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Narasimhavarman II about 700-728 AD
jp Singh 2025-05-22 16:12:37
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नरसिंहवर्मन द्वितीय (लगभग 700-728 ईस्वी)

नरसिंहवर्मन द्वितीय (लगभग 700-728 ईस्वी)
नरसिंहवर्मन द्वितीय (लगभग 700-728 ईस्वी)
नरसिंहवर्मन द्वितीय (लगभग 700-728 ईस्वी), जिन्हें रजसिंह के नाम से भी जाना जाता है, पल्लव वंश के एक प्रमुख शासक थे और परमेश्वरवर्मन प्रथम के पुत्र थे। उनका शासनकाल पल्लव साम्राज्य के सांस्कृतिक और स्थापत्य विकास के स्वर्ण युग के रूप में माना जाता है। नरसिंहवर्मन द्वितीय ने अपने पूर्वजों की द्रविड़ स्थापत्य परंपरा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और कई भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया, जो आज भी भारतीय कला और वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
1. सैन्य और राजनीतिक स्थिति:
नरसिंहवर्मन द्वितीय का शासनकाल अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा, जिसने उन्हें सांस्कृतिक और स्थापत्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया। हालाँकि, चालुक्य वंश के साथ तनाव और छिटपुट संघर्ष जारी रहे। उन्होंने पांड्य, चोल और चेर जैसे दक्षिण भारतीय राजवंशों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखे, जिससे पल्लव साम्राज्य की स्थिरता बनी रही। उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य का प्रभाव दक्षिण भारत और समुद्री व्यापार के माध्यम से श्रीलंका तक फैला।
2. स्थापत्य और सांस्कृतिक योगदान:
नरसिंहवर्मन द्वितीय को द्रविड़ स्थापत्य शैली के विकास में उनके असाधारण योगदान के लिए जाना जाता है। उनके समय में निर्मित मंदिर संरचनात्मक मंदिरों (structural temples) के प्रारंभिक उदाहरण हैं, जो उनके पूर्वजों के रॉक-कट मंदिरों से एक कदम आगे थे।
उनके प्रमुख स्थापत्य कार्यों में शामिल हैं:
कैलासनाथ मंदिर, कांचीपुरम: यह मंदिर पल्लव स्थापत्य का शिखर है। इसे उनके पिता परमेश्वरवर्मन प्रथम ने शुरू किया था, लेकिन नरसिंहवर्मन द्वितीय ने इसे पूर्ण और अलंकृत किया। यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।
किनारे का मंदिर (Shore Temple), महाबलीपुरम: यह समुद्र तट पर स्थित मंदिर नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासनकाल में निर्मित हुआ। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और द्रविड़ स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
वैकुंठ पेरुमाल मंदिर, कांचीपुरम: यह वैष्णव मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला और नक्काशी के लिए जाना जाता है।
उनके मंदिरों में नक्काशी, मूर्तिकला और चित्रकला का उच्च स्तर देखा जाता है, जो पल्लव कला की परिपक्वता को दर्शाता है।
3. धर्म और संस्कृति:
नरसिंहवर्मन द्वितीय शैव धर्म के प्रबल अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने वैष्णव और जैन धर्मों को भी संरक्षण प्रदान किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता की पल्लव परंपरा बनी रही। उनके शासनकाल में कांचीपुरम एक प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत किया। यह विद्वानों, कवियों और कलाकारों का केंद्र था। तमिल और संस्कृत साहित्य को उनके समय में प्रोत्साहन मिला, और काँची में धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ फली-फूलीं।
4. उत्तराधिकार और विरासत:
नरसिंहवर्मन द्वितीय के बाद उनके पुत्र परमेश्वरवर्मन द्वितीय ने शासन संभाला, लेकिन उनका शासनकाल संक्षिप्त रहा। नरसिंहवर्मन द्वितीय की स्थापत्य और सांस्कृतिक विरासत ने पल्लव वंश को दक्षिण भारतीय इतिहास में अमर कर दिया। उनके द्वारा निर्मित मंदिर आज भी भारतीय कला और वास्तुकला के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनकी मृत्यु के बाद पल्लव साम्राज्य में कुछ अस्थिरता आई, लेकिन उनकी स्थापत्य उपलब्धियाँ लंबे समय तक प्रभावशाली रहीं।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
कैलासनाथ मंदिर: काँचीपुरम में यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य का सर्वोच्च उदाहरण है, जो अपनी जटिल नक्काशी और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।
किनारे का मंदिर: महाबलीपुरम में समुद्र तट पर बना यह मंदिर पल्लव स्थापत्य की परिपक्वता को दर्शाता है।
सांस्कृतिक संरक्षण: उनके शासनकाल में काँचीपुरम और महाबलीपुरम दक्षिण भारत के सांस्कृतिक केंद्र बने रहे।
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