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Parameshwaravarman I 672-700 AD
jp Singh 2025-05-22 16:08:49
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परमेश्वरवर्मन प्रथम (लगभग 672-700 ईस्वी)

परमेश्वरवर्मन प्रथम (लगभग 672-700 ईस्वी)
परमेश्वरवर्मन प्रथम (लगभग 672-700 ईस्वी)
परमेश्वरवर्मन प्रथम (लगभग 672-700 ईस्वी) पल्लव वंश के एक प्रमुख शासक थे और महेंद्रवर्मन द्वितीय के पुत्र थे। उनके शासनकाल को पल्लव साम्राज्य के पुनरुत्थान और स्थिरता के काल के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से चालुक्य वंश के साथ निरंतर संघर्ष के संदर्भ में। परमेश्वरवर्मन प्रथम ने अपने पूर्वजों की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत को आगे बढ़ाया और पल्लव साम्राज्य को दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में स्थापित रखा।
1. सैन्य उपलब्धियाँ:
परमेश्वरवर्मन प्रथम का शासनकाल चालुक्य वंश के साथ तीव्र संघर्षों से चिह्नित था। चालुक्य शासक विक्रमादित्य प्रथम ने अपने पिता पुलकेशिन द्वितीय की हार का बदला लेने के लिए पल्लव क्षेत्रों पर आक्रमण किया था। परमेश्वरवर्मन ने इन आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने पेरुवलनल्लूर के युद्ध में चालुक्यों को पराजित किया, जिससे पल्लव साम्राज्य की स्थिति मजबूत हुई। परमेश्वरवर्मन ने अन्य दक्षिण भारतीय शक्तियों, जैसे पांड्य और चेर, के साथ भी अपनी स्थिति को संतुलित किया, जिससे पल्लव प्रभाव क्षेत्र का विस्तार हुआ।
2. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान:
परमेश्वरवर्मन प्रथम ने अपने पूर्वजों, विशेष रूप से महेंद्रवर्मन प्रथम और नरसिंहवर्मन प्रथम, द्वारा शुरू की गई द्रविड़ स्थापत्य शैली को जारी रखा। उनके शासनकाल में कांचीपुरम में कई मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार हुआ। काँची के कैलासनाथ मंदिर की नींव उनके शासनकाल में रखी गई, जो बाद में उनके उत्तराधिकारी नरसिंहवर्मन द्वितीय (रजसिंह) के समय पूर्ण हुआ। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। महाबलीपुरम में भी कुछ स्थापत्य कार्य उनके समय में हुए, हालाँकि उनके योगदान अपने पिता नरसिंहवर्मन प्रथम की तुलना में कम व्यापक थे।
3. धर्म और संस्कृति:
परमेश्वरवर्मन प्रथम शैव धर्म के प्रबल अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने वैष्णव और अन्य धर्मों को भी संरक्षण प्रदान किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता की पल्लव परंपरा बनी रही। उनके शासनकाल में काँचीपुरम एक प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ, जो विद्वानों और कलाकारों का आकर्षण केंद्र था। तमिल और संस्कृत साहित्य को उनके समय में बढ़ावा मिला, और काँची एक महत्वपूर्ण शैक्षिक केंद्र बना।
4. उत्तराधिकार और विरासत:
परमेश्वरवर्मन प्रथम के बाद उनके पुत्र नरसिंहवर्मन द्वितीय (रजसिंह) ने शासन संभाला, जिन्होंने पल्लव स्थापत्य को और समृद्ध किया। परमेश्वरवर्मन का शासनकाल पल्लव वंश के लिए एक स्थिरता का काल था, जिसने चालुक्य आक्रमणों के बावजूद साम्राज्य की शक्ति को बनाए रखा। उनकी सैन्य और सांस्कृतिक नीतियों ने पल्लव वंश को दक्षिण भारत में एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में बनाए रखा।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
चालुक्यों पर विजय: परमेश्वरवर्मन ने चालुक्य आक्रमणों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और पेरुवलनल्लूर में विजय प्राप्त की।
कैलासनाथ मंदिर: काँची के इस ऐतिहासिक मंदिर की नींव उनके शासनकाल में रखी गई, जो द्रविड़ स्थापत्य का प्रतीक है।
सांस्कृतिक संरक्षण: उनके शासन में काँचीपुरम ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक प्रमुखता को बनाए रखा।
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