Bindusar
jp Singh
2025-05-21 12:44:22
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बिंदुसार
बिंदुसार (297-272 ईसा पूर्व)
बिंदुसार, जिन्हें इतिहास में आमित्रगुप्त या आमित्रखाद के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के दूसरे सम्राट थे। वे मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और सम्राट अशोक के पिता थे। उनका शासनकाल लगभग 298 ईसा पूर्व से 273 ईसा पूर्व तक माना जाता है। बिंदुसार का शासन मौर्य साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी था, जिसने चंद्रगुप्त द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य को मजबूत किया और अशोक के शासन के लिए आधार तैयार किया। नीचे बिंदुसार के जीवन, शासन और योगदान का विस्तृत विवरण दिया गया है
1. प्रारंभिक जीवन और उत्पत्ति
जन्म और परिवार: बिंदुसार का जन्म लगभग 320 ईसा पूर्व में हुआ था। वे चंद्रगुप्त मौर्य और उनकी पत्नी दुर्धारा (या कुछ स्रोतों के अनुसार अन्य रानी) के पुत्र थे। उनका नाम
उपनाम: ग्रीक स्रोतों में उन्हें आमित्रगुप्त (Amitrochates) कहा गया, जो संस्कृत शब्द
शिक्षा और प्रशिक्षण: बिंदुसार को राजनैतिक और सैन्य प्रशिक्षण चाणक्य (जिन्हें कौटिल्य भी कहा जाता है) जैसे विद्वानों की देखरेख में मिला, जो चंद्रगुप्त के समय से मौर्य साम्राज्य के प्रमुख सलाहकार थे।
2. शासनकाल
बिंदुसार का शासनकाल लगभग 25 वर्षों तक रहा। इस दौरान उन्होंने अपने पिता चंद्रगुप्त द्वारा स्थापित साम्राज्य को न केवल बनाए रखा, बल्कि इसे और विस्तार भी दिया।
a. साम्राज्य का विस्तार
विरासत में प्राप्त साम्राज्य: चंद्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी, जो पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान और दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था। बिंदुसार ने इस साम्राज्य को संगठित और मजबूत किया।
दक्षिण भारत में विजय: कुछ स्रोतों के अनुसार, बिंदुसार ने दक्षिण भारत में मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया। तमिल साहित्य (जैसे ममुलनार के काव्य) और अन्य स्रोतों में उल्लेख है कि मौर्य सेनाओं ने दक्षिण में चोल, पांड्य और केरलपुत्र जैसे राज्यों पर आधिपत्य स्थापित किया। हालांकि, ये विजय पूर्ण अधीनता की बजाय नाममात्र की हो सकती हैं।
विद्रोहों का दमन: बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला (वर्तमान पाकिस्तान) में विद्रोह हुए। उन्होंने अपने पुत्र अशोक को तक्षशिला भेजकर इन विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबाया। इससे अशोक की सैन्य और प्रशासनिक क्षमता का भी परिचय मिलता है।
b. प्रशासन
बिंदुसार ने चंद्रगुप्त और चाणक्य द्वारा स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था को जारी रखा। मौर्य प्रशासन केंद्रीकृत और अत्यधिक संगठित था।
प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को विभिन्न प्रांतों में बांटा गया था, जिन्हें जनपद कहा जाता था। इन प्रांतों का शासन राजकुमारों (कुमार) या विश्वसनीय अधिकारियों के हाथ में था।
आर्थिक व्यवस्था: मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार और करों पर आधारित थी। बिंदुसार ने व्यापार को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से पश्चिमी देशों (यूनानियों) के साथ।
चाणक्य की भूमिका: हालांकि चाणक्य का प्रभाव चंद्रगुप्त के समय जितना प्रबल नहीं रहा, फिर भी वे बिंदुसार के शासन में सलाहकार के रूप में सक्रिय रहे। कुछ कथाओं के अनुसार, चाणक्य ने बिंदुसार की माता दुर्धारा की मृत्यु के बाद उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
c. विदेशी संबंध
बिंदुसार के समय मौर्य साम्राज्य का संपर्क पश्चिमी देशों, विशेष रूप से सेल्यूसिड साम्राज्य (यूनानी शासकों) के साथ बना रहा। ग्रीक इतिहासकारों, जैसे स्ट्रैबो और एथेनियस, के अनुसार, सेल्यूसिड शासक एंटियोकस प्रथम ने बिंदुसार के दरबार में अपना दूत डाइमेकस (Deimachus) भेजा था।
बिंदुसार ने डाइमेकस के माध्यम से एंटियोकस से मीठी शराब, सूखे अंजीर और एक सोफिस्ट (दार्शनिक) मांगा था। जवाब में, एंटियोकस ने कहा कि वह शराब और अंजीर भेज सकता है, लेकिन यूनानी कानून दार्शनिक को बेचने की अनुमति नहीं देता।
ये पत्राचार मौर्य साम्राज्य की कूटनीतिक ताकत और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी स्थिति को दर्शाते हैं।
3. धर्म और संस्कृति
धार्मिक नीति: बिंदुसार के धार्मिक विचारों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि वे आजिविक संप्रदाय के प्रति झुकाव रखते थे। आजिविक संप्रदाय उस समय का एक प्रमुख दार्शनिक और धार्मिक समूह था, जो जैन धर्म और बौद्ध धर्म के समानांतर था।
जैन और बौद्ध प्रभाव: कुछ जैन ग्रंथों में बिंदुसार को जैन धर्म से जोड़ा गया है, जबकि बौद्ध ग्रंथों में उनके शासनकाल का उल्लेख कम है। उनके पुत्र अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने से पहले मौर्य दरबार में विभिन्न धर्मों का प्रभाव था।
सांस्कृतिक विकास: बिंदुसार के समय में कला, साहित्य और व्यापार को प्रोत्साहन मिला। पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) मौर्य साम्राज्य की राजधानी के रूप में एक समृद्ध सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था।
4. व्यक्तिगत जीवन
परिवार: बिंदुसार की कई पत्नियां थीं, और उनके कई पुत्र थे। इनमें सबसे प्रमुख अशोक और सुसीम थे। अशोक उनके उत्तराधिकारी बने। कुछ स्रोतों में उनकी 16 पत्नियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है, लेकिन यह अतिशयोक्ति हो सकती है।
कथाएं: बौद्ध ग्रंथों (जैसे दिव्यावदान) में एक कथा है कि बिंदुसार की माता दुर्धारा की मृत्यु चाणक्य की साजिश के कारण हुई थी, क्योंकि उन्होंने गलती से विषाक्त भोजन खा लिया था। हालांकि, ये कथाएं ऐतिहासिक रूप से पूरी तरह विश्वसनीय नहीं हैं।
5. मृत्यु और उत्तराधिकार
बिंदुसार की मृत्यु लगभग 273 ईसा पूर्व में हुई। उनकी मृत्यु के कारणों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह स्वाभाविक थी। उनकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर उनके पुत्रों सुसीम और अशोक के बीच संघर्ष हुआ। अंततः, अशोक ने अपने भाइयों को परास्त कर मौर्य सिंहासन पर कब्जा किया और मौर्य साम्राज्य को नई ऊंचाइयों तक ले गए।
6. ऐतिहासिक महत्व
साम्राज्य की स्थिरता: बिंदुसार का शासनकाल मौर्य साम्राज्य के लिए एक स्थिरता का दौर था। उन्होंने चंद्रगुप्त की विरासत को संभाला और अशोक के लिए एक मजबूत साम्राज्य छोड़ा।
कूटनीति और व्यापार: उनके समय में यूनानियों के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों ने मौर्य साम्राज्य की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाया।
अशोक का मार्ग प्रशस्त करना: बिंदुसार के शासन ने अशोक को एक संगठित और शक्तिशाली साम्राज्य सौंपा, जिसे अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ विश्व इतिहास में अमर कर दिया।
7. स्रोत और सीमित जानकारी
बिंदुसार के बारे में जानकारी मुख्य रूप से निम्नलिखित स्रोतों से मिलती है
बौद्ध ग्रंथ: जैसे दिव्यावदान और अशोकावदान।
जैन ग्रंथ: जैसे परिशिष्टपर्वन।
ग्रीक स्रोत: स्ट्रैबो, एथेनियस और अन्य यूनानी इतिहासकारों के लेख।
पुराण: जैसे विष्णु पुराण और भागवत पुराण, जो मौर्य वंश का उल्लेख करते हैं।
हालांकि, बिंदुसार के बारे में जानकारी उनके पिता चंद्रगुप्त और पुत्र अशोक की तुलना में कम है, क्योंकि उनके शासनकाल में कोई बड़े युद्ध या धार्मिक परिवर्तन नहीं हुए।
अशोक (268-232 ईसा पूर्व)
सम्राट अशोक (लगभग 304 ईसा पूर्व 232 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक थे और मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे। वे बिंदुसार के पुत्र और चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र थे। अशोक का शासनकाल (लगभग 268 ईसा पूर्व 232 ईसा पूर्व) उनकी सैन्य विजयों, प्रशासनिक कुशलता और सबसे महत्वपूर्ण रूप से बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए प्रसिद्ध है। शुरू में एक क्रूर और महत्वाकांक्षी शासक के रूप में जाने जाने वाले अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा, करुणा और धर्म के सिद्धांतों को अपने शासन और जीवन का आधार बनाया। नीचे अशोक के जीवन, शासन, और योगदान का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. प्रारंभिक जीवन
जन्म और परिवार: अशोक का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुआ था। उनके पिता बिंदुसार और माता सुभद्रांगी (या धर्मा, कुछ स्रोतों के अनुसार) थीं। अशोक के कई सौतेले भाई-बहन थे, क्योंकि बिंदुसार की कई पत्नियां थीं।
नाम का अर्थ:
शिक्षा और प्रशिक्षण: अशोक को राजनैतिक, सैन्य और प्रशासनिक प्रशिक्षण प्राप्त था। वे युद्ध कला, शस्त्र विद्या और शासन प्रबंधन में निपुण थे। कुछ स्रोतों के अनुसार, चाणक्य जैसे विद्वानों का प्रभाव उनके प्रारंभिक जीवन में रहा।
प्रारंभिक व्यक्तित्व: बौद्ध ग्रंथों (जैसे अशोकावदान) में अशोक को युवावस्था में क्रूर और उग्र स्वभाव का बताया गया है, जिसके कारण उन्हें चंडाशोक (क्रूर अशोक) कहा जाता था। हालांकि, ये कथाएं उनके बाद के परिवर्तन को उजागर करने के लिए अतिशयोक्ति हो सकती हैं।
2. शासनकाल और सैन्य विजय
अशोक का शासनकाल लगभग 268 ईसा पूर्व से शुरू हुआ और उनकी मृत्यु तक (232 ईसा पूर्व) चला। उनका शासन दो चरणों में बांटा जा सकता है: कलिंग युद्ध से पहले और कलिंग युद्ध के बाद।
a. शासन प्राप्ति
उत्तराधिकार संघर्ष: बिंदुसार की मृत्यु (273 ईसा पूर्व) के बाद उत्तराधिकार के लिए अशोक और उनके सौतेले भाइयों, विशेष रूप से सुसीम, के बीच संघर्ष हुआ। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, अशोक ने अपने कई भाइयों को मारकर सिंहासन हासिल किया, हालांकि ये कथाएं विवादास्पद हैं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह संघर्ष सीमित था।
तक्षशिला में अनुभव: बिंदुसार के शासनकाल में अशोक को तक्षशिला (वर्तमान पाकिस्तान) में विद्रोह दबाने के लिए भेजा गया था। वहां उन्होंने अपनी सैन्य और प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया। बाद में, उन्हें उज्जैन का गवर्नर बनाया गया।
b. कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व)
पृष्ठभूमि: अशोक के शासन के आठवें वर्ष में, उन्होंने कलिंग (वर्तमान ओडिशा और आंध्र प्रदेश का तटीय क्षेत्र) पर आक्रमण किया। कलिंग एक स्वतंत्र और समृद्ध राज्य था, जो मौर्य साम्राज्य के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण था।
युद्ध का परिणाम: अशोक की सेना ने कलिंग पर विजय प्राप्त की, लेकिन इस युद्ध में भारी नरसंहार हुआ। अशोक के 13वें शिलालेख के अनुसार, लगभग 1,00,000 लोग मारे गए, 1,50,000 लोग बंदी बनाए गए, और अनगिनत लोग घायल हुए या बेघर हो गए।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: युद्ध की भयावहता और विनाश ने अशोक के मन पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने युद्ध की हिंसा और मानवीय पीड़ा को देखकर युद्ध और हिंसा का त्याग करने का निर्णय लिया। इस घटना ने उन्हें बौद्ध धर्म की ओर प्रेरित किया।
3. बौद्ध धर्म और धर्माशोक
कलिंग युद्ध के बाद अशोक का जीवन और शासन पूरी तरह बदल गया। वे धर्माशोक (धर्मनिष्ठ अशोक) के रूप में जाने गए।
a. बौद्ध धर्म अपनाना
प्रेरणा: कलिंग युद्ध के बाद, अशोक बौद्ध भिक्षुओं, विशेष रूप से उपगुप्त (या कुछ स्रोतों में मोग्गलिपुत्त तिस्स) के संपर्क में आए। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों, जैसे अहिंसा, करुणा और सभी प्राणियों के प्रति दया, ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया।
बौद्ध संघ में प्रवेश: अशोक ने औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म स्वीकार किया और बौद्ध संघ के एक उपासक (श्रावक) बने। हालांकि, उन्होंने अन्य धर्मों (जैसे जैन, आजिविक, और ब्राह्मणवाद) के प्रति भी सहिष्णुता बनाए रखी।
धम्म की अवधारणा: अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को व्यापक रूप में प्रचारित करने के लिए धम्म (धर्म) की अवधारणा विकसित की। उनका धम्म केवल बौद्ध धर्म तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक नैतिक और सामाजिक आचार संहिता थी, जिसमें निम्नलिखित शामिल थे
ता थी, जिसमें निम्नलिखित शामिल थे: अहिंसा (हिंसा का त्याग), सत्य, करुणा और दान, माता-पिता और गुरुओं का सम्मान, सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता, पर्यावरण और पशु संरक्षण
b. धम्म का प्रचार
शिलालेख और स्तंभ: अशोक ने अपने धम्म के सिद्धांतों को जनता तक पहुंचाने के लिए पूरे साम्राज्य में शिलालेख (रॉक एडिक्ट्स) और स्तंभ लेख (पिलर एडिक्ट्स) स्थापित किए। ये लेख प्राकृत भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे (कुछ क्षेत्रों में खरोष्ठी और ग्रीक लिपि का भी उपयोग हुआ)। ये शिलालेख आज भी भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल में पाए जाते हैं।
प्रमुख शिलालेख: 13वां शिलालेख (कलिंग युद्ध का वर्णन), 1लां शिलालेख (पशु बलि पर प्रतिबंध), और 9वां शिलालेख (धम्म के नैतिक सिद्धांत)।
स्तंभ लेख: सारनाथ, लौरिया-नंदनगढ़, और प्रयागराज (इलाहाबाद) के स्तंभ प्रसिद्ध हैं। सारनाथ का अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
धम्म-महामात्र: अशोक ने धम्म के प्रचार और सामाजिक सुधारों के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए, जिन्हें धम्म-महामात्र कहा गया। ये अधिकारी धम्म के सिद्धांतों को लागू करने और जनता की समस्याओं का समाधान करने में सहायता करते थे।
अंतरराष्ट्रीय प्रचार: अशोक ने बौद्ध धर्म को भारत के बाहर, जैसे श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, मिस्र, सीरिया, और ग्रीस तक पहुंचाया। उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा, जहां उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया। श्रीलंका में अनुराधापुर में लगाया गया बोधि वृक्ष आज भी अशोक के योगदान की याद दिलाता है।
तृतीय बौद्ध संगीति: अशोक के संरक्षण में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति (लगभग 250 ईसा पूर्व) का आयोजन हुआ, जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को शुद्ध करना और इसे संगठित रूप देना था।
4. प्रशासन
अशोक का प्रशासन मौर्य साम्राज्य की केंद्रीकृत और कुशल व्यवस्था का उत्कृष्ट उदाहरण था। उन्होंने अपने पिता और दादा की नीतियों को और परिष्कृत किया।
a. प्रशासनिक संरचना
केंद्रीय शासन: अशोक स्वयं शासन के केंद्र में थे। उन्होंने मंत्रियों और सलाहकारों की सहायता से शासन चलाया।
प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को चार प्रमुख प्रांतों में बांटा गया था
उत्तरापथ (तक्षशिला), अवंतिरथ (उज्जैन), प्राच्य (पाटलिपुत्र), दक्षिणापथ (सुवर्णगिरि)
इन प्रांतों का शासन राजकुमारों या विश्वसनीय अधिकारियों के हाथ में था।
स्थानीय प्रशासन: प्रांतों को छोटी इकाइयों (जनपद) में बांटा गया था, जिनका प्रबंधन स्थानीय अधिकारी करते थे।
b. सामाजिक सुधार
सामाजिक कल्याण: अशोक ने जनता के कल्याण के लिए कई कार्य किए, जैसे: अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना (मनुष्यों और पशुओं के लिए)। सड़कों, विश्रामगृहों (सेराई), और कुओं का निर्माण। वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण।
पशु संरक्षण: अशोक ने पशु बलि पर प्रतिबंध लगाया और कई प्रजातियों के शिकार पर रोक लगाई। उनके शिलालेखों में 25 प्रजातियों के संरक्षण का उल्लेख है।
महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए: अशोक ने महिलाओं, अनाथों, और वृद्धों के कल्याण के लिए विशेष प्रावधान किए।
c. आर्थिक नीतियां
कृषि और व्यापार: अशोक ने कृषि को बढ़ावा देने के लिए सिंचाई सुविधाओं का विकास किया। व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए सड़कों और बंदरगाहों का निर्माण हुआ।
कर व्यवस्था: मौर्य कर व्यवस्था को और व्यवस्थित किया गया। करों का उपयोग जनकल्याण और धम्म के प्रचार में किया जाता था।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार: अशोक के समय में यूनान, मिस्र, और मध्य एशिया के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत थे।
5. विदेशी संबंध
अशोक के समय मौर्य साम्राज्य की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा चरम पर थी। उनके शिलालेखों में पश्चिमी देशों, जैसे एंटियोकस II (सेल्यूसिड साम्राज्य), टॉलेमी II (मिस्र), और अन्य यूनानी शासकों के साथ संबंधों का उल्लेख है। अशोक ने इन देशों में बौद्ध धर्म के दूत भेजे और वहां के शासकों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए। इससे भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार हुआ।
6. व्यक्तिगत जीवन
पत्नियां और संतान: अशोक की कई पत्नियां थीं, जिनमें देवी (विदिशा की एक व्यापारी की पुत्री), कारुवाकी, और पद्मावती प्रमुख थीं। उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण थे। कुणाल और तीवल उनके अन्य पुत्र थे।
जीवनशैली: बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने सादा जीवन अपनाया। उन्होंने शाही वैभव को त्याग दिया और जनता के बीच एक धर्मनिष्ठ शासक के रूप में समय बिताया।
7. मृत्यु और उत्तराधिकार
अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई। उनकी मृत्यु के कारणों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह स्वाभाविक थी। उनके बाद मौर्य साम्राज्य कमजोर होने लगा। उनके पौत्र दशरथ और संप्रति ने कुछ समय तक शासन किया, लेकिन मौर्य साम्राज्य का वैभव धीरे-धीरे समाप्त हो गया। अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या 185 ईसा पूर्व में उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की, जिसने शुंग वंश की स्थापना की।
8. ऐतिहासिक महत्व और विरासत
अशोक का भारतीय और विश्व इतिहास में अद्वितीय स्थान है। उनकी प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित हैं
बौद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार: अशोक के प्रयासों से बौद्ध धर्म भारत से बाहर श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया, और मध्य एशिया तक फैला। आज बौद्ध धर्म विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है।
नैतिक शासन: अशोक का धम्म एक ऐसी शासन व्यवस्था थी, जो नैतिकता, करुणा और सामाजिक कल्याण पर आधारित थी। यह आधुनिक लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्यों का प्रारंभिक उदाहरण है।
सांस्कृतिक एकता: अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य को धम्म के माध्यम से सांस्कृतिक और नैतिक रूप से एकजुट किया। उनके शिलालेख विभिन्न भाषाओं और लिपियों में लिखे गए, जो भारत की विविधता को दर्शाते हैं।
वास्तुकला और कला: अशोक ने कई स्तूप, विहार, और स्तंभों का निर्माण करवाया। सारनाथ, सांची, और बोधगया के स्तूप उनकी वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। अशोक स्तंभों की पॉलिश और नक्काशी मौर्य कला की विशेषता है।
पर्यावरण और पशु संरक्षण: अशोक पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण के प्रति जागरूक शासक थे, जो आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक है।
9. ऐतिहासिक स्रोत
अशोक के बारे में जानकारी निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त होती है
अशोक के शिलालेख और स्तंभ लेख: ये प्राथमिक स्रोत हैं, जो उनके शासन, नीतियों, और धम्म के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं।
बौद्ध ग्रंथ: दिव्यावदान, अशोकावदान, महावंश, और दीपवंश (श्रीलंका के ग्रंथ) में अशोक के जीवन और कार्यों का वर्णन है।
जैन और पुराण स्रोत: जैन ग्रंथ (जैसे परिशिष्टपर्वन) और पुराण (विष्णु पुराण, भागवत पुराण) में मौर्य वंश का उल्लेख है।
यूनानी और रोमन स्रोत: मेगस्थनीज की इंडिका और अन्य यूनानी लेखकों में मौर्य साम्राज्य का वर्णन है, हालांकि अशोक का व्यक्तिगत उल्लेख कम है।
पुरातात्विक साक्ष्य: अशोक के स्तूप, स्तंभ, और अन्य संरचनाएं उनके शासन की भौतिक गवाही हैं।
Conclusion
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