Navdatoli / Malwa Culture
jp Singh
2025-05-20 16:06:48
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नावदाटोली सभ्यता, मालवा संस्कृति
नावदाटोली सभ्यता, मालवा संस्कृति
नावदाटोली सभ्यता, मालवा संस्कृति
नावदाटोली (Navdatoli) सभ्यता, मालवा संस्कृति (Malwa Culture) का एक प्रमुख ताम्रपाषाणकालीन (Chalcolithic) पुरातात्विक स्थल है, जो भारत के मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में, इंदौर से लगभग 60 मील दक्षिण में, नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। यह सभ्यता लगभग 2000 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व तक फली-फूली और हड़प्पा सभ्यता की समकालीन थी। नावदाटोली मुख्य रूप से ग्रामीण और कृषि-आधारित संस्कृति थी, जो अपनी विशिष्ट मृदभांड शैली और सामाजिक-आर्थिक जीवन के लिए जानी जाती है। इसका विस्तृत विवरण निम्नलिखित बिंदुओं में प्रस्तुत है:
1. स्थान और भौगोलिक महत्व
नावदाटोली, मध्य प्रदेश के धार जिले में, नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर, महेश्वर के सामने स्थित है। यह क्षेत्र उपजाऊ काली मिट्टी से समृद्ध है, जो कृषि के लिए अनुकूल था।
नर्मदा नदी ने जल आपूर्ति, सिंचाई, और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने नावदाटोली को एक समृद्ध बस्ती बनाया।
यह स्थल मालवा क्षेत्र के अन्य ताम्रयुगीन स्थलों जैसे कायथा, एरन, और नागदा के साथ सांस्कृतिक और व्यापारिक रूप से जुड़ा था।
भौगोलिक रूप से, नावदाटोली मध्य भारत के व्यापारिक मार्गों पर स्थित था, जो इसे दक्षिण और उत्तर भारत के साथ जोड़ता था।
2. खोज और उत्खनन
नावदाटोली की खोज और उत्खनन 1957-58 में डॉ. एच. डी. सांखलिया के नेतृत्व में दक्कन कॉलेज, पुणे द्वारा किया गया। बाद में 1958-59 में डॉ. वी. एन. मिश्रा और डॉ. के. टी. एम. हेगड़े ने भी उत्खनन में योगदान दिया। उत्खनन में चार स्तर (Layers) की बस्तियां मिलीं, जो निरंतर बसावट और सांस्कृतिक विकास को दर्शाती हैं। ये स्तर मालवा संस्कृति के विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं। रेडियो कार्बन डेटिंग के आधार पर, नावदाटोली का काल 2000-1200 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया है। यह स्थल मालवा संस्कृति का सबसे बड़ा और सबसे अच्छी तरह से अध्ययन किया गया केंद्र है।
3. नगरीय संरचना और वास्तुकला
बस्ती की संरचना: नावदाटोली एक ग्रामीण बस्ती थी, जो लगभग 10 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली थी। बस्ती में गोल, आयताकार, और वर्गाकार मकान थे, जो मुख्यआवासीय संरचना: मकान मुख्य रूप से मिट्टी और बांस से बने थे, जिनकी दीवारें कच्ची मिट्टी से लेपित थीं। सबसे बड़ा मकान 4.5 मीटर लंबा और 3 मीटर चौड़ा था, जो छोटे आकार को दर्शाता है। मकानों में मिट्टी के फर्श, चूल्हे, और अनाज भंडारण के लिए गड्ढे थे।
सामुदायिक संरचनाएं: कुछ बड़े मकान सामुदायिक उपयोग के लिए हो सकते थे, जैसे अनाज भंडारण या सामाजिक सभाएं।
जल प्रबंधन: नर्मदा नदी ने जल आपूर्ति प्रदान की, लेकिन हड़प्पा सभ्यता की तरह उन्नत जल निकासी प्रणाली के साक्ष्य नहीं मिले। कुछ गड्ढे संभवतः वर्षा जल संग्रहण के लिए थे।
सुरक्षा: बस्ती के चारों ओर कोई मजबूत दीवार या खाई नहीं मिली, जो ग्रामीण और शांतिपूर्ण समाज का संकेत देता है।
4. आर्थिक गतिविधियां
कृषि: नावदाटोलीवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। वे गेहूं, जौ, चावल, मसूर, चना, और मटर उगाते थे। उत्खनन में अनाज के दाने और भंडारण घड़े मिले हैं।
पशुपालन: गाय, भैंस, बकरी, भेड़, और सुअर पाले जाते थे। पशु हड्डियों के अवशेष पशुपालन की प्रचलन को दर्शाते हैं।
धातु कार्य: तांबे के उपकरण, जैसे छेनी, हुक, और आभूषण, उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। तांबे की खानों की निकटता ने धातु कार्य को बढ़ावा दिया।
शिल्प:
मृदभांड निर्माण: नावदाटोली मालवा संस्कृति के विशिष्ट मृदभांडों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें चमकदार लाल-नारंगी सतह और काले चित्रांकन (ज्यामितीय, पशु-पक्षी, पौधे) शामिल हैं।
मनके निर्माण: कार्नेलियन, एगेट, और टेराकोटा के मनके।
कपड़ा बुनाई: तकली के चक्के (स्पिंडल व्हॉर्ल्स) बुनाई की प्रथा को दर्शाते हैं।
व्यापार: नावदाटोली का अन्य मालवा स्थलों (कायथा, नागदा), जोर्वे संस्कृति (इनामगांव), और संभवतः हड़प्पा सभ्यता के साथ व्यापारिक संबंध था। समुद्री शंख और कीमती पत्थरों के मनके बाहरी व्यापार को दर्शाते हैं।
5. सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन
मृदभांड: नावदाटोली के मृदभांड मालवा संस्कृति की पहचान हैं। ये लाल-नारंगी रंग के होते थे, जिन पर काले रंग से ज्यामितीय आकृतियां, पशु-पक्षी (हिरण, मोर), और पौधों के चित्र बनाए जाते थे। कुछ बर्तनों पर सफेद रंग का उपयोग भी हुआ।
मूर्तियां: मिट्टी की मातृदेवी (Mother Goddess) और बैल की मूर्तियां मिली हैं, जो धार्मिक मान्यताओं और कृषि-समृद्धि के प्रतीकों को दर्शाती हैं।
धर्म और अंतिम संस्कार: नावदाटोलीवासी शवों को दफनाते थे। वयस्कों को गड्ढों में और बच्चों को मटकों में दफनाने की प्रथा थी। दफन सामग्री (बर्तन, मनके) मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाती है। कोई बड़ा मंदिर या पूजा स्थल नहीं मिला।
सामाजिक संरचना: मकानों का आकार और सामुदायिक संरचनाएं संयुक्त परिवार प्रथा और सामाजिक समानता को दर्शाती हैं। समाज में किसान, पशुपालक, और कारीगर प्रमुख वर्ग थे।
6. वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां
कृषि तकनीक: उपजाऊ मिट्टी और नर्मदा नदी का उपयोग उन्नत कृषि को दर्शाता है। अनाज भंडारण की प्रणाली विकसित थी।
तांबे की तकनीक: तांबा गलाने और उपकरण निर्माण में कुशलता। तांबे के आभूषण और औजार तकनीकी प्रगति को दर्शाते हैं।
मृदभांड निर्माण: चमकदार सतह और जटिल चित्रांकन वाली मृदभांड तकनीक शिल्प कला की उच्चता को दर्शाती है।
निर्माण तकनीक: मिट्टी और बांस से मकान निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल तकनीक का उपयोग।
7. हड़प्पा सभ्यता से संबंध और अंतर
समानताएं: दोनों ताम्रयुगीन थीं, और तांबे का उपयोग, कृषि, और व्यापार प्रचलित था। नावदाटोली का हड़प्पा के साथ व्यापारिक संबंध था, जैसा कि समुद्री शंख और हड़प्पा-शैली के मनकों से पता चलता है।
अंतर: हड़प्पा सभ्यता शहरी थी, जिसमें उन्नत नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली, और दुर्ग थे, जबकि नावदाटोली ग्रामीण थी, जिसमें ऐसी शहरी विशेषताएं नहीं थीं। नावदाटोली के मृदभांड हड़प्पा के बर्तनों से डिजाइन और शैली में भिन्न थे, और हड़प्पा की तुलना में कम मानकीकृत थे।
8. प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य
मृदभांड: मालवा शैली के लाल-नारंगी बर्तन, काले और सफेद चित्रांकन।
तांबे की वस्तुएं: छेनी, हुक, आभूषण।
मूर्तियां: मातृदेवी, बैल की टेराकोटा मूर्तियां।
अनाज: गेहूं, जौ, चावल, मसूर, चना।
निर्माण: मिट्टी-बांस के मकान, अनाज भंडारण गड्ढे।
दफन: वयस्कों के गड्ढे, बच्चों के मटके।
9. पतन के कारण
जलवायु परिवर्तन: लगभग 1200 ईसा पूर्व के बाद सूखा और वर्षा में कमी ने कृषि को प्रभावित किया, जिससे बस्ती सिकुड़ गई।
संसाधन कमी: तांबे और अन्य संसाधनों की कमी ने आर्थिक स्थिरता को कमजोर किया।
बाढ़: नर्मदा नदी में बाढ़ ने बस्ती को नुकसान पहुंचाया, जैसा कि कुछ स्तरों में जलजमाव के साक्ष्य से पता चलता है।
सांस्कृतिक परिवर्तन: अन्य समूहों का आगमन (जैसे उत्तर-वैदिक संस्कृति) या क्षेत्रीय सांस्कृतिक परिवर्तन पतन का कारण बना।
10. आधुनिक महत्व
नावदाटोली मालवा संस्कृति और मध्य भारत की ताम्रयुगीन जीवनशैली को समझने का एक प्रमुख केंद्र है। यह स्थल पुरातत्वविदों के लिए ताम्रपाषाणकाल से लौह युग के संक्रमण और ग्रामीण समाज की संरचना को अध्ययन करने का महत्वपूर्ण स्रोत है। नावदाटोली का अध्ययन प्राचीन भारत की क्षेत्रीय संस्कृतियों, उनके व्यापारिक नेटवर्क, और सांस्कृतिक विविधता को उजागर करता है।
Conclusion
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