Satavahana dynasty
jp Singh
2025-05-22 07:05:56
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सातवाहन वंश
सातवाहन वंश
सातवाहन वंश
सातवाहन शासक द्वारा कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मा की पराजय और कण्व वंश का अंत (लगभग 28 ईसा पूर्व) प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। पुराणों के अनुसार, सातवाहन शासक (संभवतः सिमुक या उनके उत्तराधिकारी) ने सुशर्मा को हराकर मगध और मध्य भारत में अपनी सत्ता स्थापित की। यह घटना कण्व वंश के 45 वर्षों (73-28 ईसा पूर्व) के शासन के अंत और सातवाहन वंश के उदय का प्रतीक है। नीचे सातवाहन शासक द्वारा कण्व वंश के पतन के संदर्भ में इस घटना का विस्तृत विवरण, सातवाहन वंश का परिचय, उनकी भूमिका, और ऐतिहासिक महत्व प्रस्तुत किया गया है।
1. सातवाहन वंश का परिचय
सातवाहन वंश (लगभग 2nd शताब्दी ईसा पूर्व 3rd शताब्दी ईस्वी) प्राचीन भारत का एक प्रमुख क्षेत्रीय वंश था, जो दक्षिण भारत और मध्य भारत में अपनी शक्ति के लिए जाना जाता है। सातवाहन, जिन्हें आंध्र के नाम से भी जाना जाता है, ने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया। वे अपनी सैन्य शक्ति, व्यापारिक समृद्धि, और सांस्कृतिक योगदान (विशेष रूप से बौद्ध धर्म और वैदिक परंपराओं के संरक्षण) के लिए प्रसिद्ध हैं।
a. उत्पत्ति और नाम
नाम: सातवाहन का अर्थ है
जातीय और सामाजिक पृष्ठभूमि: सातवाहन संभवतः दक्षिण भारत के द्रविड़ या मिश्रित आर्य-द्रविड़ मूल के थे। कुछ विद्वान उन्हें क्षत्रिय मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें स्थानीय दक्षिण भारतीय कुलों से जोड़ते हैं। नासिक शिलालेख में सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि को
उत्पत्ति क्षेत्र: सातवाहन का मूल क्षेत्र संभवतः दक्कन (वर्तमान महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना) था। उनकी प्रारंभिक राजधानी प्रतिष्ठान (वर्तमान पैठण, महाराष्ट्र) थी, और बाद में अमरावती और नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) उनके महत्वपूर्ण केंद्र बने।
b. काल और विस्तार
सातवाहन वंश का काल विवादास्पद है, लेकिन सामान्य रूप से इसे 2nd शताब्दी ईसा पूर्व से 3rd शताब्दी ईस्वी तक माना जाता है। पुराणों के अनुसार, सातवाहन ने कुल 30 शासकों के साथ लगभग 400-450 वर्षों तक शासन किया। उनके साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत (दक्कन), मध्य भारत (मालवा, विदिशा), और पूर्वी भारत (कलिंग) तक था। अपने चरम पर, सातवाहन ने पश्चिमी भारत (गुजरात, काठियावाड़) और मगध तक प्रभाव स्थापित किया।
c. सातवाहन शासक और कण्व वंश का अंत
सिमुक: सातवाहन वंश का संस्थापक सिमुक (लगभग 2nd शताब्दी ईसा पूर्व) माना जाता है। पुराणों में उन्हें सातवाहन वंश का पहला शासक कहा गया है, जिसने कण्व वंश को समाप्त किया। हालांकि, कुछ विद्वान मानते हैं कि सुशर्मा की पराजय सिमुक के उत्तराधिकारी, जैसे उनके भाई कृष्ण या बाद के शासक, द्वारा हुई हो सकती है।
काल: कण्व वंश का अंत लगभग 28 ईसा पूर्व में हुआ, जो सातवाहन वंश के प्रारंभिक दौर से मेल खाता है। इस समय सातवाहन दक्कन में अपनी शक्ति को मजबूत कर रहे थे और मध्य भारत में विस्तार कर रहे थे।
2. सातवाहन द्वारा कण्व वंश का पतन
पुराणों (विष्णु पुराण, भागवत पुराण, हरिवंश पुराण) के अनुसार, सातवाहन शासक ने कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मा को पराजित कर कण्व वंश को समाप्त किया। यह घटना लगभग 28 ईसा पूर्व में हुई। नीचे इस घटना का विस्तृत विवरण दिया गया है।
a. पृष्ठभूमि
कण्व वंश की कमजोरी: कण्व वंश (73-28 ईसा पूर्व) अपने स्थापना काल से ही कमजोर था। वासुदेव कण्व ने 73 ईसा पूर्व में शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति की हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की थी। वासुदेव (73-66 ईसा पूर्व), भूमिमित्र (66-52 ईसा पूर्व), नारायण (52-40 ईसा पूर्व), और सुशर्मा (40-28 ईसा पूर्व) के शासनकाल में कण्व वंश ने मगध, मध्य भारत, और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों पर नाममात्र का शासन किया। हालांकि, निम्नलिखित कारणों से कण्व वंश कमजोर था:
यवन और शक आक्रमण: उत्तर-पश्चिम भारत में यवन (इंडो-ग्रीक) और शक शासकों का प्रभाव बढ़ रहा था, जिसने कण्व साम्राज्य को कमजोर किया।
आंतरिक अस्थिरता: कण्व वंश की सत्ता हासिल करने की प्रक्रिया (देवभूति की हत्या) ने उनकी वैधता पर सवाल उठाए, और आंतरिक विद्रोहों ने प्रशासन को कमजोर किया।
क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: मथुरा, कौशांबी, और अन्य क्षेत्रों में स्थानीय शासकों ने कण्व प्रभुत्व को चुनौती दी।
सैन्य कमजोरी: कण्व सेना शुंग काल की तुलना में बहुत कमजोर थी और बाहरी शत्रुओं का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर सकी।
सातवाहन का उदय: इस समय सातवाहन वंश दक्कन में अपनी शक्ति को मजबूत कर रहा था। सिमुक और उनके उत्तराधिकारियों ने दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया था और मध्य भारत (मालवा, विदिशा) की ओर विस्तार शुरू कर दिया था। सातवाहन की सैन्य शक्ति और व्यापारिक समृद्धि ने उन्हें कण्व वंश जैसे कमजोर वंश को पराजित करने में सक्षम बनाया।
b. सुशर्मा की पराजय
घटना: पुराणों के अनुसार, सातवाहन शासक ने सुशर्मा को पराजित कर कण्व वंश को समाप्त किया। यह घटना लगभग 28 ईसा पूर्व में हुई। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि सातवाहन (या आंध्र) ने कण्व वंश को उखाड़ फेंका और मगध में अपनी सत्ता स्थापित की।
सातवाहन शासक: सिमुक को पारंपरिक रूप से कण्व वंश को समाप्त करने वाला शासक माना जाता है। सिमुक सातवाहन वंश का संस्थापक था और उसने दक्कन में अपनी शक्ति को मजबूत करने के बाद मध्य भारत की ओर विस्तार किया। हालांकि, कुछ विद्वान मानते हैं कि यह पराजय सिमुक के भाई कृष्ण या उनके उत्तराधिकारी द्वारा हुई हो सकती है, क्योंकि सिमुक का शासनकाल (2nd शताब्दी ईसा पूर्व) कण्व वंश के अंत (28 ईसा पूर्व) से पहले का हो सकता है।
युद्ध और परिणाम: सुशर्मा की पराजय के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि सातवाहन की सैन्य शक्ति ने कण्व वंश की कमजोर सेना को आसानी से हरा दिया। संभवतः यह युद्ध मध्य भारत (विदिशा या मालवा) या मगध (पाटलिपुत्र) के क्षेत्र में हुआ। सातवाहन ने मगध और मध्य भारत में अपनी सत्ता स्थापित की, जिसने कण्व वंश के शासन को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
सुशर्मा का अंत: सुशर्मा की मृत्यु या उनके बाद की स्थिति के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यह संभव है कि वे युद्ध में मारे गए हों या पराजय के बाद निर्वासित हुए हों। उनके साथ ही कण्व वंश का अंत हो गया।
c. परिणाम
कण्व वंश का अंत: सातवाहन द्वारा सुशर्मा की पराजय ने कण्व वंश के 45 वर्षों के शासन (73-28 ईसा पूर्व) को समाप्त कर दिया। यह घटना मगध में केंद्रीकृत शक्ति के पतन का प्रतीक है, जो बाद में गुप्त काल तक पुनर्जनन नहीं हुआ।
सातवाहन का विस्तार: सातवाहन ने मध्य भारत (मालवा, विदिशा) और मगध में अपनी सत्ता स्थापित की। हालांकि, मगध पर उनका नियंत्रण संभवतः अल्पकालिक था, क्योंकि शक और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों ने जल्द ही इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाया।
राजनैतिक परिवर्तन: कण्व वंश का पतन और सातवाहन का उदय प्राचीन भारत में क्षेत्रीय शक्तियों के उभरने का दौर दर्शाता है। सातवाहन, शक, और मथुरा जैसे स्थानीय शासकों ने मौर्य और शुंग काल की केंद्रीकृत शक्ति को बदल दिया।
3. सातवाहन शासक की भूमिका
सातवाहन शासक द्वारा कण्व वंश का अंत उनकी सैन्य शक्ति, राजनैतिक रणनीति, और क्षेत्रीय विस्तार की महत्वाकांक्षा का परिणाम था। नीचे इस संदर्भ में उनकी भूमिका का विश्लेषण दिया गया है।
a. सैन्य शक्ति
सातवाहन वंश की सैन्य शक्ति दक्कन में उनकी मजबूत स्थिति और व्यापारिक समृद्धि पर आधारित थी। सातवाहन ने एक संगठित सेना विकसित की थी, जो कण्व वंश की कमजोर सेना से कहीं अधिक प्रभावी थी।
सिमुक और उनके उत्तराधिकारियों ने दक्षिण भारत में स्थानीय जनजातियों और शासकों को अपने अधीन किया, जिसने उनकी सैन्य क्षमता को बढ़ाया।
सुशर्मा के खिलाफ युद्ध में सातवाहन की सैन्य श्रेष्ठता स्पष्ट थी, क्योंकि कण्व वंश की सेना यवन, शक, और आंतरिक अस्थिरता के कारण पहले ही कमजोर हो चुकी थी।
b. राजनैतिक रणनीति
सातवाहन शासकों ने कण्व वंश की कमजोरी का लाभ उठाया। कण्व वंश का क्षेत्रीय और कमजोर शासन उन्हें एक आसान लक्ष्य बनाता था। सातवाहन ने मध्य भारत (मालवा, विदिशा) में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए राजनयिक और सैन्य रणनीतियों का उपयोग किया। संभवतः उन्होंने स्थानीय शासकों के साथ गठबंधन किए या उन्हें अपने अधीन किया। मगध पर कब्जा करना सातवाहन के लिए प्रतीकात्मक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि पाटलिपुत्र मौर्य और शुंग काल से भारत का राजनैतिक केंद्र रहा था।
c. व्यापारिक और आर्थिक समृद्धि
सातवाहन का दक्कन क्षेत्र व्यापारिक दृष्टि से समृद्ध था, विशेष रूप से पश्चिमी तट (सोपारा, भड़ौच) और रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार के कारण। इस आर्थिक समृद्धि ने सातवाहन को सैन्य और प्रशासनिक संसाधन जुटाने में मदद की। कण्व वंश की आर्थिक स्थिति, इसके विपरीत, बाहरी आक्रमणों और क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण कमजोर थी। सातवाहन की आर्थिक श्रेष्ठता ने उन्हें कण्व वंश पर विजय प्राप्त करने में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान किया।
d. सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियाँ
सातवाहन ने वैदिक और बौद्ध दोनों परंपराओं को संरक्षण दिया। नासिक और कार्ले शिलालेखों में सातवाहन शासकों (जैसे गौतमीपुत्र शातकर्णि) द्वारा बौद्ध स्तूपों और वैदिक यज्ञों को समर्थन देने का उल्लेख है। कण्व वंश के पतन के बाद, सातवाहन ने मध्य भारत और मगध में बौद्ध और वैदिक परंपराओं को बढ़ावा दिया। यह उनकी धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता की नीति का हिस्सा था।
4. सातवाहन द्वारा कण्व वंश के पतन के कारण
कण्व वंश का पतन और सातवाहन की विजय निम्नलिखित कारणों से संभव हुई:
a. कण्व वंश की आंतरिक कमजोरियाँ
कमजोर प्रशासन: कण्व वंश का प्रशासन वासुदेव कण्व के समय से ही कमजोर और क्षेत्रीय था। सुशर्मा के समय यह लगभग नाममात्र का हो चुका था।
सैन्य कमजोरी: कण्व सेना यवन, शक, और आंतरिक विद्रोहों के कारण कमजोर थी। सुशर्मा के पास सातवाहन की संगठित सेना का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे।
आर्थिक संकट: कण्व वंश की आर्थिक स्थिति बाहरी आक्रमणों और क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण कमजोर थी, जिसने उनके प्रशासन और सेना को और कमजोर किया।
वैधता पर सवाल: वासुदेव कण्व द्वारा देवभूति की हत्या ने कण्व वंश की वैधता पर सवाल उठाए, जिसने आंतरिक समर्थन को कम किया।
b. सातवाहन की सैन्य और आर्थिक श्रेष्ठता
सातवाहन की सैन्य शक्ति और संगठन ने उन्हें कण्व वंश जैसे कमजोर वंश को पराजित करने में सक्षम बनाया। दक्कन और पश्चिमी तट के व्यापारिक केंद्रों से प्राप्त आर्थिक समृद्धि ने सातवाहन को सैन्य अभियानों के लिए संसाधन प्रदान किए।
c. क्षेत्रीय शक्तियों का दबाव
यवन और शक आक्रमणों ने कण्व वंश को उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में कमजोर किया, जिसका लाभ सातवाहन ने उठाया। मथुरा, कौशांबी, और अन्य क्षेत्रों में स्थानीय शासकों की स्वायत्तता ने कण्व वंश के क्षेत्र को सीमित कर दिया, जिसने सातवाहन के लिए मध्य भारत में विस्तार को आसान बनाया।
d. राजनैतिक अवसर
कण्व वंश की कमजोरी और मगध में केंद्रीकृत शक्ति का अभाव सातवाहन के लिए एक राजनैतिक अवसर था। सातवाहन ने इस अवसर का उपयोग कर मध्य भारत और मगध में अपनी सत्ता स्थापित की।
5. सातवाहन द्वारा कण्व वंश के पतन का ऐतिहासिक महत्व
सातवाहन द्वारा कण्व वंश का पतन प्राचीन भारतीय इतिहास में कई मायनों में महत्वपूर्ण था:
a. कण्व वंश का अंत
सातवाहन की विजय ने कण्व वंश के 45 वर्षों के शासन (73-28 ईसा पूर्व) को समाप्त कर दिया। यह मगध में केंद्रीकृत शक्ति के पतन का प्रतीक है, जो मौर्य और शुंग काल से भारत का केंद्र रहा था। कण्व वंश का अंत प्राचीन भारत में क्षेत्रीय शक्तियों के उदय का दौर दर्शाता है, जिसमें सातवाहन, शक, और मथुरा जैसे स्थानीय शासक प्रमुख हुए।
b. सातवाहन वंश का उदय
कण्व वंश की पराजय ने सातवाहन वंश को मध्य भारत और मगध में अपनी सत्ता स्थापित करने का अवसर प्रदान किया। यह सातवाहन साम्राज्य के विस्तार का प्रारंभिक चरण था, जो बाद में गौतमीपुत्र शातकर्णि और वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी जैसे शासकों के समय अपने चरम पर पहुंचा। सातवाहन ने दक्षिण भारत, मध्य भारत, और पूर्वी भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया, जो प्राचीन भारत के राजनैतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देता है।
c. सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव
सातवाहन ने वैदिक और बौद्ध दोनों परंपराओं को संरक्षण दिया। कण्व वंश के पतन के बाद, सातवाहन ने मध्य भारत और मगध में बौद्ध स्तूपों (जैसे साँची, अमरावती, नागार्जुनकोंडा) और वैदिक यज्ञों को समर्थन दिया। सातवाहन का शासनकाल प्राचीन भारत में सांस्कृतिक समन्वय का दौर था, जिसमें वैदिक, बौद्ध, और जैन परंपराएँ एक साथ फली-फूलीं।
d. व्यापार और आर्थिक विकास
सातवाहन का दक्कन और पश्चिमी तट रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार का प्रमुख केंद्र था। कण्व वंश के पतन के बाद, सातवाहन ने मध्य भारत के व्यापारिक मार्गों (जैसे उज्जैन, विदिशा) पर नियंत्रण स्थापित किया, जिसने उनकी आर्थिक समृद्धि को बढ़ाया। सातवाहन के सिक्के (सोने, चांदी, और सीसे के) और शिलालेख इस आर्थिक समृद्धि को दर्शाते हैं।
e. राजनैतिक परिदृश्य में बदलाव
कण्व वंश का पतन और सातवाहन का उदय प्राचीन भारत में केंद्रीकृत शक्ति से क्षेत्रीय शक्तियों की ओर संक्रमण को दर्शाता है। यह दौर यवन, शक, और सातवाहन जैसे वंशों के बीच प्रतिस्पर्धा का था। सातवाहन की विजय ने मगध की केंद्रीकृत शक्ति को समाप्त कर क्षेत्रीय साम्राज्यों के युग को बढ़ावा दिया, जो बाद में गुप्त काल में पुनः केंद्रीकरण की ओर बढ़ा।
6. सातवाहन शासकों का कण्व वंश के पतन के बाद योगदान
कण्व वंश के पतन के बाद, सातवाहन शासकों ने निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया:
a. सैन्य और प्रशासनिक योगदान
सातवाहन ने एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था विकसित की, जिसमें प्रांतों (आहार) का शासन स्थानीय अधिकारियों (अमात्य) के हाथ में था। नासिक और कार्ले शिलालेख सातवाहन के प्रशासनिक ढांचे को दर्शाते हैं। सातवाहन ने मध्य भारत और मगध में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी, हालांकि मगध पर उनका नियंत्रण अल्पकालिक था।
b. सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
सातवाहन ने बौद्ध धर्म को व्यापक संरक्षण दिया। साँची स्तूप का विस्तार, अमरावती स्तूप, और नागार्जुनकोंडा में बौद्ध विहार सातवाहन के योगदान को दर्शाते हैं। वैदिक परंपराओं को भी समर्थन दिया गया। नासिक शिलालेख में गौतमीपुत्र शातकर्णि द्वारा वैदिक यज्ञों का उल्लेख है। सातवाहन ने प्राकृत और संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहन दिया। हाल का गाथासप्तशती सातवाहन काल की साहित्यिक उपलब्धि है।
c. व्यापार और अर्थव्यवस्था
सातवाहन ने पश्चिमी तट (सोपारा, भड़ौच) और रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार को बढ़ावा दिया। उनके सिक्के और व्यापारिक मार्ग इस आर्थिक समृद्धि को दर्शाते हैं। मध्य भारत के व्यापारिक केंद्रों (उज्जैन, विदिशा) पर नियंत्रण ने सातवाहन की आर्थिक शक्ति को बढ़ाया।
d. कला और स्थापत्य
सातवाहन काल में बौद्ध कला और स्थापत्य अपने चरम पर था। अमरावती और नागार्जुनकोंडा के स्तूप और चैत्य सातवाहन की स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। सातवाहन ने मथुरा और मध्य भारत में जैन और वैदिक कला को भी संरक्षण दिया।
7. ऐतिहासिक स्रोत
सातवाहन द्वारा कण्व वंश के पतन और उनके शासन के बारे में जानकारी निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त होती है:
साहित्यिक स्रोत:
पुराण: विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और हरिवंश पुराण में कण्व वंश के पतन और सातवाहन (आंध्र) के उदय का उल्लेख।
बौद्ध ग्रंथ: दिव्यावदान और अशोकावदान में शुंग और कण्व वंश का उल्लेख, लेकिन सातवाहन का सीधा उल्लेख नहीं।
जैन और ब्राह्मण ग्रंथ: सातवाहन के धार्मिक संरक्षण का उल्लेख।
शिलालेख:
नासिक शिलालेख: गौतमीपुत्र शातकर्णि और उनकी माता गौतमी बालश्री द्वारा सातवाहन की उपलब्धियों का उल्लेख।
कार्ले और नानाघाट शिलालेख: सातवाहन शासकों के प्रशासन और धार्मिक संरक्षण का उल्लेख।
हथिगुम्फा शिलालेख: खारवेल के मगध पर आक्रमण का उल्लेख, जो कण्व वंश के समय का हो सकता है।
पुरातात्विक साक्ष्य:
साँची, अमरावती, और नागार्जुनकोंडा: बौद्ध स्तूप और चैत्य, जो सातवाहन के सांस्कृतिक योगदान को दर्शाते हैं।
सिक्के: सातवाहन के सोने, चांदी, और सीसे के सिक्के, जो उनकी आर्थिक समृद्धि को दर्शाते हैं।
मथुरा और विदिशा: मूर्तियाँ और अवशेष।
8. विवाद और सीमाएँ
सातवाहन शासक की पहचान: कण्व वंश को समाप्त करने वाले सातवाहन शासक की सटीक पहचान (सिमुक या उनका उत्तराधिकारी) विवादास्पद है। पुराणों में सिमुक का उल्लेख है, लेकिन कालानुक्रमिक असंगतियों के कारण कुछ विद्वान इसे सिमुक के उत्तराधिकारी से जोड़ते हैं।
काल का विवाद: सातवाहन वंश का प्रारंभिक काल (2nd शताब्दी ईसा पूर्व या 1st शताब्दी ईसा पूर्व) और कण्व वंश के पतन का सटीक समय (28 ईसा पूर्व) विवाद का विषय है।
पुरातात्विक साक्ष्य:
सीमित जानकारी: सुशर्मा की पराजय और सातवाहन की विजय के बारे में विस्तृत जानकारी (युद्ध का स्थान, रणनीति, परिणाम) उपलब्ध नहीं है। यह जानकारी मुख्य रूप से पुराणों तक सीमित है।
मगध पर नियंत्रण: सातवाहन का मगध पर नियंत्रण अल्पकालिक था, क्योंकि शक और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों ने जल्द ही इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाया।
सातवाहन वंश प्राचीन भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईसवी तक दक्षिण और मध्य भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया। यह वंश अपनी प्रशासनिक कुशलता, व्यापारिक समृद्धि, और सांस्कृतिक योगदान के लिए प्रसिद्ध है। सातवाहन शासकों को अंध्र वंश के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि कुछ स्रोतों में उन्हें
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