inaamagaanv sabhyata / Jorwe Culture
jp Singh
2025-05-20 15:57:03
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इनामगांव सभ्यता / जोर्वे संस्कृति
इनामगांव सभ्यता / जोर्वे संस्कृति
इनामगांव सभ्यता / जोर्वे संस्कृति
इनामगांव सभ्यता, जिसे जोर्वे संस्कृति (Jorwe Culture) के रूप में भी जाना जाता है, भारत के महाराष्ट्र के पुणे जिले में घोड नदी (प्रवरा नदी की सहायक नदी) के तट पर स्थित एक ताम्रपाषाणकालीन (Chalcolithic) पुरातात्विक स्थल है। यह सभ्यता लगभग 1600 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक फली-फूली और पश्चिमी भारत की सबसे महत्वपूर्ण ताम्रयुगीन संस्कृतियों में से एक थी। इनामगांव हड़प्पा सभ्यता की समकालीन थी, लेकिन यह मुख्य रूप से ग्रामीण और कृषि-आधारित संस्कृति थी। इसका विस्तृत विवरण निम्नलिखित बिंदुओं में प्रस्तुत है:
1. स्थान और भौगोलिक महत्व
इनामगांव पुणे से लगभग 89 किमी दूर, अहमदनगर जिले के निकट, घोड नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। यह क्षेत्र उपजाऊ काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी) से समृद्ध है, जो कृषि के लिए आदर्श था। घोड नदी ने जल आपूर्ति और सिंचाई को सुगम बनाया। भौगोलिक रूप से, इनामगांव दक्कन पठार के मध्य में स्थित था, जो इसे अन्य ताम्रयुगीन स्थलों जैसे दायमाबाद, नेवासा, और चांदोली के साथ जोड़ता था। इसका स्थान व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए अनुकूल था, क्योंकि यह मध्य और पश्चिमी भारत के अन्य क्षेत्रों से जुड़ा था।
2. खोज और उत्खनन
इनामगांव की खोज 1970 के दशक में डॉ. एच. डी. सांखलिया, डॉ. एम. के. ढवलीकर, और डॉ. जेड. डी. अंसारी के नेतृत्व में दक्कन कॉलेज, पुणे द्वारा की गई। उत्खनन 1972 से 1980 तक चला। यह स्थल जोर्वे संस्कृति का सबसे अच्छा अध्ययन किया गया केंद्र है, क्योंकि यहां व्यापक और व्यवस्थित उत्खनन हुआ। रेडियो कार्बन डेटिंग के आधार पर, इनामगांव को दो चरणों में बांटा गया: प्रारंभिक जोर्वे चरण (1600-1400 ईसा पूर्व) और उत्तर जोर्वे चरण (1400-1000 ईसा पूर्व)। उत्खनन में कई स्तरों की बस्तियां मिलीं, जो निरंतर बसावट और सांस्कृतिक विकास को दर्शाती हैं।
3. नगरीय संरचना और वास्तुकला
बस्ती की संरचना: इनामगांव एक ग्रामीण बस्ती थी, जो लगभग 5 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली थी। बस्ती में आयताकार और गोलाकार मकान थे, जो कच्ची मिट्टी और बांस से बने थे।
आवासीय संरचना: मकान मुख्य रूप से मिट्टी की दीवारों और छप्पर की छतों से बने थे। कुछ मकानों में मिट्टी के फर्श और चूल्हे थे। आयताकार मकान संयुक्त परिवारों के लिए थे, जबकि गोलाकार मकान छोटे परिवारों या भंडारण के लिए।
जल प्रबंधन: बस्ती के निकट एक कृत्रिम नहर मिली है, जो संभवतः सिंचाई के लिए बनाई गई थी। यह जोर्वे संस्कृति की इंजीनियरिंग क्षमता को दर्शाता है।
सामुदायिक संरचनाएं: एक बड़ा आयताकार भवन मिला है, जिसे सामुदायिक हॉल या गोदाम माना जाता है। अनाज भंडारण के लिए मिट्टी के बड़े घड़े (कोठियां) भी प्राप्त हुए हैं।
4. आर्थिक गतिविधियां
कृषि: इनामगांववासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। वे जौ, गेहूं, चावल, मसूर, चना, और मटर जैसी फसलें उगाते थे। उत्खनन में अनाज के दाने और भंडारण घड़े मिले हैं।
पशुपालन: गाय, भैंस, बकरी, भेड़, और सुअर पाले जाते थे। पशु हड्डियों के अवशेष इसकी पुष्टि करते हैं।
धातु कार्य: तांबे के उपकरण, जैसे छेनी, हुक, और आभूषण, उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। तांबे की खानों की निकटता ने धातु कार्य को बढ़ावा दिया।
शिल्प: मनके निर्माण (कार्नेलियन, एगेट), मृदभांड निर्माण, और कपड़ा बुनाई के साक्ष्य मिले हैं। तकली के चक्के (स्पिंडल व्हॉर्ल्स) बुनाई की प्रथा को दर्शाते हैं।
व्यापार: इनामगांव का अन्य जोर्वे स्थलों (दायमाबाद, नेवासा) और संभवतः हड़प्पा सभ्यता के साथ व्यापारिक संबंध था। समुद्री शंख और कीमती पत्थरों के मनके बाहरी व्यापार को दर्शाते हैं।
5. सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन
मृदभांड: इनामगांव जोर्वे संस्कृति के विशिष्ट मृदभांडों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें शामिल हैं:
लाल और भूरे मृदभांड: चमकदार सतह और काले चित्रांकन के साथ।
जोर्वे मृदभांड: काले और लाल रंग में, ज्यामितीय और प्राकृतिक डिजाइनों (पशु-पक्षी, पौधे) के साथ।
मालवा मृदभांड: कुछ मकानों में मालवा संस्कृति के प्रभाव वाले बर्तन मिले हैं।
मूर्तियां: मिट्टी की मातृदेवी (Mother Goddess) और बैल की मूर्तियां मिली हैं, जो धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती हैं। बैल की मूर्तियां कृषि और समृद्धि के प्रतीक हो सकती हैं।
धर्म और अंतिम संस्कार: इनामगांववासी शवों को दफनाते थे। वयस्कों को गड्ढों में और बच्चों को मटकों में दफनाने की प्रथा थी। दफन सामग्री (बर्तन, मनके) मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाती है।
सामाजिक संरचना: आयताकार मकान संयुक्त परिवार प्रथा को दर्शाते हैं। समाज में किसान, पशुपालक, कारीगर, और संभवतः सामुदायिक नेता थे।
6. वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां
कृषि तकनीक: कृत्रिम नहर और उपजाऊ मिट्टी का उपयोग उन्नत कृषि तकनीक को दर्शाता है।
तांबे की तकनीक: तांबा गलाने और उपकरण निर्माण में कुशलता। तांबे के आभूषण और औजार तकनीकी प्रगति को दर्शाते हैं।
मृदभांड निर्माण: चमकदार सतह और जटिल चित्रांकन वाली मृदभांड तकनीक शिल्प कला की उच्चता को दर्शाती है।
सिंचाई: नहर निर्माण सिंचाई के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
7. हड़प्पा सभ्यता से संबंध और अंतर
समानताएं: दोनों ताम्रयुगीन थीं, और तांबे का उपयोग, कृषि, और व्यापार प्रचलित था। इनामगांव का हड़प्पा के साथ व्यापारिक संबंध था, जैसा कि समुद्री शंख और मनकों से पता चलता है।
अंतर: हड़प्पा सभ्यता शहरी थी, जिसमें उन्नत नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली, और दुर्ग थे, जबकि इनामगांव ग्रामीण थी, जिसमें ऐसी शहरी विशेषताएं नहीं थीं। इनामगांव के मृदभांड हड़प्पा के बर्तनों से डिजाइन और शैली में भिन्न थे।
8. प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य
मृदभांड: लाल-भूरे, काले-लाल जोर्वे बर्तन, मालवा शैली के बर्तन।
तांबे की वस्तुएं: छेनी, हुक, आभूषण।
मूर्तियां: मातृदेवी, बैल की टेराकोटा मूर्तियां।
अनाज: जौ, गेहूं, मसूर, चना।
निर्माण: कृत्रिम नहर, मिट्टी के मकान, अनाज कोठियां।
दफन: वयस्कों के गड्ढे और बच्चों के मटके।
9. पतन के कारण
जलवायु परिवर्तन: लगभग 1400 ईसा पूर्व के बाद सूखा और वर्षा में कमी ने कृषि को प्रभावित किया। उत्तर जोर्वे चरण में बस्ती का स्तर सिकुड़ गया।
संसाधन कमी: तांबे और अन्य संसाधनों की कमी ने आर्थिक स्थिरता को कमजोर किया।
सांस्कृतिक परिवर्तन: अन्य समूहों का आगमन या क्षेत्रीय सांस्कृतिक परिवर्तन पतन का कारण बना।
बाढ़: घोड नदी में बाढ़ ने बस्ती को नुकसान पहुंचाया, जैसा कि कुछ स्तरों में जलजमाव के साक्ष्य से पता चलता है।
10. आधुनिक महत्व
इनामगांव जोर्वे संस्कृति और पश्चिमी भारत की ताम्रयुगीन जीवनशैली को समझने का एक प्रमुख केंद्र है। यह स्थल पुरातत्वविदों के लिए ताम्रपाषाणकाल से लौह युग के संक्रमण और ग्रामीण समाज की संरचना को अध्ययन करने का महत्वपूर्ण स्रोत है। इनामगांव का अध्ययन प्राचीन भारत की कृषि, शिल्प, और सामाजिक व्यवस्था को उजागर करता है।
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