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pushyamitr shung
jp Singh 2025-05-21 17:53:27
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पुष्यमित्र शुंग

पुष्यमित्र शुंग (लगभग 185 ईसा पूर्व 149 ईसा पूर्व)
पुष्यमित्र शुंग (लगभग 185 ईसा पूर्व 149 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत के शुंग वंश के संस्थापक और सबसे प्रभावशाली शासक थे। वे ब्राह्मण वर्ण से थे और मौर्य साम्राज्य के अंतिम सम्राट बृहद्रथ के सेनापति के रूप में सेवा करते थे। पुष्यमित्र ने 185 ईसा पूर्व में बृहद्रथ की हत्या कर मगध के सिंहासन पर कब्जा किया और शुंग वंश की स्थापना की। उनका शासनकाल वैदिक धर्म के पुनरुत्थान, यवन (इंडो-ग्रीक) आक्रमणों के खिलाफ प्रतिरोध, और सांस्कृतिक विकास के लिए जाना जाता है। नीचे पुष्यमित्र शुंग के जीवन, शासन, उपलब्धियों, और ऐतिहासिक महत्व का विस्तृत विवरण दिया गया है।
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जन्म और वंश: पुष्यमित्र का जन्म ब्राह्मण वर्ण में हुआ था। कुछ स्रोतों (जैसे पुराण) में उन्हें शुंग गोत्र का ब्राह्मण बताया गया है। उनके परिवार या प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वे उच्च कुल से थे और सैन्य व प्रशासनिक कौशल में निपुण थे।
मौर्य सेना में भूमिका: पुष्यमित्र मौर्य साम्राज्य के अंतिम सम्राट बृहद्रथ (187-185 ईसा पूर्व) के समय सेनापति थे। मौर्य साम्राज्य उस समय कमजोर हो चुका था, और बृहद्रथ का शासन अक्षम माना जाता था। पुष्यमित्र ने इस कमजोरी का लाभ उठाकर सत्ता हासिल की।
धार्मिक पृष्ठभूमि: ब्राह्मण होने के नाते, पुष्यमित्र वैदिक परंपराओं और हिंदू धर्म के प्रति समर्पित थे। मौर्य शासकों (विशेष रूप से अशोक) के बौद्ध धर्म समर्थन के कारण वैदिक धर्म का प्रभाव कम हुआ था, जिसे पुष्यमित्र ने पुनर्जनन करने का प्रयास किया।
2. सत्ता पर कब्जा (185 ईसा पूर्व)
मौर्य साम्राज्य का पतन: मौर्य साम्राज्य, जो चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक के समय अपने चरम पर था, 185 ईसा पूर्व तक आंतरिक अस्थिरता, क्षेत्रीय विद्रोह, और यवन (इंडो-ग्रीक) आक्रमणों के कारण कमजोर हो चुका था। बृहद्रथ एक कमजोर शासक था, जिसके शासन में साम्राज्य का केंद्रीकृत नियंत्रण खत्म हो गया था।
बृहद्रथ की हत्या: बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान और अशोकावदान के अनुसार, पुष्यमित्र ने एक सैन्य परेड के दौरान बृहद्रथ की हत्या कर दी। यह घटना पाटलिपुत्र में हुई। कुछ स्रोतों में इसे विद्रोह या तख्तापलट के रूप में वर्णित किया गया है।
शुंग वंश की स्थापना: हत्या के बाद, पुष्यमित्र ने स्वयं को मगध का शासक घोषित किया और शुंग वंश की नींव रखी। यह भारत में पहला प्रमुख ब्राह्मण राजवंश था।
3. शासनकाल और क्षेत्र
पुष्यमित्र ने लगभग 36 वर्षों (185 ईसा पूर्व 149 ईसा पूर्व) तक शासन किया। उनका शासन मौर्य साम्राज्य की तुलना में क्षेत्रीय था, लेकिन उन्होंने मगध और मध्य भारत में स्थिरता बनाए रखी।
a. क्षेत्र
राजधानी: पुष्यमित्र की राजधानी पाटलिपुत्र थी, जो मौर्य काल से ही मगध का केंद्र थी। कुछ स्रोतों में विदिशा (मध्य प्रदेश) को उनकी दूसरी राजधानी या महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र माना जाता है।
क्षेत्रीय विस्तार
मगध: मौर्य साम्राज्य का मूल क्षेत्र (वर्तमान बिहार)।
सीमाएँ: पुष्यमित्र का साम्राज्य मौर्य साम्राज्य जितना विशाल नहीं था। उत्तर-पश्चिम में इंडो-ग्रीक (यवन), दक्षिण में सातवाहन, और पूर्व में खारवेल (कलिंग) जैसे शासकों ने उनके विस्तार को सीमित किया।
b. सैन्य अभियान
पुष्यमित्र एक कुशल सेनानायक थे और उन्होंने कई सैन्य अभियान चलाए
यवन (इंडो-ग्रीक) आक्रमणों का मुकाबला: उत्तर-पश्चिम भारत में इंडो-ग्रीक शासक डेमेट्रियस प्रथम ने साकेत, मध्यमिका, और अन्य क्षेत्रों पर आक्रमण किया। पतंजलि के महाभाष्य में इन आक्रमणों का उल्लेख है। पुष्यमित्र ने यवनों को पराजित किया और मध्य भारत में उनके विस्तार को रोका।
आंतरिक विद्रोह: मौर्य समर्थकों और स्थानीय शासकों ने विद्रोह किए, जिन्हें पुष्यमित्र ने दबाया। मगध में स्थिरता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक था।
विदर्भ अभियान: कुछ स्रोतों के अनुसार, पुष्यमित्र या उनके पुत्र अग्निमित्र ने विदर्भ (वर्तमान महाराष्ट्र) के खिलाफ अभियान चलाया। कालिदास का नाटक मालविकाग्निमित्र इसकी पुष्टि करता है।
कलिंग के साथ तनाव: हथिगुम्फा शिलालेख में उल्लेख है कि कलिंग के शासक खारवेल ने शुंगों के खिलाफ अभियान चलाया और मगध पर आक्रमण किया। यह संभव है कि खारवेल ने पुष्यमित्र या उनके उत्तराधिकारियों के समय में यह युद्ध लड़ा।
4. प्रशासन
पुष्यमित्र ने मौर्य प्रशासन की कुछ विशेषताओं को अपनाया, लेकिन उनका शासन कम केंद्रीकृत था।
a. प्रशासनिक संरचना
राजा: पुष्यमित्र सर्वोच्च शासक थे और सैन्य, धार्मिक, और प्रशासनिक मामलों का नेतृत्व करते थे।
प्रांतीय शासन: साम्राज्य को प्रांतों में बांटा गया था। उदाहरण के लिए, उनके पुत्र अग्निमित्र को विदिशा का शासक नियुक्त किया गया था।
स्थानीय प्रशासन: गाँवों और शहरों का प्रबंधन स्थानीय अधिकारी करते थे। मौर्य काल की तरह जटिल नौकरशाही नहीं थी।
कर व्यवस्था: भूमि कर, व्यापार कर, और युद्ध लूट से आय प्राप्त होती थी। इसका उपयोग सेना, यज्ञ, और कल्याण कार्यों में किया जाता था।
b. सामाजिक नीतियाँ
वर्ण व्यवस्था: पुष्यमित्र ने चतुर्वर्ण व्यवस्था को मजबूत किया। ब्राह्मणों को विशेष दर्जा दिया गया, और वैदिक परंपराओं को प्रोत्साहन मिला।
शिक्षा: वैदिक शिक्षा और संस्कृत साहित्य को बढ़ावा दिया गया। पतंजलि जैसे विद्वान इस काल में सक्रिय थे।
5. धार्मिक नीतियाँ
पुष्यमित्र का शासन वैदिक धर्म और ब्राह्मणवादी परंपराओं के पुनरुत्थान के लिए जाना जाता है।
a. वैदिक धर्म का पुनरुत्थान
अश्वमेध यज्ञ: पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किए, जो राजनैतिक और धार्मिक शक्ति का प्रतीक थे। इन यज्ञों का उल्लेख अयोध्या शिलालेख में मिलता है। अश्वमेध यज्ञ वैदिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा था और साम्राज्य की सर्वोच्चता को दर्शाता था।
वैदिक कर्मकांड: पुष्यमित्र ने यज्ञ, होम, और वैदिक अनुष्ठानों को प्रोत्साहन दिया। इससे हिंदू धर्म की नींव मजबूत हुई।
ब्राह्मणों का संरक्षण: ब्राह्मणों को भूमि अनुदान और सम्मान दिया गया, जिसने वैदिक धर्म को सामाजिक और राजनैतिक समर्थन प्रदान किया।
6. सांस्कृतिक योगदान
पुष्यमित्र के शासनकाल में सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास हुआ, विशेष रूप से कला, स्थापत्य, और साहित्य के क्षेत्र में।
a. कला और स्थापत्य
बौद्ध स्थापत्य: सanchi स्तूप: सanchi के महास्तूप का तोरण (द्वार) और रेलिंग शुंग काल में बनाए गए। इनमें जटक कथाएँ, बुद्ध के प्रतीक (जैसे बोधि वृक्ष, चक्र), और यक्ष-यक्षिणी की नक्काशी उकेरी गई। यह भारतीय कला की शुरुआत को दर्शाता है।
भरहुत स्तूप: भरहुत (मध्य प्रदेश) का स्तूप पुष्यमित्र के समय या तत्काल बाद बनाया गया। इसकी रेलिंग और नक्काशी में बौद्ध कथाएँ और स्थानीय शैली दिखती है।
भारतीय शैली का विकास: पुष्यमित्र के समय यवन (इंडो-ग्रीक) प्रभाव कम था, और स्थानीय भारतीय शैली (जैसे यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँ) का विकास हुआ। यह मथुरा और सanchi की कला में स्पष्ट है।
मथुरा कला: मथुरा में जैन और बौद्ध मूर्तियों का निर्माण शुरू हुआ, जो शुंग काल की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है।
b. साहित्य और विद्वान
पतंजलि: प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पतंजलि पुष्यमित्र के समकालीन थे। उन्होंने महाभाष्य (पाणिनि के अष्टाध्यायी पर टीका) की रचना की। इस ग्रंथ में शुंग काल के सामाजिक, राजनैतिक, और धार्मिक जीवन का वर्णन है। पतंजलि ने यवन आक्रमणों और साकेत जैसे शहरों का उल्लेख किया।
वैदिक साहित्य: पुष्यमित्र के संरक्षण में वेदों और स्मृतियों का अध्ययन बढ़ा। यह वैदिक परंपराओं के पुनर्जनन का हिस्सा था।
कालिदास का उल्लेख: यद्यपि कालिदास बाद के काल (संभवतः गुप्त काल) से हैं, उनके नाटक मालविकाग्निमित्र में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र का वर्णन है, जो शुंग काल की समृद्धि को दर्शाता है।
7. यवन और अन्य चुनौतियाँ
पुष्यमित्र के शासनकाल में उत्तर-पश्चिम भारत पर यवन (इंडो-ग्रीक) आक्रमण एक बड़ी चुनौती थे।
यवन आक्रमण: इंडो-ग्रीक शासक डेमेट्रियस प्रथम ने पंजाब, साकेत, और मध्यमिका पर आक्रमण किया। पुष्यमित्र ने इन आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया। पतंजलि के महाभाष्य में उल्लेख है कि यवनों को मध्य भारत में रोका गया।
सैन्य शक्ति: पुष्यमित्र की सेना में युद्ध हाथी, घुड़सवार, और पैदल सैनिक शामिल थे। उनकी सैन्य रणनीति ने मगध को यवन विस्तार से बचाया।
खारवेल का आक्रमण: हथिगुम्फा शिलालेख में कलिंग के शासक खारवेल के मगध पर आक्रमण का उल्लेख है। यह संभव है कि यह आक्रमण पुष्यमित्र के शासन के अंतिम वर्षों या उनके उत्तराधिकारियों के समय में हुआ।
8. मृत्यु और उत्तराधिकार
मृत्यु: पुष्यमित्र की मृत्यु लगभग 149 ईसा पूर्व में हुई। उनकी मृत्यु के कारणों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह स्वाभाविक थी।
उत्तराधिकारी: पुष्यमित्र के बाद उनके पुत्र अग्निमित्र ने सिंहासन संभाला। अग्निमित्र विदिशा का शासक था और कालिदास के मालविकाग्निमित्र में उसका वर्णन है। बाद में वसुमित्र और अन्य शासकों ने शुंग वंश को आगे बढ़ाया।
9. ऐतिहासिक महत्व और प्रभाव
पुष्यमित्र शुंग का प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्व निम्नलिखित कारणों से है
a. वैदिक धर्म का पुनरुत्थान
पुष्यमित्र ने मौर्य काल के बौद्ध प्रभाव के बाद वैदिक धर्म और ब्राह्मणवादी परंपराओं को पुनर्जनन किया। उनके अश्वमेध यज्ञ और ब्राह्मणों को संरक्षण ने हिंदू धर्म की नींव को मजबूत किया।
यह काल वैष्णव और शैव धर्म के प्रारंभिक विकास का भी साक्षी था।
b. यवन आक्रमणों का प्रतिरोध
पुष्यमित्र ने इंडो-ग्रीक आक्रमणों को रोककर मध्य और उत्तरी भारत को स्थिरता प्रदान की। यह भारतीय सांस्कृतिक अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण था।
उनके शासन ने यवनों के भारतीयकरण को भी प्रेरित किया, जैसा कि हेलियोडोरस स्तंभ से पता चलता है।
10. विवाद और आलोचनाएँ
बौद्ध उत्पीड़न का आरोप: बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र पर बौद्ध विहारों को नष्ट करने और भिक्षुओं पर अत्याचार करने का आरोप है। हालांकि, सanchi और भरहुत जैसे बौद्ध स्थलों का विकास इस दावे पर सवाल उठाता है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह बौद्ध लेखकों का पक्षपात हो सकता है।
तख्तापलट की नैतिकता: बृहद्रथ की हत्या को कुछ स्रोतों में अनैतिक माना गया है। बौद्ध ग्रंथ पुष्यमित्र को नकारात्मक रूप में चित्रित करते हैं।
सीमित साम्राज्य: पुष्यमित्र मौर्य साम्राज्य की तरह विशाल साम्राज्य स्थापित नहीं कर सके। उनका शासन क्षेत्रीय था और यवन, सातवाहन, और खारवेल जैसे शासकों ने उनकी शक्ति को सीमित किया।
11. ऐतिहासिक स्रोत
पुष्यमित्र शुंग के बारे में जानकारी निम्नलिखित स्रोतों से मिलती है
साहित्यिक स्रोत:
पुराण (विष्णु पुराण, भागवत पुराण): मौर्य और शुंग वंशों का कालानुक्रमिक वर्णन।
बौद्ध ग्रंथ: दिव्यावदान, अशोकावदान, और महावंश में पुष्यमित्र का उल्लेख, यद्यपि पक्षपातपूर्ण।
संस्कृत साहित्य: पतंजलि का महाभाष्य और कालिदास का मालविकाग्निमित्र।
शिलालेख
अयोध्या शिलालेख: पुष्यमित्र के अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख।
हथिगुम्फा शिलालेख: खारवेल के मगध पर आक्रमण का वर्णन।
सanchi और भरहुत स्तूप: शुंग काल की कला और स्थापत्य।
सिक्के: पुष्यमित्र और उनके उत्तराधिकारियों के तांबे और सीसे के सिक्के।
मथुरा और कौशांबी: मूर्तियाँ और अवशेष।
Conclusion
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