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Chandragupta Maurya
jp Singh 2025-05-21 12:09:28
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चंद्रगुप्त मौर्य

चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ईसा पूर्व)
चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 321-297 ईसा पूर्व) मौर्य वंश के संस्थापक और प्राचीन भारत के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उन्होंने अपने गुरु चाणक्य (कौटिल्य) के मार्गदर्शन में नंद वंश को पराजित कर मगध की सत्ता हासिल की और भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों को एकीकृत कर एक विशाल, केंद्रीकृत साम्राज्य की स्थापना की। चंद्रगुप्त ने अपनी सैन्य शक्ति, कूटनीतिक चतुराई, और प्रशासनिक कुशलता के माध्यम से मौर्य साम्राज्य को विश्व की महान शक्तियों में से एक बनाया। उनकी विजयों, विशेष रूप से यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर पर जीत, और उनके प्रशासन ने भारतीय इतिहास में एक स्वर्ण युग की नींव रखी। चंद्रगुप्त का विस्तृत विवरण निम्नलिखित बिंदुओं में प्रस्तुत है:
1. जन्म और प्रारंभिक जीवन
उत्पत्ति: चंद्रगुप्त की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है:
बौद्ध ग्रंथ (महावंश, दीपवंश) और जैन ग्रंथ (परिशिष्टपर्वन) उन्हें मोरिया कुल से जोड़ते हैं, जो शाक्य वंश से संबंधित क्षत्रिय कुल हो सकता है। पुराण (वायु पुराण, मत्स्य पुराण) उन्हें निम्न वर्ण (शूद्र) या मगध के सामान्य कुल से बताते हैं, संभवतः नंद वंश के प्रचार के प्रभाव में। यूनानी लेखक (जस्टिन, प्लूटार्क) उन्हें साधारण पृष्ठभूमि का बताते हैं, जो चाणक्य द्वारा प्रशिक्षित होकर सत्ता तक पहुंचा। जस्टिन उन्हें सैंड्रोकोट्टस कहता है, जो चंद्रगुप्त का यूनानी नाम है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि चंद्रगुप्त का जन्म मगध या इसके आसपास के क्षेत्र में हुआ, और उनकी माता का संबंध नंद वंश से हो सकता है।
जन्म: चंद्रगुप्त का जन्म संभवतः 340-345 ईसा पूर्व में हुआ। सटीक तिथि अज्ञात है।
प्रारंभिक जीवन: चंद्रगुप्त का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा था। कुछ कथाओं के अनुसार, वह बचपन में अनाथ या निर्धन था और चाणक्य ने उसे गोद लिया। चाणक्य, तक्षशिला विश्वविद्यालय के एक ब्राह्मण विद्वान और आचार्य, ने चंद्रगुप्त की प्रतिभा को पहचाना और उसे सैन्य, प्रशासनिक, और कूटनीतिक प्रशिक्षण दिया। चंद्रगुप्त ने तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्होंने युद्ध कला, अर्थशास्त्र, और दर्शन का अध्ययन किया। कुछ स्रोतों के अनुसार, चंद्रगुप्त ने सिकंदर महान के भारत अभियान (326 ईसा पूर्व) के दौरान यूनानी सैन्य रणनीतियों का अवलोकन किया, जो बाद में उनकी विजयों में सहायक हुआ।
चाणक्य के साथ मुलाकात: चाणक्य ने नंद वंश के शासक धनानंद के अपमान का बदला लेने और मगध को बाहरी खतरों (जैसे सिकंदर) से बचाने के लिए चंद्रगुप्त को चुना। चाणक्य की रणनीतियों और चंद्रगुप्त की साहसिकता ने नंद वंश के पतन की नींव रखी।
2. सत्ता प्राप्ति
नंद वंश पर विजय (321 ईसा पूर्व): नंद वंश का अंतिम शासक धनानंद अपनी कठोर नीतियों और भारी कराधान के कारण अलोकप्रिय था। उसने चाणक्य का अपमान किया, जिसने चाणक्य को नंद वंश को उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा लेने के लिए प्रेरित किया। चंद्रगुप्त ने चाणक्य के मार्गदर्शन में एक सेना संगठित की, जिसमें स्थानीय शासक, असंतुष्ट नंद अधिकारी, और जनजातीय समूह शामिल थे। चाणक्य ने गुप्तचर रणनीतियों, छापामार युद्ध, और गठबंधनों (जैसे हिमालय क्षेत्र के शासक पर्वतक) का उपयोग किया। चंद्रगुप्त ने पहले मगध के बाहरी क्षेत्रों (पंजाब, सिंध) पर कब्जा किया और धीरे-धीरे पाटलिपुत्र की ओर बढ़े। अंततः, 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर धनानंद को पराजित किया। कुछ स्रोतों के अनुसार, धनानंद को मार दिया गया, जबकि अन्य में उसे निर्वासित किया गया।
मौर्य वंश की स्थापना: नंद वंश के पतन के बाद चंद्रगुप्त ने मौर्य वंश की स्थापना की और मगध की राजधानी पाटलिपुत्र को अपने शासन का केंद्र बनाया। चाणक्य को उनका मुख्य सलाहकार (अमात्य) नियुक्त किया गया, जिन्होंने मौर्य प्रशासन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शासनकाल: चंद्रगुप्त का शासनकाल लगभग 24 वर्ष (321-297 ईसा पूर्व) तक रहा। इस दौरान उन्होंने मगध को एक विशाल साम्राज्य में बदल दिया।
3. सैन्य विजय और क्षेत्रीय विस्तार
चंद्रगुप्त ने अपनी सैन्य शक्ति और कूटनीति के माध्यम से मौर्य साम्राज्य को भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा साम्राज्य बनाया। उनकी प्रमुख विजय निम्नलिखित थीं
उत्तर-पश्चिम भारत और सेल्यूकस पर विजय (305 ईसा पूर्व)
सिकंदर महान के भारत अभियान (326 ईसा पूर्व) के बाद, उनके उत्तराधिकारी सेल्यूकस निकेटर ने उत्तर-पश्चिमी भारत (पंजाब, सिंध, अफगानिस्तान) पर नियंत्रण बनाए रखा। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस के खिलाफ युद्ध छेड़ा और उसे पराजित किया। यह युद्ध लगभग 305 ईसा पूर्व में हुआ।
युद्ध के बाद एक संधि हुई, जिसके तहत: मौर्य साम्राज्य को कंधार, हेरात, बलूचिस्तान, और सिंध के क्षेत्र प्राप्त हुए। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 युद्ध हाथी दिए, जो बाद में सेल्यूकस की सेना के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री (या एक यूनानी महिला) का विवाह चंद्रगुप्त या उनके परिवार से किया, जो मौर्य-यूनानी गठबंधन का प्रतीक था। इस विजय ने मौर्य साम्राज्य को उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थापित किया और यूनानी प्रभाव को समाप्त किया।
दक्षिण भारत का विस्तार: चंद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों (वर्तमान कर्नाटक, आंध्र प्रदेश) को अपने अधीन किया। जैन ग्रंथों (परिशिष्टपर्वन) और तमिल साहित्य (संगम साहित्य) में मौर्य प्रभाव का उल्लेख मिलता है। दक्कन और कर्नाटक के क्षेत्रों में मौर्य प्रशासन स्थापित किया गया, जैसा कि अशोक के बाद के शिलालेखों से पता चलता है।
नंद क्षेत्रों का एकीकरण: चंद्रगुप्त ने नंद वंश से विरासत में प्राप्त क्षेत्रों—कालिंग, कोशल, कुरु-पांचाल, अवंति, और वैशाली—को मौर्य साम्राज्य में पूरी तरह एकीकृत किया। इन क्षेत्रों में स्थानीय शासकों को मौर्य प्रशासन के तहत नियुक्त कर स्थिरता सुनिश्चित की।
साम्राज्य का विस्तार: AscendingList item: मौर्य साम्राज्य अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से बंगाल और दक्षिण में मैसूर तक फैला था। केवल तमिल क्षेत्र (चोल, पांड्य, चेर) और कुछ जनजातीय क्षेत्र स्वतंत्र रहे।
सैन्य शक्ति: मौर्य सेना प्राचीन विश्व की सबसे बड़ी और संगठित सेनाओं में से एक थी। यूनानी लेखक मेगस्थनीज के अनुसार, इसमें शामिल थे
6,00,000 पैदल सैनिक, 30,000 घुड़सवार, 9,000 युद्ध हाथी, युद्ध रथ और अन्य हथियार।
लोहे के हथियार, धनुष-बाण, और युद्ध रणनीतियों ने मौर्य सेना को अजेय बनाया।
नौसैनिक शक्ति ने गंगा नदी और समुद्री मार्गों पर नियंत्रण बनाए रखा।
कूटनीति: चंद्रगुप्त ने सैन्य विजय के साथ-साथ कूटनीति का उपयोग किया। सेल्यूकस के साथ संधि और यूनानी राजदूत मेगस्थनीज का पाटलिपुत्र में आगमन मौर्य-यूनानी संबंधों को दर्शाता है। स्थानीय शासकों और जनजातियों के साथ गठबंधन ने साम्राज्य को स्थिर किया।
4. प्रशासनिक व्यवस्था
चंद्रगुप्त ने चाणक्य के अर्थशास्त्र पर आधारित एक केंद्रीकृत और संगठित प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जो मौर्य साम्राज्य की नींव बनी:
केंद्रीकृत शासन: चंद्रगुप्त सर्वोच्च शासक थे, जिन्हें मंत्रिपरिषद और उच्च अधिकारियों (अमात्य) का सहयोग प्राप्त था।
चाणक्य मुख्य सलाहकार थे, जिन्होंने प्रशासनिक नीतियों को आकार दिया। पाटलिपुत्र प्रशासनिक, व्यापारिक, और सैन्य केंद्र था।
प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया, जैसे:
तोसलि (कालिंग), उज्जयिनी (अवंति), तक्षशिला (उत्तर-पश्चिम), सुवर्णगिरी (दक्षिण)।, प्रत्येक प्रांत को कुमार (राजकुमार) या महामात्र (उच्च अधिकारी) संभालते थे।
कर प्रणाली: भूमि कर (भाग, उत्पादन का 1/6), व्यापार कर, और शुल्क प्रमुख आय स्रोत थे। कर संग्रह के लिए समाहर्ता (मुख्य कोषाध्यक्ष) और सन्निधाता (खजाना प्रबंधक) नियुक्त थे। कर नीतियां कठोर लेकिन व्यवस्थित थीं, जो साम्राज्य की समृद्धि का आधार बनीं।
गुप्तचर प्रणाली: चाणक्य ने एक व्यापक गुप्तचर प्रणाली विकसित की, जो विद्रोह, भ्रष्टाचार, और बाहरी खतरों पर नजर रखती थी। गुप्तचर (गूढ़पुरुष) सामान्य नागरिकों के रूप में कार्य करते थे।
न्याय व्यवस्था: ग्राम पंचायतें और नगर अधिकारी (नगरक) स्थानीय स्तर पर न्याय प्रदान करते थे। राजा और उच्च अधिकारी गंभीर मामलों की सुनवाई करते थे। दंड कठोर लेकिन न्यायसंगत था, जैसा कि अर्थशास्त्र में वर्णित है।
स्थानीय प्रशासन: नव-अधिग्रहीत क्षेत्रों में स्थानीय शासकों को मौर्य प्रशासन में शामिल कर स्थिरता सुनिश्चित की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामणी और गोप (गांव के मुखिया) प्रशासन संभालते थे।
जनकल्याण: चंद्रगुप्त ने सड़कों, विश्रामगृहों, और सिंचाई सुविधाओं का निर्माण शुरू किया, जो बाद में अशोक ने विस्तारित किया। व्यापार और कृषि को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया गया।
5. आर्थिक विकास
चंद्रगुप्त के शासन में मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी:
कृषि: गंगा घाटी, कालिंग, और अवंति की उपजाऊ भूमि में चावल, गेहूं, जौ, और दालों की खेती होती थी। सिंचाई के लिए नहरें और जलाशय बनाए गए, जिसने उत्पादन बढ़ाया।
व्यापार: पाटलिपुत्र, तक्षशिला, उज्जयिनी, और तोसलि प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे। उत्तरापथ मार्ग (ग्रैंड ट्रंक रोड), गंगा नदी, और समुद्री मार्गों (कालिंग, दक्षिण भारत) ने व्यापार को बढ़ावा दिया। यूनान, मध्य एशिया, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित हुए। मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र को विश्व के सबसे समृद्ध शहरों में से एक बताया।
शिल्प: लोहा, तांबा, मृदभांड, और कपड़ा उद्योग विकसित थे। कारीगरों और व्यापारियों के संगठन (श्रेणी) ने शिल्प को संगठित किया।
मुद्रा: चांदी और तांबे के सिक्के (पण) व्यापार में उपयोग होते थे। सिक्कों पर प्रतीक और शिलालेख मौर्य प्रशासन की पहचान थे।
आय स्रोत: कर, व्यापार, और खनन (हीरे, सोना) ने मौर्य खजाने को समृद्ध बनाया। नंद वंश की अपार संपत्ति (80 कोटि स्वर्ण) मौर्य खजाने का आधार बनी।
6. धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान
चंद्रगुप्त ने धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहिष्णुता और संरक्षण की नीति अपनाई:
बौद्ध धर्म: चंद्रगुप्त ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, जो पाटलिपुत्र और वैशाली में फल-फूल रहा था। बौद्ध भिक्षुओं को आर्थिक सहायता दी गई, और पाटलिपुत्र बौद्ध विद्वानों का केंद्र बना।
जैन धर्म: जैन ग्रंथों (परिशिष्टपर्वन) के अनुसार, चंद्रगुप्त ने जीवन के अंतिम वर्षों में जैन धर्म स्वीकार किया। वे जैन संत भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत गए, जहां उन्होंने जैन धर्म का प्रचार किया।
वैदिक धर्म: चंद्रगुप्त ने वैदिक यज्ञ और ब्राह्मण परंपराओं का सम्मान किया। चाणक्य के ब्राह्मण होने के कारण वैदिक समुदाय का समर्थन प्राप्त था।
आजीवक संप्रदाय: चंद्रगुप्त के शासनकाल में आजीवक संप्रदाय सक्रिय था, और कुछ संतों को संरक्षण मिला।
सांस्कृतिक विकास: पाटलिपुत्र और तक्षशिला सांस्कृतिक और बौद्धिक गतिविधियों के केंद्र बने। कला, साहित्य, और दर्शन का विकास हुआ। मौर्य काल की मूर्तियां और स्थापत्य (जैसे प्रारंभिक स्तूप) कला की शुरुआत दर्शाते हैं। ब्राह्मी लिपि का उपयोग प्रशासनिक और व्यापारिक कार्यों में बढ़ा, जो भारतीय लेखन का आधार बनी।
मेगस्थनीज का योगदान: यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने चंद्रगुप्त के दरबार में समय बिताया और इंडिका लिखी, जिसमें मौर्य समाज, शासन, और संस्कृति का वर्णन है। इंडिका मौर्य काल के इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
7. चंद्रगुप्त और उनके समकालीन
चंद्रगुप्त का काल वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संपर्क का काल था
सेल्यूकस निकेटर: चंद्रगुप्त की सेल्यूकस पर विजय (305 ईसा पूर्व) ने मौर्य साम्राज्य को उत्तर-पश्चिम में स्थापित किया। सेल्यूकस के साथ संधि ने मौर्य-यूनानी संबंधों को मजबूत किया।
मेगस्थनीज: यूनानी राजदूत के रूप में मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र में मौर्य शासन का अवलोकन किया। उनकी इंडिका में चंद्रगुप्त के दरबार, सेना, और समाज का वर्णन है।
नंद वंश: धनानंद और नंद वंश के अवशेष चंद्रगुप्त के प्रारंभिक शत्रु थे। नंद सेना और संपत्ति मौर्य साम्राज्य का आधार बनी।
स्थानीय शासक: पर्वतक (हिमालय क्षेत्र) और अन्य स्थानीय शासकों ने चंद्रगुप्त के नंद अभियान में सहयोग किया।
बौद्ध और जैन गुरु: बौद्ध संत और जैन संत भद्रबाहु चंद्रगुप्त के शासनकाल में सक्रिय थे। वैशाली और पाटलिपुत्र धार्मिक केंद्र बने।
8. त्याग और मृत्यु
सिंहासन त्याग: चंद्रगुप्त ने 297 ईसा पूर्व में अपने पुत्र बिंदुसार के पक्ष में सिंहासन त्याग दिया। जैन ग्रंथों के अनुसार, उन्होंने जैन धर्म स्वीकार किया और सल्लेखना (उपवास द्वारा मृत्यु) की प्रतिज्ञा ली।
दक्षिण भारत प्रवास: चंद्रगुप्त जैन संत भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत (श्रवणबेलगोला, कर्नाटक) गए। वे वहां चंद्रगिरि पहाड़ी पर रहे और जैन धर्म का प्रचार किया।
मृत्यु: चंद्रगुप्त की मृत्यु 297 ईसा पूर्व में सल्लेखना के माध्यम से हुई। श्रवणबेलगोला में उनकी स्मृति में कई जैन मंदिर और शिलालेख हैं।
विरासत: चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद बिंदुसार ने मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया। चंद्रगुप्त की नींव पर अशोक ने मौर्य साम्राज्य को नैतिक और वैश्विक शक्ति बनाया।
9. चंद्रगुप्त की उपलब्धियां
भारतीय एकीकरण: चंद्रगुप्त ने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों को एक केंद्रीकृत शासन के तहत एकीकृत किया।
सैन्य शक्ति: नंद वंश और सेल्यूकस पर विजय ने मौर्य सेना की अजेयता सिद्ध की। मौर्य सेना (6,00,000 पैदल, 9,000 हाथी) विश्व की सबसे बड़ी थी।
प्रशासनिक नवाचार: चाणक्य के अर्थशास्त्र पर आधारित प्रशासन ने केंद्रीकरण, गुप्तचर, और कर प्रणाली को संगठित किया। प्रांतीय शासन और स्थानीय प्रशासन ने साम्राज्य को स्थिर रखा।
आर्थिक समृद्धि: कृषि, व्यापार, और शिल्प ने मगध को विश्व की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाया। पाटलिपुत्र विश्व का एक प्रमुख शहर बना।
कूटनीति: सेल्यूकस के साथ संधि और यूनानी संबंधों ने मौर्य साम्राज्य को वैश्विक मंच पर स्थापित किया।
धार्मिक सहिष्णुता: बौद्ध, जैन, वैदिक, और आजीवक धर्मों को संरक्षण देकर धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। जैन धर्म अपनाने से दक्षिण भारत में जैन प्रभाव बढ़ा।
दीर्घकालिक प्रभाव: चंद्रगुप्त की नींव पर मौर्य साम्राज्य ने बिंदुसार और अशोक के शासन में चरमोत्कर्ष प्राप्त किया। उनकी प्रशासनिक और सैन्य प्रणालियां बाद के भारतीय वंशों (गुप्त, चोल) के लिए प्रेरणा बनीं।
10. आधुनिक महत्व और विरासत
चंद्रगुप्त मौर्य को प्राचीन भारत का प्रथम एकीकरणकर्ता और मौर्य साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। उनकी सैन्य, प्रशासनिक, और कूटनीतिक उपलब्धियां भारतीय इतिहास में एक स्वर्ण युग की शुरुआत करती हैं।
पुरातात्विक साक्ष्य: पाटलिपुत्र (कुम्हरार, पटना) के अवशेष, जैसे लकड़ी की प्राचीर और नहरें, चंद्रगुप्त के काल की समृद्धि और निर्माण तकनीक को दर्शाते हैं। तक्षशिला, उज्जयिनी, और श्रवणबेलगोला के पुरातात्विक स्थल मौर्य प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। अशोक के शिलालेखों में चंद्रगुप्त के साम्राज्य के संदर्भ मिलते हैं।
सांस्कृतिक योगदान: चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र को सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र बनाया, जो मौर्य और गुप्त काल में विकसित हुआ। जैन धर्म को अपनाने से दक्षिण भारत में जैन संस्कृति का प्रसार हुआ, विशेष रूप से श्रवणबेलगोला में। ब्राह्मी लिपि का उपयोग भारतीय लेखन और शिलालेखों का आधार बना।
ऐतिहासिक स्रोत:
चाणक्य का अर्थशास्त्र: चंद्रगुप्त के प्रशासन और नीतियों का आधार।
मेगस्थनीज की इंडिका: मौर्य समाज, सेना, और शासन का यूनानी वर्णन।
बौद्ध ग्रंथ (महावंश, दीपवंश): चंद्रगुप्त और नंद विजय का उल्लेख।
जैन ग्रंथ (परिशिष्टपर्वन): चंद्रगुप्त का जैन धर्म और सल्लेखना।
पुराण (वायु, मत्स्य): मौर्य वंश का कालक्रम और उत्पत्ति।
यूनानी लेखक (जस्टिन, प्लूटार्क): चंद्रगुप्त को सैंड्रोकोट्टस के रूप में उल्लेख।
ऐतिहासिक छवि: चंद्रगुप्त को एक साहसी, रणनीतिक, और दूरदर्शी शासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने चाणक्य की बुद्धिमत्ता को सैन्य शक्ति के साथ जोड़ा। उनकी नंद और सेल्यूकस पर विजय भारतीय एकता और शक्ति का प्रतीक है। जैन धर्म अपनाने और सल्लेखना ने उन्हें एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व के रूप में भी स्थापित किया।
चाणक्य का प्रभाव: चाणक्य की रणनीतियां और अर्थशास्त्र चंद्रगुप्त की सफलता का आधार बने। चाणक्य की कूटनीति और प्रशासनिक दृष्टि आधुनिक भारत में भी प्रासंगिक है, विशेष रूप से राजनीतिक और शासन नीतियों में।
वैश्विक प्रभाव: चंद्रगुप्त के शासन ने यूनान, मध्य एशिया, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए। मौर्य साम्राज्य ने प्राचीन विश्व में भारत को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया।
चंद्रगुप्त का जीवन सत्ता, शक्ति, और आध्यात्मिकता के सामंजस्य को दर्शाता है। उनकी उपलब्धियां भारतीय इतिहास में एकीकरण, समृद्धि, और शासन कला के प्रतीक हैं।
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