव वंश में उत्तराधिकार का संकट उत्पन्न हुआ, क्योंकि उनके कोई प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी नहीं थे। इस संकट के परिणामस्वरूप नंदिवर्मन द्वितीय (पल्लवमल्ल) को पल्लव सिंहासन पर बिठाया गया, जो एक समानांतर शाखा से था। नंदिवर्मन द्वितीय ने बाद में पल्लव साम्राज्य को पुनर्जनन और स्थिरता प्रदान की। परमेश्वरवर्मन द्वितीय का शासनकाल पल्लव वंश के लिए एक कमजोर कड़ी के रूप में देखा जाता है, क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद साम्राज्य को चालुक्य आक्रमणों और आंतरिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा।
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